पवित्र गाय पर निबन्ध | A New Essay on Cow in Hindi!
भारत में बलवान वृषभ हों, बोझ उठाएँ भारी ।
अश्व बनें अनुगामी, दुर्गम पथ में विचरणकारी ।
जिनकी गति अवलोक लजाकर, हो समीर भी हारा ।
सब साधन से रहे समुन्नत भारत देश हमारा ।
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धार्मिक देश भारतवर्ष में गाय का महत्त्व प्राचीनकाल से चला आ रहा है । श्रीकृष्ण का ग्वाला बनकर गायों को चराना, वशिष्ठ जी की कामधेनु गाय, जिसके ऊपर संग्राम तक हुआ, आदर्श राम के पूर्वज राजा दिलीप की गौ-सेवा से कौन परिचित नहीं है । मुहम्मद गौरी ने भारतीयों की गाय के प्रति ऐसी आस्था देखकर गायों का झुण्ड अपनी टक्कर लेने वाली (सेना) वाहिनी के सम्मुख रखा था ।
सन् 1857 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का प्रमुख कारण गाय की चर्बी को कारतूस पर लगाना था । गौ-पालन का ध्येय दूध प्राप्त करना है जो कि एक सर्वोत्तम पेय है । स्वास्थ्य को बढ़ाने में इससे बढ़कर अन्य कोई साधन नहीं है । इसके बलिष्ठ बछड़े अपने कन्धों के बल से खेतों को जोतते हैं । अपनी विशाल छाती के बल पर भारी बोझों को गाड़ी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं । इसके गोबर का प्रयोग उपले बनाने, खेतों में खाद डालने व कच्चे फर्शों को लीपने में करते हैं ।
गाय का इतना आर्थिक एवं धार्मिक महत्व होते हुए भी वर्तमान ममय में मानव-समाज का उसके प्रति व्यवहार ठीक नहीं है । गाए जब सेवा करते-करते थक हो जाती है तो हम उसे वधकर्ताओं को चन्द रुपयों के लिए बेच देते हैं । ‘जब तक दूध तब तक आस’ के अनुसार हम उसकी सेवा करते हैं ।
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लेकिन दूध बन्द होने पर हम उसकी तरफ से मुँह मोड़ लेते हैं । गाय को मारना-पीटना और ठीक समय पर चारा न देना, स्वास्थ्य हित की कोई चिन्ता न करना हमारे लिए कलंक की बात है । गाय के मरने के बाद चमड़ा प्राप्त करते हैं जिससे जूते, हैण्ड बैग एवं विविध प्रकार की सामग्रियाँ बनती हैं । विदेशों में सहस्त्रों की संख्या में प्रतिदिन गायें मांस और चमड़े के लिए काटी जाती हैं ।
हमारा कर्त्तव्य है कि हम अपने पूर्वजों की भाँति गाय का आदर और उसकी प्राण-रक्षा करें । गायों को पालकर और उसका दुग्ध-पान कर हम बलशाली बनें । दुर्व्यवहार करने वालों को प्रेमपूर्वक समझायें । हर्ष का विषय है कि हमारी प्रान्तीय सरकार ने कुछ दिनों से गौ-वध पर प्रतिबन्ध लगा दिया है । आशा है कि भविष्य में गौ-वंश का उत्थान होगा ।