घोड़ा पर निबंध | Essay on Horse in Hindi!
हाथी और ऊँट की भांति घोड़ा भी उपयोगी पशु है । संस्कृत में इसे अश्व और अंग्रेजी में हॉर्स कहा जाता है। यह एक शक्तिशाली जानवर है । मोटर आदि की शक्ति भी ‘हॉर्स पावर’ के रूप में आंकी जाती है । घोड़ा बहुत उपयोगी है ।
इसे सवारी के लिए उपयोग में लाया जाता है। ताँगे में जोता जाता है। पर्वतीय स्थानों से चारा ढोने के काम में लाया जाता है । प्राचीन काल में घोड़ा राजा-महाराजाओं की सेना का प्रमुख अंग था । उन के रथों में भी इसी का उपयोग होता था ।
आज भी राष्ट्रपति की बग्घी में घोड़े ही जोते जाते हैं । विवाह के शुभ अवसर पर दूल्हे को भी घोड़ी पर बैठाया जाता है । अश्व की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से स्वीकार की जाती है । पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से जो चौदह रत्न निकले थे ।
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उन में अश्व भी था । घोड़ों का युद्ध में खूब प्रयोग होता रहा है और आज भी होता है । राजा-महाराजाओं के साथ अश्वों की कथाएं गुथी हैं । महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक और रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े की वीरता का इतिहास में उल्लेख मिलता है ।
अश्व की अनेक प्रजातियाँ हैं । ‘अरबी घोड़ा’ बहुत बढ़िया समझा जाता है । अश्व अनेक रंग के होते हैं । इन्हें उपयोगी बनाने के लिए चाबुक मार-मार कर प्रशिक्षित किया जाता है । वश में रखने के लिए लगाम लगाई जाती है । घोड़े पर सवार होने से पहले काठी रखी जाती है और जीन भली प्रकार कसी जाती है । जिसमें पैर रखकर व्यक्ति घोड़े पर सवार होता है । घोड़े दौड़ और कूद में करतब दिखाते हैं ।
घोड़े का मुख्य भोजन घास और चना है । रेत में लेटने से घोड़े की थकावट दूर होती है । घोड़े को प्रतिदिन घुमाना-फिराना आवश्यक है । आज कल पुलिस और सेना के पास उत्तम प्रकार के घोड़े होते हैं । सामान्य व्यक्ति अब घोड़े नहीं रखते ।
अब सवारी के लिए स्कूटर, मोटर साइकिल और कारों का प्रयोग किया जाता है । वैसे भी घोड़ी का मूल्य बहुत अधिक है। इसलिए अब बहुत सम्पन्न व्यक्ति ही घोड़े रख पाते हैं । जिन घोड़ों को तांगों में जोता जाता है, उनके पैरों में नाल ठोक दी जाती है । इससे सड़क पर चलने से घोड़े के खुर खराब नहीं होते पैर सुरक्षित रहते हैं । टट्टू भी घोड़े की ही प्रजाति है । दुर्गम पर्वतीय स्थानों पर सामान और सवारियों को लाने ले जाने में ये बड़े उपयोगी सिद्ध होते हैं ।
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घोड़े का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है । विवाहोत्सव और धार्मिक जलूसों में सजे-धजे घोड़ों को देखकर उत्साह का संचार हो जाता है । गुरू गोविन्द सिंह जयंती, महाराणा प्रताप जयंती और रामनवमी के अवसर पर सुसज्जित अश्व भारतीय जनमानस में प्राचीन गौरव को जागृत कर वीरत्व को उत्पन्न करते हैं ।