कौआ पर निबंध | Essay on Crow in Hindi!
भारतीय संस्कृति में पशु-पक्षियों का विशेष महत्त्व है । कुछ पक्षी तो ऐसे हैं । जिनका सम्बन्ध भगवान के विभिन्न अवतारों से है । उल्लू लक्ष्मी का वाहन है । चूहा गणेश जी की सवारी है। कृष्ण मोर का पंख सदैव शीश पर धारण करते हैं । कृष्ण के हाथों में मक्खन रोटी छीन कर ले जाने का वर्णन रसखान ने इस प्रकार किया है-
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी
इसी प्रकार काग भुशुंडि-प्रकरण और जटायु-प्रकरण राम कथा के अभिन्न अंग है । वनवास की अवधि पूरी होने पर माता कौशल्या राम लक्ष्मण सीता की सुधि काग से ही पूंछती है:
बैठी सगुन मनावति माता कब अइ हैं मेरे लाल कुशल घर कहहु कुरि बाता ।
शुभ संदेश देने पर कौए की चोंच सोने से मंढवाने का वर्णन भी साहित्य में मिलता है।। कौआ एक ऐसा पक्षी है जिसे शायद कोई भी पालना पसन्द नहीं करता । यह गहरे काले रंग का होता है । जगंली कौए की चोंच मोटी होती है । यह कौआ भारत में लगभग हर जगह पाया जाता । वह काँउ-काँउ की कर्कश आवाज में बोलता है ।
भारत में एक केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में 27 टापुओं पर कौआ और कुत्ते नहीं पाए जाते । वहाँ पर एक कथा प्रचलित है कि एक बार एक साधु तपस्या में लीन था । कौओं का एक झुण्ड वहां से गुजरा जिसमें से एक कौए की बीट उनके ऊपर गिर गई । तपस्वी ने उन्हें शाप दे दिया । तब से वहां पर कौए नहीं पाए जाते ।
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जंगल में कौआ मरे हुए जानवरों का मांस खाता है । गांव में तो कौआ थाली में से रोटी तक उठा कर ले जाता है । कौआ बहुत धूर्त पक्षी है परन्तु मूढ़ भी । जब वह अपने घोंसले में अण्डे देता है तो कोयल अपने अणडों को उसके घोंसले में रख देती है और कौए के अण्डे गिरा देती है । कोयल के अण्डे का आकार और रंग कौए के अण्डे जैसे होते हैं ।
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कौआ तो बेचारा उसे अपने बच्चे समझकर उन अण्डों को सेता है । बच्चे जब कुछ बड़े हो जाते हैं तो उड़कर अपनी बिरादरी वालों में मिल जाते हैं और कौआ बेचारा हाथ मलता रह जाता है । यदि व्यक्ति दु:खी हो और उसे कौआ दिखाई दे तो यह लक्षण शुभ माना जाता है ।
सिर पर कौए का बैठना मृत्यु का संकेत है लेकिन शास्त्रों में इसका उपाय भी है । कौआ यदि सिर पर बैठ जाए तो उसके तुरन्त बाद रो-पीट लेना चाहिए इससे मृत्यु टल जाती है । घर की मुंडेर पर कौआ काँउ-काँउ करे तो मेहमान के आने का संदेश देता है ।
कौए के पीछे यदि कोई दुश्मन पड़ जाए तो वह जोर-जोर से चिल्लाता है । तब अन्य कौए भी वहां पर इकट्ठे हो जाते हैं और ठोंग मार-मारकर दुश्मन को वहां से भगा देते हैं । कौए प्राय: झुण्डों में और पेड़ों पर रहते हैं । कौआ अपनी कर्कश वाणी के कारण यद्यपि अप्रिय है तथापि श्राद्ध के दिनों में लोग बड़े सम्मान से उसे बुलाते हैं:
आदर दै दे बोलियत, बलि वा की वेर ।