कम्प्यूटर: क्षेत्र एवं उपयोगिता पर निबन्ध | Essay on Computer in Hindi|
प्रस्तावना:
समूचे विश्व में कम्प्यूटर के बढ़ते उपयोग के मद्देनजर यदि वर्तमान युग क्न्म्प्यूटर युग कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी । आज बहुत कम ही ऐसे क्षेत्र हैं जो कम्भ के उपयोग से अछूते रह गए हों ।
कृषि का क्षेत्र हो या अन्तरिक्ष का, चिकित्सा का क्षेत्र या मौसम विज्ञान का, उद्योग का क्षेत्र हो या वाणिज्य-व्यापार का, शिक्षा का क्षेत्र हो या वेज्ञानिक शोध कार्यो का सभी जगह छोटे-बड़े कम्प्यूटरों ने किसी न किसी रूप मे अपनी असी उपयोगिता प्रमाणित की है ।
चिन्तनात्मक विकास:
इक्कीसबी सदी की ओर बढ़ते हुये भारत में कम्प्यूटर का प्रवेश कोई आश्चर्यजनक घटना नही है । कम्प्यूटर के विविध प्रयोगों से आम आदमी अनभिज्ञ रहा है । आज हरेक जागरूक युवक को कम्प्यूटर के विषय ज्ञान प्राप्त करना आव हो गया है ।
इन्हीं सभी बातों को ध्यानाकर्षित करते हुये प्रस्तुत लेख में कम्प्यूटर का इति परिभाषा, प्रकार, कम्प्यूटर के प्रयोग, उक्योग, आयश्यकता, कम्प्यूटर की भाषा इत्यादि के में विस्तृत जानकारी दी गयी है ।
उपसंहार:
यदि हम अपना जीवन देर्चे तो सूर्योदय के साथ ही हमारी दिनचुर्या में का का प्रयेश हो जाता है । कम्प्यूटर को यदि नवयुग का क्रान्ति पुरुष कहा जाये तो अतिश नहीं होगी । इस क्रान्ति का प्रयोग पांच दशक पूर्य हुआ था । अत: यह कहा जाये कि क: देश को चहुंमुखी विकास की ओर अग्रसर करेगा तो इसमें कोई गलत बात नहीं है औ बात से भी इच्छार नहीं किया जा सकता कि कम्प्यूटर के प्रति विश्व के साथ भारत की ललक है, 21वीं सदी को कम्प्यूटर युग कहा जायेगा ।
नवयुग कम्प्यूटर युग है । जीवन के हर क्षेत्र में हम कम्प्यूटर का प्रयोग कर रहे हैं । कम्प्युटर की उपयोगिता की व्यापकता का अनुमान हम इस बात से लगा सकते हैं कि आज जो कम्प्यूटर के नाम से अनभिज्ञ है उसका वास्ता भी दैनिक जीवन में कम्प्यूटर से बनी वस पड़ता है ।
घर में ‘होम मेनेजमेंट’ के सभी कार्य कम्प्यूटर संभव कर रहे हैं । दुकानों पर व सभी प्रकार की गणनाएँ कर बिल बना रहे हैं । बैंकों में कम्प्यूटर हमारी जमाओं व निर का लेखा-जोखा रख रहे हैं । फैक्ट्रियों, मिलों व सरकारी, गैरसरकारी दफ्तरों में ये वेतन दफ्तरी हिसाब-किताब व फाइल कार्य में हाथ बँटा रहे हैं ।
विज्ञान के क्षेत्र में ये अनुस लेकर रॉकेट प्रक्षेपण तक का बीड़ा उठाए हुये हैं । वाणिज्य के क्षेत्र में ये राष्ट्रो पर नजर रखे हुये हैं । वस्तुत: कम्प्यूटर सभ्य युग की हर क्षेत्र में सेवा कर रहे हैं, ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस युग में इसकी सेवा से केवल वही वंचित है जो मानव सभ्यता से कहीं दूर घने जंगलों में अथवा गुफाओं में रह रहे हैं ।
कम्प्यूटर का इतिहास:
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1614 ई. में जॉन नेपियर ने लघुगुणक का अविष्कार किया । इनहोने गणना पर काफी कार्य भी किया था । इन्होने गणन की प्रक्रिया हेतु छड़ों का उपयोग किया जिन्हें ‘नेपियर बोन्स’ कहा गया । विलियम आउट्रेड ने 1620 में ‘स्लाइड रूल’ का आविष्कार किया, यह लघुगुणक के पर लानका का कार्य करता था ।
पास्कल ने 1642 ई. में एक गणन मशीन का आविष्कार किया, जिसमें दाँतदार चक्के होते थे । जोड़ और घटाव की प्रक्रिया इस मशीन द्वारा आसानी से की जाती थी । 1671 में भी लाइब्नीज ने एक गणन मशीन का आविष्कार किया जिसके द्वारा गुणा की प्रक्रिया सरलता से सम्पन्न की जा सकती थी ।
चार्ल्स बैबेज ने 1822 ई. में डिफरेन्स इजन बनाया, जो सफल न हो सका । तत्पश्चा ई. में इन्होंने एनालिटिकल इजिन का मॉडल बनाया, जो पंच कार्ड पर आधारित था । ने 1896 ई. में एक मशीन का आविष्कार किया । यद्यपि गणन मशीन के क्षेत्र में प्रथम क्रांति 1946 ई. में आयी जब पहले इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर ‘इनियाक’ का आविष्कार हुआ ।
यह मशीन 5000 जोड़ या घटाव की प्रक्रिया एक सेकेण्ड मे कर सकती थी । इस कम्प्यूटर में तरह की खराबी को दूर करना बहुत ही जटिल कार्य था । डॉक्टर वॉन न्यूमैन ने कम्प्यूटर क्रान्ति को सही दिशा दी । इन्होंने कम्प्यूटर के द्विआधारी पद्धति का प्रयोग किया और संचयित प्रोग्राम का उपयोग किया ।
रेलवे स्टेशन और कार्यालयों में जो कम्प्यूटर उपयोग होते हैं, उन्हें डेस्क टॉप कम्द जाता है । यह कम्प्यूटर 0.1 माइक्रोसेकेण्ड में एक गणन प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं । कम्प्यूटर एक प्रकार की मशीन होती है जिसके द्वारा गणना शीघ्रता से की जाय कम्प्यूटर सूचना संग्रह का भी कार्य करता है ।
कम्प्यूटर को आदेश भी दिया जा सकत प्रोग्राम कहते हैं । सूचनाओं का आदान-प्रदान भी कम्प्यूटर के द्वारा किया जा सकता है । कम्प्यूटर के क्षेत्र में मुख्यत: दो प्रकार के पाठ्यक्रम होते हैं : 1. सॉफ्टवेयर 2. हार्डवेयर । शाफ्टवेयर बहुत प्रचलित पाठ्यक्रम है । यह कम्प्यूटर पर किये जाने वाले कार्य से संबन्धित है ।
यह सभी कम्प्यूटर संस्थानों में उपलब्ध रहता है । हार्डवेयर कम्प्यूटर मशीन के कलपुज रख-रखाव से सबधित है, इसका प्रशिक्षण कुछ ही संस्थान देते हैं । नौकरियों में साँपटवेयर पाठ्यक्रम के पश्चात प्रोग्रामर, सिस्टम एनालिस्ट, सिस्टम्स इंजीनियर, डाटाबेस, एडमिनिस्ट्रेटर आदि बना जा सकता है ।
इसके अतिरिक्त; सलाहकार भी बना जा सकता है । दूसरी ओर हार्डवेयर पाठ्यक्रम के पश्चात् फील्ड हार्डवेयर इजीनियर या कम्प्यूटर सेल्स पर्सन बना जा सकता है । जिन संस्थानो में क् चुके है, वही ई डीपी. मैनेजर, कम्प्यूटर ऑपरेटर, डाटा एंट्री ऑपरेटर, इनपुट-आउटा आदि के पद होते हैं ।
दिन-प्रतिदिन कम्प्यूटर की लोकप्रियता में वृद्धि होने के कारण में निरन्तर वृद्धि हो रही है । कम्प्यूटर क्षेत्र में प्रौन्नति, धन और शोहरत की बहुत कम्प्यूटर क्षेत्र में कैरियर बनाने से पूर्व अपनी अभिरूचियों एवं सम्बंधित कैरियर की; भी ध्यान में रखना अतिआवश्यक है ।
1. सॉफ्टवेयर:
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यह वास्तव में कम्प्यूटर प्रोग्राम है, जो कम्प्यूटर को निर्देश देता है । कम्प्युटर पर किसी भवन का नकशा बनाना हो, कोई रेखाचित्र या ग्राफ बनाना या कोई पत्र तो उसके लिए कम्प्यूटर में प्रोग्राम बनाना पड़ता है । कम्प्यूटर प्रोग्राम अलग भाषा में लिखे होते हैं, जो अंग्रेजी से मिलती-जुलती होती है ।
बेसिक, कोबोल, फ़्रोट्रान,पास्कल आदि कुछ प्रचलित भाषाएं हैं । प्रमुख साफ्टवेयर आपरेटिंग सिस्टम है । इसका कार्य कम्प्यूटर को सुचारु रूप से चलाना होता है । डॉस, यूनिक्स कुछ महत्वपूर्ण ऑपरेटिंग सिस्टम हैं । इस क्षेत्र में दो प्रकार की नौकरियाँ हैं- 1. साँपटवेयर एप्लीकेशन, 2. सिस्टम साँपटवेयर ।
कम्प्यूटर उपयोग हेतु उसमें कई तरह के कार्यक्रम भरने पडते हैं, जिनके अनुसार का प्रयोग किया जाता है । कम्प्यूटर स्वयं कोई काम नहीं करता वरन् जैसा उसमें प्रोग्राम भरा जाता है, वह उसी तरह का काम बटन दबाने पर करता है । ‘सिस्टम साँपटवेयर’ कम्प्युटर की कार्यप्रणाली को हार्डवेयर की मदद से नियंत्रित करता है । इसे उपयोगानुसार विकसित सकता है । इन उपयोगों में लेखा, डिजाइन विकास, डेस्क टॉप पब्लिशिंग, फाइलिग आदि शामिल है ।
सिस्टम सॉफ्टवेयर:
कम्प्यूटर प्रणाली का व्यावहारिक विकास उपभोक्ता की आवश्यकता के अनुरूप होता है । इसमे कम्प्यूटर स्थापित करने से लेकर उनके प्रयोग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना तक शामिल है । साँपटवेयर कई तरह के होते हैं-साधारण से लेकर वित्तीय जोखा रखने वाले तक । मास्टर कम्प्यूटर से जुडकर नवीन अन्वेषणो को नियंत्रित करने वाले तथा मौसम आदि की भविष्यवाणी करने वाले ।
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सबसे महत्वपूर्ण साँपटवेयर व्यापारिक समस्याओं का समाधान करने वाले होते हैं । साँपटवेयर विकसित करने की आवश्यकता आमतौर पर उन कम्पनियो को पड़ती है जिन्हें मौजूदा कम्प्यूटर प्रणाली में कामकाज के हिसाब से कुछ कमियाँ नजर आती हैं ।
सिस्टम एनालिस्ट:
सिस्टम एनालिस्ट वह व्यक्ति होता है, जो कम्पनी के अनुरूप नये या ‘प्रोग्राम’ तैयार या विकसित करता है एवं कमियो को दूर कर, उस कम्पनी हेतु कम्प्युटर प्रणाली को अधिक लाभदायक बनाता है । कम्प्यूटरीकरण की आवश्यकता होने पर इसे चार्ट और रेखाचित्रो के माध्यम से काम करने वाले की पूरी प्रणाली समझानी भी होती है । विस्तृत कार्य प्रयास, समय सारणी और उपलब्ध ससाधनों की सूची बनाने से लेकर उन्हें कार्यरूप देने तक का काम इन्हे ही करना पड़ता है ।
छोटी कम्पनियों की सीमित कम्प्यूटर प्रणाली से लेकर बड़ी कम्पनियों के देश भर में फैले कम्प्यूटर नेटवर्क तक को व्यावहारिक रूप देना दरअसल एनालिस्ट का ही काम है । इसके अतिरिक्त इनके लिए सॉफ्टवेयर कम्पनियों या सलाहकारों, प्रोसेसिंग संस्थानो या निजी व्यवसायों, उत्पादकों, बैंकों या बीमा कम्पनियों सरकारी या गैर सरकारी कम्प्यूटर संस्थानो आदि में भी बेहतर गुँजाइश है ।
प्रोग्रामर:
प्रोग्रामर मुख्य रूप से सिस्टम एनालिस्ट के विवरणों और मार्गदर्शन में कार्य हे । एप्लीकेशन प्रोग्रामर निर्देशों को एक के बाद एक कम्प्यूटर प्रणाली में दर्ज करता
सॉफ्टवेयर इंजीनियर :
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इनका कार्य विभिन्न परिस्थितियों में कम्प्यूटर प्रणाली का अच्छा कैसे किया जाये यह देखना होता है ।
डाटाबेस एडमिनिस्ट्रेटर:
कम्पनियों कम्प्यूटर का प्रयोग कड़े दर्ज करने हेतु भी हैं और यह कार्य डाटाबेस एडमिनिस्ट्रेटर की देखरेख में होता है ।
प्रोजेक्ट्स:
कम्प्यूटर के क्षेत्र में प्रोजेक्ट्स का अर्थ होता है, नये कम्प्यूटर के निर्माण के साथ ही नया सिस्टम साँपटवेयर तैयार करना । इसमें साँपटवेयर इंजीनियर को हार्डवेयर इंजीनियर के साथ मिलकर काम करना होता है । इन्हें नये ‘कोड’ विकसित करने पड़ते है और उनका परीक्षण कर व्यावहारिकता की जाँच करनी होती है ।
1. हार्डवेयर:
हार्डवेयर कम्प्यूटर का वह भाग होता है, जिसे स्पर्श से अनुभव है । कम्प्यूटर स्कीन, कीं-बोर्ड, सीपीयू और प्रिंटर हार्डवेयर के मुख्य भाग हैं । बीडीयू (बीडियो यूनिट) टेलिविजन स्कीन की तरह होता है, जिस पर डाटा और प्रोग्राम दर्शित होते हैं । की-बोर्ड टाइपराइटर की तरह है, जिसकी सहायता से कम्प्यूटर में सूचना भेजी जाती है ।
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भेजी जाने वाली सूचना को इनपुट कहते हैं । सेन्द्रल प्रोसेसिंग यूनिट सीपीयू वह यूनिट है, जिसके सूचनाओं को एकत्रित किया जाता है । सीपीयू के तीन अंग होते हैं-मेमोरी, कन्ट्रोल यूनिट और अरिथमेटिको-लॉजिकल यूनिट । मेमोरी भाग में डाटा और प्रोग्राम सचयित रहते प्रकार की होती है-सहायक और मेन मेमोरी । मेन मेमोरी के भी दो भाग होते हैं- रैम और राम ।
रैम (रेंडम एक्सेस मेमोरी) पर रीड (पढ़ना) और राइट (लिखना) ऑपरेशन किये रॉम से केवल रीड किया जा सकता है । मेन मेमोरी विद्युत आपूर्ति पर निर्भर कर मेमोरी का विद्युत आपूर्ति नहीं रहने पर भी उसमें संचयित सूचना यथावत रहती में सूचना डिस्क ड्राइव में संचयित रहती है, जबकि सहायक मेमोरी में सूचना फ़्लापी डिस्क में सचयित रहती है । पलापी डिस्क जैकेट के अंदर सुरक्षित एक मैगनेटिक डिस्क गणना का प्रतिफल कागज पर अंकित करती है ।
प्रिंटर के चार प्रकार हैं:
1. डॉट मैट्रिक्स प्रिन्टर:
यह एक-एक अक्षर प्रिंट करता है । इनकी गति कम होती है । इसमें प्रिन्टर हैड बार-बार प्रिन्टर में लगे पेपर के ऊपर लगता है । ये प्रिन्टर 360 कैसेने की गति से प्रिन्ट कर सकते हैं । इस प्रिंटर की प्रिन्ट क्वालिटी ज्यादा अच्छी नहीं होती ।
2. लाइन प्रिन्ट:
ये प्रिन्टर लाइन के हिसाब से प्रिंट करते हैं । इनकी गति लाइन प्रति से आकी जाती है । इसके द्वारा बहुत सारी जानकारी प्रिंट की जा सकती है । नहीं करते ।
3. इंक जैट प्रिन्टर:
इंक जैट प्रिन्टर के प्रिन्टर हैड में बहुत सारे माइक्रो हैं । डॉट मैट्रिक्स में जहाँ रिबन लगाया जाता है, वहाँ इंक जेट प्रिन्टर में इस में से स्याही निकलती है जो कागज पर अक्षर बनाती है ।
4. लेसर प्रिन्टर:
कम्प्यूटर के भीतर की सामग्री का कागज पर साफ और सही प्रतिबिम्ब उतारने हेतु लेसर प्रिन्टर का उपयोग किया जाता है । यह फोटोकॉपियर मशी देता है । लेसर प्रिन्टर आकृति बनाने हेतु लेसर बीम का प्रयोग करता है । इसके प्रिंट की गति पृष्ठ प्रति मिनट से आकी जाती है । इनकी गति सामान्यत: 4 से 12 पृष्ठ प्रति मिनिट की होती है ।
इनसे बेहतर किस्म का प्रिन्ट आउट निकालते हैं । अब तो रंगीन लेसर प्रिंटर भी है जिनसे रंगीन प्रिंट निकाले जा सकते हैं । हार्डवेयर इंजीनियर को कम्प्यूटर की बनावट, उसके कलपुर्जो एवं उपकरणों, उनकी कार्यप्रणाली आदि की विशेष जानकारी का होना आवश्यक है । कार्यप्रणाली आदि की विशेष जानकारी का होना आवश्यक है ।
बिक्री :
कम्प्यूटर मार्केटिंग का मुख्य कार्य बाजार में उपलब्ध अनेक तरह के विकसित कम्प्यूटरों की होड़ में अपनी कम्पनी के कम्प्यूटर को सर्वश्रेष्ठ साबित कर पेश करना है । हेतु सर्वश्रेष्ठ ग्राहक सिद्ध हो सकती हैं और कौन-सा कम्प्यूटर किस कम्पनी या संस्थान को ? का प्रयास किया जाए ।
कम्प्यूटर की भाषा:
जिस प्रकार से मानव को अपने भावों एवं विचारों को अभिव्यक्त करने हेतु लिखित एवं मौखिक भाषा की अति आवश्यकता होती है । उसी प्रकार कम्प्यूटर को निर्देश्य देने एवं संचालित करने हेतु भाषा की आवश्यकता होती है । कम्प्यूटर की भाषा को दो भागों में बाँटा जा सकता है- 1. हाई लेवल लैंग्वेज (उच्च स्तरीय भाषा), 2. लो लेवल लैंग्वेज (निम्न स्तरीय भाषा) ।
हाई लेवल लैंग्वेज में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता है । इसके उदाहरण हैं-बेसिक कोबोल फोर्ट्रान, पी एल- 1 । इस भाषा में लिखा हुआ प्रोग्राम विभिन्न कम्प्यूटरों पर बिना बदले या बहुत परिवर्तित करके चलाया जा सकता है । लो लेवल लैंग्वेज को दो भागों में बाँटा जा सकता है- एसेम्बली लैंग्वेज और मशीन लैंग्वेज । मशीन लैंग्वेज में प्रोग्राम द्विआधारी कोड का उपयो कर लिखे जाते हैं । इसमें 0 और 1 से बने स्टेटमेंट होते हैं ।
गलतियां होने की सम्भावना अधिक होती है । इसीलिए इसके स्टेटमेंट को समझने के लिए विशेष पुस्तक होती है । अत: मशीन लैंग्वेज में कार्य करना अत्यन्त कठिन कार्य है । एसेम्बली लैंग्वेज का स्वरूप मशीन लैंग्वेज और हाईलेवल लैग्वेज के बीच का है ।
इसमें स्टेटमेंट नेमोनिक कोड का उपयोग कर लिखे जाते हैं, जो कम्प्यूत् की मैन मेमोरी के लोकेशन एवं ऑपरेशन को निरूपित करता है । ये निर्देश किसी विशेष कम्प्यूटर के अंतनिर्मित प्रकार्य एवं सक्रिया से जुड़े होते हैं ।
प्रोग्राम चाहे दोनों भाषाओं में से किसी भाषा में लिखे जाए । किन्तु कम्प्यूटर को समझने हेतु उन्हें द्विआधारी मशीन कोड में अनुवादित करना आवश्यक है । कम्प्यूटर के साथ दिये गये प्रोग्राम द्वारा यह कार्य पूरा होता है ।
यह एक निरूपक या कम्पाइलर हो सकता है । कम्पाइलर का उपयोग करने से प्रोग्राम मशीन लैग्वेज पुन: लिखा जा सकता है । यह कार्य हो जाने से प्रोग्राम को सीधे रन किया जा सकता है । प्रमु प्रोग्रामिंग लैंग्वेज हेतु कम्पाइलर उपलब्ध है । जब निरूपक का उपयोग किया जाता है तो प्रोग्राम की प्रत्येक लाइन मशीन कोड में अनुवादित की जाती है एवं निर्देश सम्पन्न होते हैं ।
कम्प्यूटर पद्धति:
कम्प्यूटर एक तकनीकी उपकरण होता है । इसके द्वारा अनेक काम इस क्षमता के अनुरूप किये जा सकते हैं । यह एक अत्यधिक डेलीकेट इक्विपमेंट होता है । अत: कम्प्यूटर पर काम करने वाले व्यक्ति को हमेशा सतर्क रहना पड़ता है क्योंकि थोड़ी-सी गलती से इस पर हजारों रुपया खर्च हो जाता है ।
कम्प्यूटर की अनेक जातियाँ एवं उपजातियाँ होती हैं । सामान्यत: प्रयोग में लाये जाने वाले कम्प्यूटर को ‘इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल पर्सनल कम्प्यूटर’ कहते हैं । इसकी निम्नलिखित तीन श्रेणियाँ होती हैं-
1. एनालाग कम्प्यूटर:
इसका उपयोग किसी भौतिक प्रक्रिया के माडल बनाकर उस प्रक्रिया को निरन्तर जारी रखने के निर्देश देने हेतु किया जाता है । ऐसे कम्प्यूटर प्रयोगशालाओं में उपयोग किये जाते हैं ।
2. डिजिटल कम्प्यूटर:
घरों, दफ्तरों एवं दुकानों आदि में इनका उपयोग किया जाता है । यह सामान्य जन की सेवा कर रहे हैं ।
3. हाइब्रिड कम्प्यूटर:
इस कम्प्यूटर में उपरोक्त दोनों कम्प्यूटरों की उपयोगिताएँ सम्मिलित हैं ।
कम्प्यूटर सिस्टम को चार भागों में बाँट सकते है :
1. माइक्रो कम्प्यूटरः-
आधुनिक समय में यह अत्यधिक प्रयोग हो रहे हैं क्योंकि यह आकार में छोटे होते है और आम व्यक्ति द्वारा भी आसानी से प्रयोग किये जा सकते हैं ।
इस कम्प्यूटर को चार भागों में बाँट सकते हैं :
1 पर्सनल (व्यक्तिगत) कम्प्यूटर
2. होम (घरेलू) कम्प्यूटर
3. एजुकेशनल (शैक्षणिक) कम्प्यूटर
4 इलेक्ट्रॉनिक डायरी या ब्रीफकेस कम्प्यूटर
पर्सनल कम्प्यूटर:
इन कम्प्यूटर्स पर एक व्यक्ति एक ही समय में कार्य कर सकता है । ये आकार में छोटे एवं दाम में कम होते हैं । इनका निर्माण उपभोक्ताओ की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया जाता है ।
इसी कारण इन्हें व्यक्तिगत अथवा पर्सनल कम्प्यूटर भी है । प्रगति और समय के अनुसार इसकी उपयोगिता दिन-दुगुनी और रात-चौगुनी बढ़ती जा रही है ।
होम कम्प्यूटर:
वास्तव में घरेलू कम्प्यूटर एक पर्सनल काटर ही होते हैं । जिसे के आउटपुट और इनपुट में वर्गीकृत करते हैं । उदाहरणार्थ टी.वी. और कैसेट टेप रिकार्डर को आउटपुट और इनपुट साधनों में क्रमश: बांटा जाता है । कुछ अत्यधिक लोकप्रिय होम कंप्युटरों में कॉमनडोर, सिनक्लेअर और एप्पल हैं ।
एजुकेशनल (शैक्षणिक) कम्प्यूटर:
ADVERTISEMENTS:
कम्प्यूटर सहित शिक्षण द्वारा विद्यार्थी अपनी गति से अपने चुने हुए समय पर शिक्षा प्राप्त करता है । ऐसे अन्योन्यक्रिया सकुल उपलब्ध हैं जो तब तक अभ्यास कराते हैं जब तक विद्यार्थी एक विषय में वांछित योग्यता प्राप्त संचार अथवा कम्प्यूटर जालक्रम द्वारा एक शिक्षक द्वारा एक जगह पढ़ाया गया पाठ, के छात्रों को भी उपलब्ध होता है ।
जहाँ आलेखों द्वारा कुछ समझाना हो वहाँ तो इसर्क निर्विवाद है । शिक्षक एक घंटे में श्यामपट्ट पर कुछ ही आलेख बना सकता है, पर एक कुजी दबाते ही VDU पर आलेख को बनते हुए देखा जा सकता है । एक आँकड़े में परिवर्तन करने से आलेख कैसे बदलता हे यह मिनटों में छात्र की स्मृति पर अंकित हो जाता है ।
ब्रीफकेस कम्प्यूटर्स:
ब्रीफकेस कम्प्यूटर अथवा डायरी कम्प्यूटर दैनिक जीवन कई बनता रहा है । जिस प्रकार से पर्सनल कम्प्यूटर अत्यधिक लोकप्रिय होता जा रहा है वैसे ही यह भी अपने कार्यक्षेत्र में अत्यन्त लोकप्रिय होता जा रहा है । चाहे डॉक्टर हो, व्यापार्र अथवा अधिकारी आदि सभी के लिए यह अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है ।
2. मिनी कम्प्यूटर:
मध्यम श्रेणी के होने के कारण इन्हें मिनी कम्प्यूटर कहा जाता है । इन कम्प्यूटरों पर थोड़े से व्यक्ति ही कार्य पर सकते हैं । इनका उपयोग बीमा कम्पनियों, बैंकों, फैक्ट्रियों, होटल, ट्रेवल एजेंसीज आदि में अधिक होता है । यदि इन कम्प्यूटर्स के साथ कुछ उपकरण और जोड़ दिये जाए तो इनसे ट्रेफिक सिग्नल, कत्रोल फायर, अलार्म, उद्योग प्रणालियों आदि कार्य भी किये जा सकते हैं ।
3. मेन फ्रेम कम्प्यूटर:
विस्तृत क्षमता वाले कम्प्यूटर होते हैं । जिस पर अनेक व्यक्ति काम कर सकते हैं । उपयोगिता अनुसार इनके टर्मिनल जगह-जगह लगाये जा सकते हैं । निकट स्थित टर्मिनल तो तारों द्वारा ही जोड़ दिये जाते हैं परन्तु दूर स्थित टर्मिनल टेलीफोन लाइन द्वारा मेन फ्रेम से जुड़े होते हैं ।
ये कम्प्यूटर टाइम शेअर्ड कार्यप्रणाली के आधार पर कार्य करते हैं । आजकल रेलवे स्टेशन, विमान सेवाओ, बैंकों आदि में इनका प्रयोग बढ़ता जा रहा है ।
4. सुपर कम्प्यूटर:
इस कम्प्यूटर की स्मृति भण्डार 52 मेगा बाइट से अधिक होती है तथा 500 एम. की क्षमता से कार्य कर सकता है । इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं:
1. यह पाँच अरब गणनाएँ प्रति सेकेण्ड की दर से पूरी कर सका है । इसमें 32 अथवा 64 समानान्तर परिपथों में कार्य कर रहे माइक्रो प्रोसेसर की सहायता से प्राप्त सूचनाओं पर एक साथ कार्य किया जा सकता है ।
2. सुपर कम्प्यूटर मे उच्च भंडारण घनत्व वाली चुम्बकीय बबल स्मृति अथवा आवेशित युग्मित युक्तियों वाली स्मृतियों का उपयोग किया जाता है, जिसके कारण सूचनाओं का अधिक भण्डार संग्रहित किया जा सकता है ।
ADVERTISEMENTS:
3. इसके रख-रखाव हेतु विशेष वातानुकूलन की आवश्यकता होती है ।
4. यह परिवर्तित असंख्य आकडो को व्यवस्थित कर सकता है ।
वस्तुत: आधुनिक युग में कम्प्यूटर की लोकप्रियता निर्विवाद रूप से बढ़ रही है । भविष्य में उसकी कार्यक्षमता में और वृद्धि की सम्भावना है परन्तु भावी खतरे भी दहलीज पर दस्तक दे रहे हैं जिसे अनसुना करना आत्मघाती सिद्ध हो सकता है ।
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि एक ओर तो कितने ही व्यक्तियों का कार्य कम्प्यूटर श्रम अकेले ही कर लेगा जिससे बेरोजगारी तो बढेगी परन्तु दूसरी ओर कम्प्यूटरीकरण से प्रत्येक प्रकार के उत्पादन और वितरण के क्षेत्र में तीव्र वृद्धि होगी जिससे रोजगार की नई सुविधाएं उपलब्ध होंगी ।
अत: कम्प्यूटर की बढती लोकप्रियता एवं उपयोग के कारण कुछ हानियाँ भी हैं तो अत्यधिक लाभ भी । इसकी उपयोगिता सर्वव्यापी है । विशेषकर विज्ञान क्षेत्र के विकास हेतु । अत: वह दिन दूर नहीं जब समूचे देश एवं विश्व को कम्प्यूटर युग कहा जाएगा ।