विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का नया अवतार: ‘नैनो’ प्रौद्योगिकी पर निबंध | Essay on Science and Technology’s New Incarnation : ‘ Nano’ Technology in Hindi!
जी हां, ‘नैनो’ के बाण नहीं जो अब नजरों से मारी जाने वाली गोलियों में बदल गये हैं । ये हैं ‘नैनो’ के बाण बहुत छोटे, ‘मगर देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर ।’ फिलहाल तो ये घाव करते नहीं घाव भरते है । नैनो यानी नैनोटेक्नोलॉजी ।
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यह प्रौद्योगिकी हैं जो इतने सूक्ष्मस्तर पर काम करती हैं कि हमारी कोरी आंखें भी नहीं देख पाती है । सिर का एक बाल लें और उसके 80 हजार टुकड़े करें, तो एक हिस्सा होगा नैनोमीटर । यानी एक मीटर का 1000,000,000वां हिस्सा, अर्थात् एक अरबवां हिस्सा । नैनो ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है बौना । हमारी सबसे छोटी उंगली के नाखून पर एक-एक नैनोमीटर के 100 लाख नैनोमीटर बैठ सकते है । यानी आपकी कोशिकाओं में महाभारत हो रहा होगा और आपको पता भी नहीं चलेगा ।
लेकिन यह महाभारत किसी का वध करने के लिए नहीं, बल्कि प्राणरक्षा के लिए होगा । सोने के नैनोशेल बनाए गये है, जिनका आकार 120 नैनोमीटर होता है, जबकि कैंसर कोशिकाओं का आकार होता है 170 नैनोमीटर । ये नैनोशेल कैंसर कोशिकाओं में आसानी से घुस जायेंगे । फिर उन पर इनफ्रारेड यानी अवरक्त विकिरण डाला जायेगा।
यह मनुष्य की त्वचा को और देह कोशिकाओं में मौजूद नैनो शेलों तक पहुंच कर उन्हें इतना गर्म कर देता है कि वे जलकर राख हो जायेंगी । परन्तु आसपास की कोशिकाओं का बाल भी बांका नहीं होगा । ये प्रयोग चूहों पर पूर्णत: सफल रहे है और इस उपचार में कीमोथिरैपी (रासायनिक चिकित्सा) और रेडिएशन (विकिरण) से की जाने वाली कैंसर-उपचार की तरह कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होते ।
कैंसर का इलाज उस समय अचूक होता है, जब उसकी पहचान जल्दी-से-जल्दी हो जाये । यह बड़ा मुश्किल है क्योंकि जब तक कैंसर के लक्षण प्रकट होते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है । इसलिए अब ऐसे नैनोसेंसर बनाए गये हैं जिसे जब कैंसर कोशिकाओं की संख्या कुछ हजार हो, तभी उनका पता लग जाता है । इससे इलाज करना आसान भी होता है और अचूक भी ।
ये कैंसर-कोशिकाएं कुछ खास प्रोटीनों की संख्या खून में बढ़ा देती हैं । इस तरह के 20-25 प्रोटीन हैं जिन्हें इन नैनोसेंसरों से पहचान कर कोई 20 तरह के कैंसर पहचाने जा सकते हैं । यह निदान अंगुली में सुई चुभोकर निकाली गयी खून की एक बूंद से आनन-फानन में किया जा सकता है ।
दिनों-दिन नैनो प्रौद्योगिकी के विविध उपयोग खोजे जा रहे हैं । वैज्ञानिकों को लगता है कि नैनोटेक्नोलॉजी की सुनामी आ गयी हैं । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आते ही नैनोटेक्नोलॉजी ने बायो टेक्नोलॉजी, इन्क्रॉर्मेशन टेक्नोलॉजी तथा रोबोटिक टेक्नोलॉजी को मोहित करके अपनी ओर आकर्षित कर लिया है । एनटी, बीटी, आरटी के इस संगम से क्या-क्या गुल खिलेंगे यह अकल्पनीय है ।
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वैज्ञानिक नैनो प्रौद्योगिकी से मानव कल्याण की योजनाएं ही बना रहे हैं । वे ऐसा प्लास्टिक बनाना चाहते हैं जो बिजली का सुचालक हो । नैनोकणों से ऐसा लेप बनाना चाहते है, जो लोहे या किसी अन्य धातु पर चढ़ा दिया जाये तो उस धातु पर जंग न लगने दे । असल में नैनोकोण बनाने का मतलब है तत्वों के परमाणुओं से छेड़छाड़ । एक स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप बनाया गया है, जो हर परमाणु को किसी भी विन्यास में जमा सकता है । इस तरह नये-नये पदार्थो का निर्माण करना संभव हो जायेगा ।
ऐसे नैनोकोण बनाये गये हैं, जिनका पेंट कांच की खिड़की पर रख दो तो खिड़की सौर-ऊर्जा की जेनरेटर बन जायेगी और धूप की ऊर्जा को बिजली में बदलकर पूरे घर को पॉवर सप्लाई कर देगी । कार्बन से बने नैनोट्यूब इस्पात से 50 गुने अधिक मजबूत होते है, जबकि उनका वजन इस्पात के वजन का छठवां हिस्सा ही होता है । ये इतने बारीक होते हैं कि जहां छिड़क दो उसे मजबूत बना देंगे । फिर भले ही गोंद हो, टेनिस और बैडमिंटन का रैकेट, साईकिल या कार का फ्रेम हो ।
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अभी तक जो भी धातुएं खोजी गयी है और मिश्र धातुएं बनाई गयी है उनमें कार्बन के नैनोट्यूब बिजली के सबसे सक्षम सुचालक हैं । एक नैनोवायर किसी भी बिंदु पर अपने वजन से दस लाख गुना वजन संभाल सकता है ।
रेगिस्तानों में नैनोचिपों से बने सोलर फार्म बिना धुंआ-धक्कड़ के पूरी दुनिया का जगर-मगर कर सकते हैं । एकोकंपनी ने टाइटैनियम ऑक्साइड के नैनोकणों का इस्तेमाल करके ऐसा कांच बनाया है, जो कभी धुंधला नही पडता और जिसे कभी धोने की जरूरत नहीं पड़ती । धूल के कण उस पर टिकते ही नहीं ।
लेकिन इन नैनो-विशेषज्ञों की चादर अभी इतनी भी बेदाग नहीं है कि हम कोई चिंता न करें । इतने बारीक कण हमारी सांस के साथ देह में जाकर क्या कुछ कर सकते हैं इसका अंदाजा अभी किसी को भी नहीं है । इसके बावजूद अमेरिका के लालची धन्ना सेठ नैनोप्रौद्योगिकी से रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें बनाने के लिए आतुर हैं ।
उदाहरण के लिए, डिब्बाबंद व्यंजन बनाने वाली अमेरिकी कंपनियां नैनोकणों से ऐसे डिब्बे बनाने में लगी हैं जो डिब्बे में बंद भोजन खराब होते ही या उसमें एश्चीरीचिया कोलाइ जैसे या साल्मोनैला जैसे जीवाणु पनपते ही अपना रंग बदल लेगा । यानी उपभोक्ता को चाहिए कि उस समय उस डिब्बे को फेंक दे ।
लेकिन डिब्बे जिन नैनोकणों के बने हैं, भोजन में मिल गये तो? कोरिया की एक कंपनी ने अपने फ्रिजों में अदर की दीवारों पर नैनोसिल्वर की बनी जीवाणुनाशी परत जमा दी हैं । यही सामग्री मरहम पट्टियों पर लेप के लिए इस्तेमाल की जा सकती है । वैसे वैज्ञानिकों का एक वर्ग नैनोप्रौद्योगिकी को सुरक्षित और निरापद बनाने के प्रयासों में जुटा है ।