भारतीय स्वतंत्रता के पचास वर्ष पर निबन्ध | Essay on Fifty Year of Indian Independence in Hindi!
15 अगस्त, 1997 को भारत ने अपनी स्वतंत्रता के 50 वर्ष पूरे किए । यह समय किसी देश के लिए अधिक लंबा समय नहीं होता है, किन्तु तमाम क्षेत्रों में हुए नाटकीय परिवर्तनों को आंकने के लिए पर्याप्त होता है ।
1947 में हमने एक अनूठे स्वतंत्रता संघर्ष के बाद अंग्रेजों को खदेड़ दिया, जिसने विश्व को अहिंसा का दर्शन दिया । इन वर्षों में हमने एक तरफ जहाँ कई गौरवपूर्ण कार्य किए, वहीं दूसरी तरफ बहुत से कार्यों से हम निराश भी हुए ।
जब हमारी स्वतंत्रता अपनी शैशवावस्था में थी तो इसे कई कठिन एवं जटिल समस्याओं से जूझना पड़ा था । देश का विभाजन हो गया था तथा लाखों लोग बेघर हो गए थे । हमारी सरकार को उन्हें पुन: बसाना था । उसी समय पाकिस्तान ने जनजातियों को कश्मीर पर आक्रमण करने की छूट दे दी जिसे भारत में विलय के लिए राजी कर लिया गया तथा वह भारत का हिस्सा बन गया ।
हैदराबाद के राजाओं ने हमारी सरकार के विरुद्ध विरोध कर दिया । अन्य महाराजाओं ने स्वतंत्र राज्यों के गठन की कोशिश की । लेकिन ईश्वर को धन्यवाद है कि सरदार पटेल जैसे हमारे महान् नेताओं की सहायता से इन सभी कठिनाइयों को दूर कर लिया गया ।
स्वतंत्र भारत की प्रथम उपलब्धि देश के विभिन्न भागों एवं लगभग छ: सौ रियासती राज्यों को एकता के सूत्र में पिरोना थी । इसमें देश एवं इसके लोग एकता के सूत्र में बंध गए । 25 जनवरी, 1950 को भारत नए संविधान को अंगीकार करने के बाद एक ‘गणराज्य’ घोषित किया गया ।
इसमें सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता एवं मित्रता को सुनिश्चित किया गया । इसमें हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा और 18 अन्य को क्षेत्रीय भाषा के रूप मैं प्रतिस्थापित किया गया । इसमें भारत को एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया तथा धर्म, रंग, जाति के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ किसी प्रकार के भेदभाव नहीं बरतने की बात कही गई ।
वयस्क मताधिकार पर आधारित आम चुनाव पिछले साढ़े पांच दशकों के दौरान तेरह बार संपन्न हुए हैं । वर्ष 1989 के चुनावों के बाद केंद्र तथा कई राज्यों में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनी । वर्ष 1991 में कांग्रेस अकेली सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और पुन: सत्ता हथिया ली ।
किन्तु वर्ष 1996 में कांग्रेस की सहायता से संयुक्त मोर्चा पुन: सत्तारूढ़ हुई । वर्ष 1999 में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) केन्द्र में सत्तारूढ़ हुआ । इस प्रक्रिया में हर बार शांतिपूर्ण सत्ता हस्तान्तरण हुआ जो वास्तव में राज्य व्यवस्था के सच्चे प्रजातांत्रिक गुण का परिचायक है ।
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इन वर्षों के दौरान हमने आठ पंच-वर्षीय योजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया । ये हमारी अर्थव्यवस्था की मजबूती एवं स्थायीत्व के परिचायक है । वर्ष 1950-51 में प्रति व्यक्ति आय 466 रुपए थी जो 1966-97 में 9,377 रुपए हो गई । कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन काफी बढ़े है । वर्ष 1951-52 में खाद्यान्न उत्पादन 522.2 लाख टन से बढ़कर वर्ष 1996-97 में 1993.2 लाख टन हो गया ।
आर्थिक मोर्चा पर वर्ष 1991 में उदार आर्थिक नीति शुरु की गई । उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में थी । उद्योग एवं कृषि में स्थिरता आ गई थी, वित्तीय क्षेत्र दुविधा में थे, वित्तीय घाटा काफी तेजी से बढ़ रहा था और विदेशी ऋण की मात्रा अत्यधिक हो रही थी ।
मुद्रास्फीति दो अंको तक पहुँच गई थी । नई नीति का उद्देश्य बाजार अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए अर्थव्यवस्था पर राज्य के नियंत्रण को हटाना था । नई उदार नीति के परिणामस्वरूप आठवीं पंच-वर्षीय योजना के दौरान वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत थी ।
विज्ञान के मोर्चे पर भारत स्वतंत्रता के बाद से लगातार आगे बढ़ता रहा है तथा राष्ट्रीय विकास के लिए आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यक्रम शुरु किए गए है । वर्तमान में, हम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जी.एन.पी.) का लगभग 0.83 प्रतिशत व्यय करते हैं । हमने जल प्रबंधन, स्वास्थ्य, रक्षा प्रणाली तथा नाभिकीय शक्ति क्षमता में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं ।
अंतरिक्ष कार्यक्रम को विस्तृत किया गया है । हमने संचार, मौसम विज्ञान, संसाधन, सर्वेक्षण के क्षेत्र में अनेक लक्ष्य प्राप्त किए हैं तथा अंतरिक्ष पर उपग्रह प्रक्षेपण यान (एस.एल.वी. तथा पी.एस.एल.वी.) के प्रबंधन तथा विकास तथा संबद्ध भू-प्रणाली; ग्रामसेट (GRAMSAT) तथा दूरसंवेदी उपग्रहों (आई. आर. एस. श्रृंखला) भारतीयों की विशिष्टता एवं प्रयास के प्रमाण हैं ।
राजनयिक मोर्चे पर, भारत स्वतंत्रता के बाद से यथोचित निरस्त्रीकरण पर दृढ़ता से कायम रहा है तथा एक निश्चित समय सीमा के आधार पर नाभिकीय हथियार रहित विश्व के निर्माण के लिए लगातार कार्य कर रहा है । भारत ने कभी भी अप्रसार संधि (एन.पी.टी.) जैसा पक्षपातपूर्ण रवैया स्वीकार नहीं किया है ।
रासायनिक हथियार सम्मेलन जैसी पक्षपातहीन एवं उचित विश्व संधियों में हमेशा सहर्ष भागीदारी की है । भारत गुट-निरपेक्षता के प्रति वचनबद्ध है किंतु इसे इस बात की भी अनुभूति हुई है कि कई सदस्य-राष्ट्र इसके प्रति विनम्रता का भाव रखते हैं जबकि कुछ अन्य सदस्य उदासीन हो गए हैं ।
भारत के संबंध अब पश्चिम देशों के साथ काफी कठिन दौर से गुजर रहे हैं । क्योंकि वे हमारे समाज के आधारभूत अर्थव्यवस्था, सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं । भारत का विदेश, रक्षा एवं नीतिगत नीतियों पर हमारे राजनीतिक दलों, क्षेत्रों या राज्यों में बहुत कम, यदि हों, मतांतर हैं ।
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स्वतंत्रता के पचास वर्षों बाद हमारी उपलब्धियों की सूची में बड़ी कमी गरीबी का लगातार जारी रहना है । योजना आयोग की गणना के अनुसार लगभग 30 प्रतिशत भारतीय गरीबी-रेखा के नीचे जीवन बसर कर रहे हैं । गरीबी से सिर्फ इसके शिकार लोग ही प्रभावित नहीं होते हैं बल्कि समाज का संपूर्ण विकास एवं प्रगति बाधित होती है । यह घरेलू बाजार का आकार सीमित कर देता है और आर्थिक विकास के परिदृश्य को भौतिक आधारभूत सुविधाओं की कमी से होने वाले प्रभाव के समान बाधित करता है ।
जहाँ तक शिक्षा का प्रश्न है, भारत के 6-10 वर्ष समूह के लगभग 1050 लाख बच्चे विद्यालय नहीं जाते हैं । सभी सरकारों एवं विविध कार्यक्रमों की घोषणाओं द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के बावजूद बदतर स्थिति से इन्क्रार नहीं किया जा सकता है । आज जन आन्दोलन, जन सचेतना की जरूरत है जिससे शिक्षा का स्तर ऊपर उठाया जा सके । सरकार के प्रयासों के अतिरिक्त हमें जन आन्दोलन द्वारा कुछ ठोस प्रयास करने होंगे ।
रोजगार के क्षेत्र में नए रोजगारों के सृजन के अभाव से स्थिति काफी विस्फोटक होती जा रही है । आधिकारिक आंकड़ो के अनुसार, नौवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारंभ में देश में 70 लाख रोजगार लंबित हैं जिन्हें पिछले पांच वर्षो के दौरान सृजित किया जाना चाहिए था । वर्तमान में हम 100 करोड़ की जनसंख्या को पार कर चुके हैं जो अमेरिका का लगभग तिगुना है और इस प्रकार विश्व में दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश हो गए हैं ।
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देश के प्राकृतिक मानव संसाधन की तुलना में भारत निश्चित रूप से अधिक जनसंख्या वाला देश है । अत्यधिक जनसंख्या का कारण जन्म दर है । हमारी वार्षिक वृद्धि दर 2 प्रतिशत है । जनसंख्या का गरीबी से निकट संबंध है । जब तक जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावशाली अंकुश नहीं लगाया जाएगा तब तक हमारा देश गरीबी से मुक्त नहीं होगा । संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदन के अनुसार, भारत को जनसंख्या ही निश्चित रूप से विकास को अवरुद्ध करती है ।
वर्तमान समय में, भारत ने आधुनिक युग की सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक आत्मनिर्भरता का शांति एवं अहिंसा द्वारा सामना किया है । हमारा उद्देश्य आर्थिक नीति के दृढ़ उदारीकरण द्वारा भूख और बेरोजगारी को समाप्त करना है । भारत में प्रजातंत्र की सफलता नई आर्थिक नीति के सफल कार्यान्वयन एवं गरीबी उन्मूलन पर निर्भर है ।