प्रजातंत्र में स्वतंत्र प्रेस की भूमिका पर निबन्ध | Essay on The Role of the Free Press in Democracy in Hindi!

आज समाचारपत्रों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । युद्ध हो चाहे शांति उनका प्रसार सदैव होता रहता है । आधुनिक युग में समाचारपत्र खाने और कपड़े के समान आवश्यकता की वस्तु बन गया है ।

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विश्व भर के लोग हर सुबह उत्सुकता से इसका इंतजार करते हैं । कुछ लोगों को तो समाचारपत्रों के बिना चाय बेस्वाद लगती है । कुछ व्यक्तियों को तो समाचारपत्रों में इतनी अधिक रूचि है कि वे अपने दिन का अधिकांश समय जीवन के अन्य अमूल्य पक्षों को भुलाकर इन्हें पढ़ने में बिता देते हैं ।

इसका मुख्य कारण यह है कि उनमें सूचनाएं और विचार इतने आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किए जाते हैं कि एक बार पढ़ना शुरू कर देने के बाद उसे बिना पूरा पढ़े छोड़ना असंभव हो जाता है । मुद्रण के आविष्कार से पत्रकारिता का उद्‌भव हुआ । भारत में समाचारपत्र वारेन हेस्टिंग्स के काल में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा शुरू किया गया था ।

पहला अखबार ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नहीं विक्की ने निकाला था । उस अखबार का नाम बंगाल गजट था । आज भारतीय पत्रकारिता ने आश्चर्यजनक प्रगति कर ली है । हमारे देश के कुछ पत्रकारों जैसे खुशवन्त सिंह, कुलदीप नैयर, निहाल सिंह, अरूण शौरी और राहुल सिंह के नाम से सभी परिचित हैं । समाचारपत्रों में ‘ हिन्दुस्तान टाइम्स ‘, ‘ स्टेट्‌समैन ‘, ‘ इंडियन एक्सप्रेस ‘, ‘ टाइम्स ऑफ इंडिया ‘ आदि प्रसिद्ध हैं ।

प्रेस से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं । प्रेस जनमत तैयार करने का एक सशक्त साधन है । यह प्रचार करने का अमूल्य माध्यम है । समाचारपत्रों में जनमत तैयार करने की अद्‌भुत क्षमता होती है । इनमें जनता के विचारों को बदलने की क्षमता होती है । प्रचार शक्ति से जनता उत्तेजित हो जाती है और जनमत के सम्मुख व्यक्तिगत निर्णय की शक्ति विफल हो जाती है । यहाँ तक कि कुछ पढ़े-लिखे समझदार लोग भी भावनाओं के प्रवाह में बह जाते है ।

नाजी नेताओं का कथन था कि यदि झूठ हो दस या बीस बार बोला जाए तो वह सच बन जाता है । समाचारपत्रों के संबंध में यह कथन सही उतरता है । समाचारपत्रों के माध्यम से प्रचारित असत्य खबरें एवं सूचनाएं जनता को गुमराह और प्रभावित करने में समर्थ होती हैं । लोग बड़ी आसानी से उन्हें सच मान लेते हैं । यही कारण है कि आज समाचारपत्र राजनीतिज्ञों और अन्य सत्ताधारियों का सशक्त उपकरण बन गया है । वे अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिए उनका मनमाना प्रयोग करते है ।

प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में स्वतंत्र प्रेस को एक पावन उत्तरदायित्व निभाना होता है । प्रजातंत्र से तात्पर्य जनता के लिए, जनता द्वारा निर्मित, जनता की सरकार है । प्रजातंत्र में जनता को अपनी सरकार चुनने का अधिकार होता है । चुनाव द्वारा जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन करती है । चुनाव प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्भर करते है ।

स्वतंत्र प्रेस की अनुपस्थिति से शासन में विरोधी दल की भूमिका कुछ भी शेष नहीं रहेगी, इससे तानाशाही को बढ़ावा मिलेगा । स्वतंत्र प्रेस भ्रष्टाचार और सत्ताधारियों द्वारा सत्ता के गलत प्रयोग पर नियंत्रण रखती है । स्वतंत्र प्रेस का मुख्य दायित्व जनता के अधिकारों की रक्षा है ।

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जनता के अधिकारों तथा स्वतंत्रता के हनन के किसी भी प्रयत्न के विरुद्ध अपनी शक्तिशाली आवाज बुलन्द करके समाचारपत्र जनसाधारण को प्रेरित करते है और सजग बनाते हैं । प्रेस सरकार, विरोधी दल और भ्रष्ट अधिकारियों के जनहित विरोधी कार्यो का भंडाफोड़ करती है । इस प्रकार यह देश में स्वच्छ नैतिक वातावरण तैयार करने की ओर सदैव प्रयत्नशील रहती है ।

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देश में सही दृष्टिकोण उत्पन्न करने और राष्ट्रीय एकता के संबंध में स्वतंत्र प्रेस का योगदान बहुत अधिक होता है । इससे बंधुत्व और औद्योगिक शांति को नई राहें मिलती हैं । लेकिन सस्ती और भावनाओं पर आधारित पत्रकारिता राष्ट्रहित को हानि पहुँचाती है ।

इससे देश में वर्ग-संघर्ष और साम्प्रदायिक झगड़े हो सकते हैं । ऐसे ही कुछ समाचारपत्र 1947 में देश के विभाजन पर हुए रक्तपात के लिए उत्तरदायी हैं । इन्होंने जनता की भावनाओं से खेलते हुए कुछ रुपयों के लिए देश मैं हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों को भड़काया था ।

इसलिए प्रेस पर कुछ नियंत्रण की आवश्यकता महसूस की गई है; ताकि यह देश और मानव कल्याण में बाधक न बने । महात्मा गाँधी के विचार में प्रेस पर थोड़ा बहुत नियंत्रण आवश्यक है । उनके शब्दों में; ”क्योंकि प्रेस की प्रभाव क्षमता अद्‌भुत होती है, इसलिए यह अनियंत्रित नहीं होना चाहिए । जैसे नदी में आने वाला अनियंत्रित पानी आस-पास के क्षेत्र और फसल को नष्ट कर देता है उसी प्रकार अनियंत्रित कलम भी विनाश उत्पन्न कर सकती है ।

सुव्यवस्थित रूप से लगाया गया नियंत्रण प्रभावकारी और शुभ परिणामदायक सिद्ध हो सकता है ।” प्रेस को स्वच्छ विचारों के प्रचार तक ही सीमित रहना चाहिए । प्रजातंत्र में प्रेस सदैव सद्‌भावनाओं सद्‌विचारों द्वारा संचालित होना चाहिए । पिछले कुछ वर्षो से प्रेस समसामयिक और ज्वलंत विषयों पर जो दृष्टिकोण अपना रही है, वह प्रशंसनीय है । भारतीय प्रेस परिषद् इस दिशा में सराहनीय प्रयास कर रही है ।

स्वतंत्र प्रेस का एक अन्य दायित्व प्रकाशित खबर या सूचना के पीछे की सच्चाई से अवगत कराना और विश्व की घटनाओं के संबंध में निष्पक्ष और तटस्थ विचार अभिव्यक्त करना है । प्रजातंत्र में जनमत को तैयार करने के लिए इस बात की बहुत आवश्यकता होती है । इस प्रकार प्रजातंत्र में स्वतंत्र प्रेस की सशक्त भूमिका होती है ।

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