एकता और अनुशासन पर निबंध | Essay on Unity and Discipline in Hindi!
एकता का अर्थ है- आपस में मिल-जुलकर रहना ओर निस्स्वार्थ भाव से एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखते हुए सबके कल्याण के लिए तत्पर रहना । इस अर्थ के अनुसार जातीय एकता, धार्मिक एकता, व्यावसायिक एकता, भाषाई एकता, सामाजिक एकता, राष्ट्रीय एकता, अंतरराष्ट्रीय एकता आदि एकता के अनेक रूप हो सकते हैं ।
एकता के ये रूप परस्पर एक-दूसरे से भिन्न होते हैं । एक जाति की अनेक उपजातियाँ होती हैं और वे जातीय एकता के होते हुए भी एक-दूसरे का अहित करने में संकोच नहीं करतीं । धार्मिक एकता भी विभिन्न प्रकार के मत-मतांतरों और संप्रदायों के कारण नाममात्र की रह जाती है ।
व्यावसायिक एकता पारस्परिक स्पर्धा और होड़ के कारण स्थायी नहीं रह पाती । भाषाई एकता टिकाऊ अवश्य होती है, पर अपने नाम की विशेष ख्याति चाहनेवाले साहित्यकार अपने समकालीन साहित्यकारों को नीचा दिखाकर उसके विकास की गति मंद कर देते हैं ।
सांप्रदायिक झगड़ों और ऊँच-नीच के भावों के कारण सामाजिक एकता भी दिखावा मात्र बन जाती है । ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय एकता एक ऐसे फल के समान होती है, जिसका ऊपरी छिलका तो सुंदर और आकर्षक होता है किंतु उसके भीतर की फाँकें एक-दूसरे से अलग होती हैं । ऐसी स्थिति में एकता का जो वास्तविक अर्थ है, वह चरितार्थ नहीं हो पाता ।
समाज अथवा राष्ट्र में वास्तविक एकता तो तभी स्थापित होती है जब हमारी आर्थिक और सामाजिक स्थिति एक सी हो, जब हमारे विचार एक से हों, जब हमारी प्रवृत्तियाँ एक सी हों; जब हमारे धार्मिक अनुष्ठान एक से हों और हमारा उद्देश्य भी एक हो; किंतु इस प्रकार की आदर्श एकता न तो प्राचीन युग में संभव थी और न वर्तमान युग में ही संभव है ।
प्रश्न उठता है कि देश में जातीय, धार्मिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों यदि एकता का कोई महत्त्व है तो उसे किस प्रकार स्थायी और उपयोगी बनाया जाए ? इस प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर है- अनुशासन द्वारा । अनुशासन ‘अनु’ और ‘शासन’ के मेल से बना शब्द है । ‘अनु’ उपसर्ग है । इसका अर्थ है- पीछे, यानी अनुचर; ‘शासन’ का अर्थ है- राजाज्ञा ।
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इस प्रकार ‘अनुशासन’ का अर्थ है- राजाज्ञा के पीछे अर्थात् राजाज्ञा के नियंत्रण में रहना और नियमबद्ध कार्य करना । इस अर्थ से स्पष्ट है कि गृह, पाठशाला, कार्यालय, सभा, संस्था, सेना आदि में अनुशासन के बिना एक क्षण भी कार्य नहीं चल सकता । अनुशासन एक अंकुश है । जिस प्रकार अंकुश की सहायता से बिगड़े हुए हाथी भी वश में किए जाते हैं उसी प्रकार अनुशासन से परिवार, समाज, देश की उच्छृंखलता और दुर्व्यवस्था नियंत्रण में की जा सकती है ।
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अनुशासन और एकता के बीच गहरा संबंध है । अनुशासन स्वामी है, एकता उसकी चेरी है । स्वामी का अपनी चेरी पर जो अधिकार होता है वही अधिकार अनुशासन का एकता पर है । अनुशासन के बिना एकता विडंबना मात्र है । अनुशासन का बल पाकर ही एकता विकसित, पल्लवित और पुष्पित होती है ।
आज संसार में जितने बड़े-बड़े राष्ट्र उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचे हैं, वे सब अनुशासन के ही सुफल हैं । अनुशासन में अपार शक्ति निहित है । अनुशासन से स्वार्थपरता दूर भागती है, मानव की दुर्वृत्तियों का संस्कार होता है और उसके हृदय में सत्यता, कर्तव्यपरायणता देशभक्ति, परोपकार, त्याग आदि सद्गुण उत्पन्न होते हैं । सच्चे और आदर्श नागरिक का जनक अनुशासन ही है ।
अनुशासनहीन राष्ट्र अशक्त एवं निर्बल होते हैं और उनकी एकता हमेशा खतरे में रहती है । आज हमारे देश में अनुशासन की बागडोर ढीली होने के कारण जैसी भयंकर स्थिति उत्पन्न हो गई है, वह किसी से छुपी नहीं है । ऐसे अनेक राजनीतिक दल उत्पन्न हो गए हैं, जिनके नेतागण देशभक्ति का नारा लगाकर अपने विषैले भाषणों द्वारा राष्ट्रीय एकता को भंग करने में अपनी शान समझते हैं ।
इससे हमारी राष्ट्रीय एकता का दिन-प्रतिदिन हास होता जा रहा है । अनुशासनहीनता तथा एकता की कमी ही इसका मूल कारण है । यदि यही स्थिति रही तो भारतवासी कभी उन्नतिशील राष्ट्रों के बीच अपना सिर ऊँचा करके खड़े नहीं रह सकेंगे । हम अनुशासन में रहकर ही फल-फूल सकते हैं, उन्नति कर सकते हैं, यह हमें स्मरण रखना चाहिए ।