एड्स: एक पहेली या विकार पर निबंध | Essay on AIDS : A Puzzle or Disorder in Hindi!
एड्स को तमाम जागरूकता, अभियानों के बावजूद अब भी एक संक्रमण नहीं, बल्कि सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है । घर-परिवार और समाज से लेकर कामकाज की जगहों तक में एचआईवी / एड्स से ग्रस्त लोग अपमान, प्रताड़ना और भेदभाव के शिकार हो रहे हैं ।
हैरत और दुख की बात तो यह है कि ऐसा बर्ताव केवल नादान और अज्ञानी लोग ही नहीं कर रहे, बल्कि डॉक्टरी पेशे से जुड़े वे व्यक्ति भी कर रहे हैं, जिन पर एचआईवी से पीड़ित लोगों की देखभाल और सहायता की जिम्मेदारी है ।
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आए दिन अखबारों में ऐसे अस्पतालों या डॉक्टरों की खबरें आती रहती हैं, जो एचआईवी से पीड़ित व्यक्तियों के इलाज या देखभाल के लिए साफ इनकार कर देते हैं । भारत सरकार के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के मुताबिक लगभग 18 प्रतिशत एचआईवी पॉजिटिव लोग अपने पड़ोसियों से भेदभाव के शिकार होते हैं, जबकि नौ प्रतिशत को समुदाय या शिक्षण संस्थान के स्तर पर अपमान व प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है ।
यही वजह है कि 74 प्रतिशत एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति अपने कामकाज की जगह पर अपनी बीमारी की बात छिपाकर रखते हैं । इस भेदभाव में लिंग का भी खास दखल दिखाई देता है । पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा कहर झेलना पड़ता है । एचआईवी का संक्रमण होने पर उन्हें घर छोड़ने के लिए कह दिया जाता है । पत्नियां अपने एचआईवी पॉजिटिव पति की देखभाल करने में संकोच नहीं दिखातीं, जबकि पति कम ही मामलों में सहायक साबित होते है ।
इन सारे भेदभाव की जड़ है एचआईवी / एड्स के बारे में फैली तरह-तरह की गलतफहमियां । हमारे देश में एड्स का पहला मामला लगभग 21 साल पहले चेन्नै में पाया गया था । आज एचआईवी / एड्स के साथ जिंदगी गुजार रहे लोगों की तादाद, 25 लाख से ऊपर बताई जाती है । इस बीच विभिन्न संचार माध्यमों का इस्तेमाल करके लोग एचआईवी / एड्स को छुआछूत का रोग मानते हैं । ऐसी गलतफहमी के बने रहने की वजह क्या है? दरअसल समस्या यह है कि आज भी हमारे समाज में एचआईवी / एड्स का जिक्र आते ही लोग सशंकित हो जाते हैं और बात पर रुख पलट देते हैं ।
इसकी वजह यह है कि एचआईवी / एड़स फैलने की मुख्य वजह असुरक्षित यौन संबंध हैं । । एचआईवी संक्रमण के कुल मामलों में लगभग 86 प्रतिशत की वजह असुरक्षित यौन सबंध ही होती है । समाज में यह धारणा बनी है कि यह संक्रमण होने का मतलब है वैवाहिक रिश्तों में बेवफाई या गलत आचरण ।
यह इल्जाम लगने के डर से लोग चुप रहना ही पसंद करते है । इसके लिए यह बताया जाना जरूरी है कि असुरक्षित इंजेक्शन जैसे तरीकों से भी यह संक्रमण फैलता है और जरूरी नहीं कि पीड़ित के चरित्र पर इससे सवाल उठे ।
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लेकिन चूँकि असुरक्षित यौन संबंध सबसे बड़ा कारक है, इसलिए जागरूकता अभियानों में यह बात सबसे पहले लानी होती है कि पुराष कॉन्डम का इस्तेमाल करें । इसी मुद्दे पर समाज की ‘नैतिकता’ आड़े आ जाती है । कॉन्डम या यौन सबध का जिक्र आते ही लोग खुली चर्चा से बिदकने लगते है ।
उन्हें लगता है कि इस तरह समाज में अश्लीलता को बढ़ावा मिलता है । इसीलिए जब भी देश के स्कूलों में सेक्स एजुकेशन देने की बात उठती है, हंगामा खड़ा हो जाता है । अब यह नहीं हो सकता कि एचआईवी से बचाव और उसमें कॉन्डम की अहमियत पर काना-कान बात चलाई जाये ।
एचआईवी / एड्स के बारे में खुलकर बातचीत न होने और सामाजिक वर्जनाओं के चलते बड़ी तादाद में देश के युवा सुरक्षित यौन संपर्को के मामले में अनजान है । यही वजह है कि एड्स का शिकार बनने वालों में किशोरों की तादाद खासी ज्यादा है । नाको की रिपोर्ट के मुताबिक एड्स के कुल मामलों में करीब एक-तिहाई 15 से 19 साल के किशोर हैं । यह एक बेहद खतरनाक बात है, जिससे यह लगता है कि हमारी अगली पीढ़ी संकट में फंस रही है ।
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लगभग यही हाल महिलाओं का भी है । कम उम्र में शादी, चुप्पी, अज्ञानता और सामाजिक गैर बराबरी के चलते महिलाओं और लड़कियों में एचआईवी के संक्रमण का जोखिम अधिक है । आज हालत यह है कि एड्स के चार मामलों में से एक महिला है, लेकिन नये संक्रमित व्यक्तियों में महिलाओं की तादाद तेजी से बढ़ रही है । देश में कुल एचआईवी संक्रमित लोगों में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं हैं और ज्यादातर मामलों में उनकी इस दशा के लिए जिम्मेदार उनके पति या बॉय फ्रेंड हैं । विवाहित महिलाओं में बडी तेजी से एचआईवी संक्रमण फैल रहा है, जबकि उनका यौन संपर्क सिर्फ पति से ही है ।
एचआईवी / एड्स के प्रति जागरूकता जगाने के अभियानों में सबसे ज्यादा निशाना यौन संबंधों को ही बनाया जाता है, लेकिन जैसा कि कहा गया है, एचआईवी संक्रमण फैलने की यह एकमात्र वजह नहीं है । लगभग दो प्रतिशत मामले एचआईवी संक्रमित खून या अन्य रक्त उत्पादों के इस्तेमाल के कारण होते हैं । इसीलिए आजकल हमेशा लाइसेंसशुदा ब्लड बैंक से खून लेने की सलाह दी जाती है ।
जागरूकता अभियान में इस पहलू की शायद थोड़ी अनदेखी हो रही है । अगर सही संतुलन रखा जाये, तो न सिर्फ बहुत से लोग इस दूसरे किस्म के खतरे से बचना सीखेंगे, बल्कि पीड़ित लोगों को भी सामाजिक भेदभाव से आजादी मिल सकेगी ।
तमाम वैज्ञानिक विकास के बावजूद आज भी एचआईवी / एड्स एक लाइलाज बीमारी के रूप में कठिन चुनौती बना हुआ है । इससे बचाव का एक ही जरिया है – सही और सटीक जानकारी व उचित सावधानियां बरतना ।
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यह आज की दुनिया में किसी भी देश की खुशहाली की जरूरी शर्त है । यह संक्रमण हम सबका साझा दुश्मन है और इसे अकेले रहकर ठिकाने नहीं लगाया जा सकता । एचआईवी के खिलाफ जागरूकता को राष्ट्रीय सुरक्षा की मोर्चाबंदी से कम अहमियत नहीं दी जानी चाहिए ।