समाचारपत्रों के बिना जीवन पर निबन्ध | Essay on Life Without Newspapers in Hindi!
आधुनिक मनुष्य की आवश्यकताएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं । केवल भोजन, वस्त्र और घर तक उसकी आवश्यकताएँ सीमित नहीं है । आज समाचारपत्र आम व्यक्ति की दैनिक आवश्यकताओं का हिस्सा बन गए हैं । हममें से कई व्यक्तियों का दिन इसे पढ़ने से प्रारंभ होता है । समाचारपत्र के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
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विभिन्न लोगों के लिए समाचारपत्र का अर्थ अलग-अलग है, क्योंकि समाज में भिन्न-भिन्न रुचियों और पसंदों वाले व्यक्ति रहते हैं । इस प्रकार समाचारपत्रों के उपलब्ध न होने पर इन विभिन्न रुचियों वाले लोगों पर प्रभाव भी भिन्न-भिन्न पड़ेगा । शिक्षित लोग समसामयिक घटनाओं की सूचनाओं की कमी को महसूस करेंगे ।
कई भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और क्षेत्रीय नेताओं के लिए तो यह एक सुअवसर होगा । खेल-जगत की सूचनाओं तथा नए कीर्तिमानों को चाहने वालों का मनोरंजन नहीं हो सकेगा । समाचारपत्रों में प्रकाशित खेल पहेलियों, हास्य क्षणिकाओं, सिनेमा जगत की खट्ठी-मीठी खबरों के बिना कुछ लोग सूना-सूना महसूस करेंगे ।
समाचारपत्रों में प्रकाशित व्यापार और जीविका संबंधी विज्ञापनों के अभाव से इन क्षेत्रों को भारी धक्का पहुँचेगा । जन संचार के अन्य साधन जैसे रेडियों, टेलीविजन और सिनेमा आदि एक सीमा तक ही सूचनाएँ प्रदान कर सकते है । समाचारपत्र जैसा सस्ता सूचना-माध्यम और कोई नही है ।
आज कई ऐसे अवसर होते है जबकि पत्रकारों या मुद्रणालयों की हड़ताल के कारण हमें अपने प्रिय दैनिकों की अनुपस्थिति में दिन बिताना पड़ता है । यदि एक पत्र नहीं मिलता तो हम दूसरे समाचारपत्र को लेने के लिए भागते हैं । कभी-कभी प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, आग, भूकम्प अथवा साम्प्रदायिक दंगों की स्थिति में हमें समाचारपत्रों का ध्यान भी नहीं आता है । कभी दैनिक कार्यक्रम में फेर बदल होने, बीमारी या यात्रा के कारण हम समाचारपत्र पढ़ने के अपने नियमित कार्यक्रम को स्थगित कर देते हैं ।
अधिकांशत: सभी व्यक्तियों के लिए समाचारपत्र आवश्यकता ही नही बल्कि हमारी मुख्य प्रवृति और जीवन का अंग बन गए हैं । तथापि कुछ ऐसे अशिक्षित लोग भी विद्यमान हैं, जिनके लिए समाचारपत्र होना या न होना बराबर ही है । क्या हमारे पूर्वजों का समाचारपत्र रहित जीवन कहीं अधिक सुखी और शांतिपूर्ण नहीं था?