मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध | Essay on Modern Means of Entertainment in Hindi!
आधुनिक युग में वैज्ञानिक आविष्कारों ने मानव जीवन को अत्यधिक व्यस्त कर दिया है । इसके अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा इतनी अधिक बढ़ गई है कि मनुष्य को अपनी सामान्य आवश्यकताओं जैसे- रोटी, कपड़ा व मकान आदि के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है ।
मनुष्य के जीवन में निरंतर कार्य उसे शिथिल बना देता है । उसकी ऊर्जा क्षीण होने लगती है । इन परिस्थितियों में मनोरंजन के आधुनिक साधन मनुष्य की खिन्नता व अवसाद को दूर कर उसमें नवीनता व उल्लास का संचार करते हैं । मनुष्य चाहे व्यापार में हो अथवा व्यवसाय में सभी को कहीं न कहीं, कभी न कभी मनोरंजन के साधनों का सहारा लेना ही पड़ता है ।
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मनुष्य की वैज्ञानिक क्षेत्र में अपार सफलता ने मनोरंजन के अनेकों नवीनतम साधन विकसित किए हैं । नौटंकी, कठपुतली का नाच, आल्हा-उदल के संगीत, साँड एवं भैंसों की लड़ाई आदि प्राचीन मनोरंजन के साधनों का स्थान रेडियो, दूरदर्शन व चलचित्र ने ले लिया है ।
रेडियो व दूरदर्शन मनोरंजन के प्रमुख साधन हैं । रेडियो की भारतीय जनजीवन में पहुँच अधिक है । रेडियो ने भारतवर्ष में समस्त वर्गों को अपने गीत-संगीत, नाटक व एकांकी आदि से प्रभावित किया है । दूरदर्शन रेडियो का अधिक विकसित रूप है ।
इसे गीत-संगीत की ध्वनि के अतिरिक्त चित्र के रूप में भी देखा जा सकता है । दूरदर्शन के माध्यम से सुदूर प्रदेशों से वाणी (ध्वनि) के साथ-साथ दृश्यों की प्रस्तुति संभव है । देश के प्रमुख कलाकारों की लोकप्रियता में दूरदर्शन ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है ।
चलचित्र अथवा सिनेमा मनोरंजन के आधुनिक साधनों में मनुष्य के जीवन में विशेष स्थान रखता है । शो से पहले टिकटों के लिए धक्कम-धक्का करती भीड़ प्राय: सभी सिनेमाघरों के सामने देखी जा सकती है । तीन घंटे के शो में मनुष्य उन क्षणों में अपने समस्त दु:खों, अवसादों को भुलाकर उसी में लीन हो जाता है । चलचित्र में मानव भावनाओं, संवेदनाओं व समाज की करुणा, दर्द, ममत्व आदि सभी का सजीव चित्रण होता है । इसका सीधा प्रभाव मनुष्य के मनोमस्तिष्क पर पड़ता है ।
इसीलिए अन्य साधनों की अपेक्षा चलचित्र मनोरंजन के साधन के रूप में विशिष्ट स्थान रखता है । सिनेमा पर आधारित कार्यक्रमों का व्यापक प्रभाव टेलीविजन के विभिन्न कार्यक्रमों में स्पष्ट दिखाई देता है । सिनेमा के गाने, संगीत आदि रेडियो पर प्रतिदिन बजते रहते हैं ।
सरकस, जादूगर, मदारी आदि के खेल भी लोगों में उत्सुकता व हर्ष से परिपूरित रोमांच उत्पन्न करते हैं । सर्कस के कुछ खेल तो इतने जोखिम भरे होते हैं कि दर्शक उन्हें देखकर दाँतों तले उंगलियाँ दबा लेते हैं । पुराने वाद्य जैसे हारमोनियम, ग्रामोफोन, तबला आदि का चलन धीरे-धीरे कम हो रहा है परंतु उनका प्रयोग करने वालों की संख्या बहुत कम नहीं है । क्यों न हो ? उन वाद्य यंत्रों से मनोरंजन हेतु परतंत्रता नहीं होती है । लोग उन्हें किसी भी समय और कहीं भी प्रयोग कर सकते हैं ।
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आजकल देश के लोगों में खेल के प्रति जागरूकता तथा इच्छा दोनों ही काफी बढ़ी है । क्रिकेट, हॉकी, बॉलीबॉल इत्यादि खेल खिलाड़ी व दर्शक दोनों को ही मनोरंजन प्रदान करते हैं । इन सभी खेलों में खिलाड़ियों को मनोरंजन के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है ।
क्रिकेट, हॉकी, फुटबाल आदि बहिर्क्षेत्रीय खेलों के अतिरिक्त शतरंज, ताश, चौपड़, कैरम आदि अंतर्क्षेत्रीय खेल भी हैं जो मनुष्य को मनोरंजन प्रदान करते हैं । सभी खेल प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के मनोमस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं ।
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मेला तथा नुमाइश आदि भी मनुष्य को मनोरंजन प्रदान करते हैं । मेले में रखी गई आकर्षक, अद्भुत व नवीनतम वस्तुएँ मनुष्य को आकर्षित व आनँद विभोर करती हैं । अपने सामर्थ्य के अनुसार लोग इसका क्रय-विक्रय भी करते हैं ।
उपरोक्त साधनों के अतिरिक्त मनोरंजन के और भी अन्य साधन उपलब्ध हैं । प्रात: कालीन सुवासित व स्वच्छ वायु में भ्रमण, चित्रकला, मूर्तिकला आदि का अवलोकन तथा कहानी, उपन्यास, नाटक आदि का सृजन अथवा इनका अध्ययन भी मनुष्य को आनंद प्रदान करता है ।
आधुनिक युग में पर्यटन भी तीव्रता के साथ मनोरंजन का बहुत अच्छा साधन बन गया है । आवागमन के तीव्र साधनों के विकास, ठहरने-खाने की उत्तम सुविधाएँ तथा पर्यटन स्थलों के विकास ने लोगों को पर्यटन के लिए प्रेरित किया है । इस तरह पर्यटन आज एक महत्वपूर्ण उद्योग का स्वरूप ग्रहण कर चुका है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मनुष्य ने अपनी रुचि और पसंद के अनुसार मनोरंजन के अनेक साधन विकसित किए हैं । इनमें से कुछ मनोरंजन के साथ ही साथ उसके स्वास्थ्य को भी ठीक रखते हैं तो कुछ अन्य साधन उसकी बुद्धि की कुशाग्रता को बढ़ाते हैं ।
इस प्रकार मनोरंजन के आधुनिक साधन मानव जीवन की नीरसता, सांसारिक विरक्ति आदि का निवारण कर उनमें उत्साह एवं साहस का नवीन संचार करते हैं । गृहणियाँ खाली समय में टेलीविजन देखकर अपने कार्य की ऊब मिटाती हैं । ये साधन इस दृष्टि से मनुष्य के लिए मात्र साधन ही नहीं अपितु जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं । परंतु मनोरंजन के आधुनिक साधनों के दुरुपयोग से हमें बचना चाहिए ।