सिनेमा पर निबन्ध | Essay for Kids on Cinema in Hindi!
1. भूमिका:
सिनेमा अर्थात् चलचित्र आधुनिक विज्ञान (Modern science) की महान देन (Gift) है । फोटोग्राफी के बाद कभी अवश्य किसी के मन में यह खयाल (Imagination) आया होगा कि स्थिर (Still) चित्र यदि चलते-फिरते दिखाई पड़े तो कितना अच्छा होता ।
आज हम सिनेमा घर या अपने ही घर में बैठकर चित्रों को चलते-फिरते, हँसते-गाते देख सकते हैं और इन चित्रों को देखते-देखते अनुभव (Feel) करने लगते हैं जैसे आँखों के सामने सच्ची घटना हो रही हो ?
2. विकास और तकनीक:
फ्रांस के लुमियेर बदर्स ने सन् 1896 में मुंबई के एक होटल में चित्रों को चलाकर दिखाने का प्रदर्शन (Exhibition) किया । लोग यह देखकर बड़े अचरज में पड़ गये (Surprised) कि एक ही घटना के कई चित्रों को जोड़कर चलाने से चित्र चलता हुआ नहीं दिखता बल्कि घटना होती हुई दिखाई पड़ती है ।
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धीरे-धीरे इसी तकनीक (Technique) का विकास हुआ और अपने देश में दादा साहब फाल्के ने सन् 1917 में पहली फिल्म बनायी ‘राजा हरिश्चन्द्र’ । इस फिल्म में आवाज नहीं थी । सिनेमा हॉल में ही कलाकार पर्दे के पास से डायलॉग बोला करते थे और गीत गाया करते थे ।
सन् 1931 में अर्देशियर ईरानी ने सबसे पहले बोलती फिल्म बनायी ‘आलम आरा’ । तब से लेकर आज तक सिनेमा में अनेक परिवर्तन (Change) हो चुके हैं । आज सिनेमैटोग्राफी, फिल्म एडिटिंग, साउंड रिकार्डिंग आदि में कम्प्यूटरों की मदद तक ली जाने लगी है और अच्छे किस्म की रंगीन फिल्में बनने लगी हैं ।
3. लाभ-हानी:
सिनेमा आज हमारे लिए अनेक प्रकार से लाभदायक (Beneficial) है । यह हमें मनोरंजन (Entertainment) तो देता ही है, हमें देश-विदेश की कला-संस्कृति और सभ्यता (Art, Culture and Civitisation) का दर्शन भी कराता है जिससे हमारी जानकारी बढ़ती है और हम दूसरे देशों के लोगों से अपनी तुलना (Comparision) कर सकते हैं ।
मनोरंजक फिल्मों (Features films) के अलावा आज वृत्त-चित्र (Documentary films) भी बनती हैं जिनसे हमें अलग-अलग विषयों पर ओखों देखी (Visual) जानकारी प्राप्त होती है । सिनेमा के पर्दे (Screen) पर व्यावसायिक विज्ञापन (Commercial) दिखाकर व्यापारी भी अपना व्यापार बढ़ाते हैं ।
4. उपसंहार:
चलचित्र कलाकारों (Artists) के लिए वरदान तो है ही यह स्क ऐसा सशक्त माध्यम (Medium) है जिसके द्वारा लेखक, संगीतकार, कवि, तकनीशियन और व्यापारी सभी एकसाथ लभान्वित (Benefited) होते हैं । आज जरूरत है अच्छे चलचित्रों की जो समाज में सुधार (Reformation) ला सके ।