ग्रीनहाउस प्रभाव: मतलब, गैसों और रोकथाम | Greenahaus Prabhaav: Matalab, Gaison Aur Rokathaam. Read this article to get in-depth knowledge about Green House Effect: Meaning, Gases and Prevention in Hindi.
1. ग्रीन हाउस प्रभाव का अर्थ (Meaning of Green House Effect):
ग्रीन हाउस प्रभाव एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कतिपय गैसें के वायुमण्डल में प्रवेश से तापमान में वृद्धि होने लगती है तथा इसी के फलस्वरूप विश्व में सामान्य तापमान में वृद्धि हो जाती है, जो एक चिन्ता का विषय है । ग्रीन हाउस शब्द का प्रयोग कम तापमान को सामान्य बनाए रखने वाले आवरण के लिए किया गया था ।
अनेक देश जहाँ तापमान कम होता है छोटे कृषि क्षेत्रों को एक आवरण से ढक देते हैं जिससे उनके तापमान में वृद्धि हो जाती है और वहाँ कृषि उत्पादन हो जाता है । किन्तु वर्तमान में ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ पद का प्रयोग विश्वव्यापी समस्या के लिए किया जाता है जो तापमान वृद्धि का कारण है, जिससे जलवायु परिवर्तन हो रहा है तथा जो पारिस्थितिक तन्त्र के लिए संकट का कारण है ।
ग्रीन हाउस प्रभाव से तात्पर्य है:
(1) ”वायुमण्डल का गर्म होना क्योंकि पृथ्वी से निकलने वाली गर्मी को कुछ गैसें सोख लेती हैं ।” -ऑक्सफोर्ड डिकशनरी ऑफ ज्योग्राफी
(2) ”वायुमण्डल की निचली सतह का सूर्य की गर्मी को संधारित करने एवं पुन: परवर्तित करने से गर्म हो जाना ।” -फिलिप्स ज्योग्राफी डिक्टानरी
(3) ”वायुमण्डल के तापमान में कतिपय गैसों की उपस्थिति से परिवर्तन आ जाना ।” -गुडी एवं अन्य
वायुमण्डल पृथ्वी पर एक कवच का कार्य करता है तथा पृथ्वी पर जीवन को हानिकारक परावर्तित किरणों से बचाता है । पृथ्वी पर विभिन्न गैसें, धूल के कणों, जलवाष्प, जल घशियों, हिम, भूमि, आदि से सूर्य के ताप को नियन्त्रित करती हैं । किन्तु इनके सन्तुलन में बाधा आने पर ग्रीन हाउस प्रभाव के फलस्वरूप तापमान में वृद्धि होने लगती है ।
तापमान में तनिक भी वृद्धि न केवल विश्व पर्यावरण अपितु सम्पूर्ण जीव जगत को प्रभावित करती है । औद्योगिक युग के प्रारम्भ होने तथा परिवहन क्रान्ति ने ग्रीन ‘हाउस प्रभाव उत्पादक गैसों जैसे- कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस तापीय ऊर्जा को वायुमण्डल से वापस बाहर जाने से रोक लेती है, फलस्वरूप तापमान में वृद्धि होती है ।
ADVERTISEMENTS:
इन्फ्रारेड किरणें आदि परिवर्तित होकर वायुमण्डल की गैसों, ख को बादलों में बदल देती हैं । यह सब एक सामान्य प्रक्रिया के अन्तर्गत होता रहता है जिससे सामान्य तापमान रहता है । जैसे ही यह समन्वय बिगड़ने लगता है तापमान में अन्तर आने लगता है जो ग्रीन हाउस प्रभाव के रूप में जाना जाता है ।
2. ग्रीन हाउस गैसें (Green House Gases):
जैसा कि वर्णित किया गया है ग्रीन हाउस के लिए कतिपय गैसों की अतिरिक्त मात्रा की वायुमण्डल में उपस्थिति उत्तरदायी है ग्रीन हाउस के लिए उत्तरदायी गैसें ऐंकार्बन-डाई-ऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साईड,क्तोरोफ्लोसे-कार्बन, हाइड्रो- फ्लोरो-कार्बन, पर फ्लोरो-कार्बन, सल्फर-हेक्सा-फ्लोराइड आदि । इनमें भी चार गैसों का योगदान सर्वाधिक होता है ।
जिनके स्रोत निम्न तालिका से स्पष्ट हैं:
(i) कार्बन-डाई-ऑक्साइड:
कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस वायुमण्डल में एक महत्त्वपूर्ण गैस है । इसकी निर्धारित मात्रा वायुमण्डल में तापमान को नियन्त्रित करती है । कार्बन-डाई- ऑक्साइड का प्रयोग शीतलता के लिए संधारण हेतु अग्निशमन हेतु तथा कार्बोनेटेड पेय पदार्थों में भी किया जाता है ।
औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व इसकी मात्रा लगभग 0.009 प्रतिशत थी जबकि वर्तमान में वृद्धि होकर 0.037 प्रतिशत हो गई । कार्बन-डाई-ऑक्साइड की वृद्धि का प्रमुख कारण मानवीय क्रियाएँ हैं । प्रमुखत: जीवाश्म ईंधनों का दहन ताप विद्युत गृह, स्वचालित वाहनों की संख्या में वृद्धि तथा उद्योगों में वृद्धि जंगलों की आग डीजल का अधिक प्रयोग आदि हैं । साथ ही यह ग्रीन हाउस प्रभाव में वृद्धि कर रही है ।
विश्व में प्रतिवर्ष जीवाश्म ईंधनों के जलाने से उत्सर्जित कार्बन का प्रतिशत प्रमुख देशों में निम्न प्रकार से है:
ADVERTISEMENTS:
सर्वाधिक कार्बन-डाई-ऑक्साईड उत्सर्जक देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान सर्वोच्च है जबकि यूरोपीय संघ के देश तथा चीन क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं । विश्व में दस देश 70 प्रतिशत से अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं जबकि शेष विश्व इससे उत्पन्न हरित गृह प्रभाव के दुष्प्रभावों को झेलता है ।
अकेले जीवश्म ईंधन के जलाने से पर्यावरण में प्रतिवर्ष 360 कसेड् टन कार्बन- डाई-ऑक्साइड गैस विलीन हो रही है, यदि वर्तमान गति से इसमें वृद्धि होती रही तो 2030 और 2050 के मध्य इसकी मात्रा दुगनी हो जाएगी जो न केवल पर्यावरण अपितु सम्पूर्ण जीव जगत के लिए संकट का एक प्रमुख कारण होगी ।
(ii) मिथेन:
मिथेन गैस कार्बन और हाइड़ोजन के मेल से बनती है । एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 52 करोड़ टन मिथेन गैस वायु में पुल रही है, इस प्रकार प्रतिवर्ष इसकी मात्रा में लगभग एक प्रतिशत की वृद्धि हो रही है । मिथेन गैस में वृद्धि का कारण प्राकृतिक ओर मानवीय दोनों हैं ।
ADVERTISEMENTS:
दलदल एवं नम भूमि, धान की कृषि, पशुओं द्वारा, खनन एवं गैस ड़िलिंग द्वारा, जीवांश जलाने से, दीमक द्वारा, भूमि पाटने से तथा सागर और ताजा पानी उसके उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं । मिथेन गैस, कार्बन-डाई-ऑक्साईड से भी अधिक वायुमण्डल को गर्म करती है ।
(iii) नाइट्रस ऑक्साइड:
ग्रीन हाउस गैसों में एक अन्य प्रमुख गैस नाइट्रस ऑक्साइड है जो वातावरण में प्रतिवर्ष लगभग 0.25 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है । इसकी वृद्धि का कारण महासागर, उष्ण कटिबन्धीय मृदा, नमी के वन, सवाना के अतिरिक्त नाइट्रोजन उर्वरक, भूमि उपयोग में परिवर्तन, वनोन्मूलन, बायो अंश जलाना तथा औद्योगिक स्रोत हैं । यद्यपि नाइट्रस ऑक्साइड का उत्पादन विश्व स्तर पर बहुत सीमित है किन्तु ग्लोबल वार्मिंग में यह 100 वर्षों में कार्बन-डाई-ऑक्साइड से 300 गुना अधिक वार्मिंग करती है । इससे ओजोन परत को भी हानि पहुँचती है ।
(iv) क्लोरोफ्लोरो कार्बन:
ADVERTISEMENTS:
यह ग्रीन हाउस गैसों में परिवर्तन है जो पूर्णतया मानवीय क्रियाओं से उत्सर्जित होती हैं । इसका उत्सर्जन रेफ्रीजरेटर, वातानुकूलन अग्निशमन उपकरणों प्रसाधन सामग्री प्लास्टिक फोम आदि के उपयोग से होता है । इसमें और सबसे अधिक खतरनाक ग्रीन हाउस गैस मानी जाती हैं । ये ओजोन परत को सर्वाधिक हानि पहुँचाती हैं ।
(v) अन्य गैसें:
ग्रीन हाउस को प्रभावित करने वाली अन्य गैस हैं- हाइड्रो-फ्लोरों-कार्बन, पर फ्लोरो-कार्बन एवं सल्फर-हेक्सा फ्लोराईड । इसके अतिरिक्त जल वाष्प भी उष्मा को सोख कर ग्रीन हाउस प्रभाव में सहायक होती है ।
3. ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि का प्रभाव (Effects of Increasing Green House Gases):
ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी दोनों पर होता है । जैसे- जैसे इनकी मात्रा में वृद्धि होती जाती है यह प्रभाव खतरनाक होता जाता है ।
ADVERTISEMENTS:
ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के प्रमुख प्रभाव हैं:
(i) जलवायु परिवर्तन विशेषकर तापमान में वृद्धि
(ii) समुद्री जल स्तर में वृद्धि
(iii) पारिस्थितिक तंत्रों को हानि
(iv) कृषि पर प्रभाव
(v) ओजोन परत पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन ग्रीन हाउस गैसों का प्रतिफल होगा क्योंकि जब कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि गैसों की वायुमण्डल में अधिकता होगी तो इससे उसकी संरचना पर दुष्प्रभाव होगा । इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के रूप में होगा । तापमान में वृद्धि से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव होगा । इसका प्रभाव जैव विविधता पर ही नहीं अपितु मानव पर भी प्रत्यक्ष रूप में होगा । तापमान वृद्धि का विवरण इसी अध्याय में ग्लोबल वार्मिंग में किया जा चुका है ।
समुद्र के जल स्तर में वृद्धि-तापमान में वृद्धि होने से होगी, क्योंकि तापमान वृद्धि से हिमानी पिघलेंगी जिससे पानी समुद्रों में जाएगा और जलस्तर में वृद्धि होगी । इस वृद्धि के अनुसार प्रत्येक दस वर्ष में 6 सेमी. सागरीय जलस्तर ऊँचा हो रहा है जो 21वीं सदी के अन्त तक 65 सेमी. ऊपर हो जाएगा । इससे अनेक क्षेत्र समुद्र में डूब जाएँगे तो सामुद्रिक तूफान और अधिक तबाही का कारण बनेगा ।
पारिस्थितिक तन्त्रों पर ग्रीन हाऊस का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में होता है चाहे वह स्थलीय हों या जलीय । इस प्रभाव का प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन, तापमान वृद्धि, सामुद्रिक जल स्तर में बदलाव होता है प्रत्येक पारिस्थितिक तन्त्र जलवायु द्वारा नियन्त्रित होता है । अत: जैसे ही इसमें परिवर्तन होगा उसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा । यह प्रभाव जीवों तथा पादपों पर होता है ।
ADVERTISEMENTS:
कृषि का स्वरूप जलवायु से नियन्त्रित होता है । फसलों का प्रकार, उत्पादन तथा सामजस्य सीधा तापमान एवं वर्षा से सम्बन्धित होता है । अत: जैसे ही तापमान में वृद्धि होती है कृषि के स्वरूप में भी बदलाव आता है । ओजोन परत की विरलता का कारण भी ग्रीन हाउस गैसें होती हैं । विशेषकर क्लोरीफ्लोये कार्बन ओजोन परत पर सीधा प्रभाव डालती हैं ।
4. ग्रीन हाउस प्रभाव को रोकने के प्रयास (Preventive Measures of Green House Effects):
निस्सन्देह आज ग्रीन हाउस प्रभाव विश्व की प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बनी हुई है क्योंकि यह ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है । विश्व के सभी देश तथा संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण संरक्षण संगठन न केवल इसके प्रति चिन्तित हैं, अपितु इसको नियन्त्रण में करने अथवा कम करने में प्रयत्नशील भी हैं, यद्यपि इसमें अधिक सफलता नहीं मिली है ।
1992 में आयोजित रियो सम्मेलन में इस समस्या पर विस्तार से चर्चा की गई तथा जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी समझौता तैयार किया गया जिस पर 158 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं । इस समझौते का मुख्य उद्देश्य वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के एकत्रीकरण को स्थिर कर पृथ्वी की जलवायु को सुरक्षित बनाना है ।
1997 में हुए बच्चे से सम्मेलन में ग्रीन हाउस गैसों को कम करने की समय सीमा 2012 निर्धारित की गई । इस दिशा में निरन्तर प्रयास जारी हैं और इस समस्या का हल विश्व के देश आपसी सहयोग से ही कर सकते हैं क्योंकि यह किसी एक देश की समस्या नहीं है । विशेष रूप से ग्रीन हाउस गैसों को अधिक उत्सर्जन करने वाले देशों का यह दायित्व अधिक है कि इस दिशा में पहल करें ।
ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को रोकने के कतिपय उपाय निम्नलिखित हैं:
(i) जीवाश्म ईंधनों के उपयोग में कमी ।
(ii) जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का अधिक उपयोग ।
(iii) वृक्षारोपण एवं वर्गीकरण ।
(iv) अन्तर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों को लागू करना ।
ADVERTISEMENTS:
(v) औद्योगिक विकास में पोषणीय विकास की संकल्पना को लागू करना ।
(vi) कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन करने वाले उद्योगों व अन्य क्रियाओं को नियन्त्रित करना ।
(vii) विकसित देशों द्वारा तकनीकी विकास से नियन्त्रित करना ।
(viii) विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को ग्रीन हाउस गैसों को नियन्त्रित करने हेतु आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग देना ।
(ix) वैश्विक भागीदारी सुनिश्चित करना, आदि ।