पारिस्थितिकी तंत्र पर परिवहन का प्रभाव Paaristhitikee Tantr Par Parivahan Ka Prabhaav | Essay on the Impact of Transportation on Ecosystem in Hindi!

वर्तमान युग में परिवहन के साधनों का अत्यधिक विकास हुआ है । सभी प्रकार के परिवहन के साधन अर्थात् जल, थल एवं वायु ने दूरियाँ कम करके मानव को अत्यधिक गतिशील बना दिया है । किंतु इस परिवहन क्रांति का दुष्परिणाम पर्यावरण और अंत में मानव तथा समस्त जीव-जगत को भुगतना पड़ रहा है ।

भाप से चलने वाले रेल इंजन पर्यावरण को अत्यधिक प्रदूषित करते हैं, डीजल वाले अपेक्षाकृत कम और विद्युत चालित नगण्य । वायुयान भी वायु प्रदूषण में वृद्धि करते हैं । जेट इंजनों से निकला धुआँ हानिकारक होता है, किंतु अधिक ऊँचाई एवं तीव्र गति के कारण वह फैल जाता है ।

अत: उसका प्रभाव भी कम हो जाता है किंतु नगरों एवं अन्य प्रदेशों में पेट्रोल एवं डीजल वाहन अत्यधिक प्रदूषण का कारण होते हैं । इनसे निकलने वाले हानिकारक तत्व होते हैं- कार्बन डाई ऑक्साइड, अधजले हाइड्रो कार्बन, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बनिक एवं अकार्बनिक जस्ता कण, धुआँ आदि ।

स्पष्ट है कि परिवहन के अत्यधिक प्रचलन और वाहनों के धुएँ से आज वायुमण्डल प्रदूषित होता जा रहा है, जिससे न केवल मानव एवं अन्य जीवों पर अपितु वनस्पति पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है । यह अवस्था नगरों विशेषकर महानगरों में भयावह स्वरूप ग्रहण कर चुकी है, फलस्वरूप वहाँ के निवासी अनेक रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं । अत: इस समस्या का निराकरण आवश्यक है अन्यथा पारिस्थितिक-तंत्र में अवरोध का परिणाम और भी हानिकारक होगा ।

उपर्युक्त वर्णित विकास के कतिपय स्वरूपों के अतिरिक्त जो भी विकास मानव करता है चाहे वह खनिज प्राप्त करने हेतु हो, सिंचाई हेतु हो, औषधि अनुसंधान हेतु हो या अन्य सुख-सुविधाओं हेतु, प्रत्येक का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पर्यावरण पर होता है । अत: यह विचारणीय प्रश्न है कि विकास का स्वरूप एवं दिशा क्या हो ?

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