वायु प्रदूषण के प्रभाव | Vaayu Pradooshan Ke Prabhaav! Read this essay / article in Hindi to learn about the five main effects of air pollution. The effects are:- 1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effects on Human Health) 2. वनस्पति पर प्रभाव (Effects on Vegetation) 3. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव (Effects on Animals and Insects) and a Few Others.

वायु प्रदूषण विविध प्रकार से दुष्प्रभावित करता है । किंतु वायु प्रदूषण का प्रभाव इतना अधिक व्यापक है कि उसका विशिष्ट उल्लेख आवश्यक है । वायु प्रदूषण न केवल मानव को अपितु वनस्पति व अन्य जीवों के साथ-साथ जलवायु एवं पर्यावरण के अन्य पक्षों को भी प्रभावित करता है ।

इनका समुचित विवेचन निम्नांकित है:

वायु प्रदूषण का प्रभाव स्थानीय, क्षेत्रीय एवं विश्वव्यापी होता है ।

स्थानीय एवं प्रादेशिक मौसम पर इसका प्रभाव चार प्रकार से होता है:

(अ) दृष्टव्यता पर प्रभाव ।

(ब) सूर्य प्रकाश की सघनता ।

(स) जल वर्षा की मात्रा पर  ।

(द) अम्ल वर्षा  ।

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जब कि विश्व व्यापी प्रभावों के अंतर्गत प्रमुख प्रभाव हैं:

(अ) प्राकृतिक जलवायु में परिवर्तन,

(ब) कार्बन-डाई-ऑक्साइड में वृद्धि,

(स) विभिन्न प्रदूषण कणिकाओं में वृद्धि,

(द) ओजोन परत का विरल होना आदि ।

वास्तव में वायु प्रदूषण वर्तमान युग की औद्योगिक एवं तकनीकी सभ्यता की एक ऐसी देन है जो न केवल पारिस्थितिक-तंत्र को असंतुलित बनाकर विभिन्न हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर रहा है अपितु मानव एवं अन्य जीवों तथा वनस्पति आदि के लिये भी संकट का कारण बनता जा रहा है ।

इसके द्वारा होने वाले प्रमुख प्रभाव निम्नांकित हैं:

1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effects on Human Health):

मानव अपने जीवन को बनाये रखने हेतु औसतन 8,000 लीटर वायु अंदर एवं बाहर करता है । अत: यदि वायु में अशुद्धि है अथवा उसमें प्रदूषक तत्वों का समावेश है तो वह श्वास द्वारा शरीर में पहुँच कर विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है और अनेक भयंकर रोगों का कारण बन जाती है ।

जैसा कि ए.जे.डे. विलिर्स ने अपने अध्ययन की समीक्षा में स्पष्ट किया है कि- ”इसके पर्याप्त प्रमाण हैं कि स्वास्थ्य को वायु मण्डलीय प्रदूषण विविध मात्रा में विपरीत रूप में प्रभावित करता है । इससे मृत्यु में अधिकता होती है, रोगों की संभावना अधिक होती है तथा अत्यधिक श्वास संबंधी बीमारियाँ होने लगती है ।”

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वायु प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव मनुष्य के श्वसन तंत्र पर पड़ता है क्योंकि श्वास के साथ ग्रहण की गई वायु रक्त प्लाज्मा में घुलती नहीं अपितु हीमोग्लोबिन के साथ मिश्रित होकर संपूर्ण शरीर में भ्रमण करती रहती है ।

वायु में प्रदूषण वाली कणिकाएँ आदि आकार में कुछ बड़ी होती हैं तो वे नासिका द्वार पर रुक जाती हैं किंतु अतिसूक्ष्म कणिकायें फेफड़ों तक पहुँच जाती हैं और शरीर के विभिन्न भागों तक में पहुँच कर रोगों का कारण बन जाती हैं । प्रदूषित वायु से श्वास संबंधी रोग जैसे ब्रोंकाइटिस, बिलिनोसिस, गले का दर्द, निमोनिया, फेफड़ों का कैंसर आदि हो जाते हैं ।

श्वास रोगों के अतिरिक्त वायु में सल्फर-डाई-ऑक्साइड और नाइट्रोजन-डाई- ऑक्साइड की अधिकता से कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह आदि हो जाते हैं । सल्फर-डाई-ऑक्साइड से एम्फॉयसीमा नामक रोग होता है, यह प्राणलेवा बीमारी है जिससे अमेरिका में हजारों लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है ।

वाहनों के धुएँ में उपस्थित सीसा कण शरीर में पहुँच कर यकृत, आहार नली, बच्चों में मस्तिष्क विकार, हड्डियों का गलना जैसे रोगों का कारण बनते हैं । बहु-केन्द्रित हाइड्रो कार्बन भी कैंसर का कारण बनते हैं । इस संदर्भ में ‘धूम कुहरा’ का उल्लेख आवश्यक है, जिसके कारण सैकड़ों व्यक्तियों की अब तक मृत्यु हो चुकी है । यह मुख्यतया उद्योगों एवं परिवहन की अधिकता वाले नगरों पर छा जाता है ।

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इसमें सल्फर-डाई-ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड का अंश मिश्रित रहता है जो न केवल स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है अपितु मौत का कारण बन जाता है । वर्तमान विश्व में जैसे-जैसे वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है उससे फैलने वाली बीमारियाँ एवं मृत्यु संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है ।

वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर क्रमश: प्रभाव पड़ता है, जो प्रदूषण की मात्रा एवं सघनता पर निर्भर करता है । प्रारंभिक अवस्था में इसका प्रभाव परिलक्षित भी नहीं होता, तत्पश्चात् मानव उसे अनुभव करने लगता है, फिर उसे श्वास में या अन्य अंगों में तकलीफ होने लगती है ।

यही क्रम यदि चलता रहता है तो बीमारी में वृद्धि होकर वह अंतिम अवस्था में मृत्यु का कारण बन जाता है । वास्तव में यदि हमें वायु प्रदूषण से सुरक्षित रहना है तो प्रयत्न यही होना चाहिये कि यह प्रदूषण हो ही नहीं ।

2. वनस्पति पर प्रभाव (Effects on Vegetation):

वायु प्रदूषण का वनस्पति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है, विशेषकर अम्लीय वर्षा, धूम कुहरा, ओजोन, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड, फ्लोराइड आदि का । वायु प्रदूषण के कारण पौधों को प्रकाश कम मिलता है अत: उनकी फोटोसिन्थेसिस क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

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जो पौधे धूम कुहरे के क्षेत्र में पनपते हैं उनका विकास कम होता है । प्रकाश रासायनिक धूम-कुहरे के कारण उत्पन्न ओजोन और नाइट्रेट ऑक्साइड वनस्पति के लिये अत्यधिक हानिकारक होते हैं, इससे उनकी पत्तियाँ विकृत एवं सफेद होकर गिरने लगती है ।

इसी प्रकार सौंदर्यवर्द्धक फूल एवं पौधे वायु प्रदूषण से संवेदनशील होते हैं । वायु प्रदूषण से वृक्ष, सब्जियाँ, फल, फूल सभी प्रभावित होते हैं । सल्फर-डाई-ऑक्साइड से पत्तियाँ रंगहीन हो जाती हैं तथा काली पड़कर कष्ट होने लगती हैं ।

अधिक वायु प्रदूषण के क्षेत्र में पौधे परिपक्व नहीं हो पाते, कलियाँ मुरझा जाती हैं तथा फल भी पूर्ण विकसित नहीं हो पाते । वाहनों से निकलता धुआँ वनस्पति के लिए हानिकारक होता है । इसी प्रकार धातु उद्योगों जैसे- जिंक, स्मेलटर आदि से निकले धातु कण वनस्पति पर विपरीत प्रभाव डालते हैं ।

कुछ पौधे इस प्रकार के भी होते हैं जिन्हें ‘प्रदूषण सूचक पौधे’ कहा जा सकता है । इन पौधों पर प्रदूषण के चिह्न स्पष्ट दृष्टिगत होते हैं जिनसे प्रदूषण का पता चल जाता है । इस प्रकार के पौधे हैं- सालविया, डहलिया, चीड, बरगद, जीनिया, ग्लेंड्‌यूलस आदि ।

3. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव (Effects on Animals and Insects):

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मानव के समान पशुओं एवं अन्य जीवों पर भी वायु प्रदूषण का हानिकारक प्रभाव पड़ता है । जीव वायु ग्रहण करते हैं अत: प्रदूषण से विषाक्त पदार्थ शरीर में पहुँच जाते हैं जो हानिकारक होते हैं । पशुओं द्वारा खाये जाने वाले चारे पर क्लोराइड यौगिक के गिरने से वे उनके शरीर में पहुँच कर हड्डियों तथा दाँतो में फ्लुओरोसिस कर देते हैं । अनेक प्रकार के कीट जैसे- मधुमक्खी, शलभ आदि प्रदूषण से मर जाते हैं । पक्षियों पर भी वायु प्रदूषण का विपरीत प्रभाव देखने में आता है ।

4. वायु मण्डल एवं जलवायु पर प्रभाव (Effects on Atmosphere and Climate):

(i) ओजोन परत पर प्रभाव:

वायु मण्डल में स्थित ‘ओजोन परत का कवच’ मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सूर्य से आने वाली ‘परा बैंगनी किरणों’ को ढाल की तरह रोककर जन जीवन की रक्षा करता है । ये हानिकारक किरणें भू-मण्डल पर आकर हमारे शरीर में त्वचा कैंसर, आँखों में मोतियाबिंद उत्पन्न कर अंधापन बढ़ाती हैं तथा इससे जल-जीव एवं फसलों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है ।

वायु मण्डल में ओजोन की मात्रा बहुत कम होती है, यह भी अधिकांशत: स्ट्रेटीस्फीयर अर्थात् 24 से 48 कि.मी. की ऊँचाई पर होती है । ओजोन सूर्य की पराबैंगनी विकिरणों से, ऑक्सीजन के अणुओं के प्रकाश अपघटन के फलस्वरूप बनती हैं तथा वायुमण्डल की लगभग 99 प्रतिशत परा बैंगनी सौर किरणों को अपने में समाहित कर लेती है ।

साधारणत: ओजोन निर्माण प्राकृतिक एवं संतुलित रूप में चलता रहता है किंतु कतिपय प्रदूषक तत्व इसमें व्यतिक्रम डालते हैं तो ओजोन परत में ‘छिद्र’ हो जाते हैं अथवा उसकी मात्रा में कमी आने लगती है जो संपूर्ण पृथ्वी के जीव-जगत् के लिये संकट का कारण बनती है ।

वर्ष 1985 में अनेक वैज्ञानिकों ने सनसनीखेज खबर दी कि अंटार्कटिका महाद्वीप के वायु मण्डल में सितम्बर माह में ओजोन की मात्रा कम हो जाती है तत्पश्चात् पुन: स्तर पर आ जाती है । बाद के प्रयोगों से इस जानकारी की पुष्टि हुई कि ‘ओजोन छिद्र’ का विकास हो रहा है । इसका कारण वैज्ञानिकों ने ओजोन परत में क्लोरीन यौगिकों की मात्रा आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाने को बताया है जिसमें फ्लोरीन मिश्रित तत्वों की अधिकता होती है ।

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एक निश्चित मात्रा के बाद क्लोरीन ओजोन का विघटन प्रारंभ कर देता है । ओजोन परत को नष्ट करने में सबसे अधिक योग क्लोरोफ्लोरो कार्बन का है । क्लोरोफ्लोरो कार्बन ऐसे रासायनिक यौगिक है जिनमें कार्बन और हाइड्रोजन परमाणुओं के अतिरिक्त क्लोरीन और फ्लोरीन के परमाणु भी होते हैं ।

ये औद्योगिक रूप से महत्त्वपूर्ण यौगिक हैं जिनका प्रयोग प्रशीतकों (रेफ्रीजरेन्ट) के रूप में किया जाता है । यदि इन यौगिकों का उत्पादन वर्तमान दर से होता रहा तो अगले सौ वर्षों में वायु मण्डल की ओजोन में 7 से 13 प्रतिशत की कमी आ जायेगी । इसका प्रभाव जन-जीवन पर अत्यधिक हानिकारक होगा ।

(ii) ग्रीन हाउस प्रभाव:

वायुमण्डल में कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा में निरंतर वृद्धि हो रही है, जिससे तापमान बढ़ रहा है । वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार विगत 50 वर्षों में पृथ्वी का औसत तापक्रम एक डिग्री सेल्सियस बढ़ा है । यदि यह 3.6° से और बढ़ता है तो आर्कटिक एवं अंटार्कटिका के विशाल हिमखण्ड पिघल जाएंगे तथा समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होगी । कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होने से वह सूर्य की किरणों को अवशोषित करती है, इससे वायु मण्डल गर्म हो जाता है ।

इसे ही ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ कहते हैं । 1988, जून में टोरन्टो में हुए सम्मेलन में ग्रीन हाउस प्रभाव तथा उससे संबंधित खतरों के बारे में वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की । ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करने वाली गैसें कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मिथेन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन हैं ।

पेट्रोल तथा गैसीय तत्वों का जलना, उद्योगों से निकलता धुआँ इसके प्रमुख स्रोत हैं । इस प्रकार के प्रदूषण से तापमान की वृद्धि होती है तथा अनेक स्थानों पर सूखा और अकाल की स्थिति भी बनती है । वनस्पति के निरंतर नष्ट होने से भी वायु मण्डल में कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो रही है ।

(iii) मौसम पर प्रभाव:

वायु प्रदूषण का स्थानीय मौसम पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है । इनसे बादलों, तापमान एवं वर्षा पर भी प्रभाव होता है । औद्योगिक नगरों पर छाने वाला कोहरा वायु प्रदूषण का परिणाम होता है । नगरों पर ‘कोहरे का गुम्बद’ बन जाता है तथा हवा के प्रभाव से वह एक और धारा के रूप में बहने लगता है । आँधियाँ भी स्थानीय मौसम को प्रभावित करती हैं ।

इस्पात मिलों के धुएँ में विशेष प्रकार के हिम केन्द्रक नामक कण से वर्षा की संभावना अधिक हो जाती है । स्थानीय तापीय विकिरण पर भी धूल एवं कोहरे का प्रभाव पड़ता है । इसी के साथ दृष्टव्यता पर भी वायु प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है अर्थात् वह कम हो जाती है ।

5. अन्य प्रभाव (Other Effects):

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उपर्युक्त प्रभावों के अतिरिक्त वायु प्रदूषण अन्य कई वस्तुओं को भी प्रभावित करता है जैसे जंग लगना, कागज, कपड़ा, संगमरमर आदि का क्षीण होना । हाइड्रोजन सल्फाइड चाँदी की चमक कम कर देता है तथा सीसे की वस्तुओं को काला बना देता है ।

ओजोन रबर में दरार पैदा कर देता है । अनेक स्मारक एवं प्राचीन भवनों को भी वायु प्रदूषण से हानि पहुँचती है । इस संबंध में ताजमहल विवाद का उल्लेख करना उचित होगा । आगरा स्थित सफेद संगमरमर का बना ताजमहल ऐतिहासिक एवं सौंदर्यपूर्ण इमारत है ।

1972 में मथुरा में एक तेल शोधक कारखाना लगाया गया । इसी के साथ यह आशंका हुई कि इससे निकलने वाले धुएँ में मिश्रित कार्बन-डाई-ऑक्साइड वर्षा के जल से मिल कर सल्फ्यूरिक एसिड के रूप में गिरता है, जिसका प्रभाव यहाँ के संगमरमर पर अवश्य होगा ।

इस संबंध में एक कमेटी भी नियुक्त हुई, वैज्ञानिकों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये, किंतु इस आशंका को निर्मूल नहीं माना जा सकता । उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण एक क्रमिक रूप से घुलता हुआ जहर है जो न केवल मनुष्य अपितु समस्त जीव जगत् को प्रभावित कर रहा है ।

इसका प्रभाव अभी सीमित हो सकता है, किंतु यदि इस दिशा में पर्याप्त प्रयत्न नहीं किये गये तो यह ऐसी अवस्था में पहुँच जायेगा जहाँ विनाश ही विनाश होगा और हम असहाय हो जाएंगे । अत: वायु प्रदूषण की समस्या के निवारण एवं नियंत्रण हेतु समुचित उपाय करना आवश्यक है ।

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