पर्यावरण आपदाएं: अर्थ और प्रकार | Paryaavaran Aapadaen: Arth Aur Prakaar. In this article we will discuss about the Meaning and Types of Environmental Disasters in Hindi.

पर्यावरणीय आपदायें का अर्थ (Meaning of Environmental Disasters):

पर्यावरणीय अथवा प्राकृतिक आपदाएँ सदैव आकस्मिक होती हैं और विनाश का कारण होती हैं । अनादिकाल से मानव इन प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त होता रहा है और इनके द्वारा होने वाले नुकसान का ताण्डव देखता रहा है । यह क्रम आज भी जारी क्योंकि ये आपदाएँ प्राकृतिक होती हैं जिन पर मनुष्य का नियन्त्रण नहीं होता ।

प्राचीन काल में इन्हें दैवीय प्रकोप माना जाता रहा है और उससे हुए जन-धन की हानि को ईश्वर का दण्ड । किन्तु आज इन सभी प्राकृतिक आपदाओं के कारणों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा चुका है और यह सभी स्वीकार करते हैं कि यद्यपि इन आपदाओं को रोका नहीं जा सकता किन्तु उचित प्रबन्धन द्वारा इनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है ।

ऐसा नहीं है कि ये सभी आपदाएँ केवल प्राकृतिक कारणों से ही होती हैं अपितु इनके लिए अनेक मानवीय कारण भी उत्तरदायी होते हैं जिन पर नियन्त्रण सम्भव है । इसी प्रकार आपदाओं का विस्तार एवं उनसे होने वाली हानि में अन्तर होता है ।

कुछ आपदाओं से हानि सीमित होती है जबकि अन्य से अपार हानि होती है जिन्हें आकस्मिक दुर्घटना एवं त्रासदी कहा जाता है । आपदा सामान्य हो या भयानक उससे न केवल जन- धन अपितु पर्यावरण को हानि पहुँचती है, अत: प्रबन्धन अति आवश्यक है । प्राकृतिक आपदाओं के सम्बन्ध में दो महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं, प्रथम- उनसे होने वाली सम्भावित हानि और द्वितीय- उनके द्वार किया गया वास्तविक नुकसान ।

किसी भी आपदा की सघनाता निम्न तथ्यों पर निर्भर करती है:

(i) प्रभावित क्षेत्र की ऐतिहासिक एवं सामाजिक स्थिति एवं आर्थिक विकास का स्तर ।

(ii) आपदा से होने वाले नुकसान का भूमि उपयोग अर्थात् जिस क्षेत्र में आपदा आई है वहाँ का स्वरूप किस प्रकार का है, वह सघन आबादी वाला शहरी औद्योगिक क्षेत्र है या बंजर, मरुस्थली क्षेत्र है ।

(iii) प्राकृतिक आपदा के नुकसान की प्रकृति वहाँ के भौगोलिक स्वरूप पर भी निर्भर करती है ।

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(iv) एकाकी प्राकृतिक आपदा सामन्यतया कम हानि पहुँचाती है किन्तु जब इनका अन्य प्रक्रमों से भी साथ होता है तो वह अधिक नुकसानप्रद होती है ।

(v) प्राकृतिक आपदा द्वारा हानि की मात्रा एवं विस्तार अनेक तथ्यों पर निर्भर करता है, जैसे उसकी व्यापकता, सघनता, सामयिकता एवं क्षेत्रीयता ।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास आधुनिक युग में ही प्रारम्भ हुआ है । यद्यपि उनके सम्बन्ध में विवरण दो हजार वर्ष पूर्व का भी मिलता है जब भूकम्प से बचाव आदि के सम्बन्ध में चर्चा की गई थी । किन्तु वर्तमान में वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षेत्र में क्रान्तिकारी विकास से ये क्षेत्र अछूता नहीं है और इस दिशा में पर्याप्त शोध भी की गई है, उनकी चर्चा यहाँ प्रासंगिक नहीं है, यहाँ हम मुख्यत: आपदा प्रबन्धन पर सीमित रहेंगे ।

गिलबेस्ट ह्वाइट ने सर्वप्रथम 1936, 1945 में बाढ़ की समस्या के लिये इंजीनियरिंग योजना का प्रस्ताव रखा । संयुक्त राज्य अमेरिका में ही सर्वप्रथम आपदाओं के प्रबन्धन/अध्ययन का प्रारम्भ हुआ, इसी के साथ यूरोप, रूस, जापान, चीन में भी अनेक वैज्ञानिक एवं सामाजिक विषयों में (जो भूगर्भ विज्ञान से समाजशास्त्र तक है) इनका अध्ययन एवं शोध किया जाने लगा ।

इसमें भौतिक भूगोलवेत्ताओं का भी योग रहा । 1970 तक इस क्षेत्र में अनेक प्रकाशन आए और उसके पश्चात् ‘आपदा प्रबन्धन’ एक विशेष अन्तरविषयी विज्ञान के रूप में भी उभरकर आया । संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1990 के दशक को ‘अन्तरराष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण दशक’ घोषित किया, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जन-धन की हानि को कम करना था । आज विश्व के सभी देश इसके प्रति सचेष्ट हैं ।

पर्यावरणीय आपदाएँ के प्रकार (Types of Environmental Disasters):

भूगोलवेत्ताओं ने पर्यावरणीय आपदाओं को उनके प्राकृतिक स्वरूप के आधार पर वर्णित किया है जो ‘प्राकृतिक आपदा’ में समाहित हैं । तद्नुसार पर्यावरणीय आपादाएँ, प्राकृतिक पर्यावरण के वे तत्व हैं जो मानव के लिए हानिप्रद हैं तथा जिनका उद्‌भव बाहरी शक्तियों से होता है । किन्तु अधिकांश पर्यावरणीय आपदाएँ प्राकृतिक एवं मानवीय कारकों से होती हैं । परम्परावादी प्राकृतिक आपदा को पारिस्थितिक तन्त्र के साथ सम्बन्धित करते हैं जैसे कि आरेख-14.1 में प्रदर्शित है ।

स्पष्ट है कि प्राकृतिक आपदाओं की सैंम्बेन्ध भौतिक प्रक्रम एवं घटनाओं से है जो पृथ्वी के जटिल स्वरूप, वायुमण्डलीय एवं जलमण्डलीय प्रक्रमों की प्रतिक्रिया के साथ-साथ मानवीय क्रिया-प्रतिक्रिया का प्रतिफल है । पर्यावरणीय आपदा शब्दावली के उपयोग से यह सुविधा है कि इसमें प्राकृतिक और मानवीय दोनों स्वरूपों का समावेश हो जाता है ।

केट्स ने पर्यावरणीय आपदाओं को व्यापक स्वरूप में प्रस्तुत किया है जिसमें प्राकृतिक और मानवीय सभी घटनाक्रमों को सम्मिलित किया गया है । इनका अस्वैच्छिक एवं स्वैच्छिक होना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अनेक आपदा स्वयं मनुष्य पैदा करता है और उन्हें स्वयं नियन्त्रित भी कर सकता है । इसी प्रकार कुछ आपदाएँ सघन अर्थात् अधिक प्रभावशाली होती हैं जबकि अन्य फैली हुई (विकीर्ण) होती हैं ।

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पर्यावरणीय आपदाओं में कतिपय समानताएँ हैं:

(i) इनके नुकसान प्रक्रम स्पष्ट होते हैं । ये मानवीय जीवन के लिए हानिकारक होते हैं ।

(ii) अधिकांशत: जीवन और सम्पत्ति की प्रत्यक्ष हानि तात्कालिक होती है, किन्तु कुछ प्रभाव दूरगामी भी होता है ।

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(iii) इनसे होने वाली हानि अस्वैच्छिक होती है तथा आपदा क्षेत्र की स्थिति पर निर्भर करती है ।

(iv) इनमें चेतावनी का समय बहुम कम या बिल्कुल नहीं होता ।

(v) आपदा नुकसान पूर्ति तथा जन-हानि को बचाने के लिए तुरन्त सहायता की आवश्यकता होती है ।

अत: पर्यावरणीय आपदा की सामान्य परिभाषा है- “अतिशय भू-भौतिकी घटनाएँ, जैविक प्रक्रम और प्रमुख प्रौद्योगिकी की दुर्घटनाएँ जिनमें संकेन्द्रित ऊर्जा अथवा पदार्थ प्रवाहित होते हैं-निकलते हैं तथा जिनसे अप्रत्याशित रूप से मानव जीवन को खतरा होता है और वे पर्यावरण एवं अन्य पदार्थों को नुकसान पहुँचाते हैं ।”

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आपदाओं के प्रकार:

आपदाओं के विभिन्न प्रकार हैं जिनका वर्गीकरण अध्ययन की सुविधा हेतु आवश्यक है ।

आपदाओं का वर्गीकरण करते समय निम्न बिन्दुओं पर विचार करना होता है:

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(I) प्रभावित क्षेत्र का विस्तार,

(II) प्रभाव की सघनता,

(III) प्रभाव की सामयिकता, एवं

(IV) घटना के पूर्वानुमान की सम्भावना ।

हेविट और बर्टन ने पर्यावरणीय आपदाओं का अग्र प्रकार से वर्गीकरण किया है:

पर्यावरणीय आपदाएँ अथवा प्रक्रम:

(1) वायुमण्डलीय (Atmospheric):

(i) एकाकी तत्व:

(a) वर्षा

(b) जमाव वर्षा (ग्लेज)

(c) हेल

(d) हिम

(e) वायु

(f) बिजली गिरना

(g) तापमान (शीत एवं गर्म लहर)

(h) कोहरा

(ii) सामूहिक आपदा:

(a) वर्षा एवं आंधी तूफान

(b) ग्लेज तूफान

(c) गरजीला तूफान

(d) टारनेडो

(e) हरीकेन

(f) ब्लिजार्ड

(g) सूखा

(2) जलीय (Hydrologic):

(a) बाढ़

(b) जल प्लावन

(c) आइसबर्ग

(d) सूखा

(e) हिमानी प्रवाह

(3) भूगर्भिक (Geologic):

(a) वृहत् खिसकाव : भूस्खलन, मृदा बहाव, धंसाव, आदि

(b) मृदा अपरदन

(c) भूकम्प

(d) ज्वालामुखी

(e) स्थानान्तरित क्षेत्र

(4) जैविक (Biologic):

(a) मनुष्यों में महामारी

(b) पादपों में महामारी

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(c) जन्तु एवं पादप आक्रमण (जैसे टिड्डी)

(d) वन एवं चरागाह की आग

(5) तकनीकी (Technologic):

(a) परिवहन दुर्घटना

(b) औद्योगिक विस्फोट और आग

(c) जहरीली गैस रिसाव

(d) आणविक शक्ति केन्द्र की विफलता

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(e) सार्वजनिक इमारतों का गिरना

(f) जैविक युद्ध

आपदाओं का वर्गीकरण उनके द्वारा हुए नुकसान के आधार पर भी किया जाता है, जैसे- 100 व्यक्तियों की मृत्यु, 100 व्यक्ति घायल, 10 लाख डॉलर की हानि, आदि किन्तु यह विभाजन उपयुक्त नहीं है । होहेनमसर का मत है कि आपदा में क्रमिक रूप से मानवीय आवश्यकता और आकांक्षा होती है जो विशेष तकनीकी तक होती है । इस तथ्य को उन्होंने एक आरेख के माध्यम से स्पष्ट किया है जिसमें सूखा आपदा को लिया गया हे ।

आपदा विकास की सात अवस्थाएँ दर्शाई, गई हैं, ये अवस्थाएँ आकस्मिक क्रम में जुड़ी हैं जिन्हें द्वार प्रदर्शित किया गया है । निचली लाइन में क नियन्त्रक अवस्थाएँ प्रदर्शित की गई हैं जो उक्त से लम्बवत् तीर द्वारा सम्बन्धित हैं ।

उपर्युक्त वर्गीकरण विशद् और अध्ययन की दृष्टि से किया गया है । सामान्यतया विश्व में जो प्राकृतिक, पर्यावरणीय आपदाएँ घटित होती रहती हैं, वे हैं- ज्वालामुखी उद्‌गार, भूकम्प, भूस्खलन, बाढ़, सूखा, अकाल, तूफान (टारनेडी, सामुद्रिक तूफान, उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात) ।

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