प्रदूषण के प्रकार अथवा पर्यावरण-प्रदूषण: कारण व निदान पर निबंध | Essay on Environmental Pollution : Causes and its Remedies in Hindi!
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समस्त ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन पाया जाता है क्योंकि यहाँ जीवन के अनुकूल वातावरण विद्यमान है । यहाँ वायु, जल, मिट्टी, वृक्ष आदि का संतुलित मिश्रण है । दूसरे शब्दों में, यहाँ पर पर्यावरण का उचित संतुलन है ।
प्रकृति के इन विभिन्न तत्वों में यदि एक की भी कमी या अधिकता होती है तो यह संतुलन भी प्रभावित होता है । आधुनिक युग के औद्योगीकरण अर्थात् मशीनों, कल-कारखानों आदि की बढ़ती संख्या से विश्व में प्रदूषण जिस रफ्तार से बढ़ रहा है उससे पर्यावरण संतुलन प्रभावित होने लगा है ।
यदि इस बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश नहीं लगाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब सृष्टि में संपूर्ण जीवन खतरें में पड़ जाएगा । प्रदूषण अनेक कारणों से होता है । कल-कारखानों आदि से निकलता धुआँ वायुमंडल में कार्बन-डाईऑक्साइड की मात्रा को बढ़ाता है जिससे ऑक्सीजन का अनुपात निरंतर प्रभावित होता है । वायु प्रदूषण के अतिरिक्त सृष्टि में जल, मृदा, ध्वनि, रेडियोधर्मी प्रदूषण में भी वृद्धि हो रही है ।
विज्ञान के आविष्कारों ने मनुष्य को जैसे नए पंख दे दिए हैं । दिन-प्रतिदिन मोटर, कार, स्कूटर व बसों की संख्या में वृद्धि हो रही है । इसके अतिरिक्त मिलों व कारखानों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है । इन कारखानों, मिलों व यातायात के विभिन्न साधनों से निकला धुआँ वायुमंडल की शुद्ध वायु से मिलकर उसे प्रदूषित करता है ।
धुआँ तथा अन्य हाइड्रोकार्बन सूक्ष्म कणों के रूप में हमारे फेफड़ों में पहुँचते हैं तथा अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं । प्रदूषण एवं बीमारियों में वृद्धि का एक बड़ा कारण लोगों की स्वार्थपरता भी है क्योंकि अधिकांश व्यक्ति घर की सड़ी-गली वस्तुओं को मुक्त वातावरण में छोड़ देते हैं ।
प्रतिदिन हजारों टन रासायनिक पदार्थ कारखानों व मिलों आदि से निकलकर नदियों में प्रवाहित होता है जिससे नदियों का जल ण्छ होता है । इसके अतिरिक्त मलमूत्र, कीटनाशक दवाएँ व जल में प्रवाहित मृत शरीर निरंतर जल-प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं । फलस्वरूप जल में निवास करने वाले जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ गया है । देश की कुछ नदियाँ तो इतनी अधिक प्रदूषित हो चुकी हैं कि वहाँ तीव्र गति से जल-जंतु विनष्ट होते जा रहे हैं ।
नगरों में दिन-प्रतिदिन मोटरगाड़ियों आदि से ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है । इसके अतिरिक्त कार्यक्रमों आदि में प्रयुक्त लाउडस्पीकर आदि से भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है । हमारे घर तथा निकट के स्थानों में उपलब्ध अनेक प्रकार की मशीनें व संयंत्र ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को और भी बढ़ा रहे हैं । घनी बस्तियों में इस प्रदूषण के कारण आम नागरिकों का जीना दूभर हो गया है ।
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देश की जनसंख्या हमारे संसाधनों की तुलना में तीव्र अनुपात से बढ़ रही है अत: हमें अधिक उपज की आवश्यकता होती है । खेतों में प्रयुक्त रासायनिक खादों का अधिक से अधिक प्रयोग, दो फसलों के उत्पादन में समयांतराल की कमी से मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है । इसके अतिरिक्त वृक्षों का निरंतर कटाव भी मृदा प्रदूषण व पर्यावरण असंतुलन का प्रमुख कारण है ।
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परमाणु परीक्षणों से वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ता है । ये परमाणु संयंत्र विस्फोट के पश्चात रेडियोधर्मी विष फैलाते हैं जो जीवन के विरोधी हैं । इसका रिसाव मनुष्य के जींस को बुरी तरह प्रभावित करता है । विश्वयुद्ध के दौरान हुए परमाणु विस्फोटों एवं लगातार जारी परमाणु परीक्षणों से अभी आने वाली न जाने कितनी और पीढ़ियाँ प्रभावित होंगी ।
अत: आवश्यकता है कि मनुष्य विकास की दौड़ के साथ ही साथ पर्यावरण संतुलन के महत्व को भी समझे क्योंकि समय रहते यदि बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर जीवन खतरे में पड़ जाएगा । पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक है कि हम अधिक से अधिक धुआँरहित ईंधन का प्रयोग करें ।
अपने आस-पास गंदगी न फैलने दें तथा वृक्षारोपण के अभियान को और तीव्र करें । हानिकारक रसायनों व कूड़ा-करकट आदि को नदियों में प्रक्षेपित करने के बजाय उन्हें नष्ट करने के लिए नए प्रयोग किए जाने चाहिए । कारखानों व मिलों में प्रयुक्त चिमनियाँ अधिक ऊँचाई पर होनी चाहिए ।
भारत सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में अनेक ठोस कदम उठाए हैं । वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है । अनेक उद्योग-धंधों को नगरों से विस्थापित किया जा रहा है परंतु सरकार के सभी कार्यक्रमों को पूर्ण सफलता तभी मिल सकती है जब समाज के सभी वर्गों का इस दिशा में सकारात्मक सहयोग हो ।
सभी अपने उत्तरदायित्व को समझें और उसका निर्वाह करें । जब तक ऐसा नहीं होता, हर प्रकार के प्रदूषण से मुक्ति नहीं मिल सकती । वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव विश्वव्यापी है, अत: यह भी आवश्यक है कि विश्व स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाए । लोग अपने पर्यावरण के प्रति जितने अधिक जागरूक होंगे, उसी मात्रा में यह समस्या भी निबट सकेगी ।