ईद पर निबंध | Eid in Hindi!
‘ईद-उल-फितर’ अथवा ‘ईद’ का त्योहार मुस्लिम समुदाय का मुख्य त्योहार है । विश्व के सभी कोनों में फैले मुस्लिम लोग इसे बड़ी ही श्रद्धा एवं उल्लासपूर्वक मनाते हैं ।
वास्तव में ईद का त्योहार समाज में खुशियाँ फैलाने, पड़ोसियों के सुख-दु:ख में भागीदार बनने तथा जन-जन के बीच सौहार्द फैलाने में महत्चपूर्ण भूमिका अदा करता है । हमारे देश में जब ईद का त्योहार आता है, मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य सभी समुदायों के व्यक्ति खुशी से झूम उठते हैं ।
मुस्लिमों के लिए रमजान का महीना विशेष धार्मिक महत्व रखता है । यह उनके दृष्टिकोण में उनके लिए आत्मशुदधि का महीना होता है । सभी मुस्लिम जन इस महीने में पूरे दिन का उपवास रखते हैं । इसका वे इतनी कठोरता से पालन करते हैं कि वे दिन भर जल की एक बूँद भी ग्रहण नहीं करते हैं ।
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भी लोग दिन के पाँच बजे निश्चित समय पर खुदा को ‘नमाज’ अदा करते हैं तथा अपने व सभी परिजनों की आत्मशुद्धि के लिए दुआ करते हैं । रमजान के पूरे महीने सभी मुस्लिम सूर्यास्त के पश्चात् ही भोजन व जल ग्रहण करते हैं ।
परंतु इस्लाम में कुछ असहाय, बीमार तथा लाचार व्यक्तियों को व्रत से छूट दी गई है लेकिन सभी सक्षम व्यक्तियों के लिए रमजान के महीने में व्रत रखना अनिवार्य है । रमजान महीने के अंतिम दिन सभी मुस्लिम चाँद को देखने की उत्सुकता रखते हैं क्योंकि चाँद के दिखाई देने के पश्चात् ही दूसरे दिन ‘ईद’ मनाई जाती है ।
सभी मुसलमान इस त्योहार को बड़ी धूम-धाम से विशेष तैयारी के साथ मनाते हैं । ईद के त्योहार में संपूर्ण वातावरण एकरस हो जाता है । अमीर-गरीब, जवान या बूढ़ा सभी जनों में बराबर उत्साह देखा-जा सकता है । सभी अपनी शक्ति व सामर्थ्य एवं रुचि के अनुसार नए वस्त्र, नए आभूषण, जूते, चप्पल व अन्य भौतिक सुख की सामग्री की खरीद करते हैं ।
चारों ओर फलों व मिठाइयों की दुकानों में लंबी भीड़ देखी जा सकती है । वातावरण में एक नई रौनक आ जाती है । ईद के दृश्य का सजीव चित्रण महान् उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद ने अपनी प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’ में किया है ।
ईद के दिन प्रात:काल बच्चे, युवक, बूढ़े सभी स्वच्छ कपड़ों में एक निश्चित समय पर ईदगाह में एकत्रित होते हैं । सभी लोग वहाँ पंक्तिबद्ध होकर ‘नमाज’ अदा करते
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हैं । हजारों की संख्या में एकत्रित हुए लोगों के हाथ जब दुआ के लिए उठते हैं तो संपूर्ण दृश्य देखकर मन आदोलित हो उठता है । तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे सभी आपस में भाई-भाई हैं जिनमें परस्पर द्वेष व वैमनस्य का कोई स्थान नहीं है ।
नमाज अदा करने के उपरांत सभी लोग एक-दूसरे को गले लगाते हैं तथा ईद की मुबारकबाद देते हैं । सभी लोग अपने मित्रों व सगे-संबंधियों के घर जाकर उन्हें ईद की मुबारकबाद देते हैं । इसके साथ ही दावतों का सिलसिला शुरू हो जाता है । लोग नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद उठाते हैं तथा अपने निकट संबंधियों में इसका आदान-प्रादान भी करते हैं ।
रमजान का महीना और उसके पश्चात् ईद का पावन पर्व सभी के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखता है । यह मन की पवित्रता एवं उसकी शुद्धता हेतु मनुष्य को प्रेरित करता है । निस्संदेह यदि हम इस पावन पर्व के मूल आदर्शों का पालन करें तो लोगों के मध्य वैर-भाव, शत्रुता अर्थात् मनुष्य का मनुष्य के प्रति भेद-भाव को बहुत हद तक कम किया जा सकता है ।
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यह त्योहार हमें भाईचारे तथा एक-दूसरे से प्रेम करने की सीख देता है ।
”ईद हो या दीवाली,
चहुँ ओर एक रौनक सी आई ।
देखो धरती पर फिर से,
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स्वर्ग की घटा घिर आई ।”