ADVERTISEMENTS:
चाँदनी रात में नौका विहार पर निबंध | Essay on Boating in the Moonlight Night in Hindi!
मनुष्य के जीवन में कर्म करना अत्यंत महत्वपूर्ण है । परिश्रम व लगन से ही वह मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति कर सकता है । इसके लिए कई लोग व्यवसाय को अपनाते हैं तो कुछ नौकरी को प्राथमिकता देते हैं । इसी प्रकार कुछ स्वयं का कार्य करते हैं ।
कार्य में अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद व्यक्ति को मनोरंजन आदि के लिए भी समय निकालना अति आवश्यक है । मनुष्य के जीवन में मनोरंजन उसकी नीरसता को दूर करता है तथा मनोमस्तिष्क में नवीनता का संचार करता है ।
मनुष्य ने मनोरंजन के अनेक साधन विकसित किए हैं । चलचित्र, पिकनिक, भ्रमण आदि सब उसको मनोरंजन प्रदान करते हैं । इसी उद्देश्य से गरमियों की हमारी छुट्टियों में मेरे पिताजी हमें तीर्थस्थल चित्रकूट ले गए । भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट एक मनोरम स्थल है । साधु-संतों की इस कार्यस्थली में अनेक दर्शनीय स्थान हैं जो सभी के हृदय को प्रफुल्लित कर देते हैं । चित्रकूट गंगा तट पर बसा हुआ है । यह नदी वहाँ पर मंदाकिनी के नाम से जानी जाती है ।
भ्रमण के दूसरे दिन हम राम घाट के समीप अनेक मंदिरों को देख रहे थे । घूमते-घूमते कब रात्रि का पहला पहर प्रारंभ हो गया हमें पता ही न चला । पूरा चित्रकूट धुँधली चाँदनी से नहाया हुआ था । कल-कल करता हुआ नदी का स्वर किसी मधुर संगीत की भाँति कानों में शहद घोल रहा था ।
नदी पर अनेक नावें तैर रही थीं । कुछ तट पर ही खड़ी थीं परंतु कुछ लोग नौका विहार का आनंद उठा रहे थे । कुछ नावें तट से दूर जा रही थीं तो कुछ सवार लोग नौका विहार करते प्रफुल्लित तट की ओर चले आ रहे थे । मैंने भी अपने पिता जी से नौका विहार की इच्छा प्रकट की तथा पिताजी ने उसकी सहर्ष स्वीकृति दे दी ।
इसके पश्चात् मल्लाह से किराया आदि तय करने के पश्चात् हम सभी नाव पर बैठ गए । मल्लाह (नाविक) ने तट से बँधी नाव खोली और हिचकोले खाती हमारी नाव पानी पर खिसकने लगी । नाविक ने नाव को पतवार से खेना प्रारंभ कर दिया । धीरे-धीरे नाव तट से दूर जाने लगी ।
हम खुशी से झूम रहे थे । नौका विहार का मेरा यह पहला अवसर था । मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी । में अत्यंत प्रफुल्लित हो कभी नाव में बैठे नदी का शीतल जल स्पर्श करता तो कभी तट की ओर देखते हुए दृश्य का आनंद लेता ।
ADVERTISEMENTS:
ADVERTISEMENTS:
नौका विहार करते हुए तट का दृश्य अत्यंत मनोरम लग रहा था । मंदिरों पर लोगों का आवागमन जारी था । कुछ लोग मंदिरों पर प्रसाद चढ़ाकर भगवान को श्रद्धाभक्ति से नमन कर रहे थे तो अनेक लोग मंदिरों से बाहर आ रहे थे । मंदिरों की घंटियों की आवाजें इतनी मधुर लग रही थीं कि उन्हें शब्दों में बयान करना अत्यंत कठिन हो रहा था ।
तट के समीप लोग नदी पर डुबकी लगा रहे थे तो बहुत से लोग तट से काफी दूर तक तैराकी का आनंद उठा रहे थे । कई स्त्री-पुरुष नहाने के पश्चात् कपड़े बदल रहे थे । तट का संपूर्ण दृश्य कवि की मधुर कल्पना-सा प्रतीत हो रहा था ।
हम नौका विहार का पूरा आनंद उठा रहे थे । कभी अन्य बच्चों के साथ मिलकर हम तालियाँ बजाकर खुशियों का इजहार करते । नौका-विहार के अवसर पर हमने अंताक्षरी का भी भरपूर आनंद उठाया । हमारी नौका के आस-पास तैरती अन्य नौकाएँ ऐसी लग रही थीं, जैसे ये समस्त नौकाएँ बच्चों की भाँति आपस में खेल रही हैं व दौड़ रही हैं । पानी में नौका का लहरों के साथ हिलना मुझे हर्षोल्लसित कर रहा था । पानी की तरंगें नौका से टकरा-टकरा कर वापस लौटती प्रतीत हो रही थीं ।
तट के दूसरी ओर झुके वृक्ष जैसे नदी को स्पर्श करने का प्रयास कर रहे थे । हम सब नौका-विहार के आनंद में इतना अधिक भाव-विभोर थे कि कब नाविक ने नौका तट पर लगा दी मुझे पता ही नहीं चला । नौका से उतरते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं कोई सुखद स्वप्न देख रहा हूँ ।
चाँदनी रात में मेरी प्रथम नौका विहार की मधुर स्मृति आज भी मुझे गुदगुदाती व प्रफुल्लित करती है । वह सुखद स्मृति अब भी मेरे मस्तिष्क पटल पर छाई हुई है । मैंने निश्चय किया है कि इस बार की छुट्टियों में हम पुन: नौका विहार के लिए जाएँगे ।