जीवन में लक्ष्य की अथवा जीवन में लक्ष्य का निर्धारण पर निबंध!

सभी मनुष्यों के लिए जीवन में लक्ष्य का होना अविनार्य है। लक्ष्यविहीन मनुष्य पशुओं के समान ही विचरण करता है । वह परिश्रम तो करता है परन्तु उसका परिश्रम उसे किसी ऊँचाई की ओर नहीं ले जाता है क्योंकि उसका परिश्रम उद्‌देश्य रहित होता है।

दूसरी ओर जीवन में एक निश्चित लक्ष्य रखने वाला मनुष्य अपनी समस्त ऊर्जा को लक्ष्य के प्रति आसानी से केंद्रित कर देता है जिससे वह दिन प्रतिदिन प्रगति की ओर अग्रसर रहता है । मनुष्य को अपने लक्ष्य का निर्धारण बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिए । लक्ष्य के निर्धारण में व्यक्ति की अपनी रुचि होना आवश्यक है ।

आधुनिक जगत की यही विडंबना है कि अधिकांश लोग कार्य तो करते हैं परंतु उस कार्य में उनकी रुचि नहीं होती है । अधिकतर लोग ऐसे कार्य में व्यस्त हैं जिसके लिए वे पूर्ण रूप से योग्य नहीं होते हैं फिर भी संसाधनों आदि के अभाव में विवशतापूर्वक वे कार्य करते चले जाते हैं। नि:संदेह अनिच्छा से किए गए कार्य से वे अपनी शक्ति और सामर्थ्य का पूर्ण रूप से सदुपयोग नहीं कर पाते हैं जिससे जीवन पर्यंत वे सृजन से वंचित रह जाते हैं । अत: किसी भी कार्य को करने हेतु उस कार्य के प्रति मनुष्य की अभिरुचि नितांत आवश्यक है ।

हमारे देश में प्राय: लोग वंशानुगत कार्य को बड़ी ही सहजतापूर्वक अपना लेते हैं । लोग बाल्यावस्था से ही मानसिक रूप से उसे इस प्रकार तैयार करते हैं कि वह बड़े होकर स्वयं ही अपने पूर्वजों के बताए मार्ग पर चल पड़ता है । हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था भी बहुत हद तक इसके लिए उत्तरदायी है । इन परिस्थितियों में वह चाहकर भी किसी नए कार्य को नहीं अपना पाता है ।

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वह बड़ों की इच्छा को अपनी इच्छा मानने लगता है । हालाकि परंपरागत कार्यों को भी यदि आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ जोड़ दिया जाए तो उनमें नवीनता आ जाती है । कृषि कार्य हों या पशुपालन, आधुनिक तरीके अपनाकर लोग इन क्षेत्रों में भी नए आयाम स्थापित कर सकते हैं । विकसित देशों के लोग उन्नत कृषि विधियों को अपनाकर राष्ट्र के विकास में अतुलनीय योगदान करते हैं ।

हमारे लक्ष्य निर्धारण में व्फ्य्रातावरण की भूमिका भी प्रमुख होती है । हमारे आस-पास अधिकांश छात्र-छात्राएँ मात्र इसलिए डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं क्योंकि उनके किसी मित्र, सगे-संबंधी अथवा पड़ोसी ने उस व्यवसाय को चुना है । वे अपनी क्षमताओं व अभिरुचियों की अनदेखी कर बाह्‌य प्रभाव में दूसरे के पदचिह्‌नों पर चल तो पड़ते हैं परंतु इन परिस्थितियों में आगे चलकर वे प्राय: असफल हो जाते हैं ।

अत: यह आवश्यक है कि अपने लक्ष्य के निर्धारण के समय हम अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को ध्यान में रखें तथा साथ ही साथ अपनी पारिवारिक व सामाजिक परिस्थितियों के बीच भी संतुलन बनाए रखें क्योंकि मनुष्य का अस्तित्व परिवार व समाज के बीच रहकर ही है ।

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इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक मनुष्य के लिए जीवन का एक निश्चित लक्ष्य होना अनिवार्य है । लक्ष्य निर्धारण में यह आवश्यक है कि वह कार्य का चुनाव अपनी क्षमताओं और अपनी अभिरुचियों के अनुरूप ही करे । वह बाह्‌य प्रभावों में आकर नहीं अपितु अपने विवेक से अपने लक्ष्य का निर्धारण करे ।

लक्ष्य निर्धारण में समय सीमा का निश्चित होना भी बहुत आवश्यक है । किसी कार्य को किस समय सीमा के अंदर पूर्ण करना है वह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है । एक निश्चित लक्ष्य के साथ चलने वाला व्यक्ति स्वयं तो प्रगति के पथ पर चलता ही है साथ ही साथ दूसरों के लिए भी अनुकरणीय मार्ग प्रशस्त कर जाता है । अत: प्रत्येक को समय रहते अपने लक्ष्य का निर्धारण अवश्य कर लेना चाहिए ।

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