बैंक डकैती पर निबन्ध | Essay on Bank Robbery in Hindi!
शनिवार का दिन था । चूँकि शनिवार को बैंक आधा दिन खुलता है । इसलिये स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की हींग की मण्डी शाखा में उपस्थिति बहुत कम थी । कुछ कर्मचारी जा चुके थे और कुछ जाने की तैयारी कर रहे थे ।
पैसा जमा करवाने वाले, भुगतान लेने वाले तथा बैंक का अन्य कार्य करवाने वाले लोगों की भीड़ सुबह ही लग गई थी । शनिवार को यह भीड़ प्राय: ज्यादा ही हो जाती है क्योंकि आधे दिन के बाद बैंक बंद हो जाता है । भीड़ अब पूरी तरह हट चुकी थी । बैंक के भीतर अब केवल एक ही ग्राहक रह गया था ।
बैंक का बाहर वाला गेट आधा बंद कर दिया गया था । सुरक्षा गार्ड भी सुबह से खड़ा-खडा थक चुका था । उसने अपनी बंदूक उठाकर कोने में रख दी थी और पास ही रखे स्टूल पर बैठकर चाय पी रहा था । तभी बैंक का चपरासी चाय की केतली तथा कप लेकर भीतर घुसा ।
उसके भीतर घुसते ही छू: – सात आदमी बैंक के भीतर घुसे जिनके चेहरे कपड़े से ढंके हुए थे । उनमें से एक कड़क कर बोला-कोई अपनी जगह से हिलेगा नहीं । बैंक में एक प्रबन्धक, दूसरा सहायक प्रबन्धक, तीन क्लर्क, एक खंजाची तथा एक चपरासी था । सभी चकित रह गए । जो नकाबपोश बैंक में घुसे थे उन्होंने गार्ड सहित सभी कर्मचारियों पर बंदूकें तान रखी थीं ।
थोड़ी देर तो उनको यह भी पता न चला कि उनके साथ क्या हो रहा है । तभी बंदूकधारियों में से एक ने हवा में गोली दाग दी । सभी उपस्थित लोग जो बैंक के भीतर थे भयभीत हो गए । सुरक्षा गार्ड स्टूल पर बैठा था और उसकी बंदूक तीन फुट के फासले पर दीवार से लगी थी ।
वह अपने आप को सबसे अधिक असुरक्षित महसूस कर रहा था । वैसे भी छः – सात बंदूकधारियों के सामने वह सुरक्षा गार्ड क्या कर सकता था । एक बंदूकधारी सुरक्षा गार्ड के पीछे खड़ा हो गया । उसने सुरक्षा गार्ड को गेट पर बाहर की ओर मुख करके खड़ा होने और बाहर से आने वाले व्यक्तियों को रोकने के लिए कहा । सुरक्षा गार्ड उठकर गेट पर खड़ा हो गया । बंदूकधारी ने पीछे से उस पर बँदूक तान ली ।
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जिस नकाबपोश ने प्रवन्धक पर बंदूक तान रखी थी वह ऊँचे स्वर में बोला – यदि किसी ने कोई शरारत की तो हम गोलियों से भून देंगे । अगर सहयोग दिया जाता है तो हम किसी को कुछ नहीं कहेंगे और अपना काम करके शान्तिपूर्वक चले जायेंगे ।
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उसने प्रबन्धक तथा क्लर्कों से सभी जमाराशि उसके हवाले करने के लिए कहा । बैंक कर्मचारी विनती करने तथा गिड़गिड़ाने लगे । उनका कहना था कि ऐसा करने पर उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा । उनके विरुद्ध पुलिस तथा विभागीय कार्रवाई होगी सो अलग । किन्तु बंदूकधारियों का जैसे दिल ही नहीं था । सहानुभूति नाम की चीज उनमें नहीं थी । उन्हें तो बस पैसा चाहिए था ।
जब प्रबन्धक सहित सभी कर्मचारी वहाँ से नहीं हिले तो बंदूकधारी को गुस्सा आ गया । पाँच-छ: फायर किये और काउंटरों के शीशे तोड़ दिये । वह चिल्लाया अगर मुझे तत्काल कैश नहीं सौंपा गया तो मैं गोली मार दूंगा । उसने फिर हवा में फायर किये ।
प्रबन्धक ने खजांची को संकेत किया, खजांची भागा । उसने प्रबन्धक की मेज की दराज से चाबियों का गुच्छा निकाला और थोड़ी देर बाद नोटों की बहुत-सी गड्डियाँ लाकर मेज पर पटक दीं । उसी बंदूकधारी के पास बैग था । उसने सभी गड्डियाँ तेजी से ओवरकोट की बड़ी-बड़ी जेबों में डाली और हवाई फायर करता हुआ अपने साथियों के साथ बैंक से बाहर हो गया ।
पुलिस को फोन किया गया । थोड़ी देर बाद पुलिस की गाड़ियाँ वहाँ आयी । पुलिस के लोग अपने जाँच कार्य में लग गए । मैनेजर को हैरानी थी कि उसने चुपके से बैंक का अलार्म बजाया था । फिर बजा क्यों नहीं । जाँच करने पर पता चला कि अलार्म के कनेक्शन काट दिए गए थे । डकैती होनी थी । पचास लाख रुपए की डकैती होकर ही रही । सच है होनी को कोई नहीं टाल सकता ।