भारत की प्रगति में कल-कारखानों का योगदान पर निबंध!
किसी विद्वान् का यह कथन सत्य ही है कि भारत एक धनी देश है, जहाँ गरीब लोग रहते हैं । इस कथन का अर्थ है- भारत प्राकृतिक साधनों से संपन्न है, किंतु यहाँ की जनता उन प्राकृतिक साधनों का उपयोग नहीं कर पा रही है, अत: गरीब है ।
आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्य के प्रयत्नों में सबसे बड़ी सहायक मशीन है । यहाँ नदियाँ हैं, नदियों के जल का उपयोग सिंचाई और बिजली के लिए अगर करना है तो मशीनों की आवश्यकता है । यहाँ मजदूरों की कमी नहीं, कारीगरों का अभाव नहीं । मगर सीमेंट, लोहा और बिजली के लिए मशीनों की सहायता अनिवार्य है ।
अत: भारत की आर्थिक उन्नति में मशीनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । स्वतंत्र भारत में आर्थिक उन्नति के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ शुरू हुईं । प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को महत्त्व दिया गया । जुताई-बुआई के लिए ट्रैक्टर तथा सिंचाई के लिए ट्यूबवेल और नहरें आदि निकाली गईं । इसके लिए कलों का अधिकाधिक उपयोग हुआ ।
इसी तरह भवन बनाने के सामानों के उत्पादन में भी मशीनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है । सीमेंट और लोहे के कारखाने भी अपने देश में खोले जाने लगे हैं । फलत: देश स्वावलंबी होता जा रहा है । मशीनों के उपयोग तथा कारखानों की स्थापना से उपयोग की अनेक वस्तुएँ, जैसे-रेल-इंजन, डिब्बे, पटरियाँ, मोटर, जहाज, वायुयान के पुर्जे आदि हमारे देश में ही बनने से दूसरे देशों से आयात करने का खर्च बचने लगा । कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए बंगलौर को ‘सॉफ्टवेयर सिटी’ के नाम से भी जाना जाने लगा है । अब इसका निर्यात भी होता है ।
अब आर्थिक उन्नति के लिए अपने देश में बनी चीजों का निर्यात बढ़ाना जरूरी है । यह तभी हो सकता है जबकि हमारे कारखानों का तैयार माल देश की आवश्यकता से अधिक हो । भारत चीनी, चाय, जूट, कहवा, कपड़ा आदि वस्तुओं का निर्यात करता है ।
निर्यात की मात्रा बढ़ाने के लिए भी कारखानों की उत्पादन-क्षमता बढ़ानी होगी । उसके लिए पुरानी मशीनों के बदले शक्तिशाली और अधिक द्रुत कार्य करनेवाली मम मशीनों को उपयोग में लाते रहना होगा । इस प्रकार औद्योगिक उन्नति में मशीनों का ही अधिक हाथ होता है ।
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राष्ट्र की जनता के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी अनेक प्रभावकारी औषधियों का अपने देश में निर्माण आवश्यक है । आंतरिक रोग के परीक्षण के लिए एक्सरे, अल्ट्रासाउंड मशीनें, शल्य-क्रिया के लिए तेज और बारीक औजार आदि के निर्माण भी अपने देश में होने लगे हैं । आयुर्वेदिक, यूनानी तथा अंग्रेजी दवाओं के कारखाने भी हमारे देश में पर्याप्त संख्या में खुले हुए हैं ।
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इस प्रकार उपयोग की सारी सामग्री के निर्माण के लिए हमारे देश में विविध प्रकार के कारखाने खुलते रहने से शिक्षितों की बेकारी की समस्या का भी समाधान हो सकता है । वैज्ञानिकों को नए अनुसंधानों का अवसर मिलता है । कारीगरों को काम मिलता है ।
इसके अलावा कलों के द्वारा शिक्षा तथा मनोरंजन के साधन भी सस्ते और सुलभ बनाए जा सकते हैं । छापाखानों में द्रुत गतिवाली मशीनों से पुस्तकें अधिक संख्या में छापी जा सकती हैं । सिनेमा आदि मनोरंजन के सुलभ साधन भी कलों की देन हैं । यंत्रों द्वारा यातायात में बड़ी सुविधा हो गई है । इससे जनता को दूर-दूर जाकर बसने की सुविधा प्राप्त है । इससे नगरों का तीव्र विकास हो रहा है ।
इस प्रकार मशीनों और यंत्रों द्वारा ही देश का औद्योगिकीकरण संभव है और औद्योगिकीकरण से ही आर्थिक उन्नति होती है । यंत्रों के प्रवर्तन से जनता की आय बढ़ती है, रहन-सहन का स्तर उन्नत होता है । इससे अंतरदेशीय व्यवस्था मजबूत होती है और विकसित देशों की नजर में भारत का गौरव बढ़ता है ।
अत: भारत में यंत्रों का उत्पादन बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि यंत्रों के निर्माण के कारखाने भी बढ़ाने हैं । देश में जितनी कुछ उन्नति नजर आ रही है, इसमें मशीनों का योगदान निर्विवाद है । अत: यह स्पष्ट है कि कलों और कारखानों की उन्नति पर ही भारत का भविष्य निर्भर है ।