रानी लक्ष्मीबाई अथवा झाँसी की रानी पर निबंध | Essay on Queen Laxmibai in Hindi!

हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई का नाम अमर है । उनकी देशभक्ति और पराक्रम आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं । ‘झाँसी की रानी’ के नाम से विख्यात रानी लक्ष्मीबाई को देशवासी कभी भी भुला नहीं सकते ।

ADVERTISEMENTS:

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 15 जून 1834 ई॰ को बितूर प्रांत में हुआ था । इनके बचपन का नाम ‘मनुबाई’ था । वे बचपन से ही अति कुशाग्र बुदधि तथा प्रतिभा की धनी थीं। बाल्यकाल में ही इन्होंने शस्त्र विद्‌या ग्रहण की । वे तलवार चलाने व घुड़सवारी में पारंगत हो गई थीं ।

इनकी कुशलता देख बड़े-बड़े योद्‌धा भी इनका लोहा मानते थे। उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ । परंतु विधि की विडंबना कुछ और ही थी । अपने दो वर्ष के वैवाहिक जीवन के उपरांत ही वे विधवा हो गईं ।

उस समय अंग्रेजी साम्राज्य धीरे-धीरे पूरे हिंदुस्तान पर अपना आधिपत्य कौयम कर रहा था । राजा गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात् झाँसी को अपने साम्राज्य में मिलाने की उनकी इच्छा प्रबल हो उठी । रानी लक्ष्मीबाई ने पति की मृत्यु के उपरांत भी हिम्मत नहीं हारी और पूरी जिम्मेदारी से शासन की बागडोर संभालने लगी ।

अपना वंश चलाने हेतु उन्होंने एक बालक को गोद ले लिया परंतु अंग्रेजी साम्राज्य ने इसे मान्यता नहीं दी । तत्कालीन गर्वनर जनरल ‘लार्ड डलहौजी’ ने उन सभी राज्यों को अपने अधीन करने की घोषणा की जिनके राजा संतानहीन थे ।

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने इसका स्पष्ट रूप से विरोध किया । उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य का विरोध किया तथा उनकी किसी भी आज्ञा को मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कुछ अन्य राजाओं तात्याँ टोपे, नाना साहेब व कुँवर सिंह आदि के साथ मिलकर अंग्रेजों से लोहा लेने हेतु पूरी तरह से स्वयं को तैयार कर लिया । अनेकों बार उन्होंने देशद्रोहियों का सामना किया और वीरतापूर्वक उन्हें पराजित भी किया ।

1857 ई॰ में रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजों के साथ ऐतिहासिक युद्‌ध हुआ । उन्होंने तात्याँ टोपे व नाना साहेब आदि के साथ मिलकर अंग्रेजों को देश से उखाड़ फेंकने का संकल्प किया । युद्‌ध में अंग्रेजों की विशाल सेना के समक्ष भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी । उनकी हिम्मत और वीरता उनकी सेना में एक नया जोश भर देती थी । उन्होंने युद्‌ध में अंग्रेजों का बड़ी वीरता के साथ सामना किया परंतु अंतत: उन्हें परास्त होना पड़ा ।

झाँसी अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन हो गया । तब उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक वे झाँसी को पुन: वापस नहीं ले लेंगी तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगी । नाना साहेब के साथ मिलकर उन्होंने ग्वालियर पर पुन: कब्जा भी कर लिया परंतु अपने ही एक प्रमुख दिनकर राव के देशद्रोही होने से उन्हें ग्वालियर छोड़ना पड़ा ।

ADVERTISEMENTS:

इससे पूर्व कि वह पुन: एक नई सेना को संगठित करतीं, तत्कालीन जनरल स्मिथ ने उन पर सभी ओर से धावा बोल दिया । अपने थोड़े से सैनिकों के साथ वह अंत तक वीरतापूर्वक लड़ती रहीं और फिर वीरगति को प्राप्त हुईं ।

ADVERTISEMENTS:

झाँसी की रानी स्वतंत्रता संग्राम में पराजित तो हुईं परंतु उन्होंने देशवासियों के लिए स्वतंत्रता के बीज बो दिए । जिस हिम्मत और वीरता के साथ उन्होंने अंग्रेजी सेना से युद्‌ध किया, इससे सभी देशवासियों में साहस और जोश का संचार हुआ ।

स्वयं अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई की वीरता को देखते हुए उन्हें भारतीय ‘जॉन ऑफ आर्क’ की संज्ञा दी । देश की आजादी के लिए उनका बलिदान भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा ।

“बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ।

-सुभद्रा कुमारी चौहान

Home››Essays, Laxmibai››