अरविंद केजरीवाल पर निबंध! Here is an essay on ‘Arvind Kejriwal’ in Hindi language.
लोकतंत्र में आम आदमी होने के मायने क्या होते हैं, ‘आम’ होने के बावजूद वह कितना खास होता है, इसकी एक मिसाल कायम की है अरविंद केजरीवाल ने । दो साल पहले तक अरविंद केजरीवाल एक आम भारतीय थे परन्तु आज वही ‘आम आदमी’ लाखों लोगों की आवाज है ।
एक आम आदमी से दिल्ली के मुख्यमन्त्री तक का सफर तय करने वाले अरविंद केजरीवाल का महज दो वर्ष में भारतीय राजनीति में एक अहम जगह बना लेना एक साधारण राजनीतिक घटना नहीं है वरन् भारतीय राजनीति में एक ऐसा अध्याय जुड़ने के समान है, जिसे किसी भी हाल में अनदेखा नहीं किया जा सकता ।
भारतीय राजनीति को एक नया मोड़ देने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के संस्थापक नेता अरविंद केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त, 1968 को हरियाणा के हिसार प्रान्त में हुआ था । गीता देवी और गोविन्द राम केजरीवाल के घर जन्मे अरविंद केजरीवाल का बचपन सोनीपत, गाजियाबाद और हिसार जैसे शहरों में बीता ।
कैम्पस स्कूल (हिसार) और ईसाई मिशीनरी स्कूल (सोनीपत) से विद्यालयी शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की । इसके बाद, इन्होंने वर्ष 1989 में टाटा स्टील में तीन वर्षों तक नौकरी की परन्तु वर्ष 1992 में भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने हेतु नौकरी छोड़ दी ।
वर्ष 1995 में इन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की और आईआरएस के रूप में इनका चयन हो गया । सरकारी नौकरी करते हुए अरविंद केजरीवाल ने सरकारी तन्त्र में फैले हुए भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को करीब से महसूस किया, जिससे उन्हें समाज-सेवा के क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली ।
सन् 2000 में अरविंद केजरीवाल ने अपने सहयोगी मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर ‘परिवर्तन’ नामक एनजीओ की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाना था । सन् 2005 में केजरीवाल ने ‘कबीर’ नाम से एक नए एनजीओ की स्थापना की, जो मूल रूप से ‘परिवर्तन’ का ही बदला हुआ रूप था ।
इनके कामकाज का मुख्य तरीका आरटीआई के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर कार्य करना था । उल्लेखनीय है कि ‘सूचना का अधिकार’ को कानूनी रूप देने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे द्वारा एक देशव्यापी आन्दोलन चलाया गया था, जिसमें अरुणा राय, शेखर सिंह, प्रशांत भूषण आदि सहित केजरीवाल ने भी अपना सक्रिय योगदान दिया था ।
इन सबके सम्मिलित प्रयासों से ही भारत के नागरिकों को सन् 2005 में ‘सूचना का अधिकार’ मिल पाया था । अपने गाँधीवादी तरीकों के कारण गाँधीवादी नेता के रूप में पहचाने जाने वाले केजरीवाल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके आदर्श महात्मा गाँधी नहीं बल्कि मदर टेरेसा है ।
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वह 1990 में मदर टेरेसा से मिले भी थे । उनसे मिलने के बाद ही उनके मन में समाज-सेवा के प्रति रुचि जागी । अपना पूरा समय समाज-सेवा को देने के उद्देश्य से केजरीवाल ने फरवरी, 2006 में आयकर विभाग के संयुक्त आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया ।
इसी वर्ष इन्हें ‘परवर्तन’ और ‘कबीर’ के द्वारा समाज-सुधार के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाएँ देने के लिए ‘रमन मैग्सेसे’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया । दिसम्बर 2006 में इन्होंने मनीष सिसोदिया, अभिनंदन शेखरी, प्रशांत भूषण और किरण बेदी के साथ मिलकर ‘पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की, जिसके लिए इन्होंने मैग्सेसे पुरस्कार में मिली धनराशि दान कर दी ।
वर्ष 2010 में अरविंद केजरीवाल ने उस वर्ष हुए दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार की आशंका जताई । केजरीवाल ने यह अनुभव किया कि ‘कबीर’ और ‘परिवर्तन’ जैसे गैर- सरकारी संगठनों की सफलता की अपनी सीमाएँ है ।
इसीलिए इन्होंने दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ काम करना शुरू कर दिया । उन्होंने वर्ष 2011 में जनलोकपाल बिल की माँग कर रहे और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले अन्ना हजारे का भी समर्थन किया । इस दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई और उन्हें जेल भी जाना पड़ा ।
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वर्ष 2012 तक केजरीवाल अन्ना हजारे द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का प्रमुख चेहरा बन चुके थे । बाद में, केन्द्र सरकार ने आन्दोलन से प्रभावित होते हुए जनलोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया लेकिन केजरीवाल सहित अन्य कार्यकर्ता ‘कमजोर’ लोकपाल बिल से खुश नहीं हुए ।
इसका नतीजा यह हुआ कि अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने का फैसला किया और नवम्बर 2012 में उन्होंने औपचारिक रूप से ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) की स्थापना की । हालाँकि अन्ना हजारे उनके इस कदम से सहमत नहीं थे और उन्होंने स्वयं को आम आदमी पार्टी से अलग कर लिया लेकिन केजरीवाल ने न केवल राजनीति में प्रवेश किया बल्कि वर्ष 2013 में होने बाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी चुनाव लड़ने का फैसला लिया ।
‘आम आदमी पार्टी’ ने अपने नाम से ही दिल्ली की आम जनता को आकर्षित किया । भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से उपजी यह पार्टी आम आदमी को सीधे-सीधे प्रभावित करने बाले मुद्दों जैसे- भ्रष्टाचार, महँगाई, सुरक्षा आदि पर खड़ी हुई थी, जिसमें युवाओं ने भरपूर समर्थन दिया ।
इसका परिणाम यह हुआ कि दिसम्बर 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पूरे आत्मविश्वास के साथ चुनावों में उतरी । दिल्ली के ये चुनाव निकट भविष्य में एक बड़े बदलाव की आहट थे । एक साल के राजनीतिक अनुभव वाली नई पार्टी ने दिल्ली में 15 वर्षों से सत्ता में रही काँग्रेस को महज 8 सीटों पर सीमित कर दिया ।
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यहाँ तक की केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हुए तीन बार दिल्ली की मुख्यमन्त्री रहीं शीला दीक्षित को उन्हीं की सीट ‘नई दिल्ली’ से उनको भारी अन्तर से पराजित किया । इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 31 सीटों के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी लेकिन 28 सीटों के साथ आप भी अधिक पीछे नहीं थी ।
अंतत: आम आदमी पार्टी ने काँग्रेस के सहयोग से गठबन्धन की सरकार बनाई । इस दौरान आपने अपने वादों के अनुरूप थोड़े-बहुत काम अवश्य किए लेकिन दिल्ली की जनता को तब बड़ा झटका लगा जब केवल 49 दिन के बाद अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमन्त्री पद से यह कहकर इस्तीफा दे दिया कि काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी सत्ताधारी पार्टी से सहयोग नहीं कर रही हैं और इसीलिए उनकी पार्टी जन लोकपाल बिल पारित नहीं करा सकी ।
इसके बाद उनकी लोकप्रियता में बहुत कमी आ गई । दिल्ली की जनता ने उन्हें उनके वादों के आधार पर वोट दिया था लेकिन उनके इस्तीफे से लोगों में यह सन्देश गया कि वह अपने वादों को पूरा करने में सक्षम नहीं है । आप ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भी पूरे देश में 400 सीटों पर चुनाव लड़ा पर वहाँ भी उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली ।
यह वक्त पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के लिए काफी मुश्किल था । उनकी पार्टी का भविष्य दाँव पर था, लेकिन कहते हैं न कि इन्सान की परीक्षा कठिन समय में ही होती है । उन्होंने साहस बनाए रखा और अपनी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं में भी नया उत्साह भरा ।
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अपनी कमियों को पहचानते हुए गलतियों के लिए जनता से माफी माँगी । भ्रष्टाचार मुक्त शासन का सपना देखने वाली जनता पर इसका असर हुआ और फरवरी 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में वह ऐतिहासिक जीत आप की झोली में आई, जिसकी खुद आप नेताओं को भी उम्मीद नहीं थी ।
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इन चुनावों में आप पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली जबकि राष्ट्रपति शासन लगने से पूर्व हुए चुनावों में पार्टी को बहुमत भी नहीं मिला था । प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा महज 3 सीटों पर सिमट गई तो सबसे अधिक अनुभवी पार्टी काँग्रेस को पूरी दिल्ली में एक भी सीट नसीब नहीं हुई ।
यह पहली बार हुआ है किसी पार्टी को 54% वोट मिले हों और वह 95% से ज्यादा सीटों पर जीती हो । आपने न केवल जनता का भरोसा जीता बल्कि बड़ी राजनीतिक पार्टियों को भी आईना दिखा दिया । 14 फरवरी, 2015 को रामलीला मैदान में मुख्यमन्त्री बनने की शपथ लेने के साथ ही अरविंद केजरीवाल दिल्ली के दूसरे सबसे युवा और वर्तमान में चौथे युवा मुख्यमन्त्री बन गए हैं ।
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अब देखना यह है कि वह अपने वादों को किस हद तक पूरा कर पाते हैं क्योंकि भारी समर्थन के बावजूद कहीं-न-कहीं दिल्ली की जनता के मन में खुद भी यह आशंका है कि केजरीवाल ने कुछ ज्यादा ही बड़े वादे कर दिए हैं, जिन्हें पूरा करना लगभग असम्भव होगा ।
इसके अलावा, उनकी छवि एक ऐसे नेता की भी बन चुकी है, जो जब-तब धरने पर बैठ जाता है । भ्रष्टाचार को पूरी तरह खत्म करना भी उनके सामने एक बड़ी चुनौती होगी । दिल्ली की जनता ने इस उम्मीद से स्थिर जनादेश दिया है कि दिल्ली का विकास सही ढंग से हो पाएगा और भ्रष्टाचार से उसे निजात मिलेगी ।
आम आदमी पार्टी और मुख्यमन्त्री अरविंद केजरीवाल से यह उम्मीद है कि वह अपनी जिम्मेदारी समझते हुए जनता की आशाओं पर खरा उतरेंगे और पाँच वर्ष के बाद उनके पास वे उपलब्धियाँ होगी, जिससे जनता को आप की सरकार चुनने पर गर्व महसूस होगा ।