ई-2: वैश्विक बाजार में सुनुहरा मौका पर निबंध | Essay on E-2: Golden Opportunity for Global Market in Hindi!
वाय-2 के की याद आज भी रोंगटे खड़े कर देती है । सदी बदलने के पहले इस ‘मिलेनियम बग’ ने दुनिया भर के कंप्यूटरों को ठप कर देने का जोखिम पैदा कर दिया था । इसकी वजह थी कि इन तमाम कंप्यूटरों की घड़ियों को 1 जनवरी, 2000 की तारीख के अनुरूप डिजाइन नहीं किया गया था ।
ADVERTISEMENTS:
तब दुनिया भर में केवल भारत में इतनी तादाद में साँपटवेयर प्रोग्रामर थे, जो कंप्यूटरों को आने वाली इस आपदा से निपटने के लिए तैयार कर सके और वह भी वाजिब खर्च में । इसी के साथ भारत के आउटसोर्सिंग उद्योग का सिक्का पूरी दुनिया में चल गया । अब भारत के सामने वाय-2 के से भी बड़ा एक अवसर खड़ा है ।
इसे ई-2 के नाम दिया गया है । ई-2 के का मतलब उन तमाम ऊर्जा कार्यक्रमों और उनकी निगरानी से है जो हजारों वैश्विक कंपनियां आने वाले कुछ वर्षों में अपनाने जा रही हैं । इन कार्यक्रमों का उद्देश्य कार्बन खल बनना या फिर आज की तुलना में ऊर्जा की खपत में किफायत बरतना होगा । भारत के लिए यह बहुत बड़ा अवसर होगा ।
ई-2 के पर सबसे पहले ध्यान तब गया जब माइकेल डेल ने यह घोषणा की कि डेल इक 2008 के अंत तक अपने सारे कामकाज को कार्बन खल कर देगा । उन्होंने कहा था कि डेल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का ब्योरा तैयार करेगा उस उत्सर्जन को कम करने, समाप्त करने या फिर उनकी भरपाई करने की योजना बनाएगा । ऐसे समय में, जबकि कार्बन टैक्स या कैप एंड ट्रेड कानून का साया मंडरा रहा है, दिन-ब-दिन बहुत-सी कंपनियां डेल का अनुसरण करेंगी ।
वैश्विक व्यापार के क्षेत्र में यह बिल्कुल नया और अभूतपूर्व अवसर हो गया । तब हरेक कंपनी के कार्बन फूट प्रिंट्स तैयार करने और फिर नियमित आधार पर उनके उत्सर्जन, उनमें कमी तथा उनकी भरपाई के उपायों की निगरानी करने के लिए टनों साँपटवेयर के साथ विशाल पैमाने पर प्रोग्रामिंग और बैक-रूप प्रबंधन की भी जरूरत पड़ेगी । जरा सोचिए, यह सारा काम करने के लिए सबसे कम लागत वाली ब्रेनपॉवर किसके पास है? भारत की कुछ दूरदर्शी कंपनियां अभी से ई-2 के वैश्विक बाजार में अवसर भुनाने की तैयारी में जुट गयी है ।
देश की प्रमुख आउटसोर्सिग कंपनी इन्कोसिस पूर्व सह-अध्यक्ष नंदन नीलकेणि कहते हैं, ‘आखिर वाय-2 के क्या था? यह कैलेंडर द्वारा थोपी गयी एक डेडलाइन ही तो था । डेडलाइन की वजह से उससे निपटने के लिए पूरी तरह जुटकर काम किया गया ।’ कंपनियों को कार्बन खल बनाने के लिए अभी कोई समय-सीमा नहीं है । फिर भी देर-सबेर यह काम किया तो जाना ही है ।
वाय-2 के समय कुछ कंपनियों ने चतुराई से काम किया और अपने कंप्यूटरों को 1 जनवरी, 2000 के बाद काम के योग्य बनाए रखने के लिए कम से कम रि-प्रोग्रामिंग की । कुछ कंपनियों ने रणनीतिक तरीके से काम करते हुए तय किया कि जब उन्हें सभी साँपटवेयरों को जांचना-परखना है तो क्यों न सारे पुराने साँपटवेयर को अपना लें, जो पहले से सरल होंगे और कुशल भी ।
ADVERTISEMENTS:
इन कंपनियों ने सूचना प्रौद्योगिकी में निहित संभावनाओं को समय पर पहचान लिया था और उसी के अनुसार अपने साँपटवेयर तैयार करने में जुट गयी थीं । ई-2 के कारोबार में जीत हासिल करने के लिए भारत की आउटसोर्सिग कंपनियों को डेल सरीखी बड़ी वैश्विक कंपनियों को यह दिखाना होगा कि कार्बन -दल या फिर ज्यादा ऊर्जा कुशल बनना उनके लिए न्यूनतम लागत में कानूनी जरूरतों को पूरा करना भर नहीं होगा ।
उनके लिए यह एक रणनीतिक कदम होगा जिससे न केवल उनकी कमाई में बढ़ोतरी होगी, बल्कि प्रतिस्पर्धा में भी वे बढ़त हासिल कर सकेगी । तब रणनीतिक कंपनियां सवाल कर सकती हैं कि हम तो इस समस्या में बुरे उलझे हैं । क्यों न इस मौके का लाभ उठाकर हम अपनी पूरी ऊर्जा अधोसंरचना में ही आमूल- चूल परिवर्तन कर
ADVERTISEMENTS:
डालें ।
इस बदलाव में कच्चे माल की लागत कम करना, संसाधनों का सरलीकरण, बिजली के खर्च में कमी के जरिये उसके बिल में कमी और सप्लाई चेन को छोटा करने जैसे काम शामिल हो सकते हैं और जब कंपनियां यह काम शुरू करेंगी तब उन्हें इसके लिए बड़ी मात्रा में डाटा प्रबंधन की जरूरत पड़ेगी ।
सभी कंपनियां चाहेंगी कि यह सारा काम कम-से-कम खर्च में पूरा हो जाये । तब स्वाभाविक रूप से उनकी नजरें भारत की तरफ ही दौड़ेगी और तब भारतवासी हेलो, ई-2 के संबोधन के साथ उसका स्वागत करेंगे । देश की एक अन्य प्रमुख आउटसोर्सिंग कंपनी के चेयरमैन इस संभावित स्थिति के संदर्भ में कहते हैं, ‘भारत की आउटसोर्सिंग कंपनियों के लिए यह यकीनन बेहतरीन अवसर हो सकता है ।’ इस कारोबार का वास्तविक आकार इस बात पर निर्भर करेगा कि वैश्विक कंपनियां कार्बन हल नीतियों को किस पैमाने पर और किस रफ्तार से अपनाती हैं ।
इस कारोबार में बेहतर तरीके से प्रतिस्पर्धा करने के मद्देनजर इन्फोसिस ने अपने बेंगलुरू स्थित कैंपस में अभी से सौर ऊर्जा प्रणाली लगाने तथा अन्य ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने की तैयारी शुरू कर दी है । देश की बड़ी साँपटवेयर कंपनियों को इस बात का पूरा अहसास है कि ई-2 के कारोबार में बडा हिस्सा हासिल करने के लिए उन्हें न केवल पर्याप्त पूर्व तैयारी करनी होगी, बल्कि खुद को भी उसके अनुरूप ढालना होगा ।
ऐसा करके ही वे संभावित ग्राह्य कंपनियों को अपनी ओर खींच सकेंगी । वे अपने बच्चों के बेहतर भविष्य और कैरियर के इस्युक माता-पिताओं को अपने बच्चों को बताना होगा कि आने वाले दौर में ग्रीन डिजाइनर ग्रीन बिल्डर, ग्रीन कंसलटेंट की भारी मांग होगी और यदि वे थोड़ी-बहुत हिंदी जानते होंगे तो उनका भविष्य और भी उज्ज्वल होगा ।