महान् क्रान्तिकारी सन्त एवं युगप्रवर्तक कवि कबीर ने लिखा है-

”एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जाय ।

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माली सींचे मूल को, फूलै फले अघाय ।।”

कहने का तात्पर्य है कि जिस तरह माली के द्वारा पौधे की जड़ को सींचने से पूरे पेड़ की सिंचाई हो जाती है और समूचा पेड़ हरा-भरा होकर खूब फूलता-फलता है, ठीक उसी तरह व्यक्ति यदि अपने मूल लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित कर दे, तो मूल लक्ष्य की प्राप्ति होते ही उसे अन्य सभी अनुषंगी लक्ष्य स्वयं ही हासिल हो जाते हैं ।

उपरोक्त बात से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति को अपने जीवन के मूल लक्ष्य की पहचान करके उसे हासिल करने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देना चाहिए, क्योंकि मूल लक्ष्य प्राप्त होने पर अन्य सहायक लक्ष्य सरलता से प्राप्त हो जाते हैं ।

जो व्यक्ति अपने कई लक्ष्यों को एक साथ प्राप्त करने की कोशिश करता है, वह अपने प्रयासों के साथ न्याय नहीं कर पाता है । एक से अधिक लक्ष्यों को एक साथ हासिल करने की कोशिश का अर्थ है- अपनी ऊर्जा, अपनी निष्ठा एवं एकाग्रता तथा अपने समय को कई भागों में विभाजित करना ।

इनके विभाजन का अर्थ हैं- लक्ष्य पाने की दृढ़ता में कमी, दृढ़ संकल्प में कमी, समर्पण भाव में कमी और इन कमियों के साथ सफलता प्राप्त करना हमेशा संदिग्ध होता है ।

सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने तन, मन एवं धन को किसी बिन्दु-विशेष यानी लक्ष्य-विशेष के लिए पूरी तरह समर्पित कर दे, वह अपनी समूची एकाग्रता एवं निष्ठा को उस लक्ष्य की प्राप्ति से जोड़ दे, लेकिन यदि लक्ष्य ही अनेक होंगे, तो निश्चित रूप से एकाग्रता एवं निष्ठा भी विभाजित होगी और यह लक्ष्य प्राप्ति को सन्देहास्पद बना देगी ।

एक ही समय में अनेक कार्यों को प्रारम्भ करने से कोई भी कार्य पूर्णता तक नहीं पहुँच पाता, परिणामस्वरूप हमारे सभी कार्य अधूरे रह जाते हैं, इसलिए हमें अतिशय व्यग्रता न दिखाते हुए एक समय में कोई एक काम ही पूरी तल्लीनता एवं निष्ठा के साथ करना चाहिए, ताकि हम एकाग्रचित्त होकर उसमें सफलता प्राप्त कर सके ।

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कहा भी गया है कि एक साथ दो नावों में पैर रखने वाला व्यक्ति कभी भी किनारे तक नहीं पहुँच सकता है । उसका बीच रास्ते में ही नदी में गिरना अवश्यम्भावी है । दूसरी ओर एक ही नाव में सवार होकर सफर करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से नदी को पार कर लेता है ।

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जिस तरह, बिना विचार किए किसी कार्य को करना विपत्तियों को आमन्त्रण देना है, ठीक उसी तरह एक साथ कई कार्यों को प्रारम्भ करना किसी भी कार्य के प्रति पूर्ण निष्ठा के अभाव को दर्शाता है तथा ऐसा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य की पहचान न कर पाने की अयोग्यता को भी उजागर करता है ।

एक ही कार्य या लक्ष्य को साधने से यह तात्पर्य भी नहीं है कि किसी भी कार्य या लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश की जाए, बल्कि मूल कार्य या लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश की जानी चाहिए, तभी वह प्रयास सार्थक होगा ।

जिस तरह, पौधे की जड़ में पानी देने से बह खूब फूलता-फलता है, लेकिन यदि पौधे की जड़ों को न सींचकर सिर्फ उसके पत्तों की सिंचाई की जाए, तो वह पौधा जीवित नहीं रह पाएगा, उसी तरह यदि जीवन के मूल लक्ष्य की पहचान न करके अन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश की जाएगी, तो उससे अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं होगी और जीवन में सफलता पाना संदिग्ध हो जाएगा ।

इसलिए एक ही कार्य को करना, एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी तरह एकाग्रचित्त हो जाना एवं सम्पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण से उसे प्राप्त करने की कोशिश करना महत्वपूर्ण है, लेकिन वह कार्य या लक्ष्य मूल होना चाहिए, सर्वाधिक प्रमुख होना चाहिए और इसकी पहचान करने की व्यक्ति में क्षमता होश चाहिए, सामर्थ्य होनी चाहिए ।

मूल या सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्ष्य या कार्य को निष्ठापूर्वक प्राप्त करने या सम्पादित करने से ही अन्य अनुषंगी लक्ष्य या कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं । स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा है- “एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ ।”

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