घर में विवाह का उत्सव पर निबंध | Essay on Marriage Ceremony in Hindi!
घर में वैवाहिक कार्यक्रम का आयोजन खुशियाँ लेकर आता है । घर के सदस्य ही नहीं, आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार भी खुश होते हैं । विवाह से पूर्व ही घर में उत्सव होने लगता है । घर के सदस्यों की व्यस्तता बढ़ जाती है । विवाह की तैयारियों में वे उत्साह के साथ भाग लेते हैं ।
मेरे बड़े भाई साहब का शुभ विवाह पिछले वर्ष संपन्न हुआ । भाई साहब की अच्छी कंपनी में नौकरी लगी तो पिताजी ने उनका विवाह एक पड़ी-लिखी, गुणवान और सुंदर लड़की से तय कर दिया । विवाह की तारीख 6 जून निश्चित की गई । अभी एक महीने का समय था । नियमानुसार पहले सगाई का मुहूर्त निकाला गया । घर में चहल-पहल शुरू हो गई । निकट के संबंधियों का जमावड़ा आरंभ हुआ । नियत तिथि को लड़की तथा उसके घर वाले पधारे । लड़के-लड़की ने मंत्रोच्चार के बीच एक-दूसरे को अंगूठी पहनाई । फिर खाना-पीना हुआ और मेहमान विदा हो गए ।
लेकिन अभी बड़ा उत्सव होना शेष था । माँ, बुआ और दादी ने गहनों को पसंद किया और बनाने का ऑर्डर दे दिया । हरेक के लिए नए कपड़े खरीदे जाने लगे । ढेर सारी साड़ियाँ, धोतियाँ और सूट-पैंट के कपड़े खरीदने की प्रक्रिया चल पड़ी । मैंने भी भैया की शादी में अपनी पसंद के दो जोड़े सिलवाए । दुल्हन के लिए महँगी साड़ियाँ खरीदी गई । दूल्हा भी कम न दिखे इसलिए उनके लिए भी आकर्षक सूट सिलवाए गए । वर और वधू पक्ष के विशिष्ट लोगों के लिए कपड़ों की खरीदारी की गई । पिताजी ने आकर्षक निमंत्रण-पत्र छपवाकर बाँटा ।
मिठाइयों की तो इस दौरान कोई कमी न थी । घर पर हलवाई को बुलाकर मिठाइयाँ तैयार कराई गई थीं । लड़की वालों ने भी शगुन में मिठाइयों भेजी थीं । जो भी मेहमान आते टोकरियों में रसगुल्ले और बर्फी बँधवाकर लाते । मेरी तो बहुत मौज थी । उस समय मिठाइयाँ माँगकर खाने की कोई आवश्यकता नहीं थी बिना माँगे ही मिल जाती थीं ।
ज्यों-ज्यों विवाह की तिथि निकट आई, घर में हलचल बढ़ने लगी । ताऊ, चाचा, नाना, मामा, मामी, बहन, बुआ, मौसा, मौसी सब आ गए । पिताजी और मैंने अपने- अपने मित्रों को आमंत्रित किया था । घर छोटा पड़ गया तो शामियाना तान लिया गया । बाजार से किराए की कुर्सियाँ और मेजें मँगवा ली गई । खाना हलवाई पकाने लगा । दूल्हे राजा को विवाह से पूर्व कई रस्मों-रिवाजों से गुजरना पड़ा ।
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आखिर वह दिन आ गया जिसका सबको इंतजार था । मैंने स्कूल से पाँच दिनों की छुट्टी ले ली थी । सुबह से ही गहमागहमी शुरू हो गई । घर के सदस्य, रिश्तेदार और पास-पड़ोस के लोग बारात में चलने की तैयारी कर रहे थे । दरवाजे पर एक कोच बस और कुछ कारें खड़ी थीं । दूल्हे वाली कार को अच्छी तरह सजाया गया था । बारात अपराह्न चार बजे प्रस्थान कर गई । दो घंटे की यात्रा के बाद बारात लड़की वालों के घर पहुँच गई ।
वधू पक्ष के लोगों ने बारातियों का गर्मजोशी से स्वागत किया । संबंधी आपस में गले मिले, दूल्हे का विशेष सत्कार हुआ । दूल्हे के लिए घोड़ी तैयार थी । दूल्हा सजी हुई घोड़ी पर सेहरा बाँध कर बैठा और पीछे बारात नाचते-गाते चली । बैंडवाले फिल्मी धुनें बजा रहे थे और लोग नाच रहे थे । कुछ लोग रुपये लुटा रहे थे तो कुछ आतिशबाजियाँ चला रहे थे ।
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इधर वैवाहिक कार्यक्रम आरंभ हुआ, उधर बारातियों की पार्टी शुरू हुई । सबने नाश्ता किया और फिर भोजन किया । बारातियों को ठहराने की अच्छी व्यवस्था की गई थी । सभी विश्राम करने लगे । मंत्रोच्चार के बीच सजे हुए मंडप में विवाह संपन्न हुआ । वर-वधू ने अग्नि के सात फेरे लिए । विवाह संपन्न होते-होते सवेरा हो गया । अब विदाई की बेला थी । वधू पक्ष के लोगों ने बारातियों के साथ अपनी कन्या को गमगीन नेत्रों से विदा कर दिया ।
हम लोग वापस घर आ गए । भाभी के आने से घर में विशेष रौनक आ गई । अगले दिन प्रीतिभोज दिया गया । भोज में लगभग तीन सौ लोगों ने भाग लिया और वर-वधू को आशीर्वाद दिया । अगले दिन से घर आए मेहमानों की विदाई होने लगी । मैंने तथा
मेरे मित्रों ने घर में वैवाहिक उत्सव का पूरा आनंद उठाया । उत्सव की समाप्ति पर हमारे दैनिक कार्यक्रम पुन: आरंभ हो गए ।