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दीवाली के दिन मिठाई की दुकान का एक दृश्य पर अनुच्छेद | Paragraph on A View of Sweets Shop on Diwali in Hindi

प्रस्तावना:

हमारे शहर में मदनलाल हलवाई की दुकान बड़ी प्रसिद्ध है । उसकी मिठाइयाँ बड़ी स्वादिष्ट होती हैं । मदनलाल मध्यम आयु का व्यक्ति है । सिर पर वह रंगीन पगड़ी बांधता है और सफेद खद्दर की धोती और कुरता पहनता है ।

सामान्य दिनों मे भी उसकी दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है । सुबह से शाम तक शायद ही ऐसा कोई समय हो, जब उसकी दुकान पर कोई ग्राहक न हो । वह तरह-तरह की मिठाइयाँ बनाता है । उसकी दुकान पर हमेशा ताजी और शुद्ध मिठाई बिकती है ।

दीवाली के दिन दुकान का दृश्य:

उस दिन दीवाली थी । लगभग चार बजे शाम के मैं मदन की दुकान पर मिठाई खरीदने गया । उसकी दुकान बड़ी सजी हुई थी । दुकान में हर तरह-तरह की मिठाइयों के थाल दिखाई दे रहे थे । किसी थाल में गुलाबजामुन थे, तो किसी में गरमा-गरमा इमरतियों, बालुशाही और लड्‌डू थे ।

लड्‌डू और बरफियाँ कई तरह की थी । कहीं कलाकन्द के चाँदी के वर्क से चमचमाते थाल थे, तो कई थालों में तरह-तरह की छेने की मिठाइयाँ थीं । ये मिठाइयाँ विशेष रूप से दीवाली के लिए बनाई गई थीं । ज्यो ही कोई थाल खाली हो जाता, मदनलाल उसके स्थान पर उसी मिठाई से भरा दूसरा थाल रख देता ।

दुकान के अन्दर कई कारीगर मिठाई तैयार कर रहे थे । मिठाइयो पर पिरतेसे, बादाम और काजू के कटे हुए टुकड़े दिखाई दे रहे थे । उनमे गुलाब, केवड़ा आदि की धीमी-धीमी सुगंध आ रही थी ।

दुकानदार का स्थान:

आज मदनलाल दुकान के बीच में एक तख्त पर बैठा ग्राहको को निपटा रहा था । दो-तीन नौकर मिठाइयो का ऑर्डर लेकर तौल रहे थे और उन्हें डबो में डालकर पैक कर रहे थे । वे मदनलाल को मिठाई की किस्म और तौल बता देते और मदनलाल ग्राहक से रुपये लेकर डब्बा ग्राहक को पकडा देता था ।

वह आज ग्राहकों पर निगरानी रखने और पैसा सम्हालने का काम कर रहा था । डब्बों की मिठाइयों पर एक चाँदी का वर्क भी लगा देता था । यद्यपि उसकी मिठाई का भाव अन्य दुकानों की मिठाई से महंगा था, फिर भी उसकी दुकान पर ग्राहक टूट पड़ रहे थे ।

दुकान की व्यवस्था:

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दुकान में अधिकांश मिठाइयों के थाल बड़े-बड़े रैक्स में रखे थे, जिनमें बाहर की ओर कांच लगे थे । ग्राहकों को आसानी से सभी मिठाइयां दिखाई दे रही थीं । कुछ मिठाइयाँ जो रैक के ऊपर रखी थीं, उस पर मदन ने जालीदार कपड़ा डाल रखा था ।

दुकान बड़ी साफ-सुथरी थी और इतनी मिठाइयों के बावजूद वही कोई मक्खी नहीं दिखी । एक नौकर केवल महिला ग्राहकों की मिठाइयाँ तौल रहा था तथा दो अन्य अपना नम्बर आने की प्रतीक्षा में थे । इतनी भीड़ के बावजूद वही आपा-धापी नहीं मची थी ।

एक-एक करके ग्राहक मिठाई लेकर चले जाते और उनके स्थान पर नए ग्राहक आ जाते । मिठाइयों के डिबे रंगीन प्लास्टिक के थैलो में रखकर दिए जाते थे । इन थैलों पर मदनलाल हलवाई का नाम छपा हुआ था ।

दुकान के बाहर का दृश्य:

मदनलाल की दुकान के बाहर तक बहुत-से पुरुष, स्त्री तथा बच्चे खड़े थे । वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि अन्दर से ग्राहक कब मिठाई लेकर बाहर आए और वे अन्दर जायें । मदनलाल के दुकान के बाहर बाँसों के सहारे एक बड़ा तिरपाल तान रखा था, जिसके नीचे ग्राहक आपस में बातें करके अपना मन पक्का कर रहे थे कि वे क्या-क्या मिठाई खरीदेगे । वे तरह-तरह की रंगीन पोशाको में बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे थे और आपस में हसी-मजाक कर रहे थे । कभी-कभी किसी कोने से एकाएक हंसी का ठहाका छूट पड़ता था ।

उपसंहार:

कुछ देर बाहर प्रतीक्षा करने के बाद मैं भी दुकान के अन्दर गया । इतनी तरह की मिठाइयाँ देखकर कुछ देर तक मैं तय ही न कर सका कि कौन-सी मिठाइयाँ खरीदूँ । अन्त में पंचमेल मिठाई के दो डब्बे खरीद कर मैं दुकान से बाहर आ गया और घर की ओर चल पड़ा ।

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