देवनागरी लिपि और उसकी वैज्ञानिकता पर निबन्ध | Essay on Devanagari Script and its Science in Hindi!

भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत की लिपि को ‘देवनागरी लिपि’ कहा जाता है । इस लिपि का प्रयोग वैदिक युग के पूर्व से ही होता आ रहा है ।

मनुष्य के मुख से जो ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं, उनको व्यक्त और व्यवस्थित रखने तथा स्थायित्व देने के लिए ध्वनि-संकेतों के आकार के रूप में लिपि का आविष्कार हुआ और इन संकेतों की रूपरेखा ध्वनि-विशेष के उच्चारण में श्वास के अनुसार बनाई गई, जिसे ‘वर्णमाला’ कहते हैं ।

देवनागरी लिपि का प्रारंभिक रूप पहले सीधा-सादा था । सभ्यता के विकास के साथ इसे भी आकर्षक तथा व्यवस्थित करके वर्तमान रूप में लाया गया । ‘पाणिनि’ के व्याकरण-ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी’ के अनुसार ११ स्वर और ३३ व्यंजनों का समावेश हुआ ।

व्यंजन में २५ वर्ण स्पर्श, ४ वर्ण अंतःस्थ और ४ वर्ण हैं । यह देवनागरी लिपि का परिवार है । टंकण सुविधा की दृष्टि से वर्तमान में लिपि-संकेतों में आवश्यक परिवर्तन तथा संशोधन भी किया है । व्यंजनों में स्वराभाव दिखाने के लिए हलंत लगाना पड़ता है ।

साथ ही वर्णमाला में सभी संभव ध्वनियों के लिए विशेष संकेत भी नियत किए गए हैं । देवनागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह ध्वनिपरक है और संकेत, लेखन तथा उच्चारण में कोई भेद नहीं रखती है । पाठक को अपनी तरफ से किसी ध्वन्यांश को मिलाने या छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती है ।

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इसकी वर्णमाला के वर्गीकरण में व्याकरण शास्त्र ने उच्चारण-स्थान उच्चारण में श्वास-गति और जिह्वा की स्थितियों का बराबर ध्यान रखा है । इतनी वैज्ञानिकता विश्व की अन्य किसी भी भाषा में अप्राप्य है । अंग्रेजी में लिपियों का उच्चारण शब्दपरक है तथा उच्चारण और लेखन में कोई व्यवस्था नहीं है ।

बी यू टी का उच्चारण ‘बट’ है तो पी यू टी का ‘पुट’ होता है । एक ही स्वर ‘यु’ कहीं ‘यू’ है, ‘उ’ है तो कहीं ‘अ’ है । अरबी लिपि में तीन स्वरों से तेरह स्वरों का काम लिया जाता है । देवनागरी लिपि के उच्चारण में परिपूर्ण निर्विलपता के कारण लिखने, पढ़ने और समझने में कठिनाई नहीं होती है ।

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कई कारणों से देवनागरी वर्णमाला के व्यंजनों के वर्गीकरण में उनके उच्चारण-स्थानों का क्रमिक सामीप्य श्रद्धेय है, साथ ही स्वरों के आधार-निर्धारण में उनके उच्चारण को भी ह्रस्व, दीर्घनुत के रूप में सम्यक् विभाजन किया । देवनागरी लिपि की शिरोरेखा का ध्यान रखने से ही ‘ख’ और ‘रव’, ‘घ’, और ‘ध’, ‘म’ और ‘भ’ और ‘स’ और अंश ‘श’ का अंतर समझा जा सकता है ।

इस प्रकार देवनागरी लिपि के प्रत्येक वर्ण प्राय: निर्दोष हैं । टंकण की सुविधा को ध्यान में रखते हुए देवनागरी लिपि के स्वर, व्यंजन, संयुक्त अक्षर, पूर्ण विराम आदि के लेखन में जो बदलाव लाए गए हैं, इतना तो मानना ही होगा कि उससे लिपि के आकार-गठन का सौंदर्य कम हो गया है ।

साथ ही संयुक्त अक्षरों की उच्चारण-शुद्धि में भी विकार की संभावना बढ़ गई है । अत: इस दिशा में और भी अधिक सावधानी से संशोधन की गुंजाइश है । जो भी हो, नागरी लिपि अपने वर्तमान रूप में निर्दोष है ।

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