पंचायती राज प्रणाली पर निबंध | Essay on Panchayati Raj System in Hindi!

पंचायती राज प्रणाली देश को सुदृढ़ व समृद्‌ध बनाने हेतु अत्यंत आवश्यक है । जब तक देश में पंचायती राज प्रणाली को सक्षम नहीं बनाया जाता है तब तक देश के असंख्य निर्धन परिवारों तक विकास का वास्तविक लाभ नहीं पहुँचाया जा सकता है ।

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पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से ही राष्ट्र में व्याप्त आर्थिक असामानता को दूर किया जा सकता है एवं तभी हम अपनी सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार रूप दे सकते हैं । यदि हम अतीत पर अपनी दृष्टि डालें तो हम पाते हैं कि पंचायती राज प्रणाली हमारी सांस्कृतिक विरासत का ही -एक अंग है ।

अनेक’ इतिहासकारों का मानना है कि वैदिक काल में भी हमारे देश में पंचायती राज प्रणाली विद्‌यमान थी । प्राचीन भारत में पचायत मूलत : एक लघु प्रशासनिक इकाई थी जो समस्त ग्रामीणजनों की समस्याओं का निदान ढूँढती थी ।

पंचों को परमेश्वर के तुल्य समझा जाता था क्योंकि ये पंच अपना दायित्व पूर्ण निष्पक्ष और नि :स्वार्थ भाव से निभाते थे । समय और परिस्थितियों के अनुसार नगर और कस्बों के स्वरूप में परिवर्तन आते गए परंतु भारत के ग्रामीण अंचलों में पंचायती राज प्रणाली पहले की भांति ही कार्य करती रही ।

अंग्रेजों के व्यापारिक उद्‌देश्य से भारत आने के समय भी देश भर में पंचायती राज प्रणाली प्रचलित थी । इस सरल प्रणाली के व्यापक प्रभाव ने उन्हें भी अचंभित कर दिया । चार्ल्स मैटकॉफ ने इस प्रणाली को ‘ सूक्ष्म गणराज्य ‘ का नाम दिया । सन् 1885 ई० में लार्ड रिपन ने पंचायतों पर अपना आधिपत्य जमाने के उद्‌देश्य से स्थानीय निकाय कानून पारित किया ।

इस कानून की सहायता से वे स्वशासी संस्थाओं में ज्यादा से ज्यादा अपने समर्थकों को नामजद कराकर ग्राम स्तर पर अपनी पकडू मजबूत रखना चाहते थे । इसका परिणाम यह हुआ कि यह प्रणाली सुचारू एवं नियमबद्‌ध होने के बजाय धन और अधिकारों के अभाव में और भी कमजोर पड़ गई तथा इसका लोकतांत्रिक स्वरूप भी विकृत हो गया ।

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स्वतंत्र भारत में यह प्रणाली अक्टूबर 1952 ई० में प्रारंभ हुई परंतु गाँवों के निर्धन एवं उपेक्षित लोगों की सहभागिता न होने के कारण यह असफल हो गई । भारत में पंचायती राज प्रणाली की पुन : शुरूआत 1959 ई० में ‘ बलवंत राय मेहता समिति ‘ की रिपोर्ट के आधार पर हुई ।

इस त्रिस्तरीय प्रणाली में जिला स्तर पर जिला परिषद, खंड स्तर पर पंचायत समिति तथा ग्राम स्तर पर ग्राम पचायत की स्थापना का प्रावधान रखा गया । इस प्रणाली का प्रारंभ सर्वप्रथम राजस्थान और आंध्र प्रदेश में हुआ । बाद में यह विस्तृत रूप में पूरे देश में लागू की गई ।

पंचायती राज प्रणाली लागू होने के कुछ समय उपरांत से ही यह अप्रभावी होने लगी । पंचायती राज व्यवस्था में आए अनेक अवरोधों को दूर करने के लिए 1977 ई॰ में ‘अशोक मेहता समिति’ का गठन हुआ । इसके पश्चात् 1985 ई॰ में ‘जी. टी. के. राव समिति’ तथा 1986 में ‘लक्ष्मी मल सिंघवी समिति’ का गठन किया गया । इन सभी समितियों की राय यही थी कि देश में पंचायती राज प्रणाली को सुदृढ़ बनाना अनिवार्य है ।

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देश भर में लगभग 5 लाख 80 हजार गाँव हैं । बढ़ते नगरीकरण व औद्‌योगीकरण के बावजूद देश की तीन चौथाई जनता ग्रामों में निवास करती है । इन आँकड़ों के माध्यम से सरकार ने माना कि निर्धनता को दूर करने तथा देश में चहुँमुखी विकास के लिए पंचायती राज प्रणाली देश की एक आवश्यकता है । इसके फलस्वरूप 24 अप्रैल 1993 ई॰ को 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक लागू हुआ जो पंचायती राज के आधुनिक इतिहास में अविस्मरणीय है ।

हमारी पंचायती राज प्रणाली में अभी भी काफी दोष एवं कमियाँ हैं । कितने ही प्रांत ऐसे हैं जहाँ चुनाव बड़े अनियमित ढंग से हो रहे हैं । इसे केंद्रीय सत्ता द्‌वारा पंचायती राज प्रणाली को कमजोर बनाने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए ।

दूसरी ओर पंचायतों को सीधे धन मुहैया न कराने की व्यवस्था भी खामियों से भरी हुई है । कोई भी परमुखापेक्षी स्वायत्त संस्था नौकरशाही के अधीन रहकर फल-फूल नहीं सकती । पंचायतों को अपनी मरजी से योजनाएँ बनाने, धन व्यय करने आदि की छूट मिलनी चाहिए ।

इस कानून के अंतर्गत 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश का प्रत्येक क्षेत्र पंचायती राज की त्रिस्तरीय प्रणाली लागू करेगा । इस कानून ने ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार प्रदान कर दिया । इसके अतिरिक्त पाँच वर्ष बाद पंचायतों का चुनाव, अनुसूचित जातियों, जनजातियों व महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई सीटों का आरक्षण तथा प्रत्येक राज्य में राज्य वित्त आयोग का गठन आदि व्यवस्थाएँ इस कानून के अंतर्गत की गईं । इसके अतिरिक्त ग्रामीण निर्धनों व दलितों के उत्थान के लिए अनेक प्रभावी कदम उठाए गए ।

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73 वें संविधान संशोधन के पश्चात् पिछले आठ-नौ वर्षों में हमें आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हुई है । एक बार फिर संविधान में संशोधन की माँग उठाई गई है ताकि उक्त पंचायती राज कानून में अपेक्षित बदलाव लाया जा सके । असामानता को दूर करने तथा सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने हेतु पंचायती राज प्रणाली को सुदृढ़ बनाना ही होगा । इसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति की नितांत आवश्यकता है ।

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