पहाड़ की चोटी से एक दृश्य पर अनुच्छेद | A View From the Top of the Mountain in Hindi
प्रस्तावना:
इसी वर्ष कुछ माह पूर्व अपने कुछ दोस्तों के साथ मुझे मसूरी जाने का सुअवसर मिल गया । गर्मी की छुट्टियां थी । हमारे शहर में भीषण गर्मी पड़ रही थी । हम लोगों ने सोचा कि कुछ दिनो तक हमे इससे राहत मिलेगी । हम लोग रास्तेभर आनन्द मनाते गए ।
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संग-साथ में रास्ते का पता ही नहीं चला । मसूरी पहुँचने तक हम अनेक चक्करदार रास्तों से होकर गुजरे । रास्ते में एक ओर ऊँची पहाडिया थी और दूसरी ओर गहरा खड्ड था । कभी बस ऊपर की ओर चढ़ती और कभी ढलसन की ओर । इसका कारण यह है कि मसूरी तक मार्ग में कई छोटी-बडी पहाडियाँ लांघनी पड़ती हैं ।
मसूरी की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ना:
मसूरी पहुंचकर हम लोग एक धर्मशाला में ठहरे, जिसमें हमारा स्थान पहले से सुरक्षित था । दो दिन मसूरी घूमने के बाद हम लोगों ने वहाँ की सबसे ऊँची पहाड़ी पर चढ़ने का निर्णय किया । इसे लाल टिबा कहते हैं । यही जाने के लिए अब बिजली के तारों की झूलती हुई कुर्सियों हैं, लेकिन हम लोगों ने पैदल ही चढ़ने का इरादा किया ।
पहाडी की चोटी तक पहुँचते-पहुँचते हम बुरी तरह से थक गए थे, लेकिन लक्ष्य तक पहुचने की खुशी भी थी । यही ठंडी-ठडी हवा चल रही थी । हम लोग कुछ देर एक चट्टान पर लेटकर अपनी थकान मिटाने लगे । लम्बी-लम्बी सांसे लेकर थोड़ी ही देर में हमारी सारी थकान मिट गई ।
पहाड़ी का दृश्य:
अब हम लोग उठे और चोटी से पहाड़ी के ढलान को देखने लगे । ढलान पर चारों ओर हरे-हरे विशाल वृक्ष खड़े थे । कुछ पूजा में रंग-बिरंगे फूल खिले हुये थे । ये फूल हमारे मैदानी फूलो से एकदम अलग लगते थे । कुछ वृक्ष 40-50 फीट तक लम्बे दिख रहे थे ।
कुछ सीधे खड़े थे और कुछ पहाड़ के कोने पर लटकते या झूलते-से दिखाई से रहे थे । धीरे-धीरे हवा के चलने से पत्ते हिल रहे थे और उनकी आवाज बड़ी मनमोहक लग रही थी । लाल टिबा पर एक दूरबीन भी लगी हुई है ।
दूरबीन से दृश्य:
हम लोगों ने दूरबीन से सामने की हिमाच्छादित पहाडियों को देखा । नंगी आंखों से तो वे छोटे-छोटे सफेद पैबन्द-सी लगती थी, लेकिन दूरबीन से हमें वहाँ की बरफ बड़ी साफ दिखाई दी । गंगोत्री और यमुनोत्री के दृश्यों को दूरबीन से देखकर हम लोग बड़े हर्षित हुए ।
घाटी का दृश्य:
दूरबीन से पहाड़ी की छटा देखकर हम लोग फिर पहाड़ से नीचे की ओर घाटी का दृश्य देखने लगे । हमे दूर बहती पानी की पतली-सी धारा दिखाई दी । ध्यान देने पर पता लगा कि वह एक नदी थी, जो तेजी के साथ कल-कल करती हुई बह रही थी । दूर से वह पतली-सी लग रही थी ।
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नदी के किनारे सफेद बगुले खड़े अपना शिकार ढूंढते नजर आ रहे थे । चिड़ियों के कुछ झुंड कभी उड़ते और कभी कहीं बैठकर चुगते नजर आ रहे थे । लहराती और बलखाती सडक साँप जैसी धारी-सी लग रही थी ।
उस पर आती बसे और कारे दूर से खिलौनो जैसी दीखती थी । वे कभी दिखाई देती, तो कुछ देर तक गायब हो जाती और उसके बाद उससे निचली या ऊपरी-सड़क पर होतीं । कुछ दूर सीढ़ीदार खेत भी दिखे । यह खेत इस समय खाली पड़े थे ।
घाटी के एक मैदान में हमने कुछ पशु भी चरते देखे । एक चरवाहे का बालक पेड़ के नीचे बसी की मधुर धुन बजा रहा था और दूर पशु चर रहे थे । कुछ बच्चे भेडों की पीठ पर उछल-कूद मचा रहे थे । वे सभी छोटे-बड़े खिलौनों की तरह दिखाई दे रहे थे ।
घाटी में कुछ छोटे-छोटे घरौंदे से भी दिख रहे थे । वे उनके रहने की झोंपडियाँ थीं । इनमें कुछ झोंपड़ियों पर रंगीन फूलों को बेलें चढ़ी हुई बड़ी सुन्दर दिखाई दे रही थीं । बीच में एक बड़ा पक्का मकान भी दिखा, जिस पर कई मीनारें-सी थीं और उस पर एक तिकोना झंडा फहरा रहा था । पूछने पर पता लगा कि वह घाटी के प्रसिद्ध देवता का मंदिर है ।
उपसंहार:
पहाड़ की चोटी पर कई घंटे बिता कर हम लोग उसी रास्ते से नीचे उतर पड़े । उतरते समय हमें कोई थकान नहीं हुई । यह दिन मसूरी का हमारा सबसे सुन्दर दिन था ।