बंदरबांट ने छीनी गरीब की रोटी पर निबंध | Essay on Equal Share For All in Hindi!
रोटी इंसान की बुनियादी जरूरत है, इस बात की जानकारी सरकार को भी है परन्तु किसी मंत्री से लेकर सरकारी अफसर ने आज तक नहीं कहा है कि रोटी नहीं है तो केक क्यों नही खाते? इतना ही नहीं, सरकार अनाज की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए हर साल करोड़ों रूपए देती हैं लेकिन क्या इस तरह वितरित किया जाने वाला गेहूँ, चावल या चीनी गरीब तक पहुंचते हैं या फिर बीच की बंदरबांट व कालाबाजारी के हवाले हो जाते हैं ।
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स्वयं योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने हाल ही में कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का आधा अनाज इधर-उधर हो जाता है बाकी आधा ही जरूरतमंदों तक पहुँचता है आप सोच रहे होंगे कि स्थिति गंभीर है लेकिन नहीं ।
अहलूवालिया के अनुसार पहले 83 प्रतिशत इधर-उधर होता था बाकी बचा खुचा ही गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों को मयस्सर होता था, अब तो सिर्फ 50 प्रतिशत हो रहा है, सरकार को भी इसकी जानकारी है तभी तो उसने शिकंजा कसकर स्थिति में सुधार किया है, लेकिन इसे पूरी तरह रोकने में वह बेबस और असहाय है ।
योजना आयोग के इस अध्ययन से पता चला कि दिल्ली, उत्तर-प्रदेश, बिहार, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल में जो अनाज गरीबी रेखा से नीचे जाने वालों के लिए उपलब्ध कराया जाता है, उसका आधे से ज्यादा नेपाल व बांग्लादेश जा रहा है । पिछले साल भी बलिया मे एक जाँच के दौरान पाया गया कि उत्तर प्रदेश का बहुत-सा अनाज पश्चिम बंगाल रवाना किया जा रहा है ताकि वहां से तस्करी से बांग्लादेश पहुंचाया जा सके । सूत्रों ने बताया कि पश्चिमी उत्तर-प्रदेश व बिहार से अनाज की भारी खेप तस्करी से नेपाल भेजी जा रही है ।
कुछ अर्सा पहले टाटा इकोनामिक कंसल्टेंसी सर्विस ने खाद्य मंत्रालय के लिए इसी विषय पर एक अध्ययन किया था, उसके भी ऐसे ही नतीजे सामने आए । अध्ययन से पता चला कि त्रिपुरा और नागालैंड का 100 फीसदी गेहूँ तस्करी व चोरबाजारी की भेंट चढ़ जाता है । दिल्ली, पंजाब व हरियाणा का 53 प्रतिशत गेहूँ गरीबों तक न पहुंच कर कालाबाजार में जा रहा है । बिहार से 44 फीसदी, उड़ीसा से 39 फीसदी व पश्चिम बंगाल से 40 फीसदी गेहूँ इस हेराफेरी के हवाले हो रहा है । चावल व चीनी की कहानी भी कमोबेश ऐसी है ।
गरीबों के हमदर्द कामरेडों के गढ़ पश्चिम बंगाल से आए दिन अनाज की तस्करी की शिकायतें आने व उसे लेकर वहा दंगा, फसाद तक की नौबत आ जाने पर केंद्र सरकार के कानों पर जूँ रेंगना स्वाभाविक था । लिहाजा केन्द्रीय खाद्य मंत्री शरद पवार ने पश्चिम बंगाल सरकार को हिदायत दी कि वह अपने यहाँ वितरण प्रणाली में हो रहे घोटाले और बांग्लादेश को हो रही तस्करी रोके । जवाब में पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा यह जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है ।
सरकारों ने तो एक दूसरे पर आरोप लगाकर पल्ला झाड लिया, लेकिन वह आम आदमी क्या करता, जिसके पेट पर इतनी करारी लात पड़ी थी? भूखा आदमी कोई बड़ा अपराध न करे तो कम-से-कम सड़कों पर उतर कर अपना गुस्सा तो निकालेगा ही । मसलन पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के बर्दवान और मुर्शिदाबाद जिलों में लोगों ने राशन न मिलने पर एक विधायक समेत छह सीपीएम नेताओं की धुलाई कर डाली, राशन की कुछ दुकानों को भी लूटा गया ।
अगर स्थानीय लोग नेताओं की धुलाई कर रहे हैं, तो जाहिर है कि अनाज घपले का जो रैकेट चल रहा है, उसमें वह भी कहीं-न-कहीं जरूर हिस्सेदार है । सैकड़ों राशन दुकानदार इसी मारपीट के डर से भूमिगत हो गए हैं । जनता की एक शिकायत यह भी है कि गरीबी रेखा से नीचे वालों को दिए जाने वाले राशन कार्ड भ्रष्टाचार के तहत संपन्न लोगों को भी बांटे जा रहे है जिससे गरीबों का हिस्सा और कम हो जाता है ।
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मामले का एक पहलू और भी है । देशभर से समय-समय पर शिकायतें आती रहती हैं कि राशन में अनाज बहुत घटिया दर्जे का, घुन खाया या सड़ा हुआ होता है । यह इंसानों के खाने लायक नहीं माना जा सकता । सरकार की तरफ से सफाई दी जाती है कि राशन में अनाज देखभाल कर दिया जाता है वह इतना खराब नहीं हो सकता ।
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जानकारों का कहना है कि दोनों सच्चे है । दरअसल, राशन में आए अच्छे अनाज को सड़े-गले घटिया अनाज में बदल दिया जाता है, बढ़िया माल कालाबाजारी की भेंट चढ़ जाता है उधर राशन लेने वालों से कहा जाता है कि यही आया है लेना है तो लो, नही तो अपना रास्ता नापो ।
राशन कार्डों का रैकेट भी कम दिलचस्प नहीं, महाराष्ट्र में पिछले दिनों हुई एक जाँच के दौरान पता चला कि वहां राशन कार्डों का फर्जीवाड़ा कुछ ज्यादा ही हो रहा है । राज्य के 2.34 करोड़ राशनकार्डों में से 26 लाख नकली है, जिनके बलबूते पर न जाने कब से गरीबों के अनाज पर डाका डाला जा रहा है । उन राशन कार्डो को तो तत्काल रद्ध दिया गया, लेकिन कौन जानता है कि अगले दिन से फिर वहा फर्जी राशनकार्ड बनने शुरू हो गए हों, जो अगली जांच तक आराम से जारी रहें ।
सवाल उठता है कि आखिर इसका इलाज क्या है? मोंटेक सिंह अहलूवालिया का कहना है कि वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाकर और सरकारी अफसरों के निर्णय लेने के अधिकारों पर निगरानी रखकर कुछ सुधार किया जा सकता है । योजना आयोग ने दोषी व भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की सिफारिश की है ।
इतने बड़े पैमाने पर चल रहे घोटाले की एक और वजह है न्याय प्रक्रिया की सुरत रफ्तार व उसमें बच निकलने वाले रास्तों का होना, हालाकि इसमें सुधार की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन जब तक सुधार होंगे तब तक देश में न जाने कितना बिगाड़ हो चुका होगा ।
सुधारवादियों का कहना है कि किसी भी चीज में सुधार रातों-रात नही हो सकता, इसमें वक्त लगता है । जवाब में इतना कहना क्या जायज न होगा कि आपको आधी सदी से वक्त मिल चुका है, और कितना चाहिए?