भारतीय वैज्ञानिकों की विश्व को देन पर निबंध | Essay on Indian Scientists’ Contribution to the World in Hindi!
विश्व-संस्कृति के उत्कर्ष के प्रत्येक चरण में विज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । सैकड़ों वर्षों पूर्व गणित और ज्योतिष-विज्ञान में हमारा देश अप्रतिम माना गया था । आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य जैसे महान् विद्वानों ने इसी पावन भूमि में जन्म लिया था ।
आज सारे संसार में दस चिह्नों में गणना करने की अंक-पद्धति का प्रचार है । इस पद्धति की खोज भी इसी देश में हुई । आर्यभट ने शुद्ध गणित में गणनाएँ कीं । संख्याओं के मान के लिए उन्होंने अक्षरों की एक सांकेतिक भाषा बनाई । वर्गमूल, घनमूल, क्षेत्रफल, आयतन, वृत्त की परिधि आदि ज्ञात करने की विधि सर्वप्रथम उन्होंने ही लिखी । उन्होंने विश्व को ग्रहों की स्थिति का ज्ञान कराया ।
वराहमिहिर ने फलित ज्योतिष पर रचनाएँ कीं । अरबों को गणित तथा ज्योतिष का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त ने ही दिया । ब्रह्मगुप्त ने गुणनफल निकालने की चार विधियाँ, शून्य, अनंत आदि का वर्णन किया है । न्यूटन से पूर्व ही भास्कराचार्य (‘भास्कर द्वितीय’ के नाम से विख्यात) ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में संसार को अवगत कराया । उन्होंने लिखा है- ”पृथ्वी में आकर्षण-शक्ति है ।
पृथ्वी अपनी आकर्षण-शक्ति के जोर से सब चीजों को अपनी ओर खींचती है । यह अपनी शक्ति से जिसे खींचती है, वह वस्तु भूमि पर गिरती हुई-सी प्रतीत होती है ।” भास्कराचार्य ने गणित में ‘पाई का मान’, ‘चतुर्भुजों के क्षेत्रफल ज्ञात करने की विधि’ भी अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘लीलावती’ में लिखी है ।
परमाणु की मूल संकल्पना में महर्षि कणाद का बहुत योगदान है । परमाणु की उपस्थिनि का ज्ञान उन्होंने ही सर्वप्रथम सारे विश्व को दिया; परंतु बाद में श्रेय मिला वैज्ञानिक जॉन डाल्टन को । अणुओं का स्पष्ट संकेत महर्षि कणाद ने ही दिया है ।
उनके अनुसार- “एक परमाणु अंतर्निहित आवेग के अधीन किसी अन्य परमाणु में संयोग करके द्विवकों (अणुओं) का निर्माण करता है ।” रसायन के क्षेत्र में नागार्जुन इसके ‘अधिष्ठाता’ माने जाते हैं । उन्होंने रजत, सोना आदि बनाने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी ।
चिकित्सा के क्षेत्र में धन्वंतरि, भारद्वाज, आत्रेय, सुश्रुत आदि मनीषियों ने भारत-भूमि का नाम रोशन किया । धन्वंतरि तथा सुश्रुत शल्य-चिकित्सा के विद्वान् थे, जबकि भारद्वाज तथा आत्रेय काय-चिकित्सा के । इन्हीं के उपदेशों पर काय-चिकित्सा की आधारशिला रखी गई । शल्य-चिकित्सा का जनक सुश्रुत को माना जाता है ।
आजकल जिस प्लास्टिक सर्जरी का उपयोग विकृत अंगों के सुंदरीकरण के लिए किया जाता है, उसका ज्ञान सर्वप्रथम उन्होंने ही विश्व को दिया । हमारे देश के मनीषियों की अद्भुत देन ‘सर्पगंधा’ नामक जड़ी है । रक्तचाप की चिकित्सा का इस जड़ी के आविष्कृत होने तक कोई उपचार न था । कृषि-विज्ञान एवं मौसम-विज्ञान की जानकारी घाघ और भड्डरी ने ही विश्व को दी । उनकी कहावतें आज भी प्रसिद्ध हैं ।
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भारत के आधुनिक विकास की कहानी काफी लंबी है । जगदीशचंद्र बसु ने ही प्रयोगशाला तैयार कर भौतिक-विज्ञान में शोध प्रारंभ किया । उन्होंने ‘बेतार के तार’ पर नए तथ्य खोज निकाले । इसके पहले हर्ट्ज नाम के एक वैज्ञानिक ने इस पर शोधकार्य किया था ।
इंग्लैंड के वैज्ञानिक मैक्सवेल ने भी चुंबकीय तरंगों के संबंध में गणित के सिद्धांतों की स्थापना की थी, परंतु किसी ने भी इन तरंगों के संचार का माध्यम बनाने में सफलता प्राप्त नहीं की । इसका श्रेय जगदीशचंद्र बसु को ही जाता है ।
विडंबनावश, संयुक्त राज्य अमेरिका के उनके एक मित्र ने सर वसु को धोखा देकर उनकी इस खोज को अपने नाम पेटेंट करवा लिया । दु:खी होकर बसु ने इस पर कार्य करना ही छोड़ दिया । तभी बाद में मारकोनी ने इस क्षेत्र में ख्याति अर्जित की । हमें स्मरण रखना चाहिए कि इस क्षेत्र में सर्वप्रथम सफलता बसु को ही मिली थी ।
इसे छोड़ने के उपरांत बसु ने वनम्पति-विज्ञान पर भी शोधकार्य किया । उन्होंने विश्व को बताया कि पौधों में संवेदनशीलता होती है, उनमें भी जीवन होता है । पौधों की सजीवता मापने के लिए उन्होंने एक यत्र बनाया- ‘क्रेस्कोग्राफ’ । इस अनुपम आविष्कार से वैज्ञानिक जगत् में खलबली मच गई ।
रसायन के क्षेत्र में डॉ. प्रफुल्लचंद्र राय ने मरक्यूरस नाइट्रेट नामक पदार्थ के गुण-धर्मों का परीक्षण करके दिखाया कि यह एक लवण भी है । इस खोज से संसार में उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई । उन्होंने ही भारत में स्वदेशी उद्योगों की नींव डाली, जिससे हमरा देश अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम हुआ । उन्होंने ‘हिंदू-रसायनशास्त्र का इतिहास’ नामक एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखकर विश्व को बताया कि भारत ने प्राचीनकाल से ही रसायनशास्त्र के क्षेत्र में कितनी उन्नति की है ।
डॉ. राय ही आधुनिक भारत में रसायन के संस्थापक माने जाते हैं । वर्तमान समय के उच्च कोटि के रसायनज्ञों में डॉ. आत्माराम का नाम भी उल्लेखनीय है । सूक्ष्मदर्शी, दूरदर्शी जैसे अनेक उपकरणों को बनाने में प्रयुक्त ‘ऑप्टिकल ग्लास’ जैसी विशिष्ट वस्तु देकर डॉ. आत्माराम ने भारत को औद्योगिक क्षेत्र में उन्नतिशील देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया । उनके इस कार्य से मुग्ध होकर ‘शेफील्ड’ की ‘ग्लास टेक्नोलॉजी सोसाइटी’ ने उन्हें अपना ‘फेलो’ चुना । एशिया भर में इस सम्मान को प्राप्त करने वाले डॉ. आत्माराम एकमात्र वैज्ञानिक हैं ।
जैव-रसायन और पुरावनस्पति-विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. हरगोविंद खुराना का नाम बड़े- सम्मान के साथ लिया जाता है । यद्यपि वे संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक थे तथापि वे मूल रूप से भारतीय थे । औषधि-विज्ञान और शरीर क्रिया-विज्ञान में उन्हें दो अन्य वैज्ञानिकों के साथ विश्व के अद्वितीय पुरस्कार ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया ।
उनका कार्यक्षेत्र मुख्यत: जैव-रसायन और आनुवंशिकी ही रहा । उनकी खोजों से ही पैतृक बीमारियों की रोकथाम में मदद मिली । डॉ. खुराना के अनुसंधानों से कैसर एवं मधुमेह जैसी भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति प्राप्त की जा रही है ।
पुरावनस्पति- विज्ञान के क्षेत्र में प्रो. बीरबल साहनी का नाम उल्लेखनीय है । भारत में उन्हें इस विज्ञान का जनक माना जाता है । उन्होंने वनस्पति-विज्ञान और भूगर्भ-शास्त्र का विस्तृत अध्ययन किया । प्रो. साहनी ने जीवाश्म (Fossils) पर महत्त्वपूर्ण खोजें कीं ।
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गणितज्ञों में श्रीनिवास रामानुजन का नाम सर्वविदित है । उन्हें ‘गणितज्ञों का गणितज्ञ’ भी कहा जाता है । अपनी प्रतिभा का प्रयोग करके उन्होंने अनेक गवेषणाएँ लिखी हैं । अल्पवय में ही उन्होंने बड़ी संख्याओं को छोटी संख्याओं में विभक्त करने का सूत्र खोज निकाला था । १०,००० तक की संख्याओं पर तो उनका पूर्ण अधिकार था । उनका कार्यक्षेत्र शुद्ध गणित ही रहा है, जिसमें कुछ का प्रयोग परमाणु-विज्ञान में भी होने लगा है ।
महान् गणितज्ञ डॉ. जी.एच. हार्डी ने उनके बारे में लिखा है : ”इसके पूर्व इस संसार में इतनी कम शिक्षा-प्राप्त व्यक्ति द्वारा इतनी कम आयु में गणित जैसे जटिल विषय पर इतनी अधिक खोजें किसी ने नहीं की हैं ।” श्रीनिवास रामानुजन के बाद गणित में योगदान करनेवालों में प्रमुख हैं- सर आशुतोष मुखर्जी, डॉ. आर.एस. मिश्र आदि ।
डॉ. सत्येंद्रनाथ बसु ने रसायन, भौतिकी तथा गणित- तीनों क्षेत्र में कार्य किया है । उनकी प्रखर बुद्धि ने आइंस्टीन के कठिन गणितीय सूत्रों को समझकर उसमें महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए । आज हमें भौतिक-विज्ञान में ‘बसु-आइंस्टीन सांख्यिकी’ नाम के सूत्र मिलते हैं ।
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वास्तव, में आइंस्टीन ने विश्व के समक्ष बसु के सुझावों का स्वागत किया और सूत्रों के आगे स्वयं ही बसु का नाम भी जोड़ दिया । एक भारतीय वैज्ञानिक के लिए इससे आधिक गौरव की बात और क्या हो सकती है ।
वे एक उच्च कोटि के ज्योतिष-भौतिक विज्ञानी थे । उन्होंने ज्योतिष-भौतिक के क्षेत्र में नए अनुसंधान कर बौद्धिक जगत् में ख्याति प्राप्ति की । उन्होंने तारों की रचना, जीवन, विकास, मृत्यु, उसके गुणों-धर्मो इत्यादि पर खोज-कार्य किया । तारों की रचना पर उन्होंने एक ग्रंथ भी लिखा । तारों में जीवन होता है । यह उन्होंने ही विश्व को बताया ।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय से गणित में महत्त्वपूर्ण खोज पर दिया जानेवाला पुरस्कार ‘एडम्स’ भी डॉ.चंद्रशेखर को प्राप्त हुआ । यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि नोबेल पुरस्कार, जो कि विश्व का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार माना जाता है, को गणित के क्षेत्र में नहीं दिया जाता है ।
भारतीय भौतिकीविदों में सर सी.वी. रमण ने प्रकाश के रंगों के फैलने की प्रकृति पर कार्य किया, जो आज ‘रमण प्रभाव’ (Raman Effect) के नाम से विश्वविख्यात है । ज्ञातव्य है कि इस अद्भुत खोज के लिए उन्हें सन् १९३० में भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार दिया गया ।
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उस समय एशिया में वे ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें भौतिक विज्ञान में इस अद्वितीय सम्मान से विभूषित किया गया । प्रकाश-किरणों के गुण-धर्मों का अध्ययन भी उन्होंने किया । आँख के पीछे के परदे (रेटिना) में चित्र अंकित होने, फूलों के रंग और हीरों के संबंध में उन्होंने विश्व को अपनी नवीनतम खोजों से अवगत कराया ।
सर रमण के बाद भारतीय भौतिक विज्ञान की नींव को मजबूत करने का श्रेय जाता है डॉ. मेघनाद साहा को । वे एक गणित-शास्त्री थे, पर उनका कार्यक्षेत्र मुख्यत: भौतिक विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र का था । परमाणु के गुणों का अध्ययन करके वर्णक्रम पट जैसे कठिन विषय पर उन्होंने गणित के नियमों की सहायता से मिद्धांत स्थापित किए । सौरवर्णमंडल के आयनीकरण जैसे नए विषय पर प्रकाशित उनके लेख मे विदेशों में उनकी कीर्ति फैली । डॉ. साहा ने एक वैज्ञानिक पंचांग भी वनाया, जिसने पुराने पंचांगों की कमियों को दूर किया ।
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भौतिकीविदों के क्रम में अगला नाम आता है श्रीनिवास कृष्णन का । उन्होंने प्रकाश, परमाणु और अणुओं के गुण-धर्मों पर अविस्मरणीय कार्य किए । उनके शोध का प्रमुख विषय मणियों आदि का ज्ञान देनेवाली शाखा ठोस स्थित भौतिकी से संबंधित था । थर्मिओनिवास, जिसका उपयोग बिजली के बल्ब, हीटर आदि के निर्माण में होता है, पर भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण अनुसंधान-कार्य किया ।
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इस क्रम में डॉ. होमी जहाँगीर भाभा के नाम का उल्लेख अत्यावश्यक है । उन्होंने ब्रह्मांड-किरणों (Cosmic rays) पर शोध करके ‘कॉस्केड थ्योरी’ नामक एक विश्रुत सिद्धांत की स्थापना की । परमाणु के बारे में नवीनतम सूचनाएँ प्राप्त करने में यह सिद्धांत मददगार सिद्ध हुआ । सुव्यवस्थित रूप से ‘कास्केड थ्योरी’ प्रस्तुत करने में डॉ. भाभा को संसार में बड़ी प्रसिद्धि मिली ।
डॉ. भाभा की मृत्यु के बाद डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई ने परमाणु ऊर्जा के कार्य को सँभाला । डॉ. साराभाई भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रणेता माने जाते हैं । उन्होंने भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रगतिशील राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया । इसके पश्चात् परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में डॉ. एच.एस. सेठना का योगदान अभूतपूर्व है ।
उन्हीं के प्रयासों से भारत आज अणु-क्लब में छठा स्थान रखता है । अंतरिक्ष अनुसंधान में भारतीय प्रतिभाओं में प्रो. सतीश धवन का नाम भी उल्लेखनीय है, जिनके सफल प्रयासों में भारत ने अपना दूसरा कृत्रिम भू-उपग्रह भास्कर-२ और संचार उपग्रह ‘एपल’ का सफल प्रक्षेपण किया था ।
अंत में, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि भारतीय वैज्ञानिकों का विश्व में विशिष्ट स्थान रहा है । विज्ञान के हर क्षेत्र में भारतीयों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । सीमित साधनों के बावजूद भारतीय वैज्ञानिकों ने जो प्रगति की है, वह निश्चय ही देश के लिए गर्व और गौरव की बात है ।