भारत-अमेरिका सामरिक वार्ताओं का नया दौर पर निबंध | Essay on New Dimension Towards Indo American Defence Talk in Hindi!
भारत और अमेरिका के मध्य सामरिक वार्ताओं एक नया दौर शुरू हो गया है । इन सामरिक वार्ताऔं पर चर्चा करने से पहले यह आवश्यक है कि हम दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों पर एक निगाह डाल ले।भारत-अमरीका सम्बन्धों की पृष्ठभूमि को दो कालखण्डों में समझा जा सकता है ।
प्रथम कालखण्ड शीतयुद्ध का युग था, जो सामान्यतया 1945 से 1991 तक माना जाता है । इस कालखण्ड में विश्व अमरीकी व सोवियत संघ के दो विरोधी गुटों में विभाजित था । यद्यपि घोषित तौर पर भारत गुटनिरपेक्षता की नीति का समर्थक था, लेकिन भारत की विदेश नीति का झुकाव सोवियत संघ की तरफ था । इसका परिणाम हुआ कि इस कालखण्ड में कुद अपवादों को छोड्कर भारत-अमरीकी सम्बध सन्तोषजनक नहीं रहे ।
भारत द्वारा सोवियत संघ के साथ 1971 में की गई मैत्रीपूर्ण सन्धि तथा भारत द्वारा हंगरी, चेकोस्लोवाकिया तथा अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप की खुलकर आलोचना न किया जाना आदि घटनाओं से भारत व अमरीका के मध्य दूरियाँ बढ़ती गईं ।
दूसरी तरफ अमरीका ने विशेषकर 1980 के दशक में पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित किए तथा उसे भरपूर सैनिक व आर्थिक सहायता प्रदान की, पाकिस्तान ने इस सहायता का प्रयोग भारत के विरुद्ध अपना शक्ति प्रदर्शन करने में किया । इन सभी कारणों से भारत-अमरीका सम्बन्धों में अधिक सुधार की गुंजाइश नहीं रही ।
1991 में सोवियत संघ के विघटन व शीतयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में पर्याप्त बदलाव आया तथा 1991 से अब तक के कालखण्ड में दोनों ने अपने सम्बन्धों को मजबूत बनाने का प्रयास किया । 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किए जाने पर अमरीका ने प्रतिबन्धों की घोषणा की, लेकिन 2001 में इन प्रतिबन्धों को हटा लिया गया ।
तब से लेकर अब तक दोनों देशों के सम्बन्ध लगातार मजबूत होते आ रहे है । भारत जहाँ विश्व की एकमात्र शक्ति अमरीका से सम्बन्ध सुधारने का इच्छुक है, वहीं अमरीका आर्थिक व सामरिक कारणों से भारत के साथ सम्बन्ध मजबूत करना चाहता है ।
भारत आर्थिक दृष्टि से एक उभरता हुआ देश होने के साथ-साथ एक बहुत बड़ा बाजार भी है । पुन: अमरीका चीन की आर्थिक व सैनिक शक्ति को सन्तुलित करने के लिए भारत को दक्षिण एशिया व दक्षिण-पूर्व एशिया में एक महत्वपूर्ण सामरिक सहयोगी के रूप में देख रहा है ।
ADVERTISEMENTS:
दोनों के घनिष्ठ होते सम्बन्धों का महत्वपूर्ण प्रमाण यह है कि दोनों देशों ने लम्बी वार्ताओं तथा विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सिविल परमाणु सहयोग समझौते को अन्तिम रूप देने में सफलता प्राप्त की । वर्तमान में सम्बन्धों को व्यापक आयाम देने हेतु दोनों के मध्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर सामरिक वार्ताओं का दौर चल रहा है ।
21वीं शताब्दी के प्रथम दशक में भारत-अमरीकी सम्बन्धों का मुख्य बिन्दु शान्तिपूर्ण परमाणु सहयोग समझौता है, जो वर्ष 2008 में दीर्घकालीन वार्ताओं के उपरान्त सम्पन्न हुआ । यद्यपि इस समझौते के क्रियान्वयन में कई पेंच फँसे है, लेकिन दोनों के मध्य नए घनिष्ठ सम्बन्धों का यह महत्वपूर्ण चरण है । वस्तुत: इस समझौते तथा इसके सम्पन्न होने की दीर्घकालीन प्रक्रिया को सम्बन्धों का प्रथम दौर कहा जा सकता है ।
भारत-अमरीका सम्बन्धों के दूसरे दौर की शुरुआत जुलाई 2009 से मानी जा सकती है । जब दोनों देशों ने नियमित तौर पर विभिन्न सामरिक मुददों पर उच्च स्तर पर वार्षिक वार्ताओं के आयोजन का निर्णय लिया । वस्तुत: वर्तमान में चल रही ये वार्ताएं दोनों देशों द्वारा परमाणु समझौते से बाहर निकलकर सम्बन्धों को व्यापक आधार देने का प्रयास है ।
वार्षिक सामरिक वार्ताओं में पाँच मुद्दों को शामिल किया गया है:
I. परमाणु अप्रसार, आतंकवाद विरोधी गतिविधियाँ तथा सैन्य मामलों में सामरिक सहयोग ।
II. ऊर्जा व जलवायु परिवर्तन ।
III. शिक्षा तथा महिला सशक्तीकरण ।
IV. कृषि, व्यापार तथा खाद्य सुरक्षा ।
V. विज्ञान व तकनीकी, स्वास्थ्य तथा वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियाँ एवं नई तकनीकी की खोज ।
ADVERTISEMENTS:
इस सामारिक वार्ताओं की विषयवस्तु से स्पष्ट है कि भारत व अमरीका द्विपक्षीय सम्बन्धों को परमाणु समझौते तक सीमित न कर उसे व्यापक आधार देना चाहते है । अभी तक सामरिक वार्ताओं के दो चक्र पूरे हो चुके हैं । सामरिक वार्ताओं का प्रथम चक्र जून 2010 में वाशिंगटन में सम्पन्न हुआ । इन वार्ताओं का दूसरा चक्र 19 जुलाई, 2011 को नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ । इन वार्ताओं में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के साथ-साथ उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमण्डल ने भी भाग लिया ।
सामरिक वार्ताओं के दूसरे चक्र में इनमें सम्मिलित विभिन्न मुद्दों पर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों द्वारा सामरिक समझ विकसित करने का प्रयास किया गया ।
वार्ताओं के अन्त में दिनांक 19 जुलाई, 2011 को एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसके मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:
I. दोनों देशों ने साझे मूल्यों बहुलवाद, सहनशीलता, खुलापन तथा मौलिक व मानव अधिकारों के सम्मान पर प्रतिबद्धता व्यक्त की ।
ADVERTISEMENTS:
ADVERTISEMENTS:
II. वैश्विक व्यवस्था के स्थायित्व हेतु दोनों देशों के मध्य एशिया वार्ता तथा पश्चिमी एशिया वार्ता को शुरू करने का निर्णय लिया ।
III. दोनों देशों ने अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चिम करने तथा अफगानिस्तान में कृषि, मानव विकास तथा महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में सहयोग व विचार-विमर्श को मजबूत बनाने पर बल दिया ।
IV. प्रतिरक्षा तथा आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया । आतंकवाद के क्षेत्र में दोनों ने खुफिया सूचना के आदान-प्रदान तथा नई तकनीकी की उपलब्धता पर बल दिया । दोनों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि अफगानिस्तान में स्थायित्व के लिए आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों को नष्ट किया जाना आवश्यक है । प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सहयोग हेतु दोनों देशों ने संयुक्त सैनिक अभ्यास, प्रशिक्षण प्रतिरक्षा सूचना का आदान-प्रदान, नशीली दवाओं की तश्करी रोकने तथा समुद्री डकैती की समाप्ति पर बल दिया । दोनों देश समुद्री मार्गो की सुरक्षा हेतु आपसी विचार-विमर्श करते रहेंगे ।
ADVERTISEMENTS:
V. दोनों देशों ने शान्तिपूर्ण आणविक सहयोग को समझौते के अनुरूप आगे बढ़ाने पर बल दिया । दोनों ने इस सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए अमरीकी कम्पनियों की भागीदारी का समर्थन किया । अमरीका ने आशा व्यक्त की कि भारत इस वर्ष पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय(Convention on supplementary compentation) का अनुमोदन कर देगा ।
VI. सामरिक वार्ताओं में दोनों देशों ने जहाँ द्विपक्षीय व्यापार में गतवर्ष की तुलना में हुई 30% बढ़ोत्तरी पर सन्तोष व्यक्त किया, वहीं व्यापार सम्बन्धों के विस्तार के नए उपायों पर चर्चा भी की । इस सम्बन्ध में भारत-अमरीका व्यापार नीति मंच की बैठक होगी । जहाँ 2004 में दोनों देशों में व्यापार 21.6 बिलियन डॉलर था, जो 2008 में बढ्कर 43.4 विलियन डॉलर हो गया है ।निवेश को बढावा देने के लिए दोनों देशों ने द्विपक्षीय निवेश सन्धि को पूरा करने पर बल दिया । इस सन्धि के द्वारा दोनों देशों में आपसी निवेश में सरलता व खुलापन आ सकेगा । वर्तमान में अमरीका भारत में विदेशी निवेश का तीसरा सबसे बड़ा देश है । 2009 के अन्त तक अमरीका द्वारा भारत में 97 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा चुका है ।
VII. स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों ने तय किया कि अमरीका की विभिन्न संस्थाएं भारत में नए स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रमों को संचालित करेगी । इस सम्बन्ध में दोनों देशों द्वारा पूर्व में स्थापित स्वच्छ ऊर्जा शोध व विकास केन्द्र द्वारा सौर ऊर्जा तथा विकसित बायो ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
VIII. दोनों देशों ने भारत में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु कृषि क्षेत्र में विचार-विमर्श का स्वागत किया । इसी प्रकार दोनों देश मानसून अध्ययन के क्षेत्र में भी सहयोग करने हेतु सहमत है ।
ADVERTISEMENTS:
IX. दोनों देशों ने उच्च शिक्षा तथा महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर बल दिया है । दोनों देशों ने ओबामा की भारत यात्रा (नवम्बर 2010) के दौरान आरम्भ किए गए ‘ओबामा-सिंह 21 शताब्दी ज्ञान पहल’ (OSI) को आगे बढ़ाने हेतु ठोस कार्यक्रमों के निर्धारण पर बल दिया ।
X. दोनों देशों ने विज्ञान व तकनीकी के क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाने पर बल दिया । इस सम्बन्ध में भारत-अमरीका विज्ञान व तकनीकी मंच तथा भारत-अमरीका विज्ञान व तकनीकी बोर्ड द्वारा सहयोग के नए कार्यक्रमों को लागू किया जाएगा । इस सम्बन्ध में दोनों देशों की अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थाओं नासा व इसरो के मध्य अन्तरिक्ष क्षेत्र में सहयोग पर बल दिया गया।
ADVERTISEMENTS:
भारत व अमरीका के मध्य कई द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों पर कई मतभेद
विद्यमान है । जहाँ तक द्विपक्षीय सम्बन्धों की बात है । दोनों देशों के मध्य शान्तिपूर्ण परमाणु सहयोग समझौते को लागू करने के सम्बन्ध में मतभेद विद्यमान हैं । चूँकि अमरीका की परमाणु कम्पनियाँ इस क्षेत्र में भारत के साथ व्यापार करना चाहती हैं । अत: अमरीका यह नहीं चाहता कि भारत इन कम्पनियों पर घटना की स्थिति में क्षतिपूर्ति की शर्त लगाए । इसी प्रकार इस क्षेत्र में अमरीका उच्च तकनीकी भारत को देने हेतु अभी इच्छुक नहीं है । पुन: अमरीका प्रतिरक्षा के क्षेत्र में भारत में अपनी सेनाओं के लिए रुकने आदि की सुविधाएं चाहता है ।
लेकिन भारत इस दिशा में अधिक उत्साहित नहीं है । साथ ही अमरीका भारत पर परमाणु अप्रसार सन्धि पर हस्ताक्षर करने हेतु दबाव बना रहा है, लेकिन भारत इस सन्धि पर हस्ताक्षर करने हेतु सहमत नहीं है । क्षेत्रीय मुद्दों में ईरान का अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर दोनों में मतभेद है ।
भारत ईरान की समस्या का बातचीत के द्वारा हल निकालने का इच्छुक है, जबकि अमरीका ईरान पर दबाव बनाने या उस पर प्रतिबन्ध लगाने में भारत का समर्थन चाहता है । इसी तरह भारत अफगानिस्तान समस्या के समाधान हेतु पाकिस्तान की केन्द्रीय भूमिका का समर्थक नहीं है । अमरीका द्वारा अब भी पाकिस्तान को बड़ी मात्रा में आर्थिक व सैनिक सहायता दी जा रही है, जबकि यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान आतंकवादी तत्वों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित कर रहा है ।
इन तमाम मतभेदों के बावजूद दोनों देशों के मध्य उत्तर शीतयुद्ध में सहयोग के कई अवसर व परिस्थितियाँ उपस्थित है । अच्छी बात यह है कि दोनों देश आपसी संबंधों को मजबूत करने पर गंभीर है और यह दोनों के शुभ भविष्य का परिचायक है ।