रेडियो की उपयोगिता पर निबंध | Essay on Usefulness of Radio in Hindi!

मानव प्रगतिशील प्राणी है । उसकी बुद्धि जीवन के भौतिक सुख-साधनों की वृद्धि में सतत कार्यरत रहती है । एक दिन मानव ने सागर की उत्ताल तरंगों को देखा तो उनकी गति पर विचार किया ।

उसने सोचा कि जिस प्रकार सागर की ऊँची-ऊँची लहरें उठकर दूर-दूर तक जाती और सागर-तट से टकराती हैं उसी प्रकार वायु में शब्दों की लहरें भी उठती होंगी और दूर-दूर तक जाकर लोगों के कानों से टकराती होंगी ।

ऐसी स्थिति में उसने शब्द-ध्वनि की लहरों का उपयोग करने पर विचार किया । उसने अनेक प्रयोग किए । अंत में वह अपने उद्‌देश्य में सफल हुआ । बिजली के तार के बड़े-बड़े खंभे गाड़कर उसने एक स्थान से दूसरे स्थान तक समाचार भेजना आरंभ किया । यह आविष्कार ‘टेलीग्राफ’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

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टेलीग्राफ के आविष्कार के बाद उसी सिद्धांत पर ‘टेलीफोन’ का आविष्कार हुआ । टेलीफोन के आविष्कार के बाद वैज्ञानिकों को एक कठिनाई का सामना करना पड़ा । दूरस्थ स्थानों तक तार के खंभे खड़े करना और फिर उन्हें ठीक-ठाक में बनाए रखना आसान काम नहीं था । अंधी-तूफान में खंभे उखड़ जाते थे और तार टूट जाते थे । इससे समाचार भेजने का काम ठप हो जाता था ।

इस कठिनाई को दूर करने के लिए विज्ञानियों ने तार की सहायता के बिना विद्युत् तरंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के संबंध में प्रयोग करना आरंभ किया । ऐसे विज्ञानियों में सर्वप्रथम भारतीय विज्ञानी सर जगदीशचंद्र बसु का नाम उल्लेखनीय है ।

सर बसु अपना प्रयोग कर ही रहे थे कि इटली के एक प्रसिद्ध विज्ञानी मारकोनी ने हर्ट्ज नामक एक जर्मन विज्ञानी की खोज के आधार पर बिना तार की सहायता से समाचार भेजने में सफलता प्राप्त कर ली । हर्ट्ज ने यह खोज की थी कि शब्द-कंपन को बिजली की तरंग में परिणत कर ईथर द्वारा बिना तार लगाए समाचार एक स्थान से दूसरे स्थान तक अति तीव्र गति से भेजे जा सकते हैं ।

मारकोनी ने उसकी इस खोज को सत्य सिद्ध कर दिया । उन्होंने जिस यंत्र से समाचार भेजा था, उसका नाम ‘ट्रांसमीटर’ रखा और जिस यंत्र द्वारा उन्होंने उन विद्युत् शब्द कंपनों को पुन: ध्वनि में बदल दिया, उसका नाम ‘रेडियो’ रखा । यही रेडियो आज के वैज्ञानिक युग का एक चमत्कार है ।

रेडियो का उपयोग हम तीन रूप में करते हैं:

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१. प्रचार के साधन के रूप में

२. शिक्षण-कार्य के साधन के रूप में और

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३. मनोरंजन के साधन के रूप में ।

हमारी केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारें रेडियो से अपनी विभिन्न प्रकार की योजनाएँ प्रसारित करती हैं । विश्व में प्रतिदिन घटनेवाली महत्त्वपूर्ण घटनाएँ और उनके संबंध में अपने नेताओं के विचार हमें रेडियो से उसी दिन प्राप्त हो जाते हैं । सोना, चाँदी, अनाज, गुड़ आदि के भावों के उतार-चढ़ाव के समाचार के साथ-साथ फसलों और वर्षा के समाचार रेडियो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं । सरकार अपनी शासन-नीति का प्रचार रेडियो द्वारा ही करती है ।

रेडियो का उपयोग शिक्षण-कार्य के लिए भी किया जाता है । कविता, कहानी, एकांकी विविध विषयों पर निबंध, आलोचनाएँ, रेखाचित्र, कवियों की काव्यगत विशेषताएँ, यात्रा वर्णन, प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थानों और दुर्गों का परिचय, साहित्यकारों की जीवनियाँ तथा उनकी साहित्यिक सेवाओं आदि के संबंध में जो ज्ञान विद्यार्थियों को पंद्रह-बीस मिनट की अवधि में रेडियो द्वारा करा दिया जाता है, वह स्थायी रूप में उनके मस्तिष्क का अंग बन जाता है ।

प्रात: से संध्या तक जीविकोपार्जन के संघर्ष में व्यस्त मानव जब परिश्रांत होकर घर आता है तब रेडियो का मधुर संगीत कुछ हो क्षणों में उसे नव-स्कूर्ति से भर देता है । प्रहसन, कवि-सम्मेलन, मुशायरे, वीणा, शहनाई-वादन आदि मनोरंजन के विविध साधन हमें घर बैठे रेडियो द्वारा उपलब्ध हो जाते हैं । रेडियो से हमारा मात्र मनोरंजन ही नहीं होता, हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है ।

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हमारे देश में रेडियो का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है । सन् १९२६ में हमारे देश में कुल ३,६०० रेडियो थे, पर आज यह संख्या कई लाख तक पहुँच गई है । बड़े-बड़े नगरों में रेडियो स्टेशन स्थापित हो गए हैं और उनमें दिन-रात काम होता रहता है ।

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