”लक्ष्य से अधिक महत्व उसकी प्राप्ति के साधनों का होता है” (निबन्ध) | Essay on “It’s Not the Nature of Work, But the Way You do it that Matters” in Hindi!

सामान्यत: यह सोचा जाता है कि साधन साध्यों की सिद्धि में सहायक होते हैं । अर्थात सर्वोच्च महत्ता लक्ष्य की होती है उसकी प्राप्ति में सहायक साधन तुच्छ महत्वहीन होते हैं । लक्ष्य इसीलिए प्राप्त होते हैं क्योंकि हम सफलता की ओर संलग्न थे । लेकिन ऐसा नहीं हैं । साध्य की प्राप्ति में साधनों की भी अपनी महत्ता होती है ।

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उदात्त लक्ष्यों की प्राप्ति के साधन भी उदात्त होते हैं । भ्रष्ट साधनों से प्राप्त उच्च साध्यों का आनंद उतना सशक्त और स्थाई नहीं होता जितना कि उदात्त साधनों द्वारा प्राप्त उदात्त साध्य में होता हैं । यह विचार हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का है ।

महात्मा गांधी का विचार था कि भारत की स्वतंत्रता का लक्ष्य सत्य और अहिंसा से ही प्राप्त किया जा सकता है । यदि उन्होंने हिंसा और रक्तपात का रास्ता चुना होता तो इससे कहीं अधिक पहले हम स्वतंत्रता प्राप्ति में सफल हो जाते ।

लेकिन क्या वह स्वाधीनता इतनी ही सार्थक और आनंदपूर्ण होती? लगातार विरोधों के बावजूद महात्मा गांधी अपने विचार पर दृढ़ रहे । क्षण भर के लिए भी उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चुने साधनों का साथ नहीं छोड़ा ।

उन्होंने देशवासियों और विश्व के लोगों को यह शिक्षा दी है कि किसी कार्य को करने का उचित ढंग या प्राप्ति के साधन अधिक महत्वपूर्ण है । वास्तव में लक्ष्य से अधिक महत्व उसकी प्राप्ति के साधनों का होता है । कार्य चाहे जिस प्रकार का हो उचित मार्ग ही उसे उत्कृष्टता प्रदान करता है । कोई कार्य छोटा या महत्वहीन नहीं होता । कार्य की प्राप्ति के साधन ही उसे उच्चता और महानता प्रदान करते हैं ।

आज भी लोग शारीरिक कार्यो को तुच्छ मानते हैं । लेकिन व्यक्ति शारीरिक कार्यो को ठीक ढंग से करके अन्य व्यक्तियों के सामने उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है । लक्ष्य की प्राप्ति के साधन ही सफलता को सूचित करते है ।

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