विद्यार्थी के कर्तव्य पर निबंध | Essay on Duties of a Student in Hindi!
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का स्वर्णिम काल होता है । जीवन के इस पड़ाव पर वह जो भी सीखता, समझता है अथवा जिन नैतिक गुणों को अपनाता है वही उसके व्यक्तित्व व चरित्र निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं ।
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दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि विद्यार्थी जीवन मानव जीवन की आधारशिला है । इस काल में सामान्यत: विद्यार्थी सांसारिक दायित्वों से मुक्त होता है फिर भी उसे अनेक दायित्वों व कर्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है ।
प्रत्येक विद्यार्थी का अपने माता-पिता के प्रति यह पुनीत कर्तव्य बनता है कि वह सदैव उनका सम्मान करे । सभी माता-पिता यही चाहते हैं कि उनका पुत्र बड़ा हौकर उनका नाम ऊँचा करे । वह बड़े होकर उत्तम स्वास्थ्य, धन व यश आदि की प्राप्ति करे ।
इसके लिए वे सदैव अनेक प्रकार के त्याग करते हैं । इन परिस्थितियों में विद्यार्थी का यह दायित्व बनता है कि वह पूरी लगन और परिश्रम सै अध्ययन करे तथा अच्छे अंक प्राप्त करें व अच्छा चरित्र धारण करने का प्रयत्न करे ।
अपने गुरुओं, शिक्षकों अथवा शिक्षिकाओं के प्रति विद्यार्थी का परम कर्तव्य है कि वह सभी का आदर करे तथा वे जो भी पाठ पढ़ाते हैं वह उसे ध्यानपूर्वक सुने तथा आत्मसात् करे । वे जो भी कार्य करने के लिए कहते हैं उसे तुरंत ही पूर्ण करने की चेष्टा करे । गुरु का उचित मार्गदर्शन विद्यार्थी को महानता के शिखर की ओर ले जाने में सक्षम है ।
विद्यार्थी का अपने विद्यालय के प्रति भी दायित्व बनता है । उसे अपने विद्यालय को उन्नत बनाने में यथासंभव योगदान करना चाहिए । विद्यालय को स्वच्छ रखने में मदद करे तथा अपने अन्य सहपाठियों को भी विद्यालय की स्वच्छता बनाए रखने हेतु प्रेरित करे । इसके अतिरिक्त वह कभी भी उन तत्वों का समर्थन न करे जो विद्यालय की गरिमा एवं उसकी संपत्ति को किसी भी प्रकार से हानि पहुँचाते हैं । वह विद्यार्थी जो विध्वंसक कार्यों में विशेष रुचि लेता है, उसे विद्यार्थी कहना ही उचित नहीं है ।
अपने सहपाठियों के साथ मृदुल व्यवहार रखना भी विद्यार्थी का परम कर्तव्य है । यह आवश्यक है कि वह किसी भी अन्य विद्यार्थी के साथ ईर्षा, द्वेष अथवा कटुता जैसी भावनाओं को न पनपने दे । यदि किन्हीं परिस्थितियों में इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होती है तो आपस में विचार करके अथवा अपने गुरुजन की सहायता से इस समस्या का हल निकालने का प्रयास करे ।
आर्थिक रूप से जो विद्यार्थी सक्षम नहीं हैं, जिसके कारण वे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पा रहे हैं तथा वे छात्र जो पढ़ाई में अत्यधिक कमजोर हैं उन छात्रों की यथासंभव सहायता करना भी विद्यार्थी का पुनीत कर्तव्य है ।
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उपर्युक्त समस्त कर्तव्यों व दायित्वों के अतिरिक्त विद्यार्थी के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह आत्मविकास हेतु अपनी समस्त ऊर्जा को केंद्रित करे । विद्यार्थी जीवनकाल उसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । इस काल में वह जितना अधिक परिश्रम करेगा शेष जीवन उसके लिए उतना ही सुखमय एवं आसान होगा । इसके लिए आवश्यक है कि वह समय के महत्व को समझे तथा अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पूर्ण प्रयास करे । वह सदैव कुसंगति से बचे । कुसंगति के चक्रव्यूह में उलझ जाने पर विद्यार्थी अपने लक्ष्य से बहुत पीछे रह जाता है ।
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विद्यार्थी के लिए पुस्तकों के ज्ञान के अतिरिक्त यह भी आवश्यक है कि वह व्यायाम, खेलकूद व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि में रुचि ले । ये सभी क्रियाकलाप उसके सर्वांगीण विकास हेतु आवश्यक होते हैं । खेलकूद व व्यायाम उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ रखता है । शरीर में आवश्यक रक्त संचार की पूर्ति होने से उनकी मानसिक चेतना का भी विकास होता है ।
समाज के प्रति भी उसकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि समय मिलने पर वह ज्ञान का प्रकाश उन लोगों तक पहुँचाने का हर संभव प्रयास करे जो धनाभाव के कारण अज्ञानता के अंधकार में डूबे हुए हैं । किसी न किसी प्रकार से सामाजिक सेवा में जुड़े रहने पर उसका मनोबल बढ़ता है ।
सभी नागरिकों का राष्ट्र के प्रति कुछ दायित्व है । अपने राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान व अपने संविधान का सम्मान करना भी उसका एक कर्तव्य है । उसे कभी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जो राष्ट्र की गरिमा के विरुद्ध हो । विद्यार्थी का यह कर्तव्य बनता है कि वह सदैव राष्ट्र विरोधी तत्वों से सचेत रहे तथा किसी भी प्रकार से राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति न पहुँचाए ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि विद्यार्थी को अपने जीवन में अनेक प्रकार के कर्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है । इन कर्तव्यों व दायित्वों से स्वयं को विमुख रख कर वह कभी भी सफलता के शिखर तक नहीं पहुँच सकता है । उसे सदैव अपनी दैनिक गतिविधियों पर निगरानी रखनी होगी तथा जीवन में जो कुछ शुभ है उन्हें अपनाने के अभ्यास करने होंगे ।
”काक चेष्टा, बकोध्यानम् श्वान निद्रा तथैव च अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन: पंच लक्षणम् ।”