वैश्विक मंच पर अमेरिका की निरंकुशता पर निबन्ध | Essay on Rebelliousness of America on the Global Stage in Hindi!
फासिस्टवाद के उमूलन पर नूरेबर्ग अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में प्रमुख रूप से जोर दिया गया था । अमेरिकी अभियोजक टेलर ने इसी न्यायालय में एक बार कहा था- ”वृक्ष से यदि हम केवल जहरीले फल तोड़ लेंगे तो यह हमारी नगण्य सफलता होगी । उस वृक्ष को समूल उखाड़ फेंकना अपेक्षाकृत अधिक कठिन कार्य है, किंतु इसे पूरा करने पर ही कोई कल्याण हो सकता है ।”
अब प्रश्न है, टेलर की भावना और याल्टा घोषणा, पोट्सडम समझौता तथा संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र के अनुकूल अमेरिकी प्रशासन फासिस्टवाद के मुख्य सिद्धांत ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ और नस्लवाद की बर्बर-प्रस्थापना को मिटाने की दिशा में सन् १९४५ से प्रयत्नशील है और यदि नहीं है तो इसका कारण क्या है ?
सन् १९४५ से २००५ तक का इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि लोकतंत्र की रक्षा के प्रसंग में द्वितीय विश्वयुद्ध की शिक्षा को विस्मृत कर अमेरिकी प्रशासन नव- उपनिवेशवादी शोषण की प्रक्रिया को तीव्र बनाने तथा विश्व प्रभुत्व की भावना से साम्राज्यवादी प्रस्थापना के अंतर्गत नव-फासिस्टवाद को पूरा दे रहा है ।
दक्षिण अफ्रीका के श्वेत नस्लवाद और इजराइल नस्लवादी प्रवृत्ति का शोषण इसी नव-फासिस्टवादी नीति का अभिन्न अंग है । एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी नवचेतना का विरोध जहाँ साम्राज्यवादी भावना का द्योतक है, वहीं वह नव-फासिस्टवाद का भी परिचायक है ।
लगता है कि नाजी सैनिकों का निम्नांकित गीत आज अमेरिका के सैनिक शिविर में गूँज रहा है । अंतर केवल इतना हो सकता है कि तीसरी पंक्ति में जर्मनी की जगह अमेरिका का नाम दे दीजिए:
”यदि सारा विश्व खँडहर बन जाए, हम जरा भी इसकी चिंता न करेंगे । आज ‘अमेरिका‘ हमारा है, कल सारा विश्व हमारा होगा ।’’
अमेरिका ही नहीं, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, इटली आदि पश्चिमी देशों में विभिन्न दलों के नाम पर नव-फासिस्टवादियों ने अब अपनी काररवाइयाँ तेज कर दी हैं और श्वेत नस्लवादी प्रभुत्व स्थापित करने का नारा वे खुलकर लगाने लगे है ।
पोट्सडम समझौते के अनुरूप फासिस्टवाद और सैन्यवाद के उम्पूलन की जगह अमेरिकी प्रशासन सैनिक तानाशाही का पोषण कर रहा है और सैन्यवाद को हर रीति-नीति से बढ़ावा दे रहा है । द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद से इस आशय की खबरें मिलती रही हैं कि बड़ी संख्या में नाजियों के समूह ब्राजील, अर्जेंटीना आदि दक्षिणी अमेरिकी देशों के अतिरिक्त जर्मनी, इटली, पहले के फासिस्ट स्पेन और पुर्तगाल, अमेरिका आदि कई देशों में सत्तारूढ़ दलों के सहयोग से रह रहे हैं और उनमें से अधिकांश दक्षिणपंथी आतंकवादी काररवाइयों में भाग लेते हुए पश्चिम की रूस-विरोधी योजनाओं के कार्यान्वयन में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाते रहे हैं ।
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जर्मनी की पुलिस सेवा में महत्त्वपूर्ण पदों पर नाजियों के आसीन होने की सूचनाएँ सन् १९६० के पूर्व ही दुनिया को प्राप्त हो चुकी थीं । कुछ समय पूर्व अमेरिकी दूरदर्शन ‘सी.बी.एस’ ने स्वयं सूचित किया था कि रूस-विरोधी गुप्तचर काररवाइयों में इस्तेमाल करने के लिए अमेरिकी सरकार के अधिकारियों ने सैकड़ों की संख्या में पूर्व नाजियों को और पूर्वी यूरोप में उनका साथ देनेवालों को अमेरिका में प्रवेश करने और बसने की सुविधाएं प्रदान की हैं ।
‘सी.बी.एस.’ ने यह भी बताया था कि अनेक पूर्व नाजी आज भी अमेरिका में हैं । इससे इस बात की पुन: पुष्टि हो गई कि नाजीवाद और फासिस्टवाद के उमूलन की ‘पोट्सडम घोषणा’ के विपरीत आचरण करने के दोषी पश्चिमी देशों में जर्मनी के बाद अमेरिका का स्थान प्रमुख है, क्योंकि पश्चिमी शिविर के कई राज्यों में नव-फासिस्ट संगठनों को वाशिंगटन से हर प्रकार की सहायता प्राप्त होती रही है ।
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‘सी.आई.ए.’ द्वारा अपने कार्यों में नाजियों के इस्तेमाल करने की बात भी उपर्युक्त सनसनीखेज रहस्योद्घाटन से प्रमाणित हो गई है । अमेरिका में गुप्त रूप से रह रहे नाजियों का पता लगाने के लिए अमेरिकी न्याय विभाग ने जो जाँच कार्यालय खोला था, उसके पूर्व अभियोक्ता जॉन लोफदटस ने, जो अब बोस्टन में वकालत करते हैं,
विस्तार से बताया है कि किस प्रकार आधिपत्य के समय सोवियत संघ के बेलारूस में जो नाजी सरकार गठित की गई थी, उसके सभी सदस्य पुलिस अधिकारी आदि अमेरिका में रहते हैं । इस सूचना के अनुसार, केवल बेलारूस से आए ३०० से अधिक नाजी अमेरिका में हैं । वे अमेरिका के नागरिक बन गए हैं और कुछ अमेरिकी सरकार के लिए काम कर रहे हैं ।
अमेरिकी दूरदर्शन के सी.बी.एस. के प्रतिनिधि ए.स. वालेस ने यह आरोप लगाया था कि समाजवादी शिविर के विरुद्ध प्रचार-युद्ध के लिए सी.आई.ए. की देख-रेख में अमेरिका द्वारा स्थापित ‘रेडियो फ्री यूरोप’ और ‘रेडियो लिबर्टी’ में कुछ नाजी काम कर रहे थे ।
बेलारूस में नाजी जर्मनी के आदेशानुसार प्रत्येक यहूदी को मौत के घाट उतारने का काम स्टैनिसलाव स्टैंकेविच नामक नाजी ने किया था और इसने रेडियो लिबर्टी में भी काम किया था । इतना ही नहीं, वह न्यूयॉर्क में रहने लगा था और उसके विरुद्ध मामला चलने ही वाला था कि उसकी हो गई ।
अमेरिकी सेना, अमेरिकी गुप्तचर विभाग तथा अन्य संबंधित प्रशासकीय अधिकारियों ने अमेरिका में छिपे नाजियों के बोर में कागजात आदि प्रस्तुत करने की जगह, उन्हें छिपाने की नीति अपना ली थी । इससे भी यही स्पष्ट होता है कि भगोड़े नाजियों और अमेरिका प्रशासन में साँठ-गाँठ थी और है ।
यह तथ्य अब सर्वविदित है कि नव-फासिस्टवादी आतंकवादियों का इस्तेमाल करते हुए सी.आई.ए. के अधिकारी किस तरह विभिन्न देशों में प्रगतिशील राजनेताओं, राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों आदि की हत्या करवाते रहे हैं । किस तरह दक्षिणपंथी व आतंकवादी तत्त्वों के साथ साजिश रचकर अमेरिकी प्रशासन द्वारा कई देशों में अनिश्चितता की स्थिति पैदा करने की कोशिश जारी है ।
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वास्तव में, प्रभुत्ववादी नीति अपनाने के कारण पूर्व नाजियों के साथ अमेरिकी प्रशासन का लगाव कायम हुआ और वह पूर्ववत् है । भारत में पाकिस्तान के सहयोग से खालिस्तान आंदोलन के पीछे भी सी.आई.ए. के नव-फासिस्ट तत्त्वों के हाथ होने की बात स्पष्ट हो चुकी थी ।
यह भी कहा जाता है कि सी.आई.ए. के द्वारा अन्य देशों में अमेरिका के विरोधियों की हत्या करवाने और आतंक का वातावरण तैयार करने के लिए अमेरिका में आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं । उनमें भी पहले नाजी हत्यारे काम कर चुके हैं । प्रतिक्रियावाद के निर्यात में भी नव-फासिस्टवादी तत्त्व अमेरिका के साथ हैं ।
विरोधियों को गुप्त रूप से कृई तरीकों से मारा जा सकता है । नाजियों के अमेरिका में आने के बाद सामान्य रूप से सभी अमेरिकी आतंकवादियों, विशेष रूप से कू क्लक्स क्लान, जन बर्थ सोसाइटी तथा अन्य नव-फासिस्ट संगठनों, के कार्यकलाप में तेजी आने का कारण यही है कि वे इनके अनुभवों के आधार पर कार्य करने लगे हैं ।
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कई पश्चिमी संमाचार-पत्रों ने यह माना है कि दुनिया के हर भाग में नव-फासिस्ट आतंकवादी संगठनों को अमेरिका से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है । यह कोई छिपी बात नहीं है कि स्वयं राष्ट्रपति टूमैन ने युद्ध के अंतिम चरण में ही विश्व-प्रभुत्व की लालसा से जिस समाजवाद विरोधो नीति पर अमल करना शुरू कर दिया था, वह आज भी जारी है ।
इसी नीति के अंतर्गत अमेरिकी प्रशासन ने बड़ी संख्या में पूर्व नाजियों को अमेरिका में प्रथम प्रवेश करने की खुली छूट दे रखी थी, क्योंकि अमेरिकी अधिकारियों का यह मत रहा है कि वे उनका किसी भी देश के विरोध में इस्तेमाल कर सकते हैं । नव-फासिस्टों के संगठन ‘ब्लैक इंटरनेशनल’ के सदस्य दुनिया के अनेक भागों में फैले हुए हैं ।
नव-फासिस्टों और पूर्व नाजियों का सीआईए. से घनिष्ठ संपर्क की सूचनाएँ पश्चिमी अखबारों के माध्यम से दुनिया को मिलती रही हैं । जिस प्रकार ग्रेट ब्रिटेन के ‘नेशनल फ्रंट’, बेल्वियम के ‘युवा यूरोप’ म्यूनिख के ‘नव-फासिस्ट’ केंद्र फ्रांस, जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन की’ नेशनल सोशलिस्ट वर्ल्ड यूनियन इटली का ‘नव- फासिस्ट सोशलिस्ट दोलन, ‘नेशनल राइट’ तथा जर्मनी के नव-फासिस्ट संगठनों में पूर्व नाजी भरे हुए हैं, उनका इस्तेमाल अमेरिका करता है ।
अमेरिका को इस बात पर बहुत गर्व है कि वह एक लोकतांत्रिक देश है । यहाँ इस बात को उठाने से कोई लाभ नहीं है कि अमेरिका जैसे लोकतंत्रवाद का चरित्र क्या है और वहाँ के नीग्रो लोगों के साथ कितना अत्याचार होता है । सच बात तो यह है कि मैकार्थीवाद और नव-फासिस्टवाद में कोई अंतर नहीं है । मैकार्थीवाद आज भी अमेरिका के राजनीतिक जीवन से दूर नहीं हुआ है ।
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सी.आई.ए. द्वारा अमेरिका के प्रभुत्ववादी नीति के विरोधी कई राजनेताओं और जननेताओं की हत्याओं और चिली में लोकवादी सरकार को उलटने, तमोजा की तानाशाही समाप्त होने के बाद निकारागुआ में अनिस्थिरता पैदा करने, एल सल्वाडोर की घटनाओं, संयुक्त राष्ट्र संघ में बढ़ती दादागिरी, ईरान-इराक युद्धों में दखलंदाजी, कुवैत-इराक के संघर्षों में सक्रिय हिंसक भागीदारी, इजराइल-फिलिस्तीनी नस्लवादी श्वेत फासिस्ट सरकार का समर्थन, प्रेसलर कानून को बौना समझते हुए पाकिस्तान को एफ-१६ बमवर्षक देना, अफगानिस्तान में बिन लादेन के साथ पाकिस्तान की मिलीभगत के स्पष्ट प्रमाण-सारे प्रमाणों को देखने-समझने के बाद भी पाकिस्तान को आतंकवादी देश न घोषित करने का फैसला, रूसी परिसंघ को अपने हाथ की कठपुतली बनाने की घृणित चाल, अफगानिस्तान के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप, इराकी जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दादागिरी का परिचय देना, उत्तर कोरिया और ईरान की परमाणविक नीति को लेकर गठबंधन की रणनीति आदि ढेर सारे प्रकरणों की रोशनी में अमेरिका के तथाकथित लोकतंत्रवादी चरित्र का पटीद्घाटन हो चुका है, पर अंतत: सवाल यहीं पर आकर समाप्त हो जाता है- आखिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे, बहरहाल, एक-न-एक दिन कोई-न-कोई आगे आएगा ही, उस वक्त का इंतजार है हमें ।