संयुक्त राष्ट्र संघ और वर्तमान विश्व पर निबंध | Essay on The United Nations and the Present world in Hindi!
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे बड़ा योगदान संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के रूप में सामने आया । 24 अक्तूबर 1945 ई॰ को स्थापित इस विश्व संस्था का मुख्यालय उत्तरी अमरीका के न्यूयार्क शहर में है ।
इस संस्था के गठन में अमरीका, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन आदि देशों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । तब से लेकर अब तक इस संस्था के सदस्य देशों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और दुनिया के प्राय: सभी देश आज इसके सदस्य हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अंगों में महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, न्यास परिषद्, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तथा सचिवालय का नाम प्रमुख है । इसकी कार्यपालिका को सुरक्षा परिषद् के नाम से जाना जाता है जिसके पाँच स्थाई सदस्य अमरीका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन हैं ।
यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली अंग है तथा पाँचों स्थाई सदस्यों को किसी भी मामले में वीटो का अधिकार प्राप्त है । संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय इसके सदस्यों की संख्या मात्र 50 थी जो आज बढ़कर लगभग 200 तक पहुँच गई है । यह तथ्य इस संस्था की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण कहा जा सकता है ।
परंतु इस संस्था की स्थापना से लेकर अब तक दुनिया में लगभग 50 युद्ध हो चुके हैं जो इसकी विफलता की कहानी को बयान करता है । संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं शांति बनाए रखना है लेकिन आंकड़े कहते हैं कि विश्व के शक्तिशाली देशों ने सयुक्त राष्ट्र के मूल सिद्धांतों की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर न छोड़ी ।
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हमारा देश आरंभ से ही इस विश्व संस्था का सदस्य रहा है परंतु आजादी के बाद हमने तीन बड़े युद्ध झेले हैं । जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो संयुक्त राष्ट्र कुछ न कर सका सिवाय अपिल करने के ।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय से ही दुनिया पर शीत युद्ध की छाया पड़ने लगी। दुनिया के देश सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के अघोषित झंडे तले लामबंद होने लगे । कई बार तो ऐसा लगा कि तीसरा प्रलयंकारी विश्व युद्ध होने ही वाला है परंतु परमाणु अस्त्रों की उपलब्धता ने मानव समुदाय को ऐसा करने से रोके रखा ।
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् इसके मुख्य घटक रूस की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी और इस तरह गीत युद्ध का खतरा टला । आज की दुनिया एकध्रुवीय हो गई है जिसका नेतृत्व अमेरिका के हाथों में है । संयुक्त राष्ट्र संघ अमेरिका के हाथों में एक कठपुतली की भाँति है, इसका प्रकटीकरण इराक पर अमेरिकी हमले के समय हो गया।
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ब्रिटेन, स्पेन, इटली, जापान आदि देशों को छोड्कर दुनिया के प्राय: सभी देश इराक पर नाहक हमले के पक्ष में नहीं थे परंतु अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बिना ही आतंकवाद की समाप्ति के नाम पर इराक पर हमला कर दिया ।
ऐसे एक नहीं कई उदाहरण मिल जाएँगे कि प्रभुत्व संपन्न राष्ट्रों ने अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति हेतु संयुक्त राष्ट्र के सामूहिक उद्देश्यों को दरकिनार कर दिया और मनमाना आचरण किया । यही कारण है कि जब इजरायल के विरुद्ध सुरक्षा परिषद् में कोई प्रस्ताव लाया जाता है तो अमरीका उस पर वीटो कर देता है । वर्तमान विश्व के लिए आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा बन गया है परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ इस दिशा में कुछ भी कर पाने में असमर्थ दिखाई दे रहा है ।
विभिन्न राष्ट्र आतंकवाद से लड़ाई लड़ने के मामले में दोहरे मापदंड अपना रहे हैं । 11 सितंबर सन् 2001 के दिन अमरीका पर जघन्य आतंकवादी हमले हुए तो अमरीका सहित दुनिया के देशों की नींद खुली । भारत में आतंकवाद बहुत पहले से अपना कहर ढा रहा है जो मुख्यत: पाकिस्तान के समर्थन का नतीजा है ।
लेकिन ब्रिटेन, अमरीका आदि देश भारत में फैले आतंकवाद को क्षेत्रीय समस्या मानकर भारत और पाकिस्तान दोनों की पीठ थपथपा रहे हैं जो इनकी तुष्टीकरण की नीति का बयान करता है ।
इन जटिलताओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र की उपयोगिता है क्योंकि सामाजिक क्षेत्रों में इसने उल्लेखनीय कार्य किया है । राजनैतिक हलकों में संयुक्त राष्ट्र संघ की राय उपयोगी मानी जाती है जो एक मापदंड का कार्य करती है ।
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कई देशों की आंतरिक अशांति अथवा घरेलू विप्लव की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना ने उत्तम कार्य किया है । इसने विभिन्न राष्ट्रों की सेना की मदद से शांति और सुरक्षा के लिए कार्य किए हैं ।
दूसरी ओर संसार भर के सांस्कृतिक धरोहरों की पहचानकर उनके रखरखाव में अच्छा-खासा योगदान दिया है । कई देशों में कुपोषण से पीड़ित बच्चों की भी इस विश्व संस्था ने मदद की है । संयुक्त राष्ट्र दुनिया के गरीब देशों में शिक्षा एवं स्वास्थ्य से संबंधित विशेष अभियान चलाकर एक तरह से सामाजिक समानता और उत्थान का कार्य करता है । सबके लिए स्वास्थ्य संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य है ।
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संयुक्त राष्ट्र ने भारत जैसे देशों में बाल श्रम विरोधी अभियान चलाए हैं क्योंकि यह संस्था दुनिया के सभी बच्चों के कल्याण के प्रति समर्पित है । ये सभी कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी विभिन्न एजेंसियों की मदद से करता है ।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि कई खामियों के होते हुए भी वर्तमान विश्व के समक्ष संयुक्त राष्ट्र का कोई विकल्प नहीं है । यह संस्था अपने सदस्य देशों के आर्थिक एवं अन्य तरह के सहयोग से ही चलती है अत: सदस्य देश जब तक इसे और सुदृढ़ न बनाएँगे तब तक यह पंगु ही रहेगी ।
इसके ढाँचे में सुधार की माँग भारत सहित दुनिया के कई देश लंबे अरसे से कर रहे हैं लेकिन अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है । सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी अब अपरिहार्य हो गई है क्योंकि दुनिया पिछले 60 वर्षो में काफी बदल गई है । संयुक्त राष्ट्र संघ को जितना प्रभावी बनाया जाएगा, उतना ही विश्व स्वयं को सुरक्षित महसूस करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है ।