सतत विकास पर निबंध! Here is an essay on ‘Sustainable Development’ in Hindi language.
विश्व के सभी देशों में आज विकास के पथ पर एक-दूसरे से आगे निकल जाने की होड़-सी मची है और इसके लिए औद्योगीकरण से लेकर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन तक के हर सम्भव उपाय किए जा रहे हैं । बिकास की इस होड़ में हम यह भूल गए है कि हम इसे किस मूल्य पर हासिल करना चाहते हैं ।
इसमें दोराय नहीं है कि बिकास के लिए हम पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर है, क्योंकि इसके लिए आवश्यक तेल से लेकर कोयला एवं जल भी हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है और ये सभी प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर सीमित मात्रा में विद्यमान है ।
जिस तरह से विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष तक यह बढ़कर 8 अरब से भी अधिक हो जाएगी और जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है, उसका दुष्परिणाम यह होगा कि आने वाली मानव पीढ़ियों के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर उपलब्ध ही नहीं होंगे ।
हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है- ”हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के माध्यम से पानी, ऊर्जा, निवास स्थान, कचरा प्रबन्धन एवं पर्यावरण के क्षेत्रों में पृथ्वी द्वारा झेली जाने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए कार्य करना होगा ।”
अर्थशास्त्रियों, पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल यह बताया है कि हम अपने विकास के लिए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का भी ध्यान रखे कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ये संसाधन बचे रहें ।
भावी पीढ़ी के लिए संसाधनों के बचाव के मद्देनजर ही सतत विकास (सस्टेनेबल डेबलपमेण्ट) की अवधारणा का बिकास हुआ । हमारे रिजर्व बैंक के गबर्नर श्री रघुराम राजन का कहना है- ”हमें यह निश्चित करके चलना चाहिए कि पूरे विश्व में वृद्धि के वास्तविक एवं सतत स्रोत हो ।”
सतत बिकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो ।
यही कारण है कि सतत विकास अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप निरन्तर चलता रहता है सतत विकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहे । हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री का कहना था- ”हमें देश के संसाधनों का प्रयोग मानवता के लाभ के लिए करना चाहिए ।”
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सतत विकास की आवश्यकता निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाती है:
1. औद्योगीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हुई है, फलस्वरूप विश्व की जलवायु में प्रतिकूल परिवर्तन हुआ है, साथ ही समुद्र का जल स्तर बद जाने के कारण आने बाले वर्षों में कई देशों एवं शहरों के समुद्र में जलमग्न हो जाने की आशंका है ।
2. जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है । यदि इन्हें नियन्त्रित नहीं किया गया, तो परिणाम अत्यन्त मयकर होंगे ।
3. इनवायरन्मेण्टल डाटा सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार, लोगों एवं राष्ट्रों की सुरक्षा, भोजन ऊर्जा, पानी एवं जलवायु, इन चार स्तम्भों पर निर्भर है । ये चारों एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं और ये सभी खतरे की सीमा को पार करने की कगार पर हैं ।
4. अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए मानव विश्व के संसाधनों का इतनी तीव्रता से दोहन कर रहा है कि पृथ्वी की जीवन को पोषित करने की क्षमता तेजी से कम हो रही है ।
5. वर्ष 2030 तक विश्व की जनसंख्या के 8.3 अरब से अधिक हो जाने का अनुमान है, जिसके कारण उस समय भोजन एवं ऊर्जा की माँग 50% अधिक तथा स्वच्छ जल की माँग 30% अधिक हो जाएगी । भोजन, ऊर्जा एवं जल की इस बड़ी हुई माँग के फलस्वरूप उत्पन्न सकट के दुष्परिणाम भयंकर हो सकते हैं ।
विश्व में आई औद्योगिक क्रान्ति के बाद से ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू हो गया था, जो उन्नीसवीं एवं बीसवीं शताब्दी में अपनी चरम सीमा को पार कर गया । दुष्परिणामस्वरूप विश्व की जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया कि यह अनेक जानलेवा बीमारियों का कारक बन गया, इसलिए बीसवीं शताब्दी में संयुक्त राष्ट्र एवं अन्य वैश्विक संगठनों ने पर्यावरण की सुरक्षा पर बल देना शुरू किया, साथ ही ओजोन परत के संरक्षण के लिए वर्ष 1985 में वियना सम्मेलन हुआ एवं इसकी नीतियों को विश्व के अधिकतर देशों ने वर्ष 1988 में लागू भी किया । वर्ष 1987 में ओजोन परत मॉण्ट्रियल समझौता हुआ । आज विश्व के 197 राष्ट्रों के साथ-साथ भारत भी इस समझौते को ईमानदारीपूर्वक निभा रहा है ।
अन्तर्राष्ट्रीय समझौते का पूर्णरूपेण पालन किए जाने पर वर्ष 2060 तक ओजोन परत के ठीक हो जाने की सम्भावना जताई जा रही है । इस विषय से सम्बन्धित कई और समझौते एवं सम्मेलन विश्व के कई अन्य शहरों में भी किए गए ।
वर्ष 1997 में जापान में क्योटो प्रोटोकॉल में तय किया गया कि विकसित देश पृथ्वी के बढ़ते तापमान से दुनिया को बचाने के लिए अपने यहाँ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाएंगे । दिसम्बर, 2009 में सम्पन्न कोपेनहेगन सम्मेलन का उद्देश्य भी पर्यावरण की सुरक्षा ही था ।
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वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, परिवहन, इमारत एवं औद्योगिक क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता के उपाय अपनाकर प्रतिवर्ष भारत सहित अमेरिका, चीन, ब्राजील, यूरोपीय सब एवं मैक्सिको में वायु प्रदूषण से होने बाली एक लाख मौतों पर वर्ष 2030 तक रोक लगाई जा सकती है । संयुक्त राष्ट्र के जनरल असेम्बली के 69वें सत्र (2014) में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सतत विकास की पूंजी कहा गया ।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून ने इस सत्र में कहा था- ”शिक्षा मौलिक अधिकार होने के साथ-साथ प्रत्येक राष्ट्र की समृद्धि का आधार है । माता-पिता को स्वास्थ्य एवं आहार के बारे में जानकारी होनी चाहिए यदि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे एक अच्छी शुरूआत करें, जिसके वे अधिकारी है । उन्नत राष्ट्र कुशल एवं शिक्षित कर्मचारियों पर निर्भर रहता है । गरीबी दूर करने की चुनौतियाँ स्वीकारने एवं जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा आने वाले दशकों में उचित सतत विकास हेतु हमें मिल-जुलकर काम करना होगा ।”
भारत सरकार द्वारा भी इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जिनमें वनारोपण एवं सामाजिक वानिकी, मृदा संरक्षण, परती भूमि विकास, वाटर शेड प्रबन्धन, शुष्क कृषि विकास की अवधारणाएँ प्रमुख हैं ।
भारत सरकार के केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने 16 जनवरी, 2001 को आयोजित बैठक में इम्फाल (मणिपुर) में जैव-प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्तशासी संस्थान की स्थापना को अनुमोदित किया, जिसे वर्ष 2001 में मणिपुर सोसाईटी पंजीकरण अधिनियम, 1989 के अधीन पंजीकृत कराया गया ।
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इसे संक्षिप्त रूप में आईबीएसडी कहा जाता है । इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु जैव-प्रौद्योगिकी हस्तक्षेपों के माध्यम से जैव-संसाधनों का विकास तथा उनका सतत प्रयोग करना है । भारत में सतत बिकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं बहुपक्षीय पर्यावरणीय करारी के लिए भारत सरकार के केन्द्रीय अभिकरण की भूमिका पर्यावरण एवं बन मन्त्रालय निभाता है । इसने जलवायु परिवर्तन एवं ओजोन परत संरक्षण से लेकर सतत बिकास से सम्बन्धित विश्वभर में आयोजित कई सम्मेलनों एवं समझौतों में अपनी सक्रिय भागीदारी एवं भूमिका निभाई है ।
वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में हुए मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हमारी पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा था- ”गरीबी दूर करना संसार के लिए पर्यावरण नीति के लक्ष्य का एक अभिन्न हिस्सा है ।”
साझा ग्रह, वैश्विक नागरिकता एवं अन्तरिक्षयान पृथ्वी की अन्त सम्बद्ध अवधारणाएँ मात्र पर्यावरण मुद्दे तक सीमित न होकर तब पूर्ण होती है, जब पृथ्वी के सभी लोग पर्यावरणीय सुरक्षा और मानव बिकास की साझा एवं अन्त सम्बन्धित जिम्मेदारियों को एक साथ समान रूप से निभाएं ।
भारत में सतत विकास के लिए कृत-संकल्प अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान ‘द एनर्जी एण्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ द्वारा आयोजित ‘दिल्ली सस्टेनेबल डेबलपमेण्ट समिट’ (DSDS) की विश्व स्तर पर पहचान बन चुकी है । फरवरी, 2011 में आयोजित दिल्ली सतत बिकास सम्मेलन (डीएसडीएस) की विषय-वस्तु ‘टैपिंग लोकल इनीशिएटिव्स एण्ड टैकलिंग इनर्शिया’ थी ।
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इस विश्वस्तरीय सम्मेलन में भाग लेने हेतु कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं नोबल पुरस्कार विजेता जोसेफ स्टिग्लिट्ज व विश्व के अन्य जाने-माने बिद्वानों के अलावा अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई, डॉमिनिकन के राष्ट्रपति लियोनेल फर्नांडीज रेना और सेशल्स के राष्ट्रपति री जेम्स एलिक्स माइकल ने भाग लिया ।
इस सम्मेलन का उद्घाटन हमारे तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह ने किया था । वर्ष 2012 में इस सम्मेलन की विषय-वस्तु ग्रोटेक्तिग द ग्लोबल कॉमंस : 20 इयर्स पोस्ट रियो थी । नई दिल्ली में आयोजित इस सम्मेलन में भी राष्ट्राध्यक्षों, मन्त्रियों सहित विश्वस्तरीय शिक्षाविद् शामिल हुए थे ।
टेरी द्वारा आयोजित वर्ष 2014 सम्मेलन की विषय-वस्तु थी- ”सबको भोजन, पानी व ऊर्जा, सुरक्षा उपलब्ध कराना ।” नई दिल्ली में 6 से 8 फरवरी तक चले इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव के अन्नान, सेशल्स के राष्ट्रपति जेए माइकल, गुयाना के पूर्व राष्ट्रपति भारत जगदेव आदि अन्य विशिष्ट लोगों ने भाग लिया ।
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इस दौरान कैलिफार्निया एयर रिसोर्सेज बोर्ड (CARB) के चेयरमैन मेरी निकोल्स ने कहा कि वर्ष 1991 में भारत में 20 मिलियन वाहन थे, वर्ष 2011 में वाहनों की संख्या बढ़कर 140 मिलियन हो गई और वर्ष 2030 तक इनकी संख्या 400 मिलियन तक हो जाने की सम्भावना है ।
इस सम्मेलन में वाहनों एवं अन्य स्रोतों से धुएँ के रूप में उत्सर्जित होने बाले प्रदूषित पदार्थों के कारण भारत के शहरों में प्रदूषण की मात्रा में अप्रत्याशित वृद्धि पर चिन्ता जताई गई । टेरी की इस रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए भारत के विख्यात पर्यावरणविद् एवं टेरी के महानिदेशक श्री आरके पचौरी ने भारत सरकार को कैरोसिन तेल पर सब्सिडी न देकर सौर लालटेन पर सप्सिडी दिएजाने का सुझाव दिया है ।
रिपोर्ट में सुझाए गए प्रस्तावों पर केन्द्र सरकार ने सकारात्मक रवैया अपनाते हुए पाँच वर्षों में देश में 26 सौर पार्क निर्माण करने की योजना बनाई है । इन सोलर पार्क के द्वारा 22,100 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा ।
केन्द्र सरकार के इस प्रस्ताव पर 12 राज्यों द्वारा स्वीकृति भी दे दी गई है । इसके साथ ही सरकार पेट्रोल चालित दुपहिये वाहनों की जगह साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु साइकिल की खरीद पर कर में छूट देने पर भी विचार कर रही है । सरकार ‘सबका साथ, सबका बिकास’ की योजना को अमल में ला रही है ।
सतत बिकास के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है:
1. इसके लिए सबसे पहले तो हमें जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने की आवश्यकता है, क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि होने से स्वाभाविक रूप से जीवन के लिए अधिक प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है ।
2. शिक्षा प्रणाली में सुधार एवं विकास किए बिना हम सतत बिकास की अवधारणा से लोगों को न तो अवगत करा सकते हैं और न ही इसे लागू कर सकते हैं ।
3. यदि हम चाहते है कि प्रदूषण कम हो एवं पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ सन्तुलित विकास भी हो, तो इसके लिए हमें नवीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना होगा ।
4. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा तब ही सम्भव है, जब हम इनका उपयुक्त प्रयोग करें ।
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5. उपभोक्तावादी संस्कृति पर नियन्त्रण किए बिना हम सतत बिकास की अवधारणा के अनुरूप कार्य नहीं कर सकते ।
6. हमें प्रत्येक कार्य करते समय प्रदूषण नियन्त्रण की बात को नहीं भूलना चाहिए ।
7. हमें आम लोगों की प्रवृत्ति में परिवहन लाते हुए उन्हें समझाना होगा कि जब आवश्यक हो तब ही बिजली खर्च करें तथा ऊर्जा के अन्य संसाधनों का दुरुपयोग न करें ।
बिकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं है, अपितु एक-दूसरे के पूरक है । सन्तुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा । हमारा अस्तित्व एवं जीवविकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना भी आवश्यक है, किन्तु ऐसा करते समय हमें सतत बिकास की अवधारणा को अपनाने पर जोर देना चाहिए ।
सतत विकास में आर्थिक समानता, लैंगिक समानता एवं सामाजिक समानता के साथ-साथ पर्यावरण सन्तुलन भी निहित है, इसलिए कहा जाता है कि मानव का वास्तविक कल्याण सतत बिकास द्वारा ही सम्भव है । महात्मा गाँधी ने कहा था- ”हमारे उद्योग मानव प्रधान होने चाहिए न कि मशीन प्रधान ।” सतत बिकास के सन्दर्भ में उनकी यह बात हमें बहुत कुछ सिखाती है ।