सभ्यता के विकास के साथ कविता का पतन अवश्यंभावी है (निबन्ध) | Essay on As Civilization Advances Poetry Necessarily Declines in Hindi!
यह सर्वविदित है कि कविता किसी देश की सभ्यता का सूचक होती है । उत्कृष्ट साहित्य देश की महानता की कसौटी होता है । इसी कारण ग्रीक और रोमन सभ्यता को सम्मान दिया जाता है ।
प्राचीन भारत की साहित्यिक महानता के कारण ही भारतीय संस्कृति को आदर और गर्व की दृष्टि से देखा जाता है । इसलिए यह विचित्र विरोधाभास है कि आज की आधुनिक सभ्यता और कविता के बीच की खाई बहुत बढ़ गई है । वास्तव में ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हो रहा है कविता का स्तर गिरता जा रहा है ।
इस आश्चर्यजनक प्रक्रिया को जानने से पहले कविता और सभ्यता दोनों का तात्विक परीक्षण आवश्यक है । कविता और सभ्यता दोनों असाधारण अवधारणाएं है और व्याख्या की अपेक्षा रखती हैं । कविता मानव के उच्च विचारों और भावनाओं का सुन्दर और संगीतमय शब्दों में अभिव्यक्ति है ।
कविता मानव-मन की भाषा है और सत्यं शिवं सुन्दरं के प्रति मानव की आसक्ति को व्यक्त करती है । सौंदर्य और शिव के उदात्त मूल्यों की प्राप्ति ही कविता का लक्ष्य है । कविता में मानव मात्र के दुख-सुख, पीड़ा, घृणा, प्रेम, आशा और भय का अंकन होता है और एक उदात्त संसार – प्रेरणादायक, ईश्वरीय और आदर्श जगत का चित्रण होता है ।
एक श्रेष्ठ कविता में प्रेरणा और औदात्य के तत्व होते हैं । यह मानव को संकीर्णताओं से अलग करके उदात्त मूल्यों और आदर्शो के सम्मुख खड़ा कर देती है । कवि का हृदय आम आदमी से अधिक संवेदनशील होता है । वह किसी भी अमूर्त का मूर्तिकरण कर सकता है । इसीलिए कवि को सर्जक, दृष्टा और ईश्वरीयप्रेरित जीव माना गया है ।
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि कविता का विकास उन्मुक्त कल्पना और भावनाओं के वातावरण में होता है । कवि के सुख-दुख को अभिव्यक्त करने वाली कविता सर्वश्रेष्ठ होती है । कृत्रिमता, स्थूल सौंदर्य की ओर उम्मुख कविता बेमानी होती है । इनके प्रति आकर्षण से ही कविता का झरना सूख जाता है । जीवन की जटिलता, अभा, दुख और विरह के कारण की कवि के हृदय में कविता का जन्म होता है ।
रमणीय जगत के प्रति रहस्यानुभूति, रहस्यों को सुलझाने की जिज्ञासा, प्राकृतिक सौन्दर्य, साहस की भावना और जीवन के प्रति उत्साह की प्रवृति आदि कुछ ऐसे तत्व हैं, जो कवि को कविता के लिए प्रेरित करते हैं । दूसरी ओर यदि संसार में कुंठा, नैराश्य, उदासीनता और निरन्तर संघर्ष जहाँ देखने और सोचने की फुर्सत भी नहीं होती की स्थिति में काव्य-प्रवाह क्षीण हो जाएगा, कविता मर जाएगी ।
मानव सभ्यता के आरंभिक युग की कविता में उपरोक्त वर्णित तत्व विद्यमान नहीं थे, वह युग मानव की बाल्यावस्था थी । सभ्यता में विकास के साथ-साथ मानव जाति ने भी उन्नति की । उसके सामने फैला विस्तृत जगत उसके लिए नया और आकर्षित करने वाला था । उसके भारत जिज्ञासा और कौतूहल साहसिक और उत्साही तथा ज्ञात- अज्ञात दोनों प्रकार की संभावनाओं की कल्पना करती थी । परी कथाओं या भूत की कथाओं ने उसकी कल्पना को ऊँचाइयाँ प्रदान की ।
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विश्व के इतिहास में काव्य के बाद गद्य तथा अन्य साहित्यिक विद्याओं का विकास हुआ । हमारा प्राचीन साहित्य छंदोबद्ध है, सभी विचार काव्यवद्ध रूप में प्रस्तुत है । अधिकांश सभी आरंभिक प्रवित्र और धार्मिक ग्रंथ-वेद वाइबल, कुरान छंदोबद्ध ही हैं । यहां तक कि अन्य विषयों से संबन्धित पुस्तकें भी छंदों में ही लिखी गई । धीरे-धीरे गद्य का विकास हुआ और काव्य की कल्पनात्मकता, लयबद्धता, भावात्मकता का स्थान जीवन के यथार्थ और बौधिकता ने गद्य रूप में ग्रहण किया ।
इंग्लैंड में विक्टोरिया युग में स्वच्छन्दतावाद को बढ़ावा मिला, यह पाश्चात्य साहित्य का उत्कर्ष युग है, इस युग का कविता में काव्यात्मकता और संगीतात्मकता का अनूठा सम्मिश्रण है । 18वीं शताब्दी का साहित्य बौधिकता और तर्क पर आधारित है । यहीं से गद्य का विकास काल प्रारंभ हुआ । ग्रीक, लैटिन, संस्कृत, पारसी आदि प्राचीन भाषाओं में गद्य की अपेक्षा कविता पर अधिक बल दिया गया है ।
काव्य-जगत की इन सभी प्रवृतियों का सम्बन्ध सभ्यता के विकास से है । सभ्यता के आरंभिक युग में मानव का जीवन असभ्य था । प्रागैतिहासिक युग में मानव जीवन भावनाओं और संबेदनाओं पर आधारित था । उसका जीवन स्वच्छन्द था । सभ्यता का अनिवार्य तत्व मनुष्य के निजी-भाव संवेदनाओं का नियंत्रित रूप है ।
संस्कृति सभ्यता का अभिन्न अंग है । संस्कृति से तात्पर्य मनुष्य का समाज में संयमित जीवन और अन्य लोगों की भावनाओं का ध्यान रखना है । अपनी भावनाओं पर नियंत्रण के द्वारा ही इस प्रकार अनुशासन जीवन में आ सकता है । दूसरे शब्दों में सभ्यता का अर्थ मानव चरित्र में विवेक की प्रमुखता की प्रतिस्थापना है । वैचारिक उन्नति के आधार पर ही मनुष्य समाज में रहने के ढंग, अपने नैतिक सामाजिक कर्तव्यों, समाज में अपने स्थान के सम्बन्ध में सचेत हो सकता है ।
स्वभावत: मानव स्वार्थी होता है, लेकिन बुद्धिवाद अथवा सभ्यता के माध्यम से ही उसमें अन्य सामाजिक प्राणीयों के प्रति संयोग और सामंजस्य की भावना आती है । धीरे-धीरे उसके अन्दर नैतिक गुण और आदर्श पल्लवित होते हैं, जो उसे संकीर्णताओं से उपर उठाने में सहायक होते है ।
सभ्यता की इस आयाम की पुष्टि एतिहासिक तथ्यों से होती है । एक समय ऐसा भी था जबकि मनुष्य अपने कबीले के मुखिया या सम्प्रदाय के प्रधान के प्रति निष्ठावान था, लेकिन अब ये सभी आदर्श समाप्त हो गए है । आज मनुष्य राष्ट्रीयता तथा अंतरराष्ट्रीयता पर विचार करता है । पहले पुरुष-वर्ग नारी को दासी मात्र समझता था, लेकिन आज दोनों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त है ।
इसी प्रकार कमजोर राज्यों पर अपना अधिकार जमा कर अपने साम्राज्य का विस्तार करने की भावना समाप्त हो गई है । प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार है । इन साक्ष्यों द्वारा सिद्ध होता है कि बौद्धिकता के विकास से मनुष्य में भावनाओं, संवेदनाओं की उच्छृंखलता समाप्त हुई और बुद्धि की सर्वोच्चता आई ।
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मानव में बुद्धि का प्रभुत्व सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों रूपों से उत्तम है । तथापि इसके कारण काव्य का कल्पना जगत चूर-चूर हो गया । शुष्क और बौद्धिक विचार, नम्र संवेदनशील भावनाओं के बिल्कुल विपरीत थे । एक भावुक प्रेमी अपनी प्रेमिका को सौन्दर्य का प्रतीक मानता है, जबकि शुष्क बौद्धिकतावादी को वैसी नजर नहीं आती ।
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पुराने जमाने में होने वाले युद्ध भी साहसिकता, क्षत्रियत्व और उत्साह की भावना पर आधारित होते थे, इन्हीं से कविता को प्रेरणा प्राप्त होती थी । लेकिन एक शुष्क विश्लेषक के लिए प्रेम, साहसिक कार्य और शौर्य कुछ मायने नहीं रखता । इस प्रवृत्ति के कारण मनुष्य में मात्र विश्लेषण, असाहसहीनता और हृदयहीनता का विकास होता है ।
बुद्धिवाद की उन्नति का अत्यंत महत्वपूर्ण परिणाम वैज्ञानिकता का विकास है । विज्ञान मुख्यत: किसी वस्तु के प्रति निष्पक्ष, वस्तुपरक और पूर्णत: तार्किक दृष्टिकोण है । एक वैज्ञानिक की विशेषताएं कवि से एकदम पृथक होती है । एक सुन्दर फूल को देखकर वैज्ञानिक और कवित दोनों की प्रतिक्रियाएं पूर्णत: पृथक होंगी ।
फूल को देखकर वैज्ञानिक उसका विश्लेषण और परिच्छेदन करने लगेगा जबकि कवि उस फूल के सौन्दर्य और सर्जक की महानता की प्रशंसा में लीन हो जाएगा । चन्द्रमा विश्व के सभी कवियों के लिए सौंदर्य का प्रतिमान और उत्प्रेरणा का प्रतीक है, जबकि वैज्ञानिकों के लिए यह आकाश में लटकता खगोलीय पिंड है ।
ग्रीक, रोम और भारत के लोगों के मन में देवी-देवताओं के प्रति असीम श्रद्धा की भावना है । जबकि वैज्ञानिक अपने तर्को के आधार पर इन विश्वासों को मानव मन की अज्ञानता और कौतूहल की उपज मानकर अमान्य कर देते हैं ।
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कविता जीवन का प्रतिबिंब ही नहीं बल्कि पलायन भी है । कवि अपनी कविता के माध्यम से हमें आशा, उन्मुक्तता और सुखों के जगत में ले जाता है । यह जगत कवि की संवेदनाओं, भावनाओं का जगत होता है, साथ ही यह कवि के युग और वातावरण को भी सूचित करता है ।
यदि कवि के कल्पनाजगत और वास्तविक जगत में साम्य होता है तो कवि कर्म आसान हो जाता है । लेकिन आज विज्ञान के चरम विकास के कारण कवि की कल्पना पर आधारित आदर्श लोक और एकांत शुष्क वैज्ञानिकता के कारण नष्ट हो गया है जिससे कविता को गहरा आघात पहुँचा है ।
विज्ञान के विकास से मशीनों, यंत्रों का विकास हुआ है, इसका दुष्प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा है । उसके जीवन में यांत्रिकता आई है । आधुनिक मनुष्य अपने में ही व्यस्त और हमेशा जल्दी में रहता है । जीवन जटिलताओं और संघर्षो से भर गया है । विज्ञान के आविष्कारों से मानव को अधिक शारीरिक श्रम नहीं करना पड़ता, कई प्रकार की सुख-सुविधाएं विज्ञान ने प्रदान की है ।
आज मनुष्य जीवन की आपा-धापी में व्यस्त है, साहित्य तथा अन्य जीवन आदर्शो के बारे में चिन्तन करने का समय नहीं मिल पाता है । आधुनिक युग का दबाव और तनाव युक्त जीवन का बुरा प्रभाव कविता पर निश्चित रूप से पड़ा है ।
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इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि सभ्यता के इस चरम विकास के कारण मनुष्य स्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है । दो विश्वयुद्धों के कारण मानव जाति की सुरक्षा, आनंद और न्याय भावना खतरे में पड़ गई है । उसकी सभी आशाएं नष्ट हो गई है और वह नैराश्य और कुंठा ग्रस्त जीवन जी रहा है । यदि मानव-जीवन में प्रफुल्लता और आनंद, आशा और आकांक्षा नहीं होगी तो काव्य-प्रेरणा किस प्रकार उत्पन्न होगी।
कविता एक सृजनात्मक कला है; जो ईश्वरप्रदत्त प्रतिभा पर आधारित होती है । एक सच्चा कवि मात्र नक्काल नहीं बल्कि सृजक भी होता है । कविता आत्माभिव्यक्ति और आत्मसंतुष्टि को प्रदर्शित करने का माध्यम है । सभ्यता का विकास मशीनीकरण बौद्धिकता आदि के रूप में होने से कविता रूपी पक्षी के पंख कतर गए है । मशीनों के कारण सभी कलाएँ रूढ़िबद्ध और यांत्रिक हो गई है ।
पहले मनुष्य को संगीत सुनने या सीखने के लिए महान संगीतज्ञ के पास जाना पड़ता था, लेकिन आज वह अपनी कलात्मक अभिरूचि की पूर्ति ग्रामोफोन रिकार्ड लगाकर या रेडियो चला कर सकता है । अत: कला अध्ययन की प्रवृत्ति समाप्त होती जा रही है । अन्य ललित कलाओं मुख्य रूप से कविता का भी यही हाल है ।
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आज जीवन अनुशासित हो गया है और कला भी इसी ओर मुड़ती जा रही है । इस अनुशासन के कारण कविता की सृजनात्मकता समाप्त होती जा रही है । कविता की विडम्बना यह है कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ उसमें अवरोध उत्पन्न होते जा रहे है ।
शुष्क बौद्धिकता, आनंद और हर्ष की कमी, उत्साहहीनता, अंधी दौड़, कुंठा, असीम जटिलता और इन सब से अधिक यांत्रिकता के साम्राज्य के विकास से कविता पर बुरा प्रभाव पड़ा है । आज कविता की काव्यात्मकता नष्ट हो गई है, लेकिन आज के लोग इसी प्रकार की कविता की माँग करते हैं । इसमें कवि के जटिलताओं और व्यस्तताओं से भरे जीवन का नीरस और इतिवृत्तात्मक चित्रण होता है ।