समय का सदुपयोग पर निबंध |Essay on Proper Utilization of Time in Hindi!
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।।
मानव जीवन में समय का अत्यधिक महत्त्व है । समय को सही पहचानना ही समय का सदुपयोग है । समय निरन्तर गतिशील है । समय के साथ चलना प्रगति और रुकने का अभिप्राय मृत्यु हैं । मेसन ने कहा है- ”जिस प्रकार स्वर्ग का प्रत्येक अंश मूल्यवान होता है उसी प्रकार समय का प्रत्येक भाग बहुमूल्य होता है ।”
समय रथ-चक्र की भांति निरन्तर भागता रहता है । वह किसी के रोके नहीं रुकता । वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता । जैसे मुंह से निकली बात वापिस नहीं ली जा सकती, टूटे फूल को डाली से नहीं जोड़ा जा सकता, खेती के सूख जाने पर वर्षा का कोई लाभ नहीं होता, उसी प्रकार समय के निकल जाने पर किसी कार्य का कोई लाभ नहीं होता ।
जो समय को पहचानता है, समय उसे पहचान देता है । समय का सही सदुपयोग कर श्रीकृष्ण ने महाभारत में पाण्डवों को विजय- श्री दिलाई, श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने देश का सफलता पूर्वक संचालन किया, जगदीश चन्द्र बसु, थामस एडीसन, चन्द्रशेखर वेंकट रमन आदि ने महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज करके विश्व प्रसिद्धि प्राप्त की ।
समय के महत्त्व को न समझने अथवा समय के चूक जाने पर भयंकर परिणाम सामने आते हैं । जैसे-नेपोलियन की हार । समय पर सचेत न होने के कारण भारत को 200 वर्षों तक की अंग्रेजी गुलामी सहनी पड़ी । शेक्सपीयर ने भी कहा है- ”मैंने समय को बरबाद कर दिया और अब समय मुझे बरबाद कर रहा है ।”
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जीवन में प्रत्येक क्षण समय का महत्त्व है, लेकिन विद्यार्थी जीवन में इसका विशेष महत्त्व है । जो छात्र पड़ने के समय खेल-कूद और मौज-मस्ती करते हैं, वे फेल हो जाते हैं या कम अंकों से पास होते हैं । भविष्य में कुछ बनने की आशाएं धूमिल हो जाती हैं । वह छात्र जो प्रतिदिन पढ़ता है, अच्छे अंक प्राप्त कर निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर होता है, ऐसा छात्र ही नेता, दार्शनिक, वैज्ञानिक, इंजिनियर, डॉक्टर इत्यादि बनकर राष्ट्र की प्रगति में सहयोग देता हैं ।
समय की उपेक्षा कर व्यक्ति अकर्मण्य बनता है । जो व्यक्ति समय के साथ चलता है, लक्ष्मी उसके कदम चूमती है । उसे जीवन भर धन की हानि नहीं होती । इसके विपरीत जो व्यक्ति आलसी होते हैं समय पर कार्य नहीं करते वे दरिद्र और निर्धन रह जाते हैं ।
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कहा जाता है संस्कृत व्याकरण प्रणेता महर्षि पाणिनि अपने अध्ययन काल में पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे । एक दिन गुरू के धैर्य का बांध टूटा और उन्होंने उसे दण्डित करने के लिए बुलाया । पाणिनि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया । गुरू ने देखा कि उसके हाथ में विद्या रेखा ही नहीं है । गुरू ने उसे छोड़ दिया ।
अन्य छात्रों को जब ज्ञात हुआ तो उन्होंने उनकी हंसी उड़ाई । उन्होंने भाग्य को बदलने के लिए समय के एक-एक पल का उपयोग कर ‘अष्टाध्यायी’ नामक व्याकरण नामक ग्रंथ लिखा जो वर्तमान समय में भी अपनी गरिमा बनाए हुए है । कहने का तात्पर्य है कि समय का सदुपयोग कर व्यक्ति अपनी पहचान स्वयं बनाना है ।
प्रगतिशील राष्ट्र की उन्नति का मूल कारण समय का सदुपयोग करना ही है । व्यक्ति समय का सदुपयोग कर हर वस्तु को अपने अनुरूप कर लेता है । जैसे गरम लोहे को लुहार मनचाहा आकर देकर उसे अपने अनुरूप ढाल लेता है । एक-एक क्षण का जो व्यक्ति सही उपयोग करता है । उसके लिए संसार की दुर्लभ वस्तुएं भी सुलभ हो जाती है ।