सादा जीवन, उच्च विचार पर निबंध! Here is an essay on ‘Simple Living and High Thinking’ in Hindi language.
‘सादा जीवन, उच्च विचार’ जनसामान्य में प्रचलित एक सामान्य-सी सूक्ति है, लेकिन इसका अर्थ बहुत ही गूढ़ है । वास्तव में, यह जीवन को सफल और अर्थपूर्ण बनाने का रहस्य है ।
जो व्यक्ति इस रहस्य को जान जाते हैं, विश्व उनका अभिनन्दन करता है और उनके द्वारा प्रशस्त किए गए मार्ग का अनुकरण करता है । इस सूक्ति के महत्व के बारे में बात करने से पूर्व इसका अर्थ समझना अति आवश्यक है ।
इस सूक्ति के अर्थ को दो प्रकार से समझा जा सकता है । इसका एक अर्थ तो यह है कि सादगीपूर्ण जीवन उन्हीं लोगों का होता है, जो वैचारिक रूप से बहुत उच्च होते हैं अर्थात् विचारशील व्यक्तियों की एक सबसे बड़ी पहचान है- सादगी ।
इस सूक्ति का दूसरा अर्थ है कि जिनके विचार उच्च होते हैं, वे ही सादगी के महत्व को समझकर अपने जीवन के प्रत्येक अंग में सादगीपूर्ण आचरण करते हैं । इस सूक्ति को समेकित रूप से समझने का प्रयास किया जाए, तो वास्तव में दोनों बातें एक ही हैं ।
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सादगी और सफलता, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और इन्हीं के प्रभाव से व्यक्ति के आदर्श उच्च होते हैं । जिस व्यक्ति के आदर्श उच्च होते हैं, उसके विचार स्वतः ही उच्च हो जाते हैं । उच्च विचार वाले व्यक्ति ही आगे बढ़कर विश्व का नेतृत्व कर पाते हैं ।
अब, सबसे बड़ा प्रश्न है कि ‘सादगी’ वास्तव में है क्या ? क्या रहन-सहन और वेशभूषा सम्बन्धी मानक ही सादगी को परिभाषित करने के लिए पर्याप्त हैं ? इसका उत्तर है- नहीं । देखा जाए, तो इनके आधार पर सादगी को समझना काफी नहीं है ।
ऊपरी तौर पर देखा जाए तो रहन-सहन, खान-पान, पहनावे, कार्य-पद्धति आदि को ही सादगीपूर्ण जीवन के अन्तर्गत शामिल किया जाता है, परन्तु सादगी एक व्यापक विषय है या कहें कि एक प्रकार से जीवन जीने की शैली है ।
किसी भी प्रकार के आडम्बर को अपनाए बगैर जीवन जीना ही सादगी है, फिर वह चाहे रहन-सहन हो या कार्य-शैली । जो व्यक्ति सादगी का सही अर्थ समझ जाता है, उसके प्रत्येक कर्म और व्यवहार में इसकी झलक मिलती है ।
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यही सादगी व्यक्ति को उच्च विचारों की ओर अग्रसर करती है । टॉलस्टॉय, गौतम बुद्ध, महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानन्द, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, लालबहादुर शास्त्री, प्रेमचन्द आदि कुछ ऐसे महान् व्यक्ति हैं, जो ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ की कसौटी पर खरे उतरते हैं ।
इन लोगों के पास सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी या फिर इनके जीवन में ऐसे अवसरों की कोई कमी नहीं थी, जिनका लाभ उठाकर, ये सुविधा सम्पन्न बन सकते थे, परन्तु इन्होंने अपने जीवन में सादगी को अपनाया और अपने उच्च विचारों के कारण करोड़ों दिलों पर राज किया ।
टॉलस्टॉय ने अपने एक लेख में लिखा है- श्रम न करने बालों को रोटी खाने का अधिकार नहीं है- यह विचार एक धनी व्यक्ति के मन में कैसे आया ? एक समृद्ध परिवार से होते हुए भी गाँधीजी वस्त्रों के नाम पर एक धोती से ही काम चला लेते थे ।
आखिर ऐसा क्यों ? इन दोनों प्रश्नों का उत्तर एक ही है और वह है- सादगी के कारण । मानव का उत्थान इसी में निहित है । सादगी से चरित्र उज्ज्वल बनता है और विचारों में शुद्धता आती है, जिसके परिणामस्वरूप मानसिक स्तर ऊँचा उठता है ।
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जिस व्यक्ति के विचार ही ऊँचे न हों वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकता । जो व्यक्ति सादगी का आश्रय नहीं लेता, वह सांसारिक द्वेष-ईर्ष्या, लड़ाई-झगड़े, स्वार्थ आदि से घिरा रहता है, जिनके कारण उसके विचार समृद्ध नहीं हो पाते और न ही उसकी आत्मा ऊपर उठ पाती है ।
अन्ततः ऐसा व्यक्ति इस दुनिया में मात्र भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाता है । निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि यदि आप अपने जीवन को प्रासंगिक बनाना और दूसरों की तुलना में ऊँचा उठाना चाहते हैं, तो इसकी एकमात्र कसौटी ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ है ।
आज विश्व में भौतिक, आर्थिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में बहुत प्रगति हो रही है । मनुष्य धन-सम्पत्ति कमाने के लिए दिन-रात पागलों की तरह परिश्रम कर रहा है, परन्तु इसके कारण सादगी मात्र एक अवधारणा बनकर रह गई है और जब सादगी ही नहीं रही, तो उच्च विचार कैसे होंगे ?
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यही कारण है कि आज समाज में हिंसा, अनैतिकता, असंवेदनशीलता आदि सम्बन्धी घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं । कई घटनाएँ तो हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या वास्तव में हम मानव हैं ? आखिर क्यों हम पशुतुल्य बनते जा रहे हैं, जबकि हममें अपने विचारों का विकास करने की क्षमता विद्यमान है ?
आधुनिक समय में बहुत सारे लोगों के लिए ‘सादगी’ एक हास-परिहास का विषय बन चुका है, परन्तु आज हमारे समाज को ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ में निहित आदर्श को अपनाने की आवश्यकता है । इसी में पूरे विश्व का कल्याण और उत्थान निहित है ।