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सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध | Essay on Simple Living and High Thinking in Hindi!

प्रस्तुत विषय एक बहुत ही प्रचलित मुक्ति हें, जो परंपरा से आज तक मान्य होती चली आ रही है । इसका सामान्य अर्थ यही है कि मादा जीवन व्यतीत करना चाहिए तथा अपनी भावनाओं को महान् बनाए रखना चाहिए । देखा जाए तो प्रत्येक देश व काल में सादगी को महत्त्व दिया जाता रहा है ।

महान् व्यक्तियों का किसी भी देश में अभाव नहीं रहा है । कुछ व्यक्तियों की ख्याति संसार भर में फैल जाती है । देशभक्त हों या विज्ञानी, गजनीतिज्ञ हों या साहित्यकार अथवा दार्शनिक- सभी में कुछ-न-कुछ विशेषता अवश्य होती है । ऐसे व्यक्ति संसार में कम ही हैं, जो जन्म से ही विख्यात होते है । अधिकांश यह ख्याति उन्हें अपने चरित्र-बल और परिश्रम से ही प्राप्त होती है ।

संसार में ऐसे व्यक्ति कम नहीं, जो एक साधारण कुल में जनमे, परंतु अपने सदगुणों नथा परिश्रम से बहुत ऊँचे उठ गए । यों तो करोड़ों व्यक्ति संसार में जन्म लेते है और मृत्यु को प्राप्त होते हैं, परंतु इस संसार में सभी का नाम अमर नहीं रहता ।

संसार में वे ही लोग अमर होते है जिनकी आत्मा महान् होती है और जो संसार में अपने पीछे ऐसे आदर्श छोड़ जाते हैं, जिनसे प्रेरणा पाकर अगली पीढ़ी अपना मागदर्शन पा सके । अधिकांशत: वे मध्यम वर्ग के घरों में पलते हैं, परंतु इतने सादे जीवन में भी उनमें उच्च विचार जन्म लेते हैं और उन्हीं में वे विकसित भी होते हैं ।

जीवन में सादगी लाना और तुच्छ विचारों को हृदय से दूर कर देना अपने आप में महान् गुण है । अपने पर गर्व करना एक बड़ा दोष है । जीवन को सादा बनाने के लिए इस दोष का दूर करना नितांत आवश्यक है । सादा जीवन व्यतीत करनेवाला विनयशील, शिष्ट तथा आत्मनिर्भर होता है ।

मनुष्य में विनय, औदार्य, सहिष्णुता, साहस, चरित्र-बल आदि गुणों का विकास होना अति आवश्यक है । इनके बिना उसका जीवन सफल नहीं हो सकता । इन गुणों का प्रभाव उसके जीवन और विकास पर अवश्य पड़ता है । रहन-सहन, वेशभूषा, आचार- विचार का एक स्तर होना चाहिए । बड़े-से-बड़े कष्ट में भी धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए; अपव्ययी नहीं होना चाहिए और विपुल मात्रा में धन होने पर भी धन का अपव्यय नहीं करना चाहिए ।

कोई भी विद्यार्थी, जो किसी विश्वविद्यालय में शिक्षा पाता है और जिसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, उसके लिए यही उचित है कि वह मितव्ययी बने और अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखे । कहने का तात्पर्य यह है कि वह अपने जीवन को यथासंभव सादा बनाए ।

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किंतु ऐसी स्थिति में यदि वह अपने को दीन, गरीब एवं असहाय समझता है और अपने स्वाभिमान को कुंठित होने देता है तो यह उसकी भूल है । ऐसा कौन व्यक्ति होगा, जो पूज्य बापू को न जानता हो ! महात्मा गांधी कितनी सादी वेशभूषा में रहते थे; लेकिन उनके विचार इतने महान् थे कि उनके कारण वे समस्त संसार में वंदनीय हो गए । गांधीजी अपने हाथ से अपना काम करने में गौरव अनुभव करते थे । जीवन भर वे लोगों को आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा देते रहे ।

प्रसिद्ध समाज-सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर के जीवन में कितनी सरलता थी, उसका एक उदाहरण देखिए । एक बार एक अंग्रेज को ईश्वरचंद्र विद्यासागर से मिलना था । उसके साथ कुछ सामान था । स्टेशन पर उसे ईश्वरचंद्र मिल गए वे इतने साधारण कपड़े धारण किए हुए थे कि कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वे इतने बड़े विद्वान् हैं ।

उस अंग्रेज ने उन्हें समझा कि सामान ढोनेवाला कोई कुली हें और उनसे बोला, “ईश्वरचंद्र विद्यासागर के मकान तक हमारा सामान ले चलो ।” ईश्वरचँद्र ने कहा, ”बहुत अच्छा !” जब वे घर पहुँचे तब सामान रखकर ईश्वरचंद्र बड़ी विनम्रता से बोले, ”कहिए क्या आज्ञा है ? मैं ही ईश्वरचंद्र हूँ ।”

यह सुनकर वह अंग्रेज बहुत लज्जित हुआ और उसने उनसे अपनी भूल के लिए क्षमा माँगी । संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति वाशिंगटन के पिता बहुत गरीब थे । वह लकड़ियाँ बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया करते थे । वह इतने गरीब थे कि वाशिंगटन को पढ़ा-लिखा भी नहीं सकते थे । किंतु वाशिंगटन के विचार उच्च कोटि के थे । उन्होंने पढ़ाई को जीवन का एकमात्र उद्‌देश्य बना लिया था ।

इसलिए वह किसी प्रकार पुस्तकों का प्रबंध करके रात में सड़क के किनारे बिजली की रोशनी में बैठकर पढ़ा करते थे । एक दिन ऐसा आया कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति बने । निष्कर्ष यह है कि मनुष्य को अपना जीवन सादा और विचार महान् बनाने चाहिए । उत्तम जीवन की सफलता का यही रहस्य है ।

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