रेडियोधर्मी प्रदूषण पर निबंध | Rediyodharmee Pradooshan Par Nibandh! Essay on Radioactive Pollution in Hindi.
Essay # 1. रेडियोधर्मी प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Radioactive Pollution):
निःसंदेह मानव ने वैज्ञानिक प्रगति के माध्यम से परमाणु ऊर्जा के रूप में शक्ति का भंडार तथा एक विध्वंसक हथियार ‘परमाणु बम’ प्राप्त किया है । परमाणु शक्ति का आधार रेडियोधर्मी खनिजों के विखण्डन की प्रक्रिया है ।
यह जहाँ एक ओर अथाह शक्ति का स्रोत है तो दूसरी ओर किसी कारण से विस्तीर्ण हुई रेडियोधर्मिता एक ऐसा प्रदूषण फैलाती है जो अन्य सभी प्रदूषणों से अधिक हानिकारक और भयानक है । जिसका न केवल तात्कालिक प्रभाव पड़ता है अपितु एक लंबे समय तक बना रहता है ।
रेडियोधर्मिता से उत्पन्न हुआ प्रदूषण ही रेडियोधर्मी प्रदूषण या नाभिकीय प्रदूषण कहलाता है । रेडियोधर्मिता के अनेक स्रोत हैं, वे प्राकृतिक भी हैं, जैसे- ब्रह्माण्ड किरणों द्वारा, पृथ्वी एवं विभिन्न पदार्थों द्वारा तथा मानवीय-जिसमें प्रमुख हैं, परमाणु शक्ति, उद्योग एवं प्रयोगशालायें, एक्स-रे तथा अन्य वस्तुएँ जो विकिरण विस्तीर्ण करती हैं ।
इन सभी में सर्वाधिक हानिकारक एवं प्रदूषक है परमाणु शक्ति से विकीर्ण तथा अपशिष्ट रेडियोधर्मी पदार्थ, क्योंकि ये पदार्थ कितने भी सूक्ष्म कणों के रूप में हों, सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में बने रहते हैं तथा मानव, अन्य जीव जंतुओं एवं वनस्पति को प्रदूषित करते रहते हैं ।
रेडियोधर्मी पदार्थों का अस्तित्व कुछ वर्षों से लाखों वर्षों तक होने के कारण, इनसे विकीर्ण होने वाली किरणों से अत्यधिक हानि की संभावना होती है । रेडियोधर्मी पदार्थों के विघटन के फलस्वरूप जो विकिरण उत्पन्न होती है उसके दो प्रकार होते हैं- प्रथम- विद्युत चुम्बकीय विकिरण जो भौतिक स्वरूप में प्रकाश के समान होती है तथा द्वितीय- कणिकीय विकिरण । जिसमें एक या अधिक प्रकार के परमाणु होते हैं, जैसे- इलेक्ट्रोन, प्रोटीन, न्यूट्रोन । इन दोनों ही प्रकार के विकिरण से जीव-जगत् को हानि होती है ।
Essay # 2. नाभिकीय अपशिष्ट (Nuclear Wastes):
वर्तमान समय में परमाणु शक्ति के उपयोग में वृद्धि होने से अपशिष्ट पदार्थों में भी वृद्धि हो रही है और ये अपशिष्ट अल्पमत मात्रा में भी अत्यधिक प्रदूषण के कारक बन जाते हैं ।
नाभिकीय अपशिष्ट तीन प्रकार के होते हैं:
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(i) वे अपशिष्ट जो यूरेनियम धातु की खदानों से बचे रह जाते हैं । इस बचे हुए भाग से एक ओर गामा किरणें विकसित होती हैं, साथ में राडोन गैस उत्पन्न होती है जो स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है क्योंकि यह श्वास के साथ फेफड़ों में पहुँच जाती है ।
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(ii) परमाणु भट्टी से विघटित पदार्थ के रूप में होती है । इसमें उपयोग में ली गई छड़ें होती हैं जो रेडियोधर्मिता से युक्त होती हैं तथा अत्यधिक हानिकारक अपशिष्ट होती हैं ।
(iii) कुछ क्रियात्मक उत्पाद जो रेडियोधर्मी पदार्थ के संपर्क में आकर रेडियोधर्मी हो जाती हैं, जैसे जो द्रव ठंडे करने के लिये प्रयुक्त किये जाते हैं वे भी रेडियोधर्मिता ग्रहण कर लेते हैं ।
रेडियोधर्मिता के स्तर के आधार पर नाभिकीय अपशिष्टों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है- निम्न स्तरीय, मध्यम एवं उच्च स्तरीय । निम्न स्तरीय अपशिष्ट वे होते हैं जो तरल रूप में होते हैं, जिनमें नाभिकीय रेडियोधर्मिता होने से जल में प्रवाहित कर दिया जाता है, यद्यपि यह भी हानि पहुँचाती है ।
मध्यम श्रेणी अपशिष्ट वे होते हैं जो घुलते नहीं अपितु उन्हें विशेष प्रक्रियाओं से सुरक्षित समाप्त किया जा सकता है अथवा दफना दिया जाता है जबकि उच्च श्रेणी के अपशिष्ट नाभिकीय ईंधन की पुन: प्रक्रिया से उत्पन्न होते हैं और इनके सुरक्षित समापन अथवा संग्रहण के संबंध में निरंतर शोध हो रही है । नाभिकीय अपशिष्टों को मरुस्थल की रेत में गहराई पर दबा देना अथवा समुद्र की गहराई में डुबा देना पर्याप्त नहीं है और यह समस्या आज भी गंभीर बनी हुई है ।
Essay # 3. रेडियोधर्मी प्रदूषण का प्रभाव (Impact of Radioactive Pollution):
रेडियोधर्मिता से पर्यावरण प्रदूषण अत्यधिक हानिकारक होता है, जो मानव जाति के लिये खतरा बन गया है । आणविक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण कर मनुष्य ने अपने विनाश का अस्त्र स्वयं तैयार कर लिया है जिसका प्रमाण हम द्वितीय विश्व युद्ध में देख चुके हैं । जब 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त, 1945 को नागासाकी पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराये गये और उसके फलस्वरूप विनाश का जो तांडव नृत्य हुआ वह आज भी मानव को सचेत करता रहता है ।
हजारों व्यक्ति मौत के मुँह में उसी क्षण समा गये, लाखों आज तक उस विभीषिका का परिणाम भुगत रहे हैं और वहाँ का पर्यावरण इतना अधिक रेडियोधर्मिता ये युक्त हो गया कि अभी भी उसका प्रभाव देखा जा सकता है ।
मनुष्य, जीव-जंतु, वनस्पति, जल, वायु सभी उस प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं । इस परमाणु बम का प्रारंभ अर्थात् उसे विकसित किये अधिक समय नहीं हुआ था । किंतु आज उससे कई गुना अधिक शक्तिशाली बमों का विकास हो चुका है, जिनसे होने वाली प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष हानि का अनुमान हम नहीं लगा सकते ।
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परमाणु अस्त्रों का नियमित परीक्षण चाहे वो अमेरिका द्वारा किया गया हो अथवा फ्रांस द्वारा वह रेडियोधर्मी प्रदूषण का कारण है । प्रशांत महासागर का वह भाग जहाँ अधिकांश परीक्षण किये जा रहे हैं जल एवं वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न कर रहा है ।
वहाँ जल जीव असंख्य की संख्या में मर जाते हैं तथा विभिन्न द्वीपों के निवासियों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है । वर्तमान में परमाणु ऊर्जा का प्रयोग विद्युत उत्पादन हेतु किया जा रहा है । परमाणु बिजलीघर का प्रारंभ 1951 में हुआ और आज विश्व में लगभग 450 परमाणु विद्युत उत्पादक संयंत्र हैं जो न केवल विकसित देशों में अपितु भारत जैसे विकासशील देशों में भी विद्युत उत्पादन कर रहे हैं तथा यह अनुमान है कि वर्ष 2000 तक 60 से 70 प्रतिशत विश्व का विद्युत का उत्पादन परमाणु ऊर्जा से होने लगेगा ।
किंतु इसके साथ ही रेडियोधर्मिता का तात्कालिक एवं दूरगामी खतरा भी इससे हैं । एक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि परमाणु संयंत्रों के निकट के निवासियों पर विकिरण का प्रभाव 1 से 10 Milligrams प्रतिवर्ष होता है । इसे रोकने के अनेक प्रयत्न भी किये गये हैं । अत्यधिक सुरक्षा एवं सावधानी के उपरांत भी परमाणु संयंत्र से जरा भी रिसाव भयंकर दुर्घटना का कारण बन जाते हैं ।
जैसा कि 26 अप्रेल, 1986 को सोवियत संघ के यूक्रेन प्रांत में कीव के निकट स्थित चेरनोविल रिएक्टर से विकिरण फैलने से विस्तृत क्षेत्र में रेडियोधर्मी प्रदूषण हुआ और सैकड़ों व्यक्ति मौत के मुँह में चले गये । रेडियोधर्मिता का मानव स्वास्थ्य पर अत्यधिक हानिकारक प्रभाव पड़ता है ।
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कैंसर, त्वचा की बीमारियाँ, आंखों एवं श्वास आदि की जानलेवा बीमारियाँ इससे हो जाती हैं । इसका प्रभाव गर्भस्थ शिशुओं पर भी पड़ता है । यही नहीं, अपितु इसका प्रभाव वनस्पति, खाद्यान्न, दूध, फल, सब्जी आदि पर भी होता है ।