List of popular essays for students in Hindi Language!

Contents:

  1. बाल दिवस (14 नवंबर) पर निबन्ध | Essay on Children’s Day (14th November) in Hindi

  2. स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर निबन्ध | Essay on Independence Day (15th August) in Hindi

  3. परीक्षा की तैयारी के दिन पर निबन्ध | Essay on The Days of Preparation for Exam in Hindi

  4. छुट्टी की घंटी बज उठी पर निबन्ध | Essay on Bell Rang! School is Over in Hindi

  5. हमारे वर्ग शिक्षक ( क्लास टीचर) पर निबन्ध | Essay on Our Class Teacher in Hindi

  6. परीक्षा का भय (परीक्षा ज्वर) पर निबन्ध | Essay on Exam Phobia in Hindi

  7. विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता पर निबन्ध | Essay on Debate Competition at School in Hindi

  8. ADVERTISEMENTS:

    विद्यालय का जलपान गृह (कैंटीन) पर निबन्ध | Essay on School Canteen in Hindi

  9. इम्तहान में नकल पर निबन्ध | Essay on Copy in the Exam in Hindi

  10. विद्यालय में दिया जाने वाला गृहकार्य (होमवर्क) पर निबन्ध | Essay on Home Work Given at School in Hindi

  11. गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) पर निबन्ध | Essay on Republic Day (26th January) in Hindi

  12. सहपाठियों के साथ पिकनिक पर निबन्ध | Essay on A Picnic with Classmates in Hindi

  13. होली पर निबन्ध | Essay on Holi in Hindi

  14. इंदिरा गाँधी पर निबन्ध | Essay on Indira Gandhi in Hindi

  15. दीपावली पर निबन्ध | Essay on Deewali in Hindi

  16. गाँधी जयंती पर निबन्ध | Essay on Gandhi Jayanti in Hindi

  17. ADVERTISEMENTS:

    दशहरा (दुर्गा पूजा) पर निबन्ध | Essay on Dusshera in Hindi

  18. रामनवमी पर निबन्ध | Essay on Ram Navami in Hindi

  19. महात्मा गाँधी पर निबन्ध | Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

  20. क्रिसमस पर निबन्ध | Essay on Christmas in Hindi

  21. ADVERTISEMENTS:

    मदर टेरेसा पर निबन्ध | Essay on Mother Teresa in Hindi

  22. बैसाखी पर निबन्ध | Essay on Baisakhi Festival in Hindi

  23. जन्माष्टमी पर निबन्ध | Essay on Janmashtami in Hindi

  24. सरस्वती पूजा (बसंत पंचमी) पर निबन्ध | Essay on Saraswati Puja in Hindi

  25. ADVERTISEMENTS:

    ईद पर निबन्ध | Essay on Eid in Hindi


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 1

बाल दिवस (14 नवंबर) पर निबन्ध | Essay on Children’s Day (14th November) in Hindi

बाल दिवस बच्चों की खुशियों का दिन है । देश के भावी कर्णधारों के बारे में सोचने-विचारने का दिन है । बच्चों की शिक्षा-दीक्षा इनके भविष्य इनकी वर्तमान दशा आदि के संबध में चिंतन-मनन करने का एक अवसर है ।

देश का पूरा का पूरा भविष्य बच्चों की उन्नति पर निर्भर है । बाल दिवस हमें देश के नैनिहालों के बारे में विचार करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को बच्चों से अपार स्नेह था । वे बच्चों को दिल से चाहते थे ।

ADVERTISEMENTS:

अत: उनके जन्म दिवस 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा । बाल दिवस पूरे राष्ट्र में बहुत ही उल्लासपूर्ण ढंग से मनाया जाता है । विद्यालयों में बाल दिवस की तैयारियाँ हफ्तों पूर्व से ही होने लगती हैं । नाटक भाषण प्रतियोगिता समूह नृत्य लोक गायन एवं नृत्य कविता पाठ समूह गान आदि की तैयारी में बच्चे उत्साह से भाग लेते हैं ।

बाल दिवस के अवसर पर कहीं-कहीं बाल मेले लगते हैं जो पूर्णतया बच्चों द्वारा संचालित होते हैं । बाल मेले में बुक स्टॉल खाने-पीने की दुकानें चित्रकला प्रदर्शनी आदि लगाई जाती हैं । इस अवसर पर कोई संदेश देने वाले नुक्कड़ नाटकों का भी प्रदर्शन होता है । इन कार्यक्रमों में सभी बच्चों की भागीदारी होती है ।

बाल दिवस एक पर्व है जो बच्चों के जीवन में नई आशा और उमंग का संचार करता है । इस दिन बच्चे सुबह से ही अपने विद्यालय में जमा होने लगते हैं । विद्यालय को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है । बच्चे प्रभात फेरि में शामिल होकर गाँधी, नेहरू आदि कालजयी नेताओं की जय-जयकार करते हैं । इनमें सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति उत्सुकता बढ़ने लगती है ।

ड्राइंग रूम में बच्चों को कार्यक्रमों के अनुरूप सजाने-सँवारने की तैयारियाँ होने लगती हैं । कोई मंच सज्जा करता दिखाई देता है तो कोई विद्यालय के मुख्य द्वार को सजाता हुआ दिखाई देता है । विद्यालय के शिक्षकगण बच्चों को निर्देश देते हुए दिखाई देते हैं । बच्चों के हाथ में तिरंगा झंडा, पोस्टर, महापुरुषों के चित्र आदि दिखाई देते हैं ।

बाल दिवस के अवसर पर बच्चे विद्यालयों एवं गली-महल्लों की सफाई करते देखे जा सकते हैं । विद्यालय तथा आस-पड़ोस को साफ-सुथरा कर बच्चे बाल दिवस के अवसर पर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह करते हैं । इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर उन्हें वृक्षारोपण करते हुए भी देखा जा सकता है ।

बाल मेले में हुई कमाई से बच्चे धन इकट्ठा कर भूकंप पीड़ितों बाद पीड़ितों तथा अन्य आपदाओं से पीड़ितों की मदद करते हैं । बाल दिवस हमें उन बच्चों के बारे में सोचने का अवसर प्रदान करता है जो किसी कारणवश प्राथमिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं ।

वे बच्चे जो बाल मजदूर हैं, वे बच्चे जो अनाथ हैं, वे बच्चे जो आतंक एवं भय के साए में जी रहे हैं, उनके लिए बाल दिवस का कोई खास महत्त्व नहीं रह जाता । विकलांग एड्‌स से पीड़ित तथा झुग्गी-झोपड़ियों में दीन-हीन दशा में जीने वाले बच्चों के लिए बाल दिवस की क्या सार्थकता रह जाती है ! बाल दिवस के अवसर पर इन बच्चों के बारे में भी आत्म-मंथन किया जाना चाहिए ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 2

स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर निबन्ध | Essay on Independence Day (15th August) in Hindi

स्वतंत्रता दिवस भारत के इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है । 15 अगस्त 1947 ई. के दिन पहली बार लाल किले पर यूनियन जैक की जगह भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहराया था ।

भारत के लोग दो सौ वर्षों की अँगरेजों की गुलामी के पश्चात् स्वतंत्र भारत में साँस ले रहे थे । आजादी के लिए किए गए लंबे संघर्ष का समय समाप्त हो चुका था । उसी समय से 15 अगस्त के दिन प्रतिवर्ष हम अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते आ रहे हैं । स्वतंत्रता दिवस के रूप में हमने अपनी मंजिल प्राप्त कर ली ।

”इस तरह तय कीं हैं हमने मंजिलें । गिर पड़े, गिरकर उठे उठकर बढ़े ।।”

स्वतंत्रता दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है । यह हमारे लिए गौरव का दिन है । यह दिन स्वतंत्रता के लिए मर-मिटने वाले महान देशभक्तों को स्मरण करने का दिन है । अपनी अब तक की उपलब्धियों पर विचार करने का दिन है । स्वतंत्र भारत की समस्याओं पर अपनी असफलताओं पर तथा अपनी खामियों पर दृष्टिपात करने का दिन है ।

पद्रह अगस्त के दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहराते हैं । ध्वज को सलामी दी जाती है । हमारा तिरंगा झंडा शान से लहराता दिखाई देता है । इसके बाद प्रधानमंत्री राष्ट्रवासियों को बधाई देते हैं तथा राष्ट्र को संबोधित करते हैं ।

अपने भाषण में वे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों तथा उनके आदर्शों का स्मरण करते हैं । राष्ट्र की उपलब्धियों पर चर्चा करते हैं तथा सरकार की भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं । उसका भाषण ‘जय हिंद’ के घोष के साथ समाप्त होता है ।

इस समारोह में स्कूली बच्चे पुलिस एवं सेना के जवान एन.सी.सी. कैडेट्‌स आदि बड़ी संख्या में भाग लेते हैं । समारोह स्थल रंग-बिरंगे गुब्बारों तथा राष्ट्रीय झंडों से शोभायमान हो जाता है । यह कार्यक्रम राष्ट्रीय गान के साथ समाप्त होता है ।

स्वतंत्रता दिवस देश के सभी भागों में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । राज्यों की राजधानियों राज्य के सभी सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालयों, विद्यालयों, अन्य शिक्षा संस्थानों तथा सभी प्रमुख स्थानों में ध्वजारोहण का कार्यक्रम होता है ।

विद्यालयों में प्राचार्य महोदय झंडा फहराने के पश्चात् बच्चों को संबोधित करते हैं । बच्चों में फल एवं मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं । राज्यों की राजधानियों में वहाँ के मुख्यमंत्री झंडा फहराते हैं तथा उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हैं । वे परेड की सलामी लेते हैं ।

स्वतंत्रता दिवस प्रतिवर्ष आकर हमें राष्ट्र के शहीदों की याद दिलाता है । भारत माता जब परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ी हुई थी तब इसकी बेड़ियाँ तोड़ने के लिए करोड़ों भारतीय एकजुट हो गए थे । अंगरेजों ने देशभक्तों पर लाठियों से प्रहार किया इन्हें गोलियों से भूना परंतु आजादी के परवानों ने हँसते-हँसते सारे दु:ख सहे ।

जेल गए यातनाएँ सहीं फाँसी के तख्ते पर खुशी-खुशी चढ़ गए । हमें इनके बलिदानों को याद कर स्वतंत्रता दिवस के दिन एक नए भारत के निर्माण का सकल्प लेना चाहिए । हमें अपने महान नेताओं के आदर्शो पर उनके पदचिह्नों पर चलने का प्रयास करना चाहिए ।

हमें विचार करना चाहिए कि:

”हम क्या थे, क्या हैं, और क्या होंगे अभी, आओ इन पर विचारें मिलकर सभी ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 3

परीक्षा की तैयारी के दिन पर निबन्ध | Essay on The Days of Preparation for Exam in Hindi

आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में ज्ञान के मूल्यांकन का आधार लिखित परीक्षा है । परीक्षा में सफलता विद्यार्थियों के मनोबल को ऊँचा उठाने में सहायता प्रदान करती है । परीक्षा में सफलता परीक्षा पूर्व नियोजित ढंग से तैयारी पर काफी हद तक निर्भर करती है । परीक्षा की तैयारी के दिन काफी महत्वपूर्ण होते हैं ।

प्रत्येक विद्यालय में समय-समय पर परीक्षाएँ होती हैं । किसी-किसी विद्यालय में पूरे वर्ष में दो परीक्षाएँ होती हैं – अर्द्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षा । इनमें से वार्षिक परीक्षा का अधिक महत्त्व है क्योंकि अगली कक्षा में प्रमोशन एवं रैंकिग का आधार यही परीक्षा होती है ।

बहुत से विद्यालयों में एक शिक्षा सत्र में तीन परीक्षाएँ होती हैं तथा तीनों परीक्षाओं में प्राप्त अंकों के आधार पर ही विद्यार्थियों को उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण घोषित किया जाता है । इसके अलावा दसवीं बोर्ड परीक्षा भी सभी उच्च माध्यमिक विद्यालयों में होती है जिसका सर्वाधिक महत्त्व होता है ।

परीक्षा की तैयारी के दिनों में विद्यार्थियों का पूरा ध्यान पढ़ाई-लिखाई पर केंद्रित हो जाता है । नियमित खेल गतिविधियाँ लगभग ठप पड़ जाती हैं । सहपाठियों के साथ गप-शप, थमा-चौकड़ी का सिलसिला थम जाता है । टेलीविजन के सामने चिपके रहने का अभ्यास कम होने लगता है ।

कई मनपसंद कार्यक्रमों की बलि देनी पड़ती है । छात्र-छात्राओं की एकांतप्रियता बढ़ जाती है । बाजार में बिकने वाली कुंजी-कुंजिकाओं की माँग बढ़ जाती है । बहुत से विद्यार्थी जो सामान्यतया अन्य दिनों में पुस्तकों से दूरी बनाए रखते हैं, अचानक पुस्तक प्रेमी बन जाते हैं ।

परीक्षा की तैयारी के दिनों में विद्यार्थियों को दिन अपेक्षाकृत छोटे नजर आते हैं । वे सोचते हैं कि काश ! एक दिन 30 या 48 घंटे का होता । पहले जो समय काटे न कटता था अब इतनी शीघ्रता से बीत जाता है कि कुछ पता ही नहीं चलता । परीक्षा ज्यों-ज्यों करीब आती जाती है, समय का मूल्य उसी अनुपात में बढ़ता जाता है ।

किस विषय पर कितना ध्यान दिया जाए, यह तय कर पाना बड़ा कठिन होता है । परीक्षा की तैयारी के दिन बड़े कठिन होते हैं । इन दिनों परीक्षा-ज्वर बढ़ता जाता है । भूख गायब हो जाती है रातों की नींद कम हो जाती हे । घर में मेहमानों अथवा रिश्तेदारों का आना अच्छा नहीं लगता । इन दिनों घर के छोटे-मोटे कार्यों को करने को कहा जाता है तो बहुत झुंझलाहट होती है ।

परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी संभावित प्रश्नों की काट-छाँट करते हैं । अध्यापकों के दिए गए गैस पेपर ‘डूबते को तिनके का सहारा’ बन जाते हैं । परंतु एक भय भी रहता है कि यदि गैस पेपर से हटकर प्रश्न पूछे गए तो क्या हाल होगा ! कमजोर विद्यार्थी प्रश्नों का हल याद करने में अपनी पूरी शक्ति झोंक देते हैं ।

परीक्षा की तैयारी यदि पूरे वर्ष चलती रहे तो अच्छा है । तब परीक्षा निकट आने पर विद्यार्थियों का आत्मविश्वास नहीं डगमगाता । मेधावी छात्र इन दिनों केवल पाठ्‌य-सामग्री को दुहराते हैं । इन्हें संभावित प्रश्नों की काट-छाँट करने की आवश्यकता नहीं होती ।

प्रश्न-पत्र पूरे पाठ्‌यक्रम में से कहीं से भी पूछा जाए, इन्हें कोई समस्या नहीं होती । मेधावी विद्यार्थी परीक्षा के भूत को अपनी कुशाग्र बुद्धि से पूर्णतया वश में करने में समर्थ होते हैं । एकाग्रचित्त होकर किया गया नियमित अध्ययन परीक्षा की तैयारी के दिनों को आनंदपूर्ण बना देता है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 4

छुट्टी की घंटी बज उठी पर निबन्ध | Essay on Bell Rang! School is Over in Hindi

जब छुट्टी की घंटी बजी तो विद्यार्थियों के चहरे खिल उठे । कुछ वैसी ही खुशी हुई जिस प्रकार कि कैदखाने से छूटने वाले कैदियों को होती है । यद्यपि विद्यालय एक कैदखाना नहीं है परंतु यहाँ एक अनुशासन तो है ही । छुट्टी की घंटी बजी तो कुछ देर के लिए ही सही, एक बंधन एक अनुशासन से मुक्ति मिल गई ।

छुट्टी की घंटी सुनते ही बच्चे खुशी से झूम उठे । मन में एक उत्साह का संचार हुआ । बस्ते सँभाले गए उसमें किताब-कापियाँ पैंसित्न कलम आदि भरे गए । स्कूल बैग को कंधे पर डालने की प्रक्रिया तेजी से आरंभ हो गई । हाथ में पानी के थरमस सँभाले गए ।

बच्चों में कक्षा से निकलने की होड़ होने लगी । पंक्तिबद्ध होकर जाने की शिक्षा इस क्षण भुला दी गई । वे स्कूल बस की ओर बढ़ चले । उछल-कूद और किलकारी का दौर आरंभ हो गया । सबके मुरझाए चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी । इस समय कविता की ये पंक्तियाँ साकार हो उठीं ।

हम पंछी उमुक्त गगन के, पिंजर बद्ध न गा पाएँगे, कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएँगे ।

उन्मुक्तता और स्वच्छंदता किसे प्यारी नहीं होती बच्चे तो फिर भी बच्चे ही हैं । इनमें शक्ति है इनकी रगों में नया खून दौड़ रहा है इनमें बंधनमुक्त होने की चाहत सर्वाधिक होती है । छुट्टी की घंटी बज उठी और विद्यार्थी कुछ देर के लिए बंधनमुक्त हो गए । मन का उल्लास शारीरिक क्रियाओं के रूप में प्रकट होने लगा ।

कुछ बच्चे स्कूल बस में उछलते-कूदते बैठे तो कुछ पैदल ही घर की ओर चल पड़े । पैदल चलते रास्ते में बिल्ली मिली तो उसे दौड़ाया कुत्ता मिला तो उसे ललकारा । पेड़ पर बंदर मिला तो बालकों का बंदरपन जाग उठा, उसे छेड़कर आत्म-संतुष्टि मिली ।

रास्ते का कंकड़-पत्थर उठा लिया और पेड़ से कच्चे आमों को तोड़ने की होड़ लग गई । तालाब मिल गया तो जल-पक्षियों की क्रीड़ा देखने की उत्सुकता जाग उठी । जल-पक्षियों को कंकड़-पत्थरों से छेड़ा जाने लगा । घर पहुँचने की जल्दी नहीं भले ही माँ घर पर अपने बच्चों के स्कूल से लौटने की राह देख रही हो ।

विद्यालय से घर तक की दूरी तय करते समय शाम के खेल की योजना तैयार कर ली गई । आज किस वक्त, कहाँ और किसके साथ खेलना है इनका निर्धारण कर लिया गया । कुछ विद्यार्थियों ने मार्ग में पुस्तकों एवं उत्तर पुस्तिकाओं का आदान-प्रदान किया ।

आज किसे क्या होमवर्क मिला इस संबंध में चर्चा होने लगी । घर पहुँचे, जूते उतारे । स्कूल ड़ेस के स्थान पर मौसम के अनुरूप अन्य कपड़े पहने । हाथ-मुँह धोया और जल्दी से कुछ खाने की माँग होने लगी । माँ झुंझलाई, इतनी जल्दी क्या है, पहले जूते और कपड़े यथास्थान रखो ।

पर जल्दी है, क्योंकि कुछ खाकर क्रिकेट के मैदान में गावस्कर और सचिन के समान बल्लेबाजी का नजारा पेश करना है । छुट्टी की घंटी बज उठी तो अध्यापकों ने राहत की साँस ली । वे अपने निवास स्थान की ओर लौटने की तैयारी करने लगे । लिपिक ने फाइलें बद कीं । चपरासी ने कक्षाओं में ताला लगाना शुरू किया ।

विद्यालय जो अभी-अभी चहक रहा था, यहाँ जिस प्रकार की संजीदगी व्याप्त थी, वह समाप्त होने लगी । विद्यालय में अगले दिन तक के लिए निस्तब्धता छा गई । इस खामोशी इस निस्तब्धता का अनुभव करने के लिए वहाँ केवल एक दरबान और कुछ पक्षी रह गए ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 5

हमारे वर्ग शिक्षक ( क्लास टीचर) पर निबन्ध | Essay on Our Class Teacher in Hindi

प्रत्येक विद्यालय में विभिन्न कक्षाएँ होती हैं । प्रत्येक कक्षा का एक वर्ग शिक्षक होता है । वर्ग शिक्षक अपनी कक्षा के सभी विद्यार्थियों की गतिविधियों को संचालित करते हैं ।

किसी भी कक्षा में सबसे पहले वर्ग शिक्षक ही आते हैं । उनका परिचय कक्षा के सभी विद्यार्थियों से भली-भांति होता है । अपने विद्यार्थियों की उन्नति में उनकी भागीदारी महत्त्वपूर्ण होती है । प्रार्थना एव पी.टी. के बाद सभी विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षा में चले जाते हैं ।

इसी समय वहाँ वर्ग शिक्षक आते हैं । सभी विद्यार्थी खड़े होकर उनका स्वागत करते हैं । वर्ग शिक्षक अपनी कुरसी पर बैठकर विद्यार्थियों की हाजिरी लेना आरंभ करते है । यदि कोई विद्यार्थी लगातार कई दिनों तक अनुपस्थित पाया जाता है तो वर्ग शिक्षक उसके साथी विद्यार्थियों से इसका कारण पूछते हैं ।

यदि कोई विद्यार्थी बीमार पाया जाता है तो कभी-कभी वे उसके घर पर जाकर उसका हाल-चाल पूछते है । श्रीमती कमला वर्मा हमारी वर्ग शिक्षिका हैं । उनका स्वभाव बहुत ही मिलनसार एवं सौम्य है । उन्हें उद्विग्न होते हमने कभी नहीं देखा । सभी छात्र-छात्राओं से मुस्कराकर बातें करना इनका स्वभाव है ।

ये हमें विज्ञान पढ़ाती हैं । उनके विज्ञान पड़ाने का ढंग बड़ा अनोखा है । वैज्ञानिक तथ्यों को सरल भाषा में एव उदाहरण देकर प्रस्तुत करना उनकी विशेषता है । कभी-कभी वे हमारी कक्षा में ही वैज्ञानिक विषयों से संबंधित चार्ट एवं अन्य उपकरणों का प्रदर्शन करती हैं । पढ़ाते समय उनकी तल्लीनता हमें आकर्षित करती है ।

हमारी वर्ग शिक्षिका सभी विद्यार्थियों के क्रियाकलापों पर नजर रखती हैं । पढ़ाई में पिछड़ रहे विद्यार्थियों की ओर उनका विशेष ध्यान रहता है । ऐसे विद्यार्थियों को अपने घर पर बुलाकर मुफ्त ट्‌यूशन देती हैं । अपने विद्‌यार्थियों के प्रति इस तरह का समर्पण भाव प्राय: कम ही दिखाई देता है ।

वे अपने प्रयासों से निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति दिलवाती हैं । हमारी वर्ग शिक्षिका हमारे लिए एक आदर्श हैं । हमारी वर्ग शिक्षिका कक्षा के ऐसे विद्यार्थियों को प्रताड़ित करती हैं जो अपना होमवर्क पूरा नहीं करते । उनकी इस प्रताड़ना में विद्यार्थियों का हित छिपा होता है ।

कक्षा के कुछ उद्दंड छात्रों को वश में रखने की कला उन्हें अच्छी तरह आती है । परंतु वे अति अनुशासन को नापसंद करती हैं । वे मजेदार चुटकुले. कोई छोटी सी मनोरंजक कथा आदि सुनाकर विद्यार्थियों को हंसाती रहती हैं । इससे कक्षा का माहौल सहज एवं जीवंत हो उठता है ।

श्रीमती कमला वर्मा अपनी कार्यशैली से विद्यालय के विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं अभिभावकों में काफी लोकप्रिय हैं । वे कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद की गतिविधियों में भी भाग लेने के लिए प्रेरित करती रहती हैं ।

समय-समय पर वे कक्षा में वाद-विवाद प्रतियोगिता, वैज्ञानिक विषयों पर वार्ता, भाषण प्रतियोगिता तथा अन्य गतिविधियाँ संचालित करती रहती हैं । वे हमारी कक्षा की सफाई व्यवस्था पर भी ध्यान रखती हैं । फर्नीचर सही दशा में रहे, विद्यार्थी इन्हें किसी प्रकार से क्षति न पहुँचाएँ इसके लिए वे सदैव सचेष्ट रहती हैं । कक्षा के सभी विद्यार्थी उनका बहुत सम्मान करते हैं ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 6

परीक्षा का भय (परीक्षा ज्वर) पर निबन्ध | Essay on Exam Phobia in Hindi

बहुत से विद्यार्थी परीक्षा से भयभीत रहते हैं । ज्यों-ज्यों परीक्षा निकट आती है ? त्यों-त्यों परीक्षा का भय बढ़ने लगता है । परीक्षा रूपी दानव विद्यार्थियों के दिलो-दिमाग में घुसकर आतक मचाता रहता है ।

दिन का चैन और रात की नींद उड़ने लगती है । वे परीक्षा-ज्वर से पीड़ित हो जाते हैं । परीक्षाओं से भय खाने वाले विद्यार्थीगण सोचते हैं कि आखिर ये परीक्षाएँ आती ही क्यों हैं ? परंतु न चाहने पर भी परीक्षाएँ आती हैं और विद्यार्थियों को इनकी तैयारियाँ करनी पड़ती हैं ।

परीक्षा का भय सामाजिक मान्यताओं की उपज है । यह अभिभावकों द्वारा सृजित किया गया भय भी है । सभी अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे परीक्षा में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करें । परंतु जब उनके बच्चे उनकी अपेक्षाओं से कम अंक प्राप्त करते हैं तो उनकी खीज बढ़ जाती है ।

वे अपने बच्चों को नालायक, आवारा, फिसड्डी, भोंदू और न जाने क्या-क्या समझने लगते हैं । उनके सपनों का महल भरभरा कर ढहने लगता है । इसके नतीजे में बच्चों को हर समय अभिभावकों की डाँट-डपट सहनी पड़ती है । उनके बस्ते भारी होने लगते हैं उन्हें खेलने के समय में भी पुस्तकें खोल कर बैठना पड़ता है । उस पर पढ़ाई करते रहने का दबाव बढ़ता जाता है ।

फिर जब परीक्षा का समय आता है तो इसके प्रति भय स्वाभाविक ही है । क्या पता फिर से कम अंक आएँ और डाँट-डपट एवं कड़े अनुशासन का दुश्चक्र फिर से आरंभ हो जाए ? इस प्रकार परीक्षा का भय वास्तव में इसके माध्यम से जो नतीजे आते हैं और इस नतीजे के जो संभावित असर होते हैं उनका भय है ।

परीक्षा का भय उन विद्यार्थियों को अधिक होता है जो केवल परीक्षा निकट आने पर ही पढ़ाई की तरफ ध्यान केंद्रित करते हैं । ऐसे विद्यार्थी महीनों में होने वाली तैयारी को एक-दो हफ्तों में पूरा करना चाहते हैं जबकि पढ़ाई-लिखाई नियमित अभ्यास की वस्तु है ।

कहा भी गया है कि ‘करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान’ । अर्थात् यदि सतत् अभ्यास किया जाए तो मद बुद्धि के व्यक्ति भी समझदार एव विद्वान बन जाते हैं । यदि विद्यार्थी नियमित रूप से विद्या प्राप्ति के लिए प्रयत्न करें तो परीक्षा का भय स्वत: समाप्त हो जाएगा । अत: परीक्षा के भय को बहुत हद तक अनियमित पढ़ाई का परिणाम कहा जा सकता है ।

परीक्षा का भय वर्तमान शिक्षा नीति की खामियों को भी उजागर करता है । जिन विद्‌यार्थियों को रटंत विद्या आती है जो प्रश्नों के उत्तर को याद कर पाने में सक्षम हैं उन्हें अधिक अक प्राप्त होते हैं । जबकि औसत बुद्धि के विद्यार्थी क्षमता के बावजूद अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं । दूसरी ओर वर्तमान समय में प्रदान की जा रही शिक्षा विद्यार्थियों को स्वार्थी घमंडी और आत्मकेंद्रित बना रही है । उनका दिनों-दिन चारित्रिक पतन होता जा रहा है ।

यह शिक्षा बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, लिपिक, अधिकारी, तकनीशियन आदि तो बना देती है परंतु उन्हें मनुष्य नहीं बनाती । मनुष्यों की मनुष्यता क्रमश: समाप्त होती चली जा रही है । परीक्षा का भय सही मायने में बच्चों के कुसंस्कारों का ही परिणाम है ।

परंतु परीक्षा का भय एक दृष्टि से लाभप्रद भी है । यदि परीक्षा का भय न होता तो बच्चे कदापि नहीं पड़ते । यह भय ही अनेक विद्यार्थियों का संपर्क पुस्तकों से जोड़ता है । यह परीक्षा का भय ही तो है जो उन्हें कुसंगति निरंतर मौज-मस्ती आदि से दूर रखता है ।

बच्चे परीक्षा के भय से सजग होकर अपना ध्यान पढ़ने-लिखने पर केंद्रित करते हैं । यदि परीक्षाएं न होतीं तो उन्हें उनकी योग्यता का पता कैसे चलता ! कृत विद्यार्थियों को परीक्षा को लेकर अधिक चिंतित नहीं होना चाहिए । अति चिंता की स्थिति बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालती है । परीक्षा की योजनाबद्ध एव नियमित तैयारी बच्चों को परीक्षा के भय से मुक्त कर सकती है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 7

विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता पर निबन्ध | Essay on Debate Competition at School in Hindi

वाद-विवाद यानि तर्क-वितर्क करना मानवीय स्वभाव कहा जा सकता हें । वाद-विवाद से बुद्धि का विकास होता है इससे हमें किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में मदद मिलती है ।

बस जरूरी यह है कि किसी सार्थक विषय पर किसी ज्वलंत समस्या पर वाद-विवाद किया जाए । बेसिर-पैर का वाद-विवाद अक्सर झगड़ा या मार-पीट का रूप ले लेता है । अत: वाद-विवाद का विषय गंभीर एवं सार्थक होना चाहिए ।

हमारे विद्यालय में प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस के दिन वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है । इस बार वाद-विवाद का विषय था – ‘क्या भारतीयों में देशभक्ति की भावना कम होती जा रही है’ इस वाद-विवाद प्रतियोगिता में विभिन्न कक्षाओं के पंद्रह छात्र-छात्राओं ने भाग लिया ।

प्रतियोगिता का आयोजन विद्यालय के हॉल में आरंभ होने वाला था । मंच पर प्राचार्य एवं शिक्षकगण बैठे हुए थे । पूरा हॉल विद्यार्थियों से भरा हुआ था । निर्णायक मंडल में प्राचार्य तथा दो अन्य शिक्षक थे । प्रतियोगिता के आरभ में प्राचार्य महोदय ने संक्षेप में अपना भाषण दिया । तत्‌पश्चात् प्रतियोगिता के संचालक महोदय ने एक-एक कर उन विद्यार्थियों का नाम पढ़ा जो इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले थे ।

फिर प्रथम प्रतियोगी के रूप में कक्षा आठ के सुरेश कुमार का नाम पुकारा गया । उसने मंच पर जाकर अपने विचार प्रकट किए । बहुत से विद्यार्थियों ने देखा कि माइक के सामने बोलते समय उसके पाँव काँप रहे हैं । उसकी बोली भी लड़खड़ा रही थी ।

जैसे-तैसे उसने अपना पहले से रटा हुआ भाषण पढ़ा । दूसरा प्रतियोगी कक्षा सात का रवि कुमार था । उसने निर्भीक स्वर में दिए गए विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए । उसने कहा कि हम, भारतीयों में देशभक्ति की भावना दिनों-दिन घट रही है ।

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेकारी, गरीबी अशिक्षा आदि की समस्याओं के बने रहने का मूल कारण उसने देशभक्त लोगों की सख्या में कमी बताया । उसने कहा कि हम भारतीय यदि सही मायने में देशभक्त होते तो देश की इतनी दुर्दशा न हुई होती ।

तीसरे प्रतियोगी के रूप में कक्षा आठ की छात्रा सुधा पांडे आई । उसके विचार कुछ अलग थे । उसका मानना था कि भारतीयों में देशभक्ति की भावना निरंतर बढ़ रही है । उसने कारगिल युद्ध की चर्चा करते हुए बताया कि इस युद्ध के समय सभी भारतीयों ने जिस एकजुटता का प्रदर्शन किया वह अछूत है ।

किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय सभी भारतीय अपनी-अपनी तरफ से योगदान देते हैं । भारत ने आजादी के पश्चात् बहुत प्रगति की है जो कि हमारी देशभक्ति का प्रमाण है । इस तरह विभिन्न तर्को के आधार पर सुधा पांडे ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारतीयों में देशभक्ति की भावना प्रबल है ।

इसी प्रकार अन्य प्रतियोगियों ने भी अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए । लगभग आधे प्रतियोगियों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारतीयों में देशभक्ति की भावना कम होती जा रही है । आधे प्रतियोगियों ने इसके विपरीत यह प्रमाणित करने की चेष्टा की कि भारतीयों में देशभक्ति की भावना कम नहीं हुई है ।

अंत में निर्णायक मडल ने अपना निर्णय सुनाया । सुधा पांडे को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ । कक्षा नौ के छात्र कमलेश कुमार को द्वितीय पुरस्कार मिला । तृतीय पुरस्कार सुरेश कुमार को प्रदान किया गया । दो अन्य प्रतियोगियों को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किया गया ।

प्राचार्य महोदय ने सभी प्रतियोगियों के प्रदर्शन की सराहना करते हुए उनका उत्साह बढ़ाया । अंत में प्रतियोगिता के समापन की घोषणा की गई । हम लोगों ने इस प्रेरणादायी प्रतियोगिता का भरपूर आनंद उठाया ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 8

विद्यालय का जलपान गृह (कैंटीन) पर निबन्ध | Essay on School Canteen in Hindi

विद्यालय का जलपान गृह विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को सहज ही आकर्षित करता है । हालाकिं सभी विद्यालयों में कैंटीन की सुविधा नहीं होती परंतु यहाँ भी बच्चों को लुभाने वाली खाद्‌य वस्तुएँ निजी दुकानदारों द्वारा रेडियाँ लगाकर बेची जाती हैं ।

ऐसे विद्यालयों में निजी दुकानदार ही कैंटीन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं । विद्यालय के कैंटीन में कक्षाओं के समय बहुत ही कम बच्चे आते हैं । परंतु मध्यावकाश के समय यहाँ की भीड़-भाड़ बहुत बढ़ जाती है । आइसक्रीम वाला अचानक सजग हो जाता है ।

बच्चों के हाथ एक साथ उसकी ओर बढ़ने लगते हैं । बच्चे आइसक्रीम लेकर जल्दी से चाटना शुरू कर देते हैं क्योंकि यह जल्दी पिघलकर नष्ट हो जाती है । गोलगप्पे वाले को दम लेने की फुरसत नहीं । बच्चे गोलगप्पे खाकर पुदीने वाला ठंडा पानी पीने से नहीं चूकते ।

समोसा, चाट और पकौड़े बेचने वालों को भी विद्यालय का मध्यावकाश व्यस्त कर देता है । वे बच्चे जो लंच बॉक्स नहीं लेकर आते हैं इन खाने-पीने की वस्तुओं पर टूट पड़ते हैं । समोसे के साथ लाल-हरी चटनी भी चाहिए । चटनी कम पड़ गई तो प्लेट फिर से दुकानदार के सामने बढ़ा दिया जाता है ।

दुकानदार भी जानता है विद्यालय की कैंटीन में घटिया माल भी बिकेगा । समोसा बासी हो, उसके आलू सड़े हों तब भी चलेगा । समोसा और पकौड़ा ठंडा हो तब भी उसके ग्राहक शिकायत नहीं करेंगे । परंतु विद्यालय की ओर से संचालित कैंटीन में खाने-पीने की वस्तुओं की गुणवत्ता प्राय: अच्छी होती है ।

विद्यालय की कैंटीन में अध्यापकगण भी जाते हैं । वे चाय एवं नाश्ता करते हैं । गरमियों में शीतल पेय का लुल्क उठाते हैं । शीतल पेय के प्रति बच्चों की रुचि भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है । शीतल पेय का प्रत्येक घूँट बड़ा ही तृप्तिदायक होता है ।

जलपान गृह की व्यवस्था प्रत्येक विद्यालय में होनी चाहिए । भूखे भजन न होय गोपाला, अर्थात् खाली पेट कोई काम नहीं होता । पढ़ाई-लिखाई के साथ भी यह बात लागू होती है । भूखा विद्यार्थी पढ़ाई की तरफ ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता ।

विद्यार्थियों को बहुत से सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न का भोजन कराया जाता है । चाहे खिचड़ी ही सही कुछ खाकर पढ़ने में मजा आ जाता है । परंतु केंटीन की सुविधा के नाम पर विद्यार्थियों को घटिया खाद्य पदार्थ नहीं परोसा जाना चाहिए ।

अधिकतर विद्यालयों के बाहर घटिया बासी और स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाले खाद्य पदार्थों की खुलेआम बिक्री होती है । उसे खाकर बच्चे बीमार पड़ सकते हैं । विद्यालय का जलपान गृह साफ-सुथरा एवं उत्तम कोटि का होना चाहिए ।

यह विद्यालय के परिसर के भीतर ही होना चाहिए । जलपान गृह का सचालन विद्यालय प्रशासन की ओर से होना भी आवश्यक है ताकि बच्चों तथा अध्यापकों को अच्छा नाश्ता मिल सके ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 9

इम्तहान में नकल पर निबन्ध | Essay on Copy in the Exam in Hindi

इस्तहान में नकल करने की परंपरा आजकल बढ़ती जा रही है । इसे आधुनिक शिक्षा पद्धति की एक खामी कही जा सकती है । सभी विद्यार्थी इस्तहान में अधिक अंक लाना चाहते हैं । इसके लिए कुछ भी करना पड़े कोई बात नहीं ।

नकल करके परीक्षा में उत्तीर्ण होना आज कोई असामान्य घटना नहीं । बहुत से विद्यार्थी केवल परीक्षा के दिनों में ही सजग होते हैं । पूरे साल इन्हें पढ़ाई की फिक्र नहीं होती । इन्हें नकल का सहारा लेना पड़ता है । परीक्षा भवन में परीक्षकों की चेतावनी का इन पर कोई असर नहीं होता ।

इन्हें परची छुपाकर रखने की कला आती है । ये परीक्षकों की आँखों में धूल झोंकने में समर्थ होते हैं, कुछ पकड़े जाते हैं इन्हें परीक्षा से निष्कासित कर दिया जाता है पर कोई बात नहीं । इस बार नहीं तो अगली बार सही, नकल का कोई विकल्प नहीं ।

महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं में खासकर उन परीक्षाओं में जिनकी डिग्री का महत्व है नकल करने की प्रथा जोरों से चल पड़ी है । परीक्षार्थियों के संगे-संबंधी यहाँ तक कि अभिभावक भी परीक्षा केंद्र के इर्द-गिर्द मँडराते नजर आते हैं ।

प्रश्न-पत्र किसी न किसी प्रकार से इन तक पहुँच जाता है जिसके आधार पर परीक्षार्थियों तक चिट पहुँचाई जाती है । परीक्षा भवन की खिड़की इस कार्य में बहुत सहायक होती है । सुरक्षाकर्मी नकल में सहायता करने वालों को कभी-कभी दौड़ाते हैं ? उन्हें परीक्षा केंद्र से दूर भगाते हैं पर वे कुछ देर में फिर से वहाँ जमा हो जाते हैं ।

परीक्षा में नकल कई तरीके से किया जाता है । कुछ विद्यार्थी अपने साथ ही परची ले जाते हैं । ये परचियाँ जूतों पैंट की जेबों आदि में छिपाकर रखी जाती हैं । परीक्षा पर्यवेक्षकों से नजरें बचाते हुए परचियाँ निकाल ली जाती हैं ।

कुछ विद्यार्थी परीक्षा पूर्व ही निरीक्षक को लोभ-लालच देकर नकल करने की सुविधा प्राप्त कर लेते हैं । खुले आम गैस पेपर निकाल लिए जाते हैं । परीक्षक उड़नदस्ता आने पर परीक्षार्थियों को सावधान कर देते हैं । कई बार पर्यवेक्षक ही विद्यार्थियों को प्रश्नों का उत्तर लिखवाते हैं । पहले से ही मिली-भगत होती है ।

ऐसा भी देखने में आया है कि किसी परीक्षार्थी के स्थान पर दूसरा मेधावी परीक्षार्थी बिठा दिया जाता है । इस तरह छू और अज्ञानी विद्यार्थी भी बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो जाता है । परंतु सभी विद्यार्थी नकल करने की कला में प्रवीण नहीं होते । नकल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है । अक्लहीन परीक्षार्थी नकल करके वह उत्तर लिख देते हैं जो पूछा ही नहीं गया होता है ।

नकल करते समय घबराहट बढ़ जाती है ऐसे में पढ़ा हुआ उत्तर भी नहीं लिखा जाता । मन द्वंद्व से भर उठता है आत्मविश्वास डगमगाने लगता है । नकल करने के चक्कर में वे प्रश्न भी छूट जाते हैं जिनका उत्तर याद होता है । इम्तहान में नकल वास्तव में एक गलत प्रथा है । यह मेधावी छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है ।

यह भ्रष्टाचार का वह रूप है जो विद्यार्थी के भावी जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ता है । परीक्षा में नकल करके पास होने वाले विद्यार्थी आगे चलकर समाज में भी चरित्रहीनता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । जिस भवन की नींव ही कमजोर हो उस पर विशाल भवन नहीं खड़ा किया जा सकता ।

इस्तहान में नकल को कड़ाई से रोका जाना चाहिए । इसके लिए शिक्षकों एवं अभिभावकों को सम्मिलित रूप से प्रयास करना चाहिए । कुछ शिक्षा-विशेषज्ञों का सुझाव है कि परीक्षा-पद्धति में बदलाव लाकर परीक्षा में नकल की प्रवृत्ति पर लगाम लगाई जा सकती है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 10

विद्यालय में दिया जाने वाला गृहकार्य (होमवर्क) पर निबन्ध | Essay on Home Work Given at School in Hindi

विद्यालय में दिया जाने वाला गृहकार्य विद्यार्थियों को घर पर स्वाध्याय करने का एक अवसर प्रदान करता है । गृहकार्य विद्यालय में दी गई शिक्षा का पूरक अश है । यह एक अवसर है स्वाध्याय और चिंतन का पड़े हुए पाठ को दोहराने का ।

गृहकार्य बच्चों को घर पर पढ़ाई करने के लिए विवश करने का एक प्रचलित तरीका है । अनेक छात्र-छात्राएँ गृहकार्य को एक बोझ मानती हैं । इनकी नजर में गृहकार्य समय के अपव्यय के अतिरिक्त और कुछ नहीं । विद्यालय में पढ़ाई, घर में पढ़ाई, फिर ट्‌यूशन की पढ़ाई अर्थात् हर समय पढ़ाई ही पढ़ाई ।

और गृहकार्य किसी एक विषय से संबंधित हो, तो बात अलग है । प्रत्येक विषय का अलग-अलग होमवर्क । अब होमवर्क ही बनाते रहें कि कुछ अपने अनुसार भी पढ़ें । क्रीड़ा का अवसर भी नहीं मिल पा रहा । इसके लिए विद्यार्थियों ने अच्छा उपाय निकाला है कि ट्‌यूशन देने वाले से अथवा अभिभावक से ही होमवर्क पूरा करवा लिया जाए । घर पर पड़ने का अर्थ आजकल केवल होमवर्क बनाना भर रह गया है । होमवर्क का तनाव विद्यार्थियों के साथ-साथ अभिभावकों पर भी हावी है ।

एक अन्य दृष्टि से देखें तो होमवर्क विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं । यह गृहकार्य ही है जो उन्हें विभिन्न विषयों के प्रश्नों को हल करने तथा स्मरण में रखने का अवसर प्रदान करता है । गृहकार्य न हो तो बच्चों का अधिकतर समय खेलने-कूदने, धूम मचाने, गपशप करने तथा टेलीविजन देखने में व्यतीत हो जाए ।

शिक्षक विद्यार्थियों के एक समूह को पढ़ाते हैं । पचास-साठ बच्चों को एक साथ पढ़ाने का अर्थ है, उन्हें विषय-वस्तु की मोटी-मोटी जानकारी देना । कक्षा में इतना समय नहीं होता कि प्रत्येक बच्चे से प्रश्नोत्तर करवाया जाए । उदाहरणस्वरूप यदि कविता याद करानी हो तो यह कार्य विद्यालय में संभव नहीं है । कक्षा की पढ़ाई की इन कमियों की पूर्ति के लिए गृहकार्य आवश्यक है ।

गृहकार्य विद्यार्थियों को घर पर उनके कर्त्तव्यों की याद दिलाता है । खाली मन शैतान का घर होता है । बच्चे गृहकार्य करते समय अपना मन एकाग्र करते हैं उनकी उपद्रवी हरकतों पर लगाम लगा रहता है । गृहकार्य के बहाने अभिभावक अपने बच्चों की शैक्षणिक योग्यता की परीक्षा ले सकते हैं ।

विद्यालय में गृहकार्य की जाँच करने से शिक्षक को पता चल जाता है कि किस विद्यार्थी के अदर क्या खूबी या कमी है । इसी को ध्यान में रखकर वे विद्यार्थियों की कमियाँ दूर करने का प्रयास करते हैं । गृहकार्य की जाँच के आधार पर प्रत्येक विद्यार्थी की अभ्यास पुस्तिका पर की गई अनुशसा अभिभावकों को भी सचेत करती है ।

विद्यार्थियों को अपना गृहकार्य मनोयोग से पूरा करना चाहिए । इस कार्य में अभिभावकों तथा ट्‌यूशन देने वाले शिक्षकों की मदद ली जा सकती है परंतु इन पर अत्यधिक निर्भरता बच्चों के विकास में बाधक है ।

गृहकार्य बच्चों की लिपि को सुंदर एवं आकर्षक बनाने में मदद करता है । यह बच्चों की धारणा शक्ति को मजबूत बनाता है । बच्चों के संतुलित विकास के लिए गृहकार्य बहुत उपयोगी है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 11

गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) पर निबन्ध | Essay on Republic Day (26th January) in Hindi

भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में गणतंत्र दिवस का प्रमुख स्थान है । इसे प्रतिवर्ष 26 जनवरी के दिन मनाया जाता है । यह पर्व हमारी लोकतांत्रिक आस्था का प्रतीक है ।

भारत के निवासियों ने स्वतत्रता प्राप्ति के लिए लंबा संघर्ष किया । स्वतंत्रता-संग्राम में भाग लेने के दौरान हजारों व्यक्तियों ने अपने प्राण गँवाए, लाखों लोगों ने भयंकर यातनाएँ सहीं । आखिरकार 15 अगस्त 1947 ई. को हमें स्वराज्य की प्राप्ति हुई ।

परतु स्वराज्य का स्वरूप कैसा हो भारत में किस प्रकार की शासन-व्यवस्था हो इसके लिए विचार-विमर्श चलता रहा । भारत का संविधान तैयार हो रहा था । इसके लिए संविधान सभा का गठन किया गया था । संविधान पूरा हुआ जिसमें भारत को एक गणतत्र या लोकतंत्र घोषित किया गया ।

यह संविधान 26 जनवरी, 1950 के दिन अस्तित्व में आया । डॉ. राजेंद्र प्रसाद लोकतांत्रिक भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने । तब से प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को हम लोग गणतत्र दिवस के रूप में मनाते चले आ रहे हैं । गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरे राष्ट्र में खुशी का माहौल रहता है ।

हम लोग अपनी उपलब्धियों पर गर्व करते हैं तथा अपनी खामियों को दूर करने का निश्चय करते हैं । भारत के लोग आजादी के लंबे संघर्ष के दिनों को याद करते हैं । स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । हम लोग महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चद्र बोस, भगत सिंह, लाला लाजपत राय, चंद्रशेखर आजाद जैसे राष्ट्रनायकों के त्याग और बलिदानों का स्मरण करते हैं ।

हम लोग एक उन्नत भारत के सपने को साकार करने का संकल्प व्यक्त करते हैं । सभी विद्यालयों एव शिक्षण संस्थाओं में गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित होता है । विद्यार्थीगण विद्यालय को झंडियों आदि से सजाते हैं । प्राचार्य महोदय झंडोत्तोलन करते हैं ।

बच्चे समवेत स्वर में राष्ट्रगान एव राष्ट्रगीत गाते हैं । भारत माता की जय, गाँधी जी की जय आदि नारों से विद्यालय परिसर देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण हो उठता है । बच्चे परेड करते हैं तथा राष्ट्र की प्रगति को दर्शाती झाँकियाँ प्रस्तुत करते हैं । विद्यालय की ओर से विद्यार्थियों में टाँफियाँ जलेबियाँ फल आदि वितरित की जाती हैं ।

राज्यों की राजधानियों में सरकारी स्तर पर ध्वजारोहण का कार्यक्रम आयोजित होता है । पुलिस परेड की सलामी होती है । स्कूलों एवं कालेजों के छात्र-छात्राओं का परेड़ भी होता है । राज्यपाल महोदय झंडोत्तोलन के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हैं ।

स्कूलों संस्थाओं तथा अन्य विभागों की ओर से आकर्षक झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं । झंडोत्तोलन का यह कार्यक्रम राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों जिला मुख्यालयों, प्रखंड कार्यालयों तथा अन्य स्थानों में बहुत ही उल्लासमय ढंग से होता है ।

भारत की राजधानी दिल्ली में गणतत्र दिवस समारोह का विशेष आकर्षण है । गणतंत्र दिवस की पूर्व सध्या पर राष्ट्रपति महोदय राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करते हैं । सुबह देश के प्रधानमंत्री इंडिया गेट पर प्रज्वलित अमर जवान ज्योति के समक्ष श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।

इसके बाद वे वहाँ से राष्ट्रपति भवन के बाहर विजय चौक पर बने सलामी मच के पास पहुँच जाते हैं । फिर राष्ट्रपति अपने सजे-धजे अंगरक्षकों के साथ वहाँ आते हैं । उनके पहुँचने पर वहाँ उपस्थित गणमान्य लोग खड़े होकर उनका स्वागत करते हैं । उसके बाद परेड होती है ।

परेड में तीनों सेनाओं के जवान भाग लेते हैं । प्रधानमंत्री उनके मंत्रिमंडल के सदस्य विशिष्ट अतिथि अन्य नेतागण तथा आम नागरिक यहाँ की परेड तथा झांकियों का आनद उठाते हैं । भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया जाता है । राज्यों की झांकियाँ दर्शनीय होती हैं ।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर वीर बालकों तथा वीर सैनिकों को सम्मानित किया जाता है । विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को राष्ट्र की ओर से उपाधियाँ दी जाती हैं । राष्ट्रपति महोदय रात्रिकाल में विशिष्टं व्यक्तियों को रात्रिभोज पर आमंत्रित करते हैं ।

इस अवसर पर राष्ट्रपति भवन एवं राजधानी की प्रमुख सरकारी इमारतों को विशेष रूप से सजाया जाता है । आकर्षक विद्युत प्रकाश से राजधानी दिल्ली दुल्हन की तरह सजी-धजी दिखाई देती है । इस प्रकार गणतंत्र दिवस का समारोह पूरे राष्ट्र में उल्लासपूर्ण ढग से मनाया जाता है ।

कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं । कहीं खेल-कूद की प्रतियोगिता होती है तो कहीं मेले लगते हैं । गणतत्र दिवस के सभी कार्यक्रम भारतवासियों को देशभक्ति की प्रेरणा देते हैं ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 12

सहपाठियों के साथ पिकनिक पर निबन्ध | Essay on A Picnic with Classmates in Hindi

विद्यालय की शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं हो सकती । दर्शनीय स्थानों की यात्रा, खेल, व्यायाम, पिकनिक, आदि शिक्षा के ही अनिवार्य अंग हैं । यदि बच्चे सदैव विद्यालय में ही रहें तो वे कूपमंडूक बने रह जाएँगे ।

पिकनिक के माध्यम से बच्चों को किसी सुदर स्थान की यात्रा का अवसर प्राप्त होता है । उनका व्यवहारिक ज्ञान बढ़ता है साथ-साथ उनका मनोरंजन भी होता है । पिकनिक बच्चों को सामूहिक जीवन की शिक्षा देता है । उन्हें इस बह, ने आस-पड़ोस के दर्शनीय स्थानों को देखने का अवसर प्राप्त होता है ।

प्राय: पिकनिक के लिए किसी प्राकृतिक स्थान का चुनाव किया जाता है । कोई पहाड़ी कोई झरना कोई झील किसी नदी का तट या कोई प्राकृतिक अभयारण्य ये सभी स्थान पिकनिक की दृष्टि से बहुत उपयुक्त होते हैं । हमारे विद्यालय में हर वर्ष अप्रैल माह में पिकनिक का कार्यक्रम होता है ।

इन दिनों विद्यालय की परीक्षाएँ समाप्त हो चुकी होती हैं अत: सभी विद्यार्थी तनाव-मुक्त होते हैं । इस बार पिकनिक के लिए हम लोग फूलों की घाटी गए । हरिद्वार से बस द्वारा गोविंद घाट पहुँचने के बाद आगे का मार्ग पैदल ही तय किया जाना था । अत: गोविंद घाट पर हमने पड़ाव डाला ।

खाया-पीया और तरोताजा होकर पैदल यात्रा पर चल पड़े । गोविंद घाट से चार किलोमीटर दूरी पर तीव्र गति से बहती हुई अलकनंदा नदी मिली । हमने नदी में उछल-कूद कर स्नान किया । आगे के मार्ग में हमें पहाड़ी गाँव मिले । चौदह किलोमीटर पैदल यात्रा के बाद हम लोग घांघरिया पहुँचे । यहाँ रात्रि में हम लोग एक होटल में ठहरे । हमने यात्रा की थकान मिटाई ।

घांघरिया से फूलों की घाटी की दूरी तीन किलोमीटर थी । मार्ग में हमें ओक देवदार और भोजपत्र के पेड़ों के घने जगल दिखाई दिए । घने जंगलों के बीच से गुजरते हुए हमने प्राकृतिक सौंदर्य और खुशनुमा मौसम का भरपूर आनंद उठाया । आखिरकार हम लोग अपनी मंजिल तक पहुंच ही गए ।

यहाँ चारों ओर खुशबू बिखेरते रंग-बिरंगे फूल शोभायमान हो रहे थे । शंकु के आकार की उस घाटी में पर्वत शृंखलाओं से कई जलधाराएँ निकल कर पुष्पावती नदी में गिरती हैं । इसी के आस-पास सुंदर फूल और ब्रह्म कमल खिले हुए थे । घाटी के ढलानों पर उगे फूलों की लंबो कतारों को देखकर हमारा मन प्रफुल्लित हो उठा ।

फूलों की घाटी को घेरे हिमालय की बरफीली चोटियों का दृश्य मत्रमुग्ध कर गया । फूलों की घाटी के नैसर्गिक दृश्यों को हमने जी भर कर देखा । शाम होते होते हम लोग घांघरिया लौट आए क्योंकि फूलों की घाटी में रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी । घांघरिया से अगले दिन हम लोग वापस गोविंद घाट आ गए ।

यहाँ हमारी स्कूल बस खड़ी थी । हम लोग त्रस पर चढ़कर वापस हरिद्वार चले आए । इस प्रकार छात्र-छात्राओं तथा हमारे साथ गए अध्यापकों ने पिकनिक का भरपूर आनंद उठाया । इस पिकनिक की कई यादों को मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 13

होली पर निबन्ध | Essay on Holi in Hindi

हमारे देश में पर्व-त्योहारों का विशेष महत्त्व है । यहाँ हर महीने कोई न कोई त्योहार अवश्य मनाया जाता है । त्योहार हमारे दैनिक जीवन की नीरसता दूर करते हैं । ये हमें खुश होने का अवसर प्रदान करते हैं ।

होली के त्योहार को भी इसी कड़ी का एक अंग माना जा सकता है । होली रंगों और उमंगों का त्योहार है । यह हमें सदैव खुश रहने का संदेश देता है । बसंत ऋतु को यों भी ऋतुओं का राजा कहा जाता है । इस ऋतु में सर्वत्र उल्लास छाया रहता है ।

सरदी समाप्त हो चुकी होती है तथा ग्रीष्म ऋतु का आगमन होने लगता है । खेतों में सरसों के पीले फूलों की शोभा विद्यमान रहती है । आम के पेड़ मंजरियों तथा छोटे-छोटे फलों से सुसज्जित होते हैं । फुलवारी में गेंदा गुलाब कनेर सूरजमुखी आदि के फूल खिले होते हैं ।

संपूर्ण वातावरण आम्र मंजरियों एवं फूलों की महक से सुवासित हो उठता है । ऐसे मौसम में होली का त्योहार आकर जन-जन को आह्वादित कर देता है । होली का त्योहार फालुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हें । इसके एक दिन पूर्व होलिका दहन का कार्यक्रम होता है ।

होलिका दानवराज हिरण्यकश्यप की बहन थी । हिरण्यकश्यप एक नास्तिक एवं अहंकारी व्यक्ति था परंतु उसका पुत्र प्रह्राद भगवान विष्णु का परम भक्त था । दानवराज चाहता था कि उसका पुत्र विष्णु को भजना छोड़ अपने पिता को भजे उन्हें ही ईश्वर माने ।

प्रह्राद ने पिता का अनुरोध ठुकरा दिया । तब हिरण्यकश्यप ने पुत्र को मार डालने का निश्चय किया । इसके लिए उसने कई प्रयास किए । उसकी बहन होलिका अपने भाई की इच्छा के अनुरूप प्रह्राद को गोद में लेकर अग्नि पर बैठ गई ।

होलिका इस समय एक ऐसी चादर ओढ़कर बैठी थी कि जो जल नहीं सकती थी । परंतु हुआ उलटा ही होलिका जल मरी और प्रह्राद का कुछ भी न बिगड़ा । इस प्रकार होली का त्योहार अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है ।

गाँवों में तो होली के कई दिनों पूर्व ही होली के गीतों को सुना जा सकता है । ढोल मंजीरा नगाड़ा करताल आदि की धुन दूर-दूर तक सुनाई देती है । यह समय रबी की फसलों के पकने का समय भी होता है । फसल पकने की खुशी को होली के त्योहार से जोड़कर देखा जाता है ।

लोग होली के अवसर पर गेहूँ की नई फसल काटते हैं तथा इसका पकवान बनाते हैं । होली के दिन लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं तथा गुलाल मलते हैं । लोगों के चेहरे तथा उनके वस्त्र रंगीन हो जाते हैं । घर-गिन सभी स्थानों पर रंग ही रग बिखरा होता है । बुजुर्ग बच्चों को गुलाल का टीका लगाकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं ।

बच्चों की टोली पिचकारी में रग भरकर खूब थमा-चौकड़ी मचाती है । बड़े भी अपने समवयस्क लोगों पर ला डालकर उनसे गले मिलते हैं । कुछ लोग विचित्र पोशाक पहनकर अन्य लोगों को हँसाते हैं । मसखरों की तो होली में खूब बन आती है । रग खेलकर सब नहाते-धोते हैं तथा स्वादिष्ट भोजन करते हैं ।

पूड़ी-कचौड़ी पुए-पकवान दही बड़े मांसाहार आदि का आनद उठाया जाता है । कुछ लोग भाँग खाकर अथवा शराब पीकर हुड्‌का मचाते हैं । कुछ लोग नालियों का कीचड़ आदि एक दूसरे पर डालते हैंदु तथा हानिकारक रंगों का प्रयोग करते हैं । इन कार्यों से कभी-कभी रंग में भोग हो जाता है ।

केवल प्राकृतिक रंगों से ही होली खेली जानी चाहिए । साथ ही होली में अपने आप ही इतना नशा है कि अन्य नशीले पदार्थों का सेवन व्यर्थ है । होली के दिन शाम के समय नाच-गान तथा एक-दूसरे से होली-मिलन का आयोजन होता है ।

कहीं मूर्ख सम्मेलन तो कहीं हास्य कवि सम्मेलन आयोजित होते हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में गाने-बजाने वालों की टोली द्वार-द्वार घूमती है । लोग चाँदनी रात में होली का भरपूर आनद उठाते हैं । इस प्रकार होली का पूरा दिन मौज-मस्ती एव उल्लास से भरा होता है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 14

इंदिरा गाँधी पर निबन्ध | Essay on Indira Gandhi in Hindi

इंदिरा गाँधी भारत की एक महान नेत्री थीं । उन्हें भारत तथा भारतवासियों से अगाध प्रेम था । वे भारत को एक महान राष्ट्र बनाने का स्वप्न देखा करती थीं । इंदिरा जी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में भारत को ऊँचा उठाने की दिशा में अनेक कार्य

किए । इंदिरा जी के किए गए कार्य भारत के लोग आज भी याद करते हैं । भारत के लोगों में उनके लिए अपार श्रद्धा भाव है । इंदिरा जी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इकलौती पुत्री थीं । उनका जन्म 19 नवंबर 1917 ई. में हुआ था । उनकी माता श्रीमती कमला नेहरू बहुत ही सरल स्वभाव की महिला थीं ।

इंदिरा जी के बचपन का नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी रखा गया था । इनकी शिक्षा शांति निकेतन के शांत वातावरण में हुई परंतु नियमित ढंग से पढ़ाई के अभाव में ये उच्च शिक्षा न प्राप्त कर सकीं । इंदिरा जी ने भारत के स्वतंत्रता आदोलन में भी भाग लिया था । जब नेहरू जी स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बने तो इंदिरा जी को राजनीति का पाठ पढ़ने का अवसर मिला ।

वे अपने पिता के साथ विदेश यात्रा पर जाती रहती थीं । इससे उनको विश्व की राजनीतिक व्यवस्था को समझने का अवसर प्राप्त हुआ । इसी बीच उनका विवाह फिरोज गाँधी से हुआ । उन्होंने दो पुत्रों राजीव और संजय को जन्म दिया ।

नेहरू जी की मृत्यु के बाद इंदिरा गाँधी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं । जब श्री लालबहादुर शास्त्री दिवंगत हुए तो इंदिरा जी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं । इंदिरा जी अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी रहीं ।

इंदिरा गाँधी ने अपने शासनकाल में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए । उन्होंने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर देशवासियों के मन में नई आशा का संचार किया । उन्होंने बीस सूत्री कार्यक्रम चलाकर देश को विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ाया ।

उन्होंने गरीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों तथा हरिजनों के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाईं । देश के प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण प्रीवी पर्स की समाप्ति आदि कार्यों के द्वारा इंदिरा जी ने भारत को एक नई दिशा दी । इंदिरा जी के ही प्रयत्नों से देश में हरित क्रांति लाई जा सकी ।

सन् 1971 ई. के भारत-पाक युद्ध में भारत की अपार विजय को इंदिरा जी के नेतृत्व कौशल का प्रमाण कहा जा सकता है । सन् 1974 ई. में पोखरण में किए गए परमाणु विस्फोट ने भारत को विश्व में एक शक्तिशाली देश बना दिया ।

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में भी इंदिरा जी की बहुत भूमिका रही । 1982 ई. में सफल एशियाड का आयोजन कर इंदिरा जी ने देश का गौरव बढ़ाया । वे गुटनिरपेक्ष देशों की एक सर्वमान्य नेता थीं । वे साहस और शक्ति का प्रतीक थीं । इंदिरा जी ने अपने जीवन में कई उतार-बढ़ाव देखे ।

पहले पति की असामयिक मृत्यु फिर पुत्र संजय गाँधी की दुर्घटना में मृत्यु । परंतु उन्होंने साहस और धैर्य नहीं छोड़ा । 31 अक्तूबर, 1984 ई. के दिन उन्हीं के सुरक्षाकर्मियों ने उनकी हत्या कर दी । देश ने एक महान एवं देशभक्त नेत्री को खो दिया ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 15

दीपावली पर निबन्ध | Essay on Deewali in Hindi

दीपावली एक प्रकाश पर्व है । यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है । यह मन के दूषित विचारों को त्यागने तथा शुभ विचारों को अपनाने की प्रेरणा देने वाला पर्व है ।

यह धन-संपत्ति और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी के पूजन का पर्व है । दीपावली हर्ष, उल्लास एवं संपन्नता की कामना का पर्व है । दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है । हिंदू परिवारों में दीप जलाए जाते हैं । अंधकारमय रात्रि दीपों मोमबत्तियों एवं विद्युत रोशनियों से जगमगा उठती है ।

घर-घर लक्ष्मी एवं गणेश पूजन का कार्यक्रम होता है । सजी-धजी दुकानें बहुत आकर्षक लगती हैं । बाजारों में काफी चहल-पहल रहती है । तोरणद्वार सजाए जाते हैं । पुष्पमालाओं, केले के तनों एवं पत्तों, झिलमिल विद्युत लड़ियों तथा दीपमालाओं से सज्जित घर, दुकान, मंडियाँ तथा बाजार बहुत शोभायमान प्रतीत होते हैं ।

दीपावली के एक महीने पूर्व से ही इस पर्व को मनाने की तैयारियों होने लगती हैं । घर की सफाई एवं लिपाई-पुताई की जाती है । वर्षा ऋतु के कारण क्षतिग्रस्त हुए कच्चे घरों की मरम्मत की जाती है । गाँवों के लोग अपने गिन को चिकना बनाते हैं । खलिहानों को समतल बनाया जाता है । घर की गंदगी दूर हो जाती है ।

लिपाई-पुताई सफाई एवं दीप प्रज्वलन से कीटाणुओं का नाश हो जाता है । दीपावली का त्योहार मनाने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है । कहा जाता है कि अयोध्या नरेश दशरथ के सुपुत्र भगवान श्री राम जब लंका के राजा रावण का संहार कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित जब अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत-सत्कार किया ।

लोगों ने अपने घरों को सजाया तथा रात्रि काल में दीप जलाकर उत्सव मनाया । उसी समय से दीपावली मनाने की परंपरा आरंभ हुई । दीपावली के दिन धन की देवी लक्ष्मी एवं गणेश जी की पूजा बहुत ही श्रद्धाभाव से की जाती है । पौराणिक कथा है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी देवी कार्तिक अमावस्या के दिन ही अवतरित हुई थीं ।

इसीलिए दीपावली के दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है । व्यापारी वर्ग इनकी पूजा कर अपने कारोबार की उन्नति की कामना करते हैं । दीपावली के दिन बच्चे बहुत उत्साहित होकर पटाखे छोड़ते हैं । आतिशबाजियों से आसमान जगमगा उठता है ।

घर-घर इतने पटाखे छोड़े जाते हैं कि दीपावली प्रकाश पर्व से कहीं अधिक ध्वनि पर्व बनता जा रहा है । पटाखों से निकला धुआँ वातावरण को प्रदूषित कर देता है । महानगरों में तो संध्या छह बजे से मध्य रात्रि तक वायु प्रदूषण इतना अधिक हो जाता है कि साँस लेने में भी परेशानी होने लगती है । इस परंपरा पर अब विराम लगाने की आवश्यकता है ।

दीपावली के दिन लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं । इस दिन सगे-संबंधियों एवंग मित्रों को मिठाइयाँ तथा कुछ उपहार देने की परंपरा चल पड़ी है । घर में स्वादिष्ट पकवान तैयार किए जाते हैं । लोगों को खील-बताशे बाँटे जाते हैं । परिवारों का आपस में मिलन होता है ।

सभी व्यक्ति आपसी भेदभाव भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं । परिवार के सदस्यों के लिए नए वस्त्र सिलाए जाते हैं । कुछ लोग दीपावली की मध्य रात्रि को विशेष पूजा-पाठ करते हैं । तांत्रिक तथा साधु-संतों के लिए दीपावली की रात्रि सिद्धि प्राप्त करने का एक अच्छा अवसर होता है ।

दीपावली के शुभ दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं । यह एक गलत प्रथा है । कई लोग जुए में अपना सब कुछ हार जाते हैं । किसी भी त्योहार को हमें इस रूप में नहीं मनाना चाहिए जिसका कि समाज पर गलत प्रभाव पड़ता हो ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 16

गाँधी जयंती पर निबन्ध | Essay on Gandhi Jayanti in Hindi

2 अक्तूबर, 1869 की तिथि को भारत भूमि पर गाँधी जी के रूप में एक महामानव अवतरित हुआ था । एक ऐसा महामानव जिसने अपने सत्कर्मों से दुनिया भर में ख्याति अर्जित की । गाँधी जी एक युगपुरुष थे । 

उन्होंने अपने युग को प्रभावित किया । इस महापुरुष ने मानवता को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया । ऐसे महापुरुष के जन्मदिन को हम लोग गाँधी जयंती के रूप में मनाते हैं । गाँधी जयंती हमें महात्मा गाँधी के पदचिह्नों पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है ।

यह जन-जागरण का दिवस है । यह श्रम के महत्व को समझने सामाजिक सद्धाव बढ़ाने तथा राष्ट्र के प्रति समर्पित होकर कार्य करने के लिए संकल्प लेने का दिन है । ऊँच-नीच, छुआ-छूत, अगड़ा-पिछड़ा आदि दुर्भावनाओं से मुक्त होकर सामूहिक हित की बात सोचना गाँधी जी के प्रिय आदर्श रहे हैं । गाँधी जयंती हमें उनके इन्हीं आदर्शो की याद दिलाता है ।

गाँधी जी का जीवन एक खुली किताब की तरह था । ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की वे जीती-जागती मूर्ति थे । हिंदू-मुसलमानों के बीच सभी तरह के भेदभाव मिटाने के लिए वे कृत संकल्पित थे । वे जाति या धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार के विभेद के खिलाफ थे । उन्हें सभी धर्म प्रिय थे । वे सभी धर्मावलंबियों का समान रूप से आदर करते थे ।

उन्होंने अछूत समझे जाने वाले लोगों को हरिजन अर्थात् ईश्वर का रूप कहा । उन्होंने सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में संपूर्ण जीवन लगा दिया । उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा की तथा लोगों को भी इनकी सेवा के लिए प्रेरित किया ।

उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया । वे हिंदी भाषा के हिमायती थे । उन्हें भारत के लोगों से बहुत प्यार था । उन्हें भारत की सभ्यता एवं संस्कृति दुनिया में सबसे अच्छी लगती थी । मानवता के इस पुजारी को हम गाँधी जयंती के दिन अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।

गाँधी जी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया । इससे पहले उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के निवासियों के अधिकारों एवं उनके सम्मान की अहिंसक लड़ाई लड़ी । भारत लौटकर उन्होंने अँगरेजों की साम्राज्यवादी नीतियों का डटकर विरोध किया । उन्होंने सत्याग्रह आदोलन चलाया । उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान किया ।

उनकी लड़ाई का तरीका पूर्णतया शांतिपूर्ण एव अहिंसक था । वे अँगरेजों को नहीं बल्कि उनकी नीतियों को अपना दुश्मन मानते थे । उन्होंने किसानों, मजदूरों, दलितों, शोषितों, भारत की दीन-हीन जनता के हितों की आवाज उठाई । उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन आदि के माध्यम से भारत के करोड़ों लोगों को सगंठित किया ।

उन्होंने अँगरेजों को भारत छोड्‌कर चले जाने के लिए विवश कर दिया । ऐसे महान व्यक्ति को हम गाँधी जयंती के दिन श्रद्धापूर्वक याद करते हैं । गाँधी जयंती एक राष्ट्रीय पर्व है । यह अनुशासन पर्व है । विद्यालयों के बच्चे इस दिन प्रभात-फेरियाँ लगाते हैं । इस दिन विभिन्न स्थानों पर विशेष कार्यक्रम होते हैं ।

विचार गोष्ठियाँ होती हैं । गाँधी जी के जीवन से संबंधित प्रदर्शनी आयोजित की जाती है । नई दिल्ली स्थित गाँधीजी की समाधि राजघाट पर देश के नेतागण आकर उन्हें नमन करते हैं । विभिन्न स्थानों पर सर्वधर्म प्रार्थना सभाएँ होती हैं । चरखे पर सूत काते जाते हैं, खादी वस्त्रों की प्रदर्शनी लगती है ।

सरकार गाँधी जयंती के अवसर पर जनकल्याण के विभिन्न कार्यक्रमों की घोषणा करती है । गाँधी जी हमारे राष्ट्रपिता हैं । वे हमारे मार्गदर्शक हैं । वे हमारी प्रेरणा के स्रोत हैं । हमें गाँधी जयंती के दिन उनके महान आदर्शो पर चलने का व्रत लेना चाहिए ।

हमें उनके आदर्शो पर चलकर सामाजिक कुरीतियों को मिटाने का प्रयास करना चाहिए । हमें जनसेवा का सकल्प लेना चाहिए । हमें गाँधी जी के रामराज्य के सपने को पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिए ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 17

दशहरा (दुर्गा पूजा) पर निबन्ध | Essay on Dusshera in Hindi

दशहरा शक्ति की उपासना का पर्व है । उस शक्ति की जो संपूर्ण विश्व को संचालित करती है वह शक्ति जो प्रकृति के कण-कण में समाई हुई है । संपूर्ण जगत के क्रियाकलाप शक्ति के बल पर ही संचालित होते हैं ।

प्रत्येक मनुष्य अपनी आत्मिक एवं शारीरिक शक्ति के अधीन ही कार्य करता है । दशहरा इसी शक्ति की देवी माँ भगवती की आराधना का पर्व है । यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक पर्व है । दशहरा पर्व दस दिनों तक मनाया जाता है । इसका आरंभ आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से होता है ।

घरों मंदिरों दुर्गा स्थानों तथा अन्य स्थानों पर दुर्गा देवी की प्रतिमा या कलश की स्थापना की जाती है । दुर्गा के नौ रूपों जिसे नवदुर्गा कहा जाता है इनकी आराधना मंत्रों के उच्चारण तथा धार्मिक विधि-विधान से की जाती है । दुर्गा सप्तसती का पाठ होता है । माँ दुर्गा को फल फूल सुगंधित पदार्थ आदि वस्तुएँ अर्पित की जाती हैं । इस पूजा का समापन नवमी तिथि को होता है ।

पूजा समाप्ति पर कहीं-कहीं माँ दुर्गा को पशु-बलि दी जाती है । कुमारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है । बहुत से व्यक्ति पूरे नवरात्र व्रत-उपवास करते हैं । व्रत की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दान देकर संतुष्ट किया जाता है ।

दशमी तिथि को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है । इसी दिन भगवान राम ने अत्याचारी रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा की भक्तिपूर्वक आराधना की थी । इसी परंपरा को सांकेतिक रूप में निभाते हुए विजयादशमी के दिन विभिन्न स्थानों पर रावण मेघनाद तथा कुंभकर्ण जैसे राक्षसों के पुतले जलाए जाते हैं ।

दशहरे का त्योहार पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है । उत्तर भारत के राज्यों में इस पर्व का विशेष महत्त्व है । पश्चिम बंगाल में दशहरे के त्योहार को दुर्गा पूजा के नाम से मनाया जाता है । बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में इस अवसर पर विभिन्न स्थानों में मेले लगते हैं ।

कई स्थानों पर रामलीलाएं होती हैं । रामलीलाओं के माध्यम से मर्यादा पुरुष राम के जीवन एव उनके महान कार्यों की झाँकी प्रस्तुत की जाती है । बच्चे युवा वृद्ध सभी उत्साहित होकर मेले में जाते हैं तथा रामलीला का आनद उठाते हैं । कई स्थानों पर विशाल मंडप बनाया जाता है तथा माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है । सभी इन प्रतिमाओं का दर्शन करने जाते हैं ।

दशहरे के अवसर पर सर्वत्र उल्लास एव खुशी छाई रहती है । लोग अपने घरों से सज-धज कर, नए वस्त्र धारण कर निकलते हैं । बाजार दुकानें आदि भी आकर्षक प्रतीत होती हैं । वस्त्रों फलों एव मिठाइयों की दुकानों पर खासी भीड़ होती है ।

बच्चे मेले में झूला झूलते हैं तथा खेल-तमाशे देखते हैं । चटपटी खाने-पीने की वस्तुओं की भी खूब बिक्री होती है । उत्सव का समापन माँ दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन के साथ होता है । प्रतिमा विसर्जित करने से पहले इसे महत्त्वपूर्ण रास्तों से होकर घुमाया जाता है । सैकड़ों व्यक्ति एक साथ जयघोष करते चलते हैं ।

ढ़ोल-नगाड़े तथा बैंड बज उठते हैं । अंत में प्रतिमा किसी नदी या सरोवर में विसर्जित कर दी जाती है । दशहरा हिंदुओं का एक महान पर्व है । यह पूजा अर्चना और आराधना का पर्व है । यह मिलन और भाईचारे का पर्व है । यह शक्ति अर्जित कर इसे शुभ कार्यों के प्रति अर्पित करने का संदेश देने वाला पावन पर्व है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 18

रामनवमी पर निबन्ध | Essay on Ram Navami in Hindi

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म हुआ था । दशरथ के सबसे बड़े पुत्र राम के जन्मदिन को हम लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं ।

रामनवमी भगवान राम के आदर्शों के अनुसरण का पर्व है । यह उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण करने का पर्व है । श्रीराम विष्णु भगवान के सातवें अवतार माने जाते हैं । हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है जब-जब अनीति और अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच जाता है तब-तब भगवान् विभिन्न रूपों में अवतरित होकर पापियों एव अत्याचारियों का नाश करते हैं ।

राम ने दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया । इनके जन्म पर अयोध्यावासियों ने खुशियाँ मनाईं । राम ने अपने बाल्यकाल में ही अपनी प्रतिभा एवं शूरवीरता का परिचय दे दिया था । उन्होंने राक्षसों का बंध कर महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की ।

श्रीराम का संपूर्ण जीवन हमारे लिए आदर्श है । गुरु तथा माता-पिता की आज्ञा का पालन करने में ये कभी भी पीछे नहीं रहे । माता कैकेयी की इच्छानुसार वन जाते समय भी इन्हें दु:ख न हुआ । राज्याभिषेक होने वाला था लेकिन पिता के वचन का पालन करने पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ तपस्वी की वेशभूषा में वन की ओर चल पड़े ।

अहिल्या का उद्धार किया शबरी के जूठे बेर खाए । इससे पूर्व शिवजी का धनुष तोड़कर जनक के प्रण की रक्षा की । जब लंकेश रावण छल से सीता को हरण करके ले गया तो साधारण मनुष्यों की भांति विलाप करने लगे ।

वानरराज बालि का वध कर मित्र सुग्रीव के जीवन की रक्षा की तथा उसे राजसिंहासन पर बिठाया । वानर और भालुओं को अपना प्रिय मित्र बनाया । हनुमान को अपना सबसे प्रिय भक्त बनाकर वानर जाति का सम्मान बढ़ाया ।

राम अपने शत्रुओं के प्रति भी बहुत दयालु थे । बालि के पुत्र अंगद के प्रति वे अपार स्नेह रखते थे । कुटिल बुद्धि वाली माता कैकेयी को अपनी माता से अधिक मान देते थे । परम शत्रु रावण के भाई विभीषण का लका विजय से पूर्व राज्याभिषेक कर उन्होंने अपनी महानता का परिचय दिया ।

परशुराम ने घोर अपमान किया परंतु उनके साथ बहुत विनम्रता से पेश आए । धर्म की रक्षा करना नीच तथा पापग्रस्त लोगों का उद्धार करना एवं गुरुओं का सम्मान करना प्रभु राम के जीवन का प्रमुख उद्देश्य था । ऐसे आदर्श व्यक्ति की याद में रामनवमी का त्योहार पूरे पाक्तिभाव से मनाया जाता है ।

रामनवमी के दिन मंदिरों को आकर्षक ढग से सजाया जाता है । विभिन्न स्थानों पर राम के जीवन की झांकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं । धार्मिक स्थलों पर भजन-कीर्तन किया जाता है । इस अवसर पर गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ का पाठ बहुत ही श्रद्धापूर्वक किया जाता है । राम-कथा का प्रवचन होता है । लोग भक्तिभाव से राम की पूजा करते हैं ।

इस अवसर पर हनुमान की भी पूजा-अर्चना की जाती है । रामनवमी के अवसर पर दान का भी काफी महत्त्व है । कई स्थानों पर सामूहिक भोज भडारा आदि का कार्यक्रम होता है । ‘सीता राम’ का अखंड कीर्तन होता है । रामनवमी के दिन संपूर्ण वातावरण राममय हो उठता है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 19

महात्मा गाँधी पर निबन्ध | Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था । इनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई. में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था । इनके पिता करमचंद गाँधी राजकोट के दीवान थे ।

अपने बचपन में साधारण से दिखने वाले बालक मोहनदास ने आगे चलकर भारत का नाम संपूर्ण विश्व में ऊँचा उठाया । इनका पूरा जीवन त्याग और तपस्या का जीवन था । रवींद्रनाथ ठाकुर ने इन्हें ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया ।

गाँधी जी बचपन से ही ईमानदार थे । अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद ये कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गए । अपनी इस यात्रा के समय उन्होंने अपनी माता को शराब न पीने तथा मासाहार न करने का वचन दिया था ।

इस वचन को उन्होंने आजीवन निभाया । इंग्लैंड से ये वकील बनकर लौटे और मुंबई में वकालत करने लगे । कुछ समय बाद एक मुकदमे के सिलसिले में इन्हें दक्षिण अफ्रीका की यात्रा करनी पड़ी । दक्षिण अफ्रीका में गोरे शासक काले रंग के लोगों के साथ बहुत भेदभाव करते थे ।

गाँधी जी को भी यहाँ अपमानित होना पड़ा । गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में गोरे शासकों के अत्याचार के विरुद्ध अहिंसक संघर्ष आरंभ किया । उन्होंने वहाँ बसे भारतीयों को संगठित किया तथा सबने मिलकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी । अंत में भारतीयों की विजय हुई ।

भारत लौटकर गाँधी जी ने देश भर का दौरा किया । अँगरेजी शासन से दु:खी लोगों के कष्टों को देखकर गाँधी जी का मन द्रवित हो उठा । उस समय भारत में कई प्रकार की सामाजिक समस्याएँ भी थीं । लोगों में छुआ-छूत की भावना थी । अधिकांश नागरिक अशिक्षित थे । सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा तथा जाति प्रथा के कारण लोग बहुत दु:खी थे ।

अछूत समझे जाने वाले हिंदुओं को मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार नहीं था । गाँधी जी ने इन सभी सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान दिया । इन्होंने अछूतों को हरिजन कहा तथा उन्हें मंदिरों में जाकर पूजा करने का अधिकार दिलाया । छुआ-छूत की भावना का विरोध किया तथा अछूतों के उद्धार के कार्यक्रम शुरू किए ।

स्त्री शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया । उन्होंने लोगों को शराब एवं मादक द्रव्यों से दूर रहने की शिक्षा दी । गाँधी जी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया । वे देश के करोड़ों लोगों को इस सग्राम में शामिल करने में सफल रहे । उन्होंने अँगरेजों से लड़ने के लिए सत्य और अहिंसा का मार्ग चुना ।

शिक्षित-अशिक्षित सभी लोगों ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया । विद्यार्थियों ने अपनी पढ़ाई छोड़ी, वकीलों ने वकालत छोड़ दी, बहुत से व्यक्तियों ने अँगरेजी सरकार की नौकरी छोड़ दी । संविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार, रॉलेट एक्ट विरोध, नमक कानून भंग, भारत छोड़ो आंदोलन आदि के माध्यम से उन्होंने देश के लोगों में देशभक्ति की भावना जगा दी ।

इन आंदोलनों ने अँगरेजी शासन की नींव हिला दी । इस दौरान वे कई बार जेल गए । जेल से छूटते ही वे फिर से अपना कार्य आरंभ कर देते थे । गाँधी जी का जीवन बहुत ही सीधा-सादा था । वे अपने हाथ से कते सूत की लँगोटी पहनते थे । यह देखकर लाखों लोग चरखे पर सूत कातकर इससे बना कपड़ा पहनने लगे ।

गाँव-गाँव में खादी के वस्त्रों का प्रचार हुआ । गाँधी जी भारत के गाँवों को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे । इसके लिए उन्होंने कई कार्यक्रम चलाए । उन्होंने कुष्ठ रोगियों अनाथ बच्चों विकलांगों आदि की सेवा कर समाज के लोगों के समक्ष आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया ।

उन्होंने विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच प्रेम और भाईचारे की भावना पर बल दिया । हिंदू-मुसलमानों के बीच एकता कायम रखने के लिए उन्होंने कई बार उपवास भी किए । गाँधी जी उपवास को आत्म-शुद्धि का एक अर्ग मानते थे । गाँधी जी के प्रयासों से भारत 15 अगस्त 1947 ई. के दिन आजाद हुआ ।

परंतु भारत को दो भागों में बाँट दिया गया । इसके फलस्वरूप पाकिस्तान नामक नए राष्ट्र का उदय हुआ । इस विभाजन के समय भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए । गाँधी जी को इससे बहुत दु:ख हुआ । उन्होंने कई दंगाग्रस्त स्थानों का दौरा कर दंगा समाप्त कराने का प्रयास किया ।

30 जनवरी 1948 ई. के दिन एक धर्मांध व्यक्ति ने महात्मा गाँधी की गोली चलाकर हत्या कर दी । उस समय वे एक प्रार्थना सभा में भाग ले रहे थे । गाँधी जी की हत्या की खबर सुनकर राष्ट्र रो पड़ा । ससार से एक ऐसा पुरुष विदा हो गया जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही लोगों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया था ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 20

क्रिसमस पर निबन्ध | Essay on Christmas in Hindi

क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है । हालाँकि यह मूलत: ईसाइयों का त्योहार है परतु इसे अन्य समुदायों के लोग भी सांकेतिक रूप से मनाते हैं ।

यह त्योहार प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर के दिन मनाया जाता है । ईसा मसीह के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार हमें प्रेम एवं भाईचारे का संदेश देता है । क्रिसमस ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है । इस दिन ईसाई समुदाय के लोग स्थानीय चर्च में जाकर विशेष प्रार्थना करते हैं ।

चर्च या गिरजाघर को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है । लोग अपने घरों में रंगाई-पोताई एव सजावट करते हैं । घर-गिन बिजली के झालरों से जगमगा उठता है । पुराने फर्नीचरों की जगह नए फर्नीचर खरीदे जाते हैं । लोग नए एवं आकर्षक वस्त्र पहनते हैं । बाजार रंगीन रोशनियों से युक्त बहुत ही मनमोहक लगते हैं । दुकानों पर खरीदारों की भीड़ बढ़ जाती है ।

इस अवसर पर केक का बहुत महत्त्व है । वास्तव में केक और क्रिसमस एक-दूसरे के पर्याय हैं । केक और पेस्ट्री के बिना क्रिसमस अधूरा है । कुछ लोग घर पर ही केक तैयार करते हैं तो कुछ बाजार से खरीद कर लाते हैं । ईसाई परिवारों में इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं ।

लोग एक-दूसरे को केक खिलाकर बड़े प्रसन्न होते हैं । चर्च में तथा घरों में ईसा मसीह के सम्मुख प्रार्थना होती है मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं । लोग एक-दूसरे को क्रिसमस की बधाइयाँ देते हैं । मित्रों परिचितों एवं संबंधियों के बीच आकर्षक उपहारों का आदान-प्रदान होता है ।

क्रिसमस के अवसर पर क्रिसमस ट्री सजाने का खास महत्त्व है । परिवार के सदस्य क्रिसमस ट्री के इर्द-गिर्द एकत्र होकर प्रभु ईसा मसीह की वदना करते हैं । क्रिसमस ट्री के चारों ओर नाच-गाकर त्योहार का आनद उठाया जाता है ।

क्रिसमस के दिन ईश्वर का प्रतिनिधि शांताक्लाज आता है ऐसा ईसाइयों का मानना है । वह सभी को कुछ न कुछ उपहार भी देता है । खासकर बच्चों के लिए वह अवश्य ही आकर्षक उपहार लाता है । इस परंपरा को ध्यान में रखते हुए कुछ लोग क्रिसमस के अवसर पर शांताक्लाज का रूप धारण कर उपहार बाँटते देखे जा सकते है ।

ईसा मसीह ईश्वर के इकलौते पुत्र माने जाते हैं । इन्होंने इस पृथ्वी पर जन्म लेकर मनुष्यों पर कई उपकार किए । इन्होंने लोगों को प्रेम एव सद्धावना का संदेश दिया । ईसा मसीह ने दीन-दुखियों के कष्ट मिटाए इन्होंने पापियों का उद्धार किया ।

इन्होंने लोगों को ईश्वर की महानता का ज्ञान कराया । ये आजीवन अंधविश्वास पाखंड और सामाजिक बुराइयों से लड़ते रहे । धीरे-धीरे इनकी ख्याति फैल गई । उस समय के यहूदी शासकों को ईसा मसीह का संदेश भड़काऊ तथा अप्रिय लगा ।

इन्हें सूली पर लटका दिया गया । किंतु अपने अनुयायियों के खातिर वे तीसरे दिन फिर से जी उठे । पुन: जीवित होकर प्रभु यीशु ने लोगों के उद्यार का कार्य जारी रखा । इन्होंने लोगों को पवित्र हृदय से परमेश्वर का स्मरण करने के लिए प्रेरित किया । ईसा मसीह के संदेश आज भी लोकप्रिय हैं ।

क्रिसमस के अवसर पर इन्हें श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है । हमें क्रिसमस के मौके पर ईसा मसीह के आदर्शो पर चलने का व्रत लेना चाहिए । हमें मानवता की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए । प्रेम आधारित समाज की रचना कर हम ईसा मसीह के सपनों को साकार कर सकते हैं ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 21

मदर टेरेसा पर निबन्ध | Essay on Mother Teresa in Hindi

मदर टेरेसा को पूरी दुनिया में ममतामयी माँ के नाम से जाना जाता है । उन्होंने अपना पूरा जीवन दीन-दुखियों की सेवा में समर्पित कर दिया । उनका जीवन सादगी एवं उच्च मानवीय भावनाओं से भरा हुआ था । गरीबों अनाथों बीमार व्यक्तियों तथा असहाय व्यक्तियों के प्रति उनके मन में अपार दया एवं प्रेम की भावना थी ।

उन्हें मानवता का महान पुजारिन कहा जा सकता है । मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. में अल्वानिया में हुआ था । उनके बचपन का नाम ऐग्नेस गोंजा बोजारिया था । बाद में उनका नाम सिस्टर टेरेसा रखा गया । टेरेसा आरंभ से उदार, विनम्र तथा शांत स्वभाव की थीं ।

मदर टेरेसा सन् 1928 ई. में भारत आई । यहाँ आकर उन्होंने कोलकाता के सेंट मेरी हाईस्कूल में शिक्षिका के रूप में कार्य करना आरंभ किया । धीरे-धीरे उनके हृदय में भारत के दीन-दुखियों की सेवा करने की भावना जागृत हुई ।

सन् 1937 ई. में इन्होंने नन के रूप में लोगों की सेवा का संकल्प लिया । उन्होंने कोलकाता की एक गंदी बस्ती में एक विद्यालय की स्थापना की । उन्होंने बंगाली तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाएँ सीखीं । उन्होंने ईसाई ननों की परंपरागत पोशाक छोड़ साड़ी पहनना आरंभ किया ।

कुछ वर्षों बाद उन्हें यक्ष्मा रोग हो गया । वे स्वास्थ्य लाभ के लिए दार्जिलिंग चली गई । दार्जिलिंग यात्रा के समय रास्ते में एक वृद्ध को उन्होंने घोर कष्ट में देखा । वह गली में असहाय स्थिति में पड़ा हुआ था । इस दृश्य को देखकर उनके मन में ऐसे लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा हुई । उन्होंने अपना जीवन दीन-हीन लोगों की सेवा में बिताने का निश्चय किया ।

1950 ई. में मदर टेरेसा ने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ नामक संस्था की स्थापना की । उन्होंने बीमार लोगों वृद्धों तथा अनाथ बच्चों के लिए कई आश्रम एवं अनाथालय खोले । उन्होंने स्वयं कोलकाता की गंदी बस्ती में जाकर रहने का निश्चय किया । उन्होंने अपने लिए गरीबी के जीवन को चुना ।

मदर टेरेसा भूखों नंगों गृहविहीन लोगों तथा असहाय लोगों की सेवा करना अपना कर्त्तव्य समझती थीं । वे प्यासे को पानी पिलाती थीं भूखे को भोजन कराती थीं । मदर ने गरीब और असहाय व्यक्तियों को प्रेम धैर्य और सांत्वना प्रदान कर अपने कर्त्तव्य का पालन किया ।

मदर टेरेसा ने जाति धर्म और संप्रदाय के आधार पर किसी की सेवा नहीं की बल्कि लोगों की सेवा मानवता के आधार पर की । उन्होंने नशे के सेवन वेश्यावृत्ति तथा गर्भपात का विरोध किया । उन्होंने गरीबों की नि स्वार्थ सेवा की । उनके द्वारा स्थापित संस्थाएँ विभिन्न देशों में समाज-कल्याण का कार्य कर रही हैं ।

मदर टेरेसा की महान सेवाओं को देखते हुए 1979 ई. में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया । 1980 ई. में मदर टेरेसा का ‘भारत रत्न’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया । उन्हें दुनिया भर के अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार भी प्रदान किए गए ।

5 सितंबर 1997 ई. के दिन इस महान महिला का देहांत हो गया । इनके अंतिम संस्कार में भाग लेने दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों के नेता आए । मदर टेरेसा के चले जाने से दुनिया ने गरीबों का एक बहुत बड़ा शुभचिंतक खो दिया ।

कोलकाता वासी रो पड़े । सबने मदर का श्रद्धापूर्वक विदाई दी । मदर को बाद में संत की उपाधि दी गई । भारत के लोग आज भी उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हैं ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 22

बैसाखी पर निबन्ध | Essay on Baisakhi Festival in Hindi

बैसाखी मेष-संक्रांति सौर नववर्ष के प्रथम दिन के रूप में मनाया जाता है । भारत के कुछ भागों खासकर पजाब प्रात में यह त्योहार बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है । यह एक फसली त्योहार है ।

किसान खेत में खड़ी फसल को देखकर खुशी प्रकट करते हैं । बैसाखी खालसा पंथ के स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है । बैसाखी के त्योहार के समय रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है । लोग इस खुशी को नाच-गाकर प्रकट करते हैं । युवक-युवतियाँ भाँगड़ा नृत्य प्रस्तुत करती हैं ।

इधर गेहूँ के फसलों की कटाई होती है तो उधर पंजाबी गीत और नृत्य लोगों को आनंद विभोर कर देता है । गुरुद्वारों में विशेष उत्सव का कार्यक्रम होता है । पूजा-प्रार्थना होती है । सिक्सों के दसवें एव अंतिम गुरु गोविंद सिंह ने सन् 1699 में बैसाखी के शुभ दिन ही खालसा पंथ की स्थापना की थी । खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य धर्म की रक्षा करना था ।

बैसाखी पंजाब के अतिरिक्त उत्तरांचल हिमाचल प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर तथा नेपाल के कुछ भागों में भी नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है । इस दिन पवित्र नदियों एवं सरोवरों में स्नान करने का विशेष महत्त्व है । कई स्थानों पर मेले लगते हैं ।

हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं तथा मेला देखने जाते हैं । अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में विशेष कार्यक्रम होता है । लोग यहाँ के सरोवर में स्नान करते हैं तथा धार्मिक उत्सव में भाग लेते हैं !बैसाख मास बसत ऋतु की समाप्ति का समय होता है । इस समय प्रकृति सजी-धजी होती है ।

वातावरण उल्लासपूर्ण होता है । पंजाब में होल-नगाड़े तथा भाँगड़ा की धुन पर नृत्य करने वालों का उत्साह देखते ही बनता है । लोग खाते-पीते हैं मौज-मस्ती करते हैं । मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनंद उठाया जाता है । घर में अनेक प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं ।

बैसाखी का त्योहार प्राय: 13 अप्रैल के दिन मनाया जाता है । बिहार एवं झारखंड में इस दिन चने और जी की सन्तु खाने की प्रथा है । कच्चे आम की चटनी भी बनती है जो बड़ी स्वादिष्ट होती है । आसाम में बैसाखी के त्योहार को ‘बिहू’ के रूप में मनाया जाता है । यह भी एक फसली त्योहार है ।

बैसाखी पंजाबियों के लिए आत्मगौरव का दिन है । यह देश की स्वतंत्रता के खातिर बलिदान हुए लोगों को याद करने का दिन है । 13 अप्रैल 1919 ई. में बैसाखी के दिन ही जलियाँवाला हत्याकांड हुआ था । इस हत्याकांड में लगभग 1500 लोग मारे गए थे । बैसाखी के दिन इन अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 23

जन्माष्टमी पर निबन्ध | Essay on Janmashtami in Hindi

जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण को स्मरण करने का पावन पर्व है । भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था । इस तिथि को हम लोग जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं ।

श्रीकृष्ण की माता का नाम देवकी तथा पिता का नाम वासुदेव था । देवकी कंस की बहन थी । कंस ने प्राणभय से देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर रखा था । श्रीकृष्ण कारागार में ही जन्मे । इनके जन्म के समय मध्यरात्रि थी सभी पहरेदार सो गए थे ।

वासुदेव बालक को गोद में लेकर मथुरा से गोकुल चले गए । माता यशोदा तथा पिता नद के द्वारा इनका पालन-पोषण हुआ । बाद में इन्होंने अत्याचारी कंस को मार डाला । श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ बड़ी मनमोहक थीं । सूरदास ने श्रीकृष्ण की बाल-क्रीड़ाओं का अपनी कविता में बहुत अच्छा वर्णन किया है ।

इन्हें मक्खन चुराकर खाने में बड़ा मजा आता था । गोप-गोपियों के संग खेलना, उन्हें चिढ़ाना, गाय रचना, बाँसुरी बजाना आदि कार्य इन्हें बहुत ही प्रिय लगता था । जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीकृष्ण की इन्हीं बाल-लीलाओं की झाँकी प्रस्तुत की जाती है ।

श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में अनेक साहसिक कार्य किए । बक अघ और कालिय नाग को अपने वश में किया । कस चाकू शिशुपाल जरासंघ कालयवन आदि दुराचारियों का विनाश कर जगत में प्रसिद्धि पाई । दुष्ट कौरवों के विनाश में इन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई ।

महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को उपदेश देकर उसका मोह भंग किया । अर्जुन का सारथी बन कर पांडवों की विजय का मार्ग प्रशस्त किया । गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली से उठाकर इंद्रदेव का घमंड चकनाचूर कर दिया । द्रोपदी ने पुकारा तो उसकी लाज बचाने तुरत चले आए ।

इन्होंने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह भगवद्रीता में संकलित है । यह पुस्तक करोड़ों लोगों का मार्गदर्शन करती चली आ रही है । यह हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक ग्रथ है । श्रीकृष्ण सर्वगुण-संपन्न तेजस्वी एवं पराक्रमी थे । जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान् कृष्ण की पूजा करते हैं ।

दिन-भर व्रत तथा उपवास रखते हैं । मंदिरों तथा पूजा स्थानों को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है । घर में विविध प्रकार के पकवान एव भोग लगाने की सामग्री तैयार की जाती है । कई स्थानों पर रासलीला का आयोजन होता है । विभिन्न स्थानों पर श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित झाँकी प्रस्तुत की जाती है ।

ध्वनि एवं प्रकाश व्यवस्था से झाँकी स्थल को शोभायुक्त एव आकर्षक बनाया जाता है । लोग शाम होने पर मंदिरों की ओर चल पड़ते हैं । रात्रि के बारह बजे मंदिरों में आरती होती है । इसमें लोग बहुत उत्साह से भाग लेते हैं । रात्रि बारह बजे के बाद ही उपवास तोड़ा जाता है । लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं ।

मथुरा और वृदावन में जन्माष्टमी का उत्सव विशेष धूम-धाम से मनाया जाता है । देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहाँ एकत्र होकर कीर्तन भजन रासलीला आदि में भाग लेते हैं । टेलीविजन तथा आकाशवाणी पर यहाँ के समारोहों का सीधा प्रसारण किया जाता है । यहाँ के मंदिरों की शोभा दर्शनीय होती है ।

जन्माष्टमी का त्योहार हमें गीता में वर्णित श्रीकृष्ण के उपदेशों पर अमल करने की प्रेरणा देता है । श्रीकृष्ण का जीवन-चरित्र कर्म प्रधान था । इनके जीवन से हमें निरंतर अच्छे कर्म करते रहने की सीख लेनी चाहिए । सभी व्यक्तियों को अपने आचरण के द्वारा समाज एवं राष्ट्र की मार्ग प्रशस्त करना चाहिए ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 24

सरस्वती पूजा (बसंत पंचमी) पर निबन्ध | Essay on Saraswati Puja in Hindi

माँ सरस्वती विद्या की देवी हैं । संसार की समस्त विद्याएं एवं कलाएँ इनके अधीन हैं । ये वीणावादिनी हैं । अत: विद्यार्थी एवं गीत-संगीत के प्रेमी माँ सरस्वती की आराधना करते हैं ।

विद्यालयों तथा शिक्षण संस्थाओं में सरस्वती पूजा महोत्सव बहुत ही श्रद्धा एव विश्वास के साथ मनाया जाता है । सरस्वती पूजा का आयोजन बसंत पंचमी के दिन किया जाता है । शिक्षण संस्थाओं में माँ सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है ।

शिल्पकार पहले से ही माँ सरस्वती की मूर्ति बनाने में तन्मयता से जुट जाते हैं । विद्यालय तथा पूजन स्थल को विविध प्रकार से सजाया जाता है । विद्यालय परिसर में रंग-बिरंगी पताकाएँ झंडियाँ आदि लहराती हैं । ध्वनि प्रसारक यंत्रों से सरस्वती वंदना के गीतों एव अन्य धार्मिक गीतों का प्रसारण होता है ।

पंडित-पुरोहित सरस्वती माँ की मूर्ति के समक्ष पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठान कराते हैं । माँ सरस्वती की आरती की जाती है । आरती समाप्त होने पर बूदियों लट्टुओं तथा फलों के प्रसाद वितरित किए जाते हैं । सरस्वती पूजा की तैयारी विद्यार्थीगण कई दिनों पूर्व से ही आरंभ कर देते हैं ।

इसके लिए चंदा इकट्ठा किया जाता है । बच्चों की टोली द्वार-द्वार जाकर चंदा एकत्र करती है । चंदे से प्राप्त धन सरस्वती पूजन के विभिन्न कार्यो में व्यय किया जाता है । परंतु कुछ छात्र सरस्वती पूजा के नाम पर एकत्र चंदे का दुरुपयोग करते हैं ।

इस धन को मौज-मस्ती के लिए उपयोग में लाया जाता है । ईश्वर उपासना के लिए श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता होती है आडंबर और दिखावे की नहीं । परंतु आजकल सरस्वती पूजा का स्वरूप दिखावा, ताम-झाम और आडंबर का होता चला जा रहा है ।

बसत पंचमी के दिन लड़कियाँ पीली साड़ी पहनकर माँ सरस्वती की वदना करती हैं । लोग मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं । इस दिन तिल के लट्ट चढ़ाने की भी परपरा है । सर्वत्र उत्साह और हर्ष का दृश्य दिखाई देता है । विभिन्न विद्यालयों में इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं ।

गीत-संगीत एवं नृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है । कहीं नाटक तो कहीं वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन होता है । कविता प्रेमी विद्यार्थी काव्य पाठ करते हैं । सरस्वती पूजा धर्मप्राण देश भारत के लोगों की धार्मिक आस्था का प्रतीक है ।

इस अवसर पर विद्यार्थियों को सच्चे मन से विद्यादायिनी माँ सरस्वती की आराधना करनी चाहिए । जिन व्यक्तियों पर भी माँ सरस्वती की कृपा होती है वे अपनी विद्या के बल पर संपूर्ण संसार को आलोकित करने में सक्षम होते हैं । जिन पर सरस्वती की कृपा होती है वे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं ।

माँ सरस्वती की इसी महानता के कारण सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन सरस्वती वंदना से आरंभ होता है । माँ सरस्वती कुबुद्धि का विनाश कर सद्‌बुद्धि प्रदान करने वाली हैं । इनकी आराधना से अज्ञान रूपी अंधकार का विनाश हो जाता है ।

सरस्वती पूजा के अगले दिन माँ सरस्वती की प्रतिमा के विसर्जन का कार्यक्रम होता है । छात्रगण किसी वाहन पर प्रतिमा रखकर माँ सरस्वती की जय-जयकार करते चलते हैं । वे नाच-गाकर अपना उल्लास प्रकट करते हैं । सड़कों गलियों महल्लों से होकर यह टोली किसी नदी या जलाशय तक जाती है । यहाँ पर प्रतिमा विसर्जित कर दी जाती है । इस प्रकार सरस्वती पूजन का कार्यक्रम समाप्त हो जाता है ।


Hindi Nibandh for Students (Essay) # 25

ईद पर निबन्ध | Essay on Eid in Hindi

ईद दुनिया भर में मुसलमानों का सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है । यह त्योहार भारत सहित पूरी दुनिया में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है । यह आपसी मिलन और भाईचारे का पर्व है ।

यह त्योहार भारत की बहुआयामी संस्कृति का प्रतीक है । ईद के त्योहार के आने पर भारत के सभी समुदायों के लोग बहुत खुश होते हैं । ईद-उल-फितर या ईद का त्योहार रमजान के पवित्र महीने के बाद मनाया जाता है । मुसलमानों के लिए रमजान के दिनों का बहुत महत्त्व है ।

इस दौरान वे दिन भर पूर्ण उपवास रखते हैं । पानी पीना भी वर्जित होता है । शाम को वे ‘नमाज’ पढ़कर ही भोजन ग्रहण करते हैं । पूरे एक महीने तक ऐसा कठोर व्रत रखना सरल कार्य नहीं है परंतु छोटे बच्चों एवं कुछ असहाय लोगों को छोड़कर सभी मुसलमान इस व्रत का पालन करते हैं ।

रमजान के महीने के अंतिम दिन जब आकाश में चाँद दिखाई देता है तो उसके दूसरे दिन ईद मनाई जाती है । ईद का त्योहार मनाने की तैयारी पहले से ही आरंभ कर दी जाती है । बच्चे, युवा, वृद्ध, सभी उत्साहित दिखाई देते हैं । अमीर-गरीब सभी नए वस्त्र, जूते-चप्पल उपहार आदि खरीदने में व्यस्त हो जाते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

फल, गोश्त एवं मिठाई की दुकानों पर रमजान के दिनों से लेकर ईद तक काफी भीड़ लगी रहती है । बाजार में चहल-पहल बढ़ जाती है । माँग बढ़ जाने से खाने-पीने की वस्तुओं की कीमत भी बढ़ जाती है । इस कारण गरीबों की ईद कुछ फीकी पड़ जाती है । परतु ईद तो फिर भी ईद है कम आय वाले भी शक्ति भर व्यय करते हैं ।

ईद के दिन सुबह से ही बच्चे युवा वृद्ध सभी विशेष प्रकार के वस्त्र पहनकर सिर पर जालीदार टोपी लगाकर ईदगाह में जमा होने लगते हैं । यहाँ सभी पंक्तिबद्ध होकर विशेष नवाज अदा करते हैं । दिल्ली की प्रसिद्ध जामा मस्जिद में हजारों मुसलमान जब नमाज अदा करते हैं तो यह दृश्य बहुत ही आकर्षक होता है ।

देश की सभी प्रमुख मस्जिदों में भी ऐसा ही सजीव दृश्य देखा जा सकता है । सभी अपने भेद-भाव भुलाकर गले मिलते हैं एक-दूसरे को ईद की बधाई देते हैं । लोग अपनेसे ”रल्पंइधयों के घर जाकर उन्हें ईद की मुबारकबाद देते हैं । ईद के दिन सबके घरों में मीठी सेवई तैयार की जाती है ।

साथ ही अनेक प्रकार के व्यंजन एवं पकवान बनाए जाते हैं । सभी एक-दूसरे को सेवई, मिठाई, पकवान आदि खिलाकर आनंदित महसूस करते हैं । बच्चे खा-पीकर मेला देखने जाते हैं । कुछ लोग सिनेमा देखने तो कुछ घूमने-फिरने जाते हैं । ईद का त्योहार सबके लिए खुशियाँ लेकर आता है ।

यह त्योहार दया, परोपकार, उदारता, भाईचारा आदि मानवीय भावनाओं से युक्त होता है । ईद के अवसर पर गरीबों को दान देकर संतुष्ट किया जाता है । यह त्योहार आपसी वैर-भाव भूलकर इस्लाम के मूल आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित करता है ।

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