इतिहासहीन राष्ट्र अधिक भाग्यशाली होते हैं पर निबन्ध | Essay on Happy is the Nation without History in Hindi!

जिस राष्ट्र की नींव पूर्वजों के संचित अनुभवों को आत्मसात करते हुए और सांस्कृतिक परम्परा पर आधारित होती है, उनके विचारों, भावनाओं का रंग अन्य देशों के निवासियों से पृथक होता है, जैसे समान प्रकृति वाले पौध भिन्न प्रकार की मुद्रा में अलग-अलग प्रकार से विकसित होते हैं ।

प्रत्येक मनुष्य अपने स्वर्णिम अतीत पर गर्व करता है, वृद्ध लोगों की विशेषता होती है कि वे हमेशा अपने अतीत की चर्चा करते रहते हैं । इसलिए इतिहास हीन राष्ट्र की कल्पना करना भी असंभव प्रतीत होता है, राष्ट्र की पृष्ठभूमि इतिहास ही होता है ।

लेकिन सह भी सत्य है कि किसी भी राष्ट्र का शानदार इतिहास एक प्रकार के स्वप्नलोक को जन्म देता है, जोकि वास्तविक कठोरता से दूर होता है । इतिहास का निर्माण जब किसी देश-प्रेमी द्वारा होता है, तो वह प्रशंसा से पूर्ण होता है और जब यह किसी विरोधी द्वारा लिखा जाता है तो इसमें व्यंग्य का पुट होता है ।

इससे मनुष्य में गर्व और निराशा की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं । वे स्वर्णिम इतिहास द्वारा निर्धारित राह में बिना विचार किए अनुगमन करते है । अतीत के गौरव और वर्तमान निराशा के बीच झूलते रहते है । इतिहास वीर पुरुषों के शौर्य से भरा हुआ है । अपने प्रिय नायकों की उपलब्धियों पर उसे विश्वास होता है और अन्य राष्ट्रों के योद्धा की यह भर्त्सना करता है ।

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फ्रांस और इंग्लैंड के मध्य यही राष्ट्र विरोधी भावना युद्ध का कारण बनी थी । इसी प्रकार साइप्रस में ईसाइयों और तुर्को के बीच द्वेष की भावना बढ़ गई । अरब और इजराइल का दो देशों के रूप में अस्तित्व ऐतिहासिक भिन्नता के कारण ही है ।

समान सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्य राष्ट्र के निर्माण में सहायक होते हैं, लेकिन अभिरुचियों में समानता के कारण ही लोग एक दूसरे के निकट आते हैं । लोग अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए आपस में मिल-जुल कर अच्छे पड़ोसी की तरह रहने में तभी सफल हो सकते हैं, जबकि वे अपने अतीत को पूरी तरह से भुला दें ।

क्योंकि अतीत में उन दो राष्ट्रों के बीच विरोध नहीं रहा होगा यह असंभव हैं । जो राष्ट्र केवल अपने वर्तमान के लिए चिन्तित है और अपने अतीत को नहीं जानते उनमें सामंजस्य की भावना अधिक होगी । परस्पर हित और सहयोग की भावना के कारण वे एक दूसरे के करीब आ जाते है ।

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निस्संदेह मनुष्य लालची, स्वार्थी और आत्मकेन्द्रित होता हे, आज की समस्याएँ भी इतनी बढ़ गई हैं कि प्राचीन ऐतिहासिक आदर्शो, मूल्यों के बारे में सोचने का समय उसके पास नहीं हैं । इतिहास के विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न शक्तियाँ मिलकर कार्य करती है, इस कारण राष्ट्र विभाजित हो जाते है और लोग विभिन्न श्रेणियों मे बँट जाते हैं ।

प्राचीन भारत के इतिहास में सामाजिक और आर्थिक उन्नति को मद्देनजर रखते हुए समाज को चार वर्णो में बाँटा गया, इससे समाज में व्यवस्था आ गई, लेकिन प्रकारान्तर से इसके कारण ही जाति-व्यवस्था और विभिन्न विवादों का जन्म हुआ । अत: किसी भी स्वर्णिम इतिहास द्वारा स्वयं को भ्रांति में रखने की बजाय जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने वाले राष्ट्र ही भाग्यशाली होते हैं ।

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