क्लोनिंग का नैतिक आधार पर निबंध | Ethical Ground of Cloning!

प्रजनन में नर और मादा से प्राप्त होने वाली विशिष्ट कोशिकायें, जिन्हें ‘ जननिक कोशिकायें ‘ कहते हैं, भाग लेती हैं। माता और पिता के पक्ष की जब दो अर्द्धसूत्री जाननिक कोशिकायें आपस में संयोजित होती हैं तो उनके मेल से बनने वाली नई कोशिका में पूरे 46 गुणसूत्र होते हैं। इस प्रक्रिया को निषेचन कहते हैं और जो रचना बनती है उसे ‘ युग्मनज ‘ । यह युग्मनज गर्भ में समय के साथ विभाजित और विकसित होते हुए अंतत : नए जीव के रूप में जन्म लेता है। इस तरह एक कोशिका से अरबों कोशिकाओं वाले मनुष्य शरीर का निर्माण होता है। इससे स्पष्ट है कि हर कोशिका में जीव निर्माण के लिए सारी सूचनाएं मौजूद रहती हैं। लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि जब हर कोशिका में एक ही तरह के गुणसूत्र विद्यमान रहते हैं तो फिर प्रजनन के लिए जननिक कोशिका की ही क्या आवश्यकता है? क्या शरीर की किसी भी कोशिका से जीवन निर्माण नहीं किया जा सकता? इसी प्रयास में क्लोनिंग की तकनीक विकसित हुई ।

क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है जो एकमात्र जनक (माता अथवा पिता) से गैर लैगिक विधि द्वारा उत्पन्न होता है। उत्पादित ‘ क्लोन ‘ अपने जनक से शारीरिक और आनुवंशिक रूप से पूर्णत: समरूप होता है। इस प्रकार किसी भी जीव का प्रतिरूप बनाना ही क्लोनिंग कहलाता है। क्लोनिंग की परम्परागत तकनीक में भ्रूण क्लोनिंग (embryo cloning) या ट्विनिंग (twining) का प्रयोग किया जाता है । लेकिन 1997 में डॉ० इयान विल्युट और उनके सहयोगियों ने नाभिकीय स्थानांतरण तकनीक का प्रयोग करके ‘ डाली ‘ नामक भेड़ का क्लोन तैयार किया। इस तकनीक के अन्तर्गत नर और मादा से अलग-अलग कोशिकायें प्राप्त कर उसे डी.एन.ए. निकाल लिया जाता है। इसके बाद उनको निष्क्रिय कर डिम्ब में स्थापित कर दिया जाता है।

प्रारम्भिक दौर में क्लोनिंग के लिए अन्य जीवों को चुना गया; जैसे – चूहे, भेड़. बकरी इत्यादि। लेकिन अब वैज्ञानिकों का ध्यान मानव क्लोनिंग की ओर भी जाने लगा है। मानव क्लोनिंग में भी कोई भिन्नता नहीं है। सारी की सारी प्रक्रिया वही है। इस प्रक्रिया में मादा अण्डाणु की मदद ली जाती है। उसके जीवन के पैतृक गुण ले जाने वाले अवयव निकाल दिये जाते है फिर नर के शरीर से कोई कोशिका ली जाती है और उसका डी.एन.ए. निकाल कर डी.एन.ए, रहित अण्डाणु में पहुंचा दिया जाता है। यह प्रक्रिया इतनी सहज नहीं है। इसके लिए बड़ी संख्या में अण्डाणु लिए जाते हैं। एक बड़ा अंश बर्बाद होता है। यह सब उसकी वृद्धि पर निर्भर करता है। जहां वृद्धि सही और बिना रुके होती है, वही सफल होता है।

परमाणु बम के बाद, मानव क्लोनिंग ही सबसे ज्यादा क्रांतिकारी आविष्कार है। दोनों में एक समानता यह भी है कि दोनों ही सृजन और विध्वंसमें सक्षम हैं। क्लोनिंग के फायदे नुकसान के बारे में संक्षेप में यहां दिया जा रहा है ।

क्लोनिंग से लाभ:

इस तकनीक की सफलता से कैंसर, लाइलाज बीमारी नहीं रहेगा क्योंकि तब हम जान चुके होंगे कि शरीर की कोशिकाएं कैसे सक्रिय और निष्क्रिय की जा सकती हैं। वैज्ञानिक अभी इस पहेली को बूझ नहीं पाये हैं कि कैसे कुछ कोशिकाएं विशिष्ट प्रकार के ऊतकों से भिन्न हैं और कैंसर युक्त कोशिकाएं किस तरह इस अन्तर को खो बैठती हैं। क्लोनिंग से इन सभी जटिलताओं की व्याख्या की जा सकेगी ।

क्लोनिंग के विकास-क्रम में जल्दी ही ऐसा समय आयेगा, जब दुर्घटना में घायल आदमी के तंत्रिका तंत्र और मेरुदंड को दोबारा उगाया जा सकेगा । विकलांगता नाम की चीज समाप्त की जा सकेगी ।

भेड़ और गाय- भैंसों की अच्छी नस्लों को क्लोन किया जा सकेगा । विलुप्तप्राय पशु पक्षियों का क्लोन तैयार कर उन्हें नष्ट होने से बचाया जा सकता है। इसी तरह वनस्पतियों की रक्षा में भी यह तकनीक फायदेमंद हो सकेगी ।

क्लोनिंग का जो सीधा और प्रत्यक्ष लाभ मिलने वाला है उसमें यकृत (लीवर) प्रत्यारोपित करवाने के लिए क्लोनिंग से नये लीवर का निर्माण शामिल है। उसी तरह किडनी और हड्‌डियों का भी निर्माण किया जा सकेगा, जो मरीज की जैविक संरचना से हूबहू मिलेगा ।

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प्लास्टिक सर्जरी यानी शल्य चिकित्सा में शरीर आसानी से बाहरी आरोपित अंगों को स्वीकार नहीं करता और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मानव क्लोनिंग की तकनीकी के जरिये डॉक्टर इच्छुक व्यक्ति से अस्थि, मज्जा, वसा, कार्टिलिज और कोशिकाओं के समान जैविक संरचना वाला हूबहू प्रतिरूप तैयार करेंगे, जिससे शल्य चिकित्सा पर चामत्कारिक प्रभाव पड़ेगा । गंभीर दुर्घटना में व्यक्ति के क्षत-विक्षत अंगों को बिल्कुल दुरुस्त किया जा सकेगा ।

सामान्य तौर पर एक आदमी में 8 दोषयुक्त जीन्स होते हैं। इन्हीं दूषित जीन्स के कारण मनुष्य कई तरह की बीमारियों का शिकार होता है। आने वाले समय में क्लोनिंग की उन्नत तकनीकी से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कम-से-कम मनुष्य को दोषयुक्त जीन्स के कारण कोई विकार न हो।

दिल के लाखों मरीजों के लिए क्लोनिंग वरदान साबित होगी । हृदय की कोशिकाओं का क्लोनिंग के जरिये निर्माण किया जा सकेगा और बाद में इन मजबूत कोशिकाओं का हृदय क्षतिग्रस्त हिस्से में स्थानांतरण संभव हो सकेगा।

क्लोनिंग में सफलता हासिल कर लेने के बाद बढ़ती उम्र की प्रक्रिया रोकी जा सकती है और वृद्धावस्था से युवावस्था की ओर लौटना संभव हो सकता है।

कृत्रिम प्रजनन की मौजूदा तमाम विधियों की सफलता दर 10 प्रतिशत से भी कम है। संतान की इच्छा रखने वाले माँ-बाप को इस पूरी प्रक्रिया में काफी मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। अब क्लोनिंग के जरिये सफलता की दर में जबरदस्त इजाफा होगा और तमाम नि:संतान दंपति बच्चा पा सकेंगे ।

क्लोनिंग से हानि:

मानव क्लोन से अपराध बढ़ने की आशंका है। क्लोन पूरी तरह जीन के स्थानान्तरण से पैदा होता है और जिस व्यक्ति की कोशिका से भ्रूण बनता है क्लोन उसकी पूरी कार्बन कॉपी होता है । यानी क्लोनिंग से एक ही तरह के कई लोग पैदा हो सकते हैं। ऐसे में मुमकिन है कि अपराध कोई करे और पकड़ा कोई जाय ।

मानव क्लोनिंग से पुरुष की उपयोगिता पर प्रश्न चिह्‌न लग गया है। अब यह स्त्री की इच्छा पर निर्भर करेगा कि वह किस पुरुष के बच्चे की मां बनना चाहती है, परंतु क्या इसे समाज स्वीकारेगा? चीन-परीक्षण का विस्तार होने पर नौकरी प्राप्त करने या जीवन-बीमा सेवा में जीन आधारित भेदभाव शुरू हो सकते हैं।

संतानोत्पत्ति में नर की भूमिका समाप्त हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। क्लोनिंग के लिए जिस कोशिका से केन्द्रक लिया जाता है वह नर या मादा में से किसी भी एक का हो सकता है। मगर क्लोनिंग के लिए मादा की डिम्ब कोशिका अत्यावश्यक है। इसमें नर की आवश्यकता पर प्रश्नचिह्‌न लग गया है।

जिस पितृ कोशिका से क्लोन मानव पैदा किया जाएगा, उस क्लोन की कोशिका की आयु पितृ कोशिका के बराबर होगी । इस तरह से मानव क्लोन अपने पिता की आयु के बराबर हो जाएगा, जबकि अभी वह नवजात शिशु ही होगा । यानी क्लोन के जीवन से उतने वर्ष घट जाएंगे ।

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क्लोनिंग कोई सस्ता खेल नहीं है। अमीर ही इसका प्रयोग कर सकेंगे, क्योंकि इस प्रक्रिया में करीब एक लाख डॉलर खर्च होंगे। संतान की इच्छा रखने वाले माँ-बाप के लिए टेस्ट ट्‌यूब बेबी कहीं ज्यादा सस्ती है जिस पर 50 हजार डॉलर से भी कम खर्च करने पड़ते हैं।

क्लोनिंग से बड़े पैमाने पर भ्रूण हत्या होगी । डाली नामक भेड़ का क्लोन तैयार करने वाले डॉ० इयान वील्मुट के आकड़ों के अनुसार 277 केन्द्रकों के संयोग से 27 भ्रूण तैयार करने में सफलता मिली और इन भ्रूणो को 13 भेड़ों में प्रत्यारोपित किया गया ,परन्तु केवल एक भेंड ही बच्चा जा सकी।

सिर्फ अमीरों के लिए ही क्लोनिंग नायाब तोहफा साबित होगी । ये अमीर अपना क्लोन तैयार कराकर जैबिक अंगों के सुरक्षित बैंक तैयार कर सकते हैं और जब किडनी, लीवर, दिल, फेफड़ा आदि जैसा कोई अंग खराब होगा तो वे क्लोन को मारकर उससे ये अंग हासिल कर सकते हैं । मानव क्लोनिंग के जरिए आने वाले समय में ऐसे व्यक्ति भी तैयार हो सकते हैं जिन्हें मानव अंगों के लिए गुलामों की तरह खरीदा-बेचा जा सकता है ।

क्लोनिंग की सहायता से बड़ी संख्या में सौदागर युवतियों का क्लोन तैयार कर लेंगे और इससे देह-व्यापार, नारी-शोषण तथा अपराध को बढ़ावा मिलेगा जो अत्यंत घातक साबित होगा ।

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मनुष्य का माँस भी बहुत-से देशों में खाया जा रहा है। यह मानव क्रूरता की हद है। आने वाले समय में इसके लिए क्लोन को आसानी से लोग इस्तेमाल करेंगे और मानवीय मूल्यों का तेजी से पतन होना शुरू हो जायेगा ।

भारत में मानव क्लोनिंग पर प्रतिबंध:

भारत सरकार के जैव -प्रौद्योगिकी विभाग ने मनीपाल एकेडेमी ऑफ हायर एजूकेशन के सलाहकार डॉ० एम.एस. वालियाथन की अध्यक्षता में एक समिति की स्थापना की थी । इस समिति ने भारत में भी मानव-क्लोनिंग पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की है । जीन-थिरैपी भी तभी की जा. सकेगी, जब रोगी की जान बचाने का कोई तरीका न बचा हो । मृत भ्रूण या गर्भपात वाले भ्रूण भी अनुसंधान के लिए तभी इस्तेमाल किए जा सकेंगे, जब माता-पिता से अनुमति ली गई हो। इसी तरह डीएनए या अन्य जैव सामग्री तथा कोशिकाएं प्राप्त करने के लिए संबंधित व्यक्ति की अनुमति लेना जरूरी होगा । अगर इस जैव-सामग्री से कोई व्यापारिक लाभ उठाया जाता है, तो उसमें उस व्यक्ति को भी हिस्सा मिलेगा, जिससे जैव-सामग्री प्राप्त की गई है । इस बारे में पेटेंट के लिए आवेदन करने पर यह बताना होगा कि जैव-सामग्री कहां से मिली । अभी समिति की इन सिफारिशों पर विचार होगा और स्वीकृत होने पर ही इन्हें लागू किया जाएगा ।

रोमन कैथोलिक चर्च तो मानव क्लोनिंग को शैतानी कृत्य करार दे चुका है। स्वयं पोप ने ब्रिटिट बोसेलियर के प्रयाग की निंदा की है । अमेरिकी राष्ट्रपति बुश भी इसके खिलाफ हैं और अमेरिका में तो बकायदा कानून बनाकर मानव क्लोनिंग को प्रतिबंधित किया जा चुका है। दूसरे देशों में भी मानव क्लोनिंग को प्रतिबंधित किया जा चुका है। मानव क्लोनिंग की धार्मिक-नैतिक आधार पर भर्त्सना अथवा प्रतिबधो का मुख्य कारण यही है कि चर्च इसे सृष्टिकर्ता यानी भगवान के कार्यो में हस्तक्षेप मानता है और इसे प्राकृतिक विधान के प्रतिकूल समझता है । जबकि नैतिकतावादियों का आग्रह है कि महज चिकित्सकीय कारणो से या अंगों के प्रत्यारोपण की दृष्टि से मानव क्लोन को जन्म देना न केवल घोर-स्वार्थपरता है बल्कि जीव-हत्या सदृश अपराध भी है। सभ्य समाज की मान्यता है कि मानव क्लोनिंग एक व्यक्ति को जीवित रखने के लिए दूसरे की हत्या है और यह काफी हद तक बर्बरता या अमानुषिकता है ।

दूसरी ओर वैज्ञानिको का कहना है कि मानव क्लोनिंग तकनीक का विकास न केवल चिकित्सा विज्ञान या शल्यक्रिया की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य मे आवश्यकता होने पर किसी भी व्यक्ति को अल्पकालावधि में जीवित करने, रोगो और मृत्यु पर विजय पाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। शायद यूँ ही विश्व की कतिपय प्रयोगशालाओं मे नोबेल विजेताओं, वैज्ञानिकों, लेखकों या ख्याति प्राप्त व्यक्तियों के शुक्राणुओं, रक्त कोशिकाओं अथवा डी.एन.ए. के नमूने संरक्षित नही किये जा रहे हैं। यह भी एक तथ्य है कि अमेरिका मे प्रतिबन्ध के बावजूद चोरी छिपे अथवा सरकार की शह पर विभिन्न प्रयोगशालाओं मे मानव क्लोनिंग के प्रयोग जारी है । विश्वविख्यात मैसाचुसेट्‌स इंस्टीट्‌यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मे इस तरह के प्रयोगो की अफवाहें पहल भी कई बार फैल चुकी है । क्लोनिंग पर विवाद केवल धार्मिक अथवा नैतिक पक्ष को लेकर ही नही बल्कि इसके कानूनी पक्ष को लेकर भी है । मसलन, एक व्यक्ति जो वर्षों या सदियों पहले मर -चुका है और सरकारी दस्तावेजों मै जिसे मृत दर्शाया जा चुका है यदि वैज्ञानिक उसे क्लोनिंग के जरिये जीवित कर देते हें, तो समकालीन समाज मे उसकी विधिक हैसियत क्या होगी ? क्लोन को मृल व्यक्ति का पुत्र माना जायेगा, सहोदर अथवा समकक्ष? दूसरे लोगों के साथ उसके नाते-रिश्ते क्या होंगे फिर एक प्रश्न यह भी है कि क्लोन की उपयोगिता समाप्त होने पर उसे जीवित रहने दिया जायेगा अथवा नष्ट कर दिया जायेगा ?

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