भारत-अफ्रीका: प्रगाढ़ होते संबंध पर निबंध | Essay on Indo-African Relationship in Hindi!
भारत-अफ्रीका के संबंध इस समय प्रगाढ़ता के नए दौर में प्रवेश कर गए हैं । इन्हीं संबंधों को और मजबूती प्रदान करने हेतु प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इथोपिया तथा तंजानिया की मई 2011 में 6 दिवसीय यात्रा की ।
इथोपिया की राजधानी आदिस अबाबा में दूसरे अफ्रीका-भारत मंच शिखर सम्मेलन के पूर्ण अधिवेशन की सह-अध्यक्षता प्रधानमंत्री ने इक्वेटोरियल गिनी के राष्ट्रपति जो अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष भी हैं, के साथ की । इस अवसर पर अफ्रीकी संघ आयोग के अध्यक्ष डॉ. जीन पिंग ने भी शिखर सम्मेलन में भाग लिया ।
पहली बार डॉ. मनमोहन सिंह को अनेक अफ्रीकी नेताओं के साथ विचार-विमर्श का मौका मिला जिनमें इथोपिया, अल्जीरिया, बुरंडी, चाड, इजिप्ट, इक्वेटोरियल गिनी, केन्या, लीबिया, मलावी, नामीबिया, नाइजीरिया, सेनेगल, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका तथा स्वाजीलैण्ड आदि अफ्रीकी देश शामिल थे । यहाँ तक कि इथोपिया की किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली भारत यात्रा थी ।
यद्यपि अफ्रीकी देशों में दक्षिण अफ्रीका भारत के लिए चिर परिचित नाम है जिसके साथ भारत के औपनिवेशिक काल से सम्बन्ध रहे हैं और इब्सा, जी-20, डब्ल्यूटीओ में पारस्परिक भागीदारी के साथ जलवायु परिवर्तन तथा संयुक्त राष्ट्र में सुधार जैसे वैश्विक मुद्दों में दोनों देश समान राय रखते हैं ।
दोनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्य भी हैं । आज के दौर में, जबकि आर्थिक शक्ति के साथ अफ्रीकी संघ की राजनीतिक दृष्टि से ताकत बढ़ गई है, भारत को संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता दिलाने में 53 देशों के इस समूह के सहयोग की नितान्त आवश्यकता है ।
अफ्रीकी संघ एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना डरबन में 10 जुलाई 2002 को ऑर्गनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी (ओएयू) के स्थान पर 53 अफ्रीकी सदस्य राष्ट्रों को मिलाकर की गई थी । इसकी स्थापना के बाद से भारत नियमित तौर पर इसके विभिन्न शिखर सम्मेलनों में भाग लेता रहा है, लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहला अफ्रीका-भारत मंच शिखर सम्मेलन का आयोजन है जो 8-9 अप्रैल, 2008 को दिल्ली में सम्पन्न हुआ ।
इससे भारत-अफ्रीका संघ के सम्बन्धों में एक प्रकार से नाटकीय मोड़ आया । शिखर सम्मेलन में दिल्ली घोषणा-पत्र तथा सहयोग हेतु अफ्रीका-भारत फ्रेमवर्क को भी अपनाया गया जिसमें 21वीं सदी में भारत-अफ्रीका के बीच सहयोग का एक ब्यूप्रिंट तैयार किया गया और इससे व्यापार अर्थव्यवस्था, कृषि, शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, जल प्रबन्धन तथा मानव संसाधन विकास जैसे क्षेत्रों में विकास में तेजी का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
साथ ही इस अवरपर पर खाद्य, ऊर्जा संकट, संयुक्त राष्ट्र सुधार और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर भी रचनात्मक विचार-विमर्श हुआ था । यहाँ यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक होगा कि भारत ने जिन सभी सर्वाधिक कम विकसित देशों के साथ एकतरफा शुल्क मुक्त तथा तरजीही बाजार पहुँच की घोषणा की है, उनमें 34 अफ्रीकी देश हैं ।
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अफ्रीकी विद्यार्थियों हेतु भारत में उच्च शिक्षा के भी पर्याप्त अवसर मुहैया कराए जाते हैं और दीर्घकालीन छात्रवृत्तियाँ भी प्रदान की जाती रही हैं । भारत स्वयं भी अफ्रीका के साथ सूचना प्रौद्योगिकी तथा व्यावसायिक शिक्षा में सहयोग का इच्छुक है । ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के साथ कृषि क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास के क्षेत्र में भी अफ्रीका के साथ सहयोग की काफी सम्भावनाएं है ।
वर्ष 2008 में भारत की राजधानी दिल्ली में सम्पन्न अफ्रीकी संघ के सदस्य देशों के राष्ट्रप्रमुखों के साथ हुए पहले शिखर सम्मेलन की कड़ी में दूसरा शिखर सम्मेलन आदिस अबाबा में मई 2011 में आयोजित किया गया था । यहाँ उल्लेखनीय है कि अफ्रीका के साथ शिखर बैठक आयोजित करने वाला भारत अकेला देश नहीं है, जापान, यूरोपीय संघ और अमरीका, अफ्रीकी देशों के साथ समय-समय पर शिखर बैठकें आयोजित करते रहे है ।
यह भी गौरतलब है कि अफ्रीकी महाद्वीप की आर्थिक, खनिज संसाधन तथा सस्ते मानव संसाधनों का दोहन करने की भारी गुंजाइश को देखते हुए उक्त सभी देश इसका लाभ उठाना चाहते हैं । यह भी उल्लेखनीय है कि पहली शिखर बैठक में भारत ने अफ्रीका हेतु 8 अरब डॉलर की सहायता और अनुदान योजनाओं की घोषणा की थी ।
12 अफ्रीकी शासनाध्यक्षों और अनेक देशों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में शुरू हुए शिखर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने अफ्रीका को दुनिया में विकास की एक बड़ी धुरी बताया और कहा कि विश्व की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से छह उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र की हैं ।
शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में अफ्रीका के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत बनाने की दिशा में भारत ने अफ्रीकी देशों के लिए 5 अरब डॉलर के कर्ज के साथ बुनियादी ढाँचे का विकास व क्षमता निर्माण को गति देने हेतु कई और कदम उठाने का एलान किया ।
चूँकि इस बार के शिखर सम्मेलन की थीम थी “Enhancing Partnership : Shared Vision” इसलिए उसी भावना के अनुरूप शिखर सम्मेलन की समाप्ति के बाद घोषणा पत्र जारी किया गया । घोषणा-पत्र में अप्रैल, 2008 में नई दिल्ली में सम्पन्न पहले शिखर सम्मेलन के दौरान अपनाए गए दिल्ली घोषणा पत्र और सहयोग फ्रेमवर्क तथा उसके पश्चात् सहमत सम्बद्ध आयोजना जिसमें सामरिक भागीदारी को सुदृढ़ करने हेतु ठोस नींव रखने की व्यवस्था है, का उल्लेख करते हुए 2008 से अब तक हुई प्रगति को भी रेखांकित किया गया ।
अफ्रीका तथा भारत की भाईचारे तथा स्वतंत्रता हेतु संघर्ष में भागीदार बनने तथा आत्म निर्णय की उपलब्धि को याद करते हुए पारस्परिक भागीदारी को भविष्य में बनाए रखने के साथ ही समानता, पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक लाभ तथा लोगों के मध्य ऐतिहासिक समझ-बूझ को और प्रगाढ़ बनाए रखने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की गई है । घोषणा पत्र में भारत तथा अफ्रीका दोनों देशों के नौजवान ऊर्जस्वी जनसंख्या को विकास की मुख्यधारा में लाने का भी आहान किया गया ।
हाल के वर्षों में भारत से अफ्रीका को अनुदान, विदेशो प्रत्यक्ष निवेश तथा रियायती ऋणों के रूप में भारी वित्तीय प्रवाह को जारी रखते हुए सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में विशेषकर मानव संसाधन विकास में क्षमता निर्माण, निजी क्षेत्र के विकास, ढाँचागत क्षेत्र को सहायता बढ़ाने, कृषि तथा मध्यम उद्यमों में उसके उपयोग पर बल दिया गया । इससे निश्चित तौर पर अफ्रीका में भारतीय निवेश का बड़ी मात्रा में विस्तार होगा तथा द्विपक्षीय व्यापार में भी बढ़ोतरी होगी ।
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घोषणा-पत्र में वैश्विक खाद्य, ऊर्जा तथा वित्तीय सेवा जैसी वैश्विक चुनौतियों का उल्लेख करते हुए उनसे मिल-जुलकर मुकाबला करने की बात भी की गई है । साथ ही ऐसा करते समय विकासशील देशों के हितों तथा रक्षोपायों पर विशेष ध्यान देने पर भी बल दिया गया है ।
विकसित देशों से अपने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने हेतु ठोस कार्रवाई का आहान करने के साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना करने हेतु विकासशील देशों को पर्याप्त वित्त पोषण तथा प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण करने की अपील भी की गई है ।
इसी सन्दर्भ में क्योटो प्रोटोकोल, बाली एक्शन प्लान 2007, कानकुन सम्मेलन 2010 का भी उल्लेख किया गया है । इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन पर दोनों देशों के समान विचार/स्थिति का उल्लेख करते हुए भारत की ओर से अफ्रीका को सूखा तथा मरुस्थलीकरण पर रोक लगाने में सहायता देने की वचनबद्धता के साथ ही उसके ग्रेट ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट का भी समर्थन किया गया है ।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग की महत्ता को रेखांकित करते हुए उसे उत्तर-दक्षिण सहयोग में बदलने के बजाय पूरक बनाने का आहान किया गया है और इस सम्बन्ध में अफ्रीका के लगभग 33 सर्वाधिक कम विकसित देशों का भी उल्लेख किया गया है ।
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घोषणा-पत्र में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को मिल-जुलकर काम करते हुए वृहद आर्थिक नीति मे समन्वयन बढ़ाने के लिए आग्रह किया गया है । जी-20 को अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग हेतु महत्वपूर्ण मंच के रूप में स्वीकारते हुए वैश्विक आर्थिक प्रणाली में अफ्रीका के निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व देने का भी आहान किया गया है ।
संयुक्त राष्ट्र सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों (MDGs) को 2015 तक प्राप्त करने की जरूरत पर जोर दिया गया है और इस हेतु तकनीकी सहयोग तथा वित्तीय सहायता प्रदान करने का भी आश्वासन दिया गया है । साथ ही विकसित देशों से विकासशील देशों को सरकारी विकास सहायता के तौर पर 0.7 प्रतिशत जीएनआई लक्ष्य प्राप्त करने की अपनी वचनबद्धता को पूरा करने का भी आग्रह किया गया है ।
इथोपिया की यात्रा के बाद दूसरे चरण में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पूर्वी अफ्रीकी देश तंजानिया की तीन दिवसीय यात्रा की । स्मरण रहे कि प्रधानमंत्री की यह यात्रा सितम्बर 1997 के बाद सरकारी स्तर पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी और यह भी उल्लेखनीय है कि पहले शिखर सम्मेलन के दौरान तंजानिया ने सह अध्यक्षता की थी । भारत के प्रधानमंत्री तथा तंजानिया के राष्ट्रपति की उपस्थिति में तीन समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए ।
भारत द्वारा तंजानिया को 18 करोड़ डॉलर का कर्ज देने की वचनबद्धता व्यक्त की गई । भारत की ओर से यह कर्ज दार-ए-सलाम में जल आपूर्ति परियोजनाओं हेतु दिया जाएगा । दोनों देशों ने अपनी बातचीत में आतंकवाद व समुद्री डाकुओं की गतिविधियों के खिलाफ सहयोग बढ़ाने तथा संयुक्त राष्ट्र में समग्र सुधार पर मिल-जुलकर काम करने और आतंकवाद के खिलाफ खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान पर भी जोर दिया ।
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हाल के वर्षों में भारत-अफ्रीका द्विपक्षीय व्यापार काफी बढ़ा है । दोनों के मध्य वर्ष 2010 में 46 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जो 2001 की तुलना में 15 गुना अधिक है । इसके बाद 2015 तक 70 अरब डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है ।
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इस हेतु भारत ने अपनी ओर से भारत-अफ्रीकी कारोबार परिषद् की स्थापना का भी प्रस्ताव किया ताकि बड़े कारोबारियों में निकटता स्थापित हो सके । गौरतलब है कि अफ्रीका में पहले से टाटा, महिंद्रा, भारती, एअरटेल, बजाज ऑटो, ओरएनजीसी जैसी कम्पनियाँ कार्यरत है ।
भारत की इस्पात कम्पनियों के लिए भी अफ्रीका में फलने-फूलने की भारी सम्भावनाएं हैं । मोजाम्बिक में जिंदल साउथ बेस्ट ने कोल ब्लाक लिए है । इसी प्रकार जगुआर ओवरसीज लिमिटेड राजधानी मलूना में टेक्नो पार्क का निर्माण कर रही है । यह भी स्मरणीय है कि पूर्वी अफ्रीकी देशों विशेषकर तंजानिया, केन्या तथा युगांडा में गुजराती मूल के कारोबारियों का अहम् योगदान है । भारत की दवा, टेलीकॉम, वाहन और उपभोक्ता उत्पाद अफ्रीका में काफी लोकप्रिय हैं ।
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निःसन्देह भारत-अफ्रीकी साझेदारी सहयोग का एक जीता जागता उदाहरण है, जो सहयोग के तीन स्तम्भों पर टिका है । पहला-क्षमता निर्माण तथा दक्षता हस्तान्तरण,
दूसरा-व्यापार तथा तीसरा-आधारभूत संरचना विकास । एशिया तथा अफ्रीका महाद्वीप के ये देश विश्व में उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं । अफ्रीका-भारत सहयोग बढ़ाने सम्बन्धी फ्रेमवर्क और आदिल अबाबा घोषणा-पत्र दोनों ही आर्थिक तथा राजनीतिक सहयोग की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं ।
भारत-अफ्रीका सहभागिता में जहाँ भारत अफ्रीका की आवश्यकताओं तथा प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है, वहीं भारत के लिए अफ्रीका के भौतिक तथा मानवीय दोनों दृष्टियों से उसकी काबिलियत तथा शानदार अनुभवों का लाभ उठाने का मौका भी है । आशा की जाती है कि भारत और अफ्रीका के बीच संबंध आने वाले दिनों में और मजबूत होंगे ।