भारत की सामाजिक समस्याएँ पर निबंध | Essay on Social Problems in India!
भारत एक विशाल देश है जहाँ विभिन्न धर्मों, जाति व वेश-भूषा धारण करने वाले लोग निवास करते हैं । दूसरे शब्दों में अनेकता में एकता हमारी पहचान और हमारा गौरव है परंतु अनेकता अनेक समस्याओं की जननी भी है ।
जाति, भाषा, रहन-सहन व धार्मिक विभिन्नताओं के बीच कभी-कभी सामंजस्य स्थापित रखना दुष्कर हो जाता है । विभिन्न धर्मों व संप्रदायों के लोगों की विचारधाराएँ भी विभिन्न होती हैं । देश में व्याप्त प्रांतीयता, भाषावाट, संप्रदायवाद या जातिवाद इन्हीं विभिन्नताओं का दुष्परिणाम है । इसके चलते आज देश के लगभग सभी राज्यों से दंगे-फसाद, मारकाट, लूट-खसोट आदि के समाचार प्राय: सुनने व पढ़ने को मिलते हैं ।
नारी के प्रति अत्याचार, दुराचार तथा बलात्कार का प्रयास हमारे समाज की एक शर्मनाक समस्या है । प्राचीनकाल में जहाँ नारी को देवी तुल्य समझा जाता था आज उसी नारी की भावनाओं को दबाकर रखा जाता है । पुरुष का अह उसे अपने समकक्ष स्थान देने के लिए विरोध करता है ।
हमारे पूज्य कवि तुलसीदास के अनुसार:
‘ढोल, गँवार, सूद, पशु, नारी ।
ADVERTISEMENTS:
सकल ताड़ना के अधिकारी ।।‘
इससे पता चलता है कि तुलसीदास ने अपने युग की मान्यताओं को लिपिबद्ध किया है । समाज में स्त्रियों एवं शूद्रों की स्थिति बड़ी दयनीय थी । दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियाँ आज भी नारी को कष्टमय व असहाय जीवन जीने के लिए बाध्य करती हैं ।
केवल अशिक्षित ही नहीं अपितु हमारे कथित सभ्य-शिक्षित समाज में भी दहेज का जहर व्याप्त है । प्रतिदिन कितनी ही भारतीय नारियाँ दहेज प्रथा के कारण मनुष्य की बर्बरता का शिकार हो जाती हैं अथवा जिंदा जला दी जाती हैं ।
ADVERTISEMENTS:
अंधविश्वास व रूढ़िवादिता जैसी सामाजिक बुराई देश की प्रगति को पीछे धकेल देती है । अंधविश्वास व रूढ़िवादिता हमारे नवयुवकों को भाग्यवादिता की ओर ले जाती है फलस्वरूप वे कर्महीन हो जाते हैं । अपनी असफलताओं में अपनी कमियों को ढूँढ़ने के बजाय वे इसे भाग्य की परिणति का रूप दे देते हैं ।
भ्रष्टाचार भी हमारे देश में एक जटिल समस्या का रूप ले चुका है । सामान्य कर्मचारी से लेकर ऊँचे-ऊँचे पदों पर आसीन अधिकारी तक सभी भ्रष्टाचार के पर्याय बन गए हैं। जिस देश के नेतागण भ्रष्टाचार में डूबे हुए होंगे तो सामान्य व्यक्ति उससे परे कब तक रह सकता है । यह भ्रष्टाचार का ही परिणाम है कि देश में महँगाई तथा कालाबाजारी के जहर का स्वच्छंद रूप से विस्तार हो रहा है ।
जातिवाद की जड़ें समाज में बहुत गहरी हो चुकी हैं । ये समस्याएँ आज की नहीं हैं अपितु सदियों, युगों से पनप रही हैं । इनके परिणामस्वरूप सामाजिक विषमता पनपती है जो देश के विकास में बाधक बनती है । इसके अतिरिक्त भाई-भतीजावाद व कुरसीवाद समाज में असमानता व अन्य समस्याओं को जन्म देता है ।
भारत की राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए सामाजिक स्तर पर जद्दोजहद करने की आवश्यकता है क्योंकि
”जो भी हो सघंर्षों की बात तो ठीक है
ADVERTISEMENTS:
बढ़ने वाले के लिए यही तो एक लीक है ।
फिर भी दुःख-सुख से यह कैसी निस्सगंता !”
ADVERTISEMENTS:
देश में अशिक्षा और निर्धनता हमारी प्रगति के मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट हैं । ये दोनों ही कारक मनुष्य के संपूर्ण बौद्धिक एवं शारीरिक विकास में अवरोध उत्पन्न करते हैं। जब तक समाज में अशिक्षा और निर्धनता व्याप्त है, कोई भी देश वास्तविक रूप में विकास नहीं कर सकता है ।
इन समस्याओं का हल ढूँढ़ना केवल सरकार का ही दायित्व नहीं है अपितु यह पूरे समाज तथा समाज के सभी नागरिकों का उत्तरदायित्व है । इसके लिए जनजागृति आवश्यक है जिससे लोग जागरूक बनें व अपने कर्तव्यों को समझें । देश के युवाओं व भावी पीढ़ी पर यह जिम्मेदारी और भी अधिक बनती है ।
आवश्यकता है कि देश के सभी युवा, समाज में व्याप्त इन बुराइयों का स्वयं विरोध करें तथा इन्हें रोकने का हर संभव प्रयास करें । यदि यह प्रयास पूरे मन से होगा तो इन सामाजिक बुराइयों को अवश्य ही जड़ से उखाड़ फेंका जा सकता है ।